Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 306189 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अब

अब मै भी जान गया हों
लोगों को पहचान गया हों

बातों से आपने ही हर गया हूँ
कलम के आपने पार गया हूँ
लोगों को पहचान गया हों

मौका मील मै भी ताड़ गया हूँ
ऐसे कैसे मै सबसे हर गया हूँ
अब मै भी जान गया हों

धन की मंडी मै बिक गया हों
मर मर के मै भी जी गया हूँ
लोगों को पहचान गया हों

आवाज दी थी कभी हजरून नै
आज विरानो मै गुम होआ हूँ
अब मै भी जान गया हों

एक हस्ती थी मेरी भी
उस बस्ती ना जाने कहाँ खो गया हों
लोगों को पहचान गया हों

अब मै भी जान गया हों
लोगों को पहचान गया हों

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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मेरी तन्हाई

मेरी तन्हाई क्या रंग लाई
डोली सजाकर वो देखो
ग़मों की दुल्हन आयी
मेरी तन्हाई क्या रंग लाई .......

द्वार पर मातम ने शहनाई बजाई
ढोल और बाजै मै ख़ुब होई लडाई
बारातियों ने भी देखा आंखें छालकई
मेरी तन्हाई क्या रंग लाई .............

शांत कोने मै चुप चाप पड़रहा
पड़ोस मै गीता का शोर गुंज रहा
चिता ने मेरे सात फेरे लीये
आगा ने मुझे झकझोर दिया
मेरी तन्हाई क्या रंग लाई...............

आग के फिनके की तरह उड़ रहा हों
राख होते ही सकुन मीला
प्यासे तन को जैसे तन मीला
आत्मा को परमानद मीला
मेरी तन्हाई क्या रंग लाई ...............

ऐसी मेरी विदाई होई
तन्हा से तन्हाई होई
कोशिश की थी मैने भी पर
मौत भी मेरी हरजाई होई
मेरी तन्हाई क्या रंग लाई ...............


मेरी तन्हाई क्या रंग लाई
डोली सजाकर वो देखो
ग़मों की दुल्हन आयी
मेरी तन्हाई क्या रंग लाई .......

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अंधीयारी

जुन्यली मुखडी
चकोर सी की थै खोज्यनी वोहली
ईं अंधीयारी रात मा
अखां की पुतली कीले संणकाणी होली

जुगीन सी कीले झागमाण होली
जल बुझी की क्या जात ण होली
माया का फैरा दगड़ लगण वहाली
यकुली यकुली केले बाचाण वहाली

राता का प्रहार येरे दगडया मेरा
काखक बाटी साराण येरे दगडया मेरा
सजै की बैठी च कुअलण येरे दगडया मेरा
सारी रात यानी कटण येरे दगडया मेरा

पखीं पाखं सी कतरण ये मेर जगरण
बीता दिनों की यादों की अब रहेगे भ्रमण
कीले च उदास केले च ये तड़पण
अंशों का आँखों मा लगीरैंदी दाडमण

जुन्यली मुखडी
चकोर सी की थै खोज्यनी वोहली
ईं अंधीयारी रात मा
अखां की पुतली कीले संणकाणी होली

बालकृष्ण डी ध्यानी
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मेरी व्यथा

आज रूठी होई हो
खुद से खींजी होई हो
अपने अंतर मन से ही
आज तुम भीडी होयी हो
आज रूठी होई हो .........

जीवन पथ मई आये
रोडै से अड़ी होयी हो
देखे होये सपनों के
को टूटने से उखड़ी होई हो
आज रूठी होई हो .........

बैचनी बढती जा रही है
कठनईयां घिरती जा रही है
असमान के काले काले बादल
छठ नहीं रहे व्याकुल हो तुम
खुद ही खुद मै घुली जा रही हो
आज रूठी होई हो .......

बहती नदी के बहवा से
कंही कटी जा रही हो तुम
सूरज की रोशनी की तरह
बादोलों की आड़ मै छुपी जा रही हो तुम
आज रूठी होई हो .........

पर्वतो की उंचाइयां
की चाह नै तुम
जंगलों मै खोयी जा रही हो तुम
चाँद की चांदनी की तरह
खुदा से शिकयत कीये जा रही हो तुम
आज रूठी होई हो .........


आज रूठी होई हो
खुद से खींजी होई हो
अपने अंतर मन से ही
आज तुम भीडी होयी हो
आज रूठी होई हो .........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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हीलंसा

हे उड्जा ये हीलंसा
उडी की देख जर सा
हे उड्जा ये हीलंसा....

आकाश भाटे कण लगदु
म्यार तेडा मेडा सड़की का बाटा
हे उड्जा ये हीलंसा....

कदगा रुअडी गैनी
ये सड़की का बाटा
हे उड्जा ये हीलंसा....

जो यख रहे गैनी
देख बता उनका हाला
हे उड्जा ये हीलंसा....

केले रोणी ये हीलंसा
विपदा णी सहेणी आजा
हे उड्जा ये हीलंसा....

देव भूमी च ये
मेर देबतो का आशा
हे उड्जा ये हीलंसा....

बोउडी कब आला ओ
कब आला अपर घारा
हे उड्जा ये हीलंसा....

तो सोचणी केले आज
सुरक उडैकी तु मीथै बथैगै आज
हे उड्जा ये हीलंसा....

हे उड्जा ये हीलंसा
उडी की देख जर सा
हे उड्जा ये हीलंसा...

बालकृष्ण डी ध्यानी
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मण मयारू

मण मयारू
मण मेरु आज बस मा णी राई
कंण विपदा घार कै गयाई
मण मयारू बोझ मा दबी ग्याई
खैरी का बस्गा घरु होग्याई
मण मयारू ..........

लूटपाट मांची जख भी जावा तख
त्रश्दी ही त्रश्दी छयी यख या वख
मयारू गढ़ देश भी अछुतु णी रही
म्यार लोगों की पीड़ा बढग्याई
मण मयारू ..........

यखार यखार रै रैकीं मै भी
याखरी सी ही मी होग्युं
एक शुन्य मा ग़ुम होग्युं
यथार्त से भागदा रैंगुओं
मण मयारू ..........

उकल उंदर पाटों मा पीस ग्याई
खैरी की कामणी छुट ग्याई
बंजा पुन्गाडा सी बंजा होग्याई
मयारू बीज कण मोर ग्याई
मण मयारू ..........

हरु हरु देख्दा देखाद मांण कालु होगई
जीवण की चरखी खेचता खेचता
ये दागड़या मण क्या बात होग्याई
मी कीले मी णी रहई ये मेर मण
मण मयारू ..........

ऊँचा हिमाल देखाद देखाद
मण मयारू केले छुटु होग्याई
सै णी कम णी का वास्ता है देबता
रोंल्लयुं का गदनीयौं संग बोगी गयाई
मण मयारू ..........

मण मयारू
मण मेरु आज बस मा णी राई
कंण विपदा घार कै गयाई
मण मयारू बोझ मा दबी ग्याई
खैरी का बस्गा घरु होग्याई
मण मयारू ..........

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जओंला

चल दगडी जओंला
पहड़ घूमी ओंला
म्यार गों गोंल्युनो फिरी ओंला
अपड़ा पराया भेंटी ओंला

वख नारंगी की रसीली दाणी
कीन्गोड काफल की डाली
घुघूती हीलंस जाणी पंखी
उजड़ा पड़यूँ देख म्यार गड की झांकी
चल दगडी जओंला

सड़की मोडे गैनी
पर म्यार आपड़
अब तक णी मोडे णी
चखाल बनके कखक उड़े गैनी
चल दगडी जओंला

मील णी जाणी
खैरी की कमाणी
नीसड़ो बाटों गै
की जा कै हरची
चल दगडी जओंला

चल दगडी जओंला
पहड़ घूमी ओंला
म्यार गों गोंल्युनो फिरी ओंला
अपड़ा पराया भेंटी ओंला

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"फिर बॉडी ऐगे बग्वाल"

ऊँचा धाम छुड़ीकी
कैलाश गाम छुड़ीकी
बॉडी बॉडी के ऐगे जग्व्ला
मुम्बा धाम ऐगे ऐगे बग्वाल......

उत्तरखंड भाटैकी
नाच-धाज सजैकी
डोली मा बैठिकी
ढोल दामू बजैकी
मुम्बा धाम ऐगे ऐगे बग्वाल.....

गों का बाटा भुलायाँ
खैनी कामणी बाण शहर मा बस्याँ
ओंका का दर्शना को
मा नंदा खुद येगेई चलैकी
मुम्बा धाम ऐगे ऐगे बग्वाल......

चला भुल्हो चला दिदो
माटुंगा अब सब जोंला
कर्नाटक संघ हॉल मा
माँ नन्दा थै भेंटी ओंला
मुम्बा धाम ऐगे ऐगे बग्वाल.......

ऊँचा धाम छुड़ीकी
कैलाश गाम छुड़ीकी
बॉडी बॉडी के ऐगे जग्व्ला
मुम्बा धाम ऐगे ऐगे बग्वाल.....

जय माँ तेरी सदा ही जय ऊँचा पहाड़ की माँ नंदा राज-राजेश्वारी

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मी मज्हया मनात अडकवून गेलो

मी मज्हया मनात अडकवून गेलो
बाहेर येनाचा प्रयतन केले
पण बाहेर येऊ शकालू नहीं
मी मज्हया मनात अडकवून रहिलू

दोहरी भूमिका माला कधी समजली नहीं
मी येकंकी मधे रंगत रहिलू
कधी कधी विचार आला
पण तू व्यर्थच आला
मी मज्हया मनात अडकवून रहिलू

घबराता ,बिनधास कधी
जगच्या अटहाश कधी
नील आसमानी मनात
विचाराची पतंग बद्वत रहिलू
कुणी तरी कपिला या भीते नै
आपल्या भावती लापवेत रहिलू
मी मज्हया मनात अडकवून रहिलू

बहिर जानयाचा धाश झाला नहीं
हिरवी रान्त फिरलू याचा भाष झाला नहीं
ओले चिम्बा पावस नै भिजलो
अणि मी स्वतवर चिडलो
माला माझे प्रतिबिम्बा पार करता अल नहीं

मी मज्हया मनात अडकवून गेलो
बाहेर येनाचा प्रयतन केले
पण बाहेर येऊ शकालू नहीं
मी मज्हया मनात अडकवून रहिलू

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एक टीश च

मेरे कविता मा एक टीश च
मनख्यूं देख कण धीट चा
राडाद रहैन्दी फजल ब्योखनी
रात दगडी उनकी खास भेंटच
मेरे कविता मा एक टीश च

रुंतैला मुल्क मेरु गढ़ देश
ऊँचा ऊँचा हीमाला तू भी देख
म्यार ये चीपलाणु सा भेष
उजाड़ खाडू मयारू डंडूयूँ का देश
मेरे कविता मा एक टीश च

काला काला रेघ खिंचा
जख भी जावा वाख भींचा
प्रगती का मार्ग मा देख
झाडा टुका तक वा बीछा
मेरे कविता मा एक टीश च

पलायन एक समस्या च
लोगों का माण बस फिरयाँ छान
नीसडू का बोल्दा बस अब साथ च
उकाला मा बस खैरी की बातच
मेरे कविता मा एक टीश च

यख नारी की बल क्या बातच
मी थै भगवती तेरु ही साथ च
गैरसैंण मा बल गड अटकी राइणी
देहरादुन राजधनी की देख दहल-पैलच
मेरे कविता मा एक टीश च

मेरे कविता मा एक टीश च
मनख्यूं देख कण धीट चा
राडाद रहैन्दी फजल ब्योखनी
रात दगडी उनकी खास भेंटच
मेरे कविता मा एक टीश च

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