Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447344 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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केदार बाबा रात्री
 
 चला भक्तों बाब द्वारी
 कैलाश मा बैठ्युं बाबा त्रिशूल धरी
 
 त्रिनेत्र वालो बाबा नीलकंठ मुरारी
 सत्यम शिवम् सुंदरम त्रिपुरारी
 
 डम डम डमरू धरी गंगा मस्तक पर विराजत
 गले मै माला सर्पोंवाली शम्भु हितकारी
 
 मरघट बाबा मायाल्दु अतिभारी
 चन्द्रमा शीश पर सुवै सुतवारी
 
 बमबम भोल्हे बोई पर्वती के स्वामी
 दोई बालक गणेश कर्तीकै वे बाबा
 
 भील नाम शिकारी अनजाने दुःख हरी
 रात्री भील पता जल शंकर पिंडी अभिषेक चडायु
 
 शंकर महादेव प्रकट भायु कष्ट निवारो
 कष्ट निवारो रात्री तब बह्टैक महाशिवरात्री पर्व जन जन मनायु
 
 जय अल्कख बिहारी जय अल्कख बिहारी
 हमरी सेवा स्वीकार करू शम्भु दीनदयाला
 
 चला भक्तों बाब द्वारी
 कैलाश मा बैठ्युं बाबा त्रिशूल धरी
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
 
 सेवमा
 सभी भै भैणु
 महाशिवरात्री की आप सबको बहुत बहुत शुभ कामनाये . शिव भोले नाथ आप सबको मन की हर मुराद पूरी करे . मेरी केदार बाबा जी से ऐ हाथ जुड़कर पार्थना है . — with प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल and 24 others.Like

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जीकोडी मेरी
 
 किलै वाहलु ...२
 धक् धक् ध्क्ध्याट
 रग रग राग्याट कणु वाहलु
 किलै वाहलु ...२............
 सुचणु
 गढ़ देश मेरु आज
 
 क्या ये मा दाडी च
 सुख दुखा की घड़ी च
 यकुली ही लगी च
 लगुली जीकोडी भीत्र जमी च
 किलै वाहलु ...२............
 सुचणु
 गढ़ देश मेरु आज
 
 खैरी ऐरै दगडया
 झट विपदा दीदी थै बुला
 उकालू भुल्हा छुयीं लगाणु
 उन्दारू दीदा की कथा सुणाणु
 किलै वाहलु ...२............
 सुचणु
 गढ़ देश मेरु आज
 
 आंखी बच्चाण मा लगी
 गढ़ देश की मेर गंगा
 अब यख सुख्याण लगी
 बाटा पछायाण मा लगी
 किलै वाहलु ...२............
 सुचणु
 गढ़ देश मेरु आज
 
 किलै वाहलु ...२
 धक् धक् ध्क्ध्याट
 रग रग राग्याट कणु वाहलु
 किलै वाहलु ...२............
 सुचणु
 गढ़ देश मेरु आज
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कल
 
 देख देख का फर्क है
 देख रेख का फर्क है
 
  जो है माध्यम या तेज
  सोच समझ का फर्क है
 
 मेज सेज पर फर्क है
 उस पर अक्ल का दरक है
 
 साफ सुथरी क्या परत है
 जो दौड़ रही लगी शर्त है
 
 कोई बड़ा कोई छोटा है यंह
 समाज के ताज का फर्क है
 
 अंतर का जंतर यंहा
 धर्म से छुटा एक धर्म है
 
 गिलास आधा भरा होआ
 या फिर आधा वो खाली है
 
 दुर बागा से वो पुष्प टुटा
 क्यों दुखी होआ वो माली है
 
 समय की छलनी है खाली
 क्या समय अब बीता कल है 
 
 देख देख का फर्क है
 देख रेख का फर्क है
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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सोया समाज
 
 कविता को खोया पाया
 समाज मै उसे सोया पाया
 
 चीखती रही चिलाती रही
 दुःख-दर्द से वो  कहराती रही
 
 भुख के फंदे मै झूली सखी
 आपनो से ही रूठी कभी
 
 शहरों की राहों मै छुड़ा पाया 
 गावों के खेतों मै बोया पाया 
 
 महंगाई संग नाचती रही
 गरीबी का मातम बनती रही
 
 देहज के बंधन मै बंधी वो
 सती संग चिता चड़ी वो
 
 रही चीखती चिलाती वो
 एक आह बस अब गाती वो
 
 कविता को खोया पाया
 समाज मै उसे सोया पाया
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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मेरी ये कहानी है
 आप के लिये अनजानी है
 ये जो रवानी है
 दो दिन की जिंदगानी है
 मेरी ये कहानी है .............
 
 मै बंदा सीधा साधा हों
 अपने परिवार बीना आधा हों
 अहम् भाव से मारा हों
 गुस्से को ना अभी त्यागा हों
 मेरी ये कहानी है .............
 
 कर्म भुमी ये देवभुमी है
 पली गाम का रही बासी हों
 मै हों उत्तराखंडी गर्व मुझ को
 मै पहाड़ मै रहने वाला हों
 मेरी ये कहानी है .............
 
 सीधी साधी मीठी बोली मेरी
 ना बनी अब तक ये भाषा है
 गढ़ को देखकर मुझ को ऐ आशा है
 कुछ भी नहीं यंहा गम तो साजा है
 मेरी ये कहानी है .............
 
 बंदा यखरा यखरा मै सही
 दो टुक खरी खरी मेरी बाणी है
 कमी को मेरी हथेली मै गीनवाओ
 पीठ पीछे ना उसे तुम सुनाओ
 मेरी ये कहानी है .............
 
 मेरी ये कहानी है
 आप के लिये अनजानी है
 ये जो रवानी है
 दो दिन की जिंदगानी है
 मेरी ये कहानी है .............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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काया
 
 ये काया
 तिल क्या लाया
 तेर पीछणे पीछणे
 ऐगै  ये माया
 ये निर्भगी काया................
 
 सुख दुखा की
 कैसी रीत च
 जीकोड़ी ल फिर
 गै ये गीत च
 ये निर्भगी काया................
 
 अन्ख्युं मा दीखै
 माथा मा सजै
 नाका दगडी लगै
 कनुअड़ी मा बल झुलै
 ये निर्भगी काया................
 
 गीचुडी छुंयीं लगै
 हाथों दगडी बचै
 खुठी दगडी तु हीठे
 अपरा दगडी कभी बचै
 ये निर्भगी काया................
 
 खुद सोचदा रैगै तु
 आपरों की णी सोच तैंन
 रमता रैगे ये काया दगडी
 गढ़ देश की णी सोच तैंण
 ये निर्भगी काया................
 
 बोई ये मातभुमी
 बणी ना कर्म भुमी
 देवभुमी हे गढ़वाल
 व्यर्थ मेरी ये काया 
 ये निर्भगी काया................
 
 ये काया
 तिल क्या लाया
 तेर पीछणे पीछणे
 ऐगै  ये माया
 ये निर्भगी काया................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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मोमबत्ती
 जलती रही
 पिघलती रही
 माध्यम कभी
 कभी वो तेज
 हवा के झोकों
 से लडती रही
 मोमबत्ती
 जलती रही .........................
 
 चुप चाप
 अपना गम
 वो सहती रही
 बीते पलों को
 वो याद करती रही
 मोमबत्ती
 जलती रही .............................
 
 अंधेरे से वह
 अकेले लडती रही
 लौ से जल जलकर
 रोशनी फैलती रही
 अपने उस अंधेरे मै
 खुद को खोजती रही
 मोमबत्ती
 जलती रही
 
 मोमबत्ती
 जलती रही
 पिघलती रही
 माध्यम कभी
 कभी वो तेज
 हवा के झोकों
 से लडती रही
 मोमबत्ती
 जलती रही .........................
 
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गुनाह या मजबुरी ?
 
 बाल मजदुरी
 एक गुन्हा है पर ?
 सुली पर चढ़ा खुदा है पर
 कानुन कैसे जुदा है पर
 घर का चूल्हा बुझा है पर
 आंखें रोती रहती है
 दर्द क्यों जुदा है पर
 बाल मजदुरी
 एक गुन्हा है पर ?..........
 
 भुख है ऐ पेट पर
 अमीरों से कोशों दुर पर
 दो शब्द उसके पास पर
 गरीबी के नीचे दबा है पर
 आँखों से दर्द छलकता पर
 कीसी को नजर नहीं आता पर
 दिये की रोशनी जलता पर
 अँधेरा अब भी साथ  पर
 बाल मजदुरी
 एक गुन्हा है पर ?..........
 
 गुनाह है या मजबुरी पर
 काम करना जरुरी पर
 गर एक दिन छुटा पर
 दाना पानी से रिश्ता टूट पर
 किस को है ना इसकी परवाह पर
 समाज मेर सोया सोया सा पर
 क्यों करैं मेरी फ़िक्र पर
 लगा हो अपनी मजदुरी पर
 दुनीया बनाये दुरी पर
 ना जाने मेरी यूँ मजबुरी पर
 बाल मजदुरी
 एक गुन्हा है पर ?..........
 
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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गुनाह या मजबुरी ?
 
 बाल मजदुरी
 एक गुन्हा है पर ?
 सुली पर चढ़ा खुदा है पर
 कानुन कैसे जुदा है पर
 घर का चूल्हा बुझा है पर
 आंखें रोती रहती है
 दर्द क्यों जुदा है पर
 बाल मजदुरी
 एक गुन्हा है पर ?..........
 
 भुख है ऐ पेट पर
 अमीरों से कोशों दुर पर
 दो शब्द उसके पास पर
 गरीबी के नीचे दबा है पर
 आँखों से दर्द छलकता पर
 कीसी को नजर नहीं आता पर
 दिये की रोशनी जलता पर
 अँधेरा अब भी साथ  पर
 बाल मजदुरी
 एक गुन्हा है पर ?..........
 
 गुनाह है या मजबुरी पर
 काम करना जरुरी पर
 गर एक दिन छुटा पर
 दाना पानी से रिश्ता टूट पर
 किस को है ना इसकी परवाह पर
 समाज मेर सोया सोया सा पर
 क्यों करैं मेरी फ़िक्र पर
 लगा हो अपनी मजदुरी पर
 दुनीया बनाये दुरी पर
 ना जाने मेरी यूँ मजबुरी पर
 बाल मजदुरी
 एक गुन्हा है पर ?..........
 
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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आजा कु गढ़
 
 तिशु व्हागे टिहरी डैम
 तिसलु व्हागे सरू गाम
 अब भी हिटणा छिण   
 दूर दूर भटैक मैटण छिण
 तिसु रहैगे सारु गढ़ .....................
 
 आज ये योजना ठप   
 भोह्ल वो योजना ठप
 काखक मीलै लाल पाणी   
 काखक फटै ऐ पुरणु पाईप
 आब ऐ रोजा की कहाणी
 तिसु रहैगे सारु गढ़ .....................
 
 लोड सैडिंग की मार
 सैणु अब अपरू खंड
 नेता जी सीयाँ छीण
 उनकी बिजली चलणी
 अब भी सबेर शाम
 अंधेरु मा रहैगे सारु गढ़ .....................
 
 तिशु व्हागे टिहरी डैम
 तिसलु व्हागे सरू गाम
 अब भी हिटणा छिण   
 दूर दूर भटैक मैटण छिण
 तिसु रहैगे सारु गढ़ .....................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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