Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448617 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
February 3 at 4:28pm ·
मेरे रोने पे किसी को भी देखो रोना ना आया
मेरे रोने पे किसी को भी देखो रोना ना आया
आंसू निकले मगर उसे मुझे रोकना ना आया
बढ़ती गयी वो मुश्किलें उसे ऐसे मेरे ढोने से
उस कोने को मुझे देखो साफ़ करना ना आया
बहती रही वो वेदना की नदी यूँ ही मेरे जीवनभर
आखिर तक मुझे वो समंदर का किनार ना मिला
एक चीज थी वो खोयी रही मुझसे उम्रभर
बदलना था सोच को मगर मुझे बदलना ना आया
मेरे रोने पे किसी को भी देखो रोना ना आया .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
February 1 at 9:51pm ·
अब थोड़ी देर में
अब थोड़ी देर में ये रात तो सर जायेगी
उजाला करने मन को वो सूरज आयेगा
अब थोड़ी देर में -------------
वक्त लगेगा मन को पर वो संभल जायेगा
एक किरण ऐसी तो होगी जो उसे छू जायेगी
अब थोड़ी देर में -------------
वो कसीस वो जादू पल भर में छा जायेगा
जिंदगी का मतलब जब खुद में पा जायेगा
अब थोड़ी देर में -------------
बस तेरी और थोड़ी कोशिश खुद को पाने की
अब ना होगी देर तुझको खुद को आजमाने की
अब थोड़ी देर में -------------
बालकृष्ण डी ध्यानी
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दबा हुआ है बहुत कुछ यंहा
दबा हुआ है बहुत कुछ यंहा
आज कल और आज में
कमी रह गयी है हम में
बस इतनी सी ही बात है
भूल अपनी मानते नहीं
बस बात पर बात अपनी बढ़ाते हैं
चलना जहाँ नहीं था हमे
बस उस राह पर हम चलते जाते हैं
बुजुर्गों ने जो कभी कहा था हमे
तब ठीक से ना उन्हें सुन पाते हैं
उम्र गुजरी और वो बुजुर्ग गुजरा
तब उनकी बात पर हम पछताते हैं
कहने की किसी में हिम्मत नहीं
मन ही मन उस बात में हम रह जाते हैं
दिन गुजरा शाम गुजरी समय बीता
तब हम बस सिर्फ अफ़सोस जताते हैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
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तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
दिल थामे बैठा है ये मन का जोगी
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी .................. हो अ अ
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
मेरी दुनिया, तेरे जज़्बात ...
मेरे अकेले में कब थी ये सारी बात
देखा तुझको जब से मैंने
होने लगे अब उन में भी शुरुवात
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी .................. हो अ अ
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
मन पे छाये ये प्रेम के बादल
कब से ये बैठा ये दिल बनके पागल
कर दे अब तो कोई तू हल चल
बरस जाये बादल ना अकेले जाये वो निकल
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी .................. हो अ अ
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
बालकृष्ण डी ध्यानी
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रात की ये रौशनी
रात की ये रौशनी
मध्यम मंजुल है ये रागिनी
बज रही है छम छम
हिर्दय की ये मेरी गामिनी
आँखें बंद कर पकड़ ले
धुँधली सी जो फैली रौशनी
ये कह कर कल हमें छोड़ गयी
आऊँगी फिर आज मोड़ कर
दिख नहीं रहा अगर तुझे
आँखों को आँखों से हम बदल दें
हाँ थोड़े अब साये उभर रहे
रौशनी की धार अपनी तेज़ कर
ये रौशनी हक़ीक़त है
या बस एक सुंदर सा छलावा
कैसे मै इस पे ऐतबार करूँ
कैसे उसे मै अपने पास करूँ
रात की ये रौशनी ...............
बालकृष्ण डी ध्यानी
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सब लूट रहे हैं ....
कहते हैं मिला ये मौका
सब लूट रहे हैं ....
किस पर करें हम भरोसा
सब लूट रहे हैं ....
लगते सब वो एक जैसे
दर्पण के टुकड़े वो हों जैसे
कुछ गम के अल्फाज़ बोल के
कुछ हस्य के संवाद जोड़ के
बस लूट रहे हैं
हम ने दिया ये मौक
सब लूट रहे हैं ....
खाया है ये हमने धोखा
सब लूट रहे हैं ....
सुख दुख कुछ नहीं उनको
बस भूलने की उनको आदत
बड़े वादे हम से करके वो
बस उन्हें वो तोड़ रहे है
हमारा ही कर्म है इसलिए वो
सब लूट रहे हैं ....
संभल लो अब भी गया ना वक्त है
सब लूट रहे हैं ....
नेता तो हमे बनाएंगे
हम क्यों पर बने हुए हैं
उस एक वोट की ताकत से
हम क्यों अब भी बांटे हुए हैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बा हुआ है बहुत कुछ यंहा
दबा हुआ है बहुत कुछ यंहा
आज कल और आज में
कमी रह गयी है हम में
बस इतनी सी ही बात है
भूल अपनी मानते नहीं
बस बात पर बात अपनी बढ़ाते हैं
चलना जहाँ नहीं था हमे
बस उस राह पर हम चलते जाते हैं
बुजुर्गों ने जो कभी कहा था हमे
तब ठीक से ना उन्हें सुन पाते हैं
उम्र गुजरी और वो बुजुर्ग गुजरा
तब उनकी बात पर हम पछताते हैं
कहने की किसी में हिम्मत नहीं
मन ही मन उस बात में हम रह जाते हैं
दिन गुजरा शाम गुजरी समय बीता
तब हम बस सिर्फ अफ़सोस जताते हैं
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  तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
दिल थामे बैठा है ये मन का जोगी
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी .................. हो अ अ
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
मेरी दुनिया, तेरे जज़्बात ...
मेरे अकेले में कब थी ये सारी बात
देखा तुझको जब से मैंने
होने लगे अब उन में भी शुरुवात
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी .................. हो अ अ
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
मन पे छाये ये प्रेम के बादल
कब से ये बैठा ये दिल बनके पागल
कर दे अब तो कोई तू हल चल
बरस जाये बादल ना अकेले जाये वो निकल
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी .................. हो अ अ
तेरे प्यार की बरखा कभी तो होगी
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रात की ये रौशनी
रात की ये रौशनी
मध्यम मंजुल है ये रागिनी
बज रही है छम छम
हिर्दय की ये मेरी गामिनी
आँखें बंद कर पकड़ ले
धुँधली सी जो फैली रौशनी
ये कह कर कल हमें छोड़ गयी
आऊँगी फिर आज मोड़ कर
दिख नहीं रहा अगर तुझे
आँखों को आँखों से हम बदल दें
हाँ थोड़े अब साये उभर रहे
रौशनी की धार अपनी तेज़ कर
ये रौशनी हक़ीक़त है
या बस एक सुंदर सा छलावा
कैसे मै इस पे ऐतबार करूँ
कैसे उसे मै अपने पास करूँ
रात की ये रौशनी ...............
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दबा हुआ है बहुत कुछ यंहा
दबा हुआ है बहुत कुछ यंहा
आज कल और आज में
कमी रह गयी है हम में
बस इतनी सी ही बात है
भूल अपनी मानते नहीं
बस बात पर बात अपनी बढ़ाते हैं
चलना जहाँ नहीं था हमे
बस उस राह पर हम चलते जाते हैं
बुजुर्गों ने जो कभी कहा था हमे
तब ठीक से ना उन्हें सुन पाते हैं
उम्र गुजरी और वो बुजुर्ग गुजरा
तब उनकी बात पर हम पछताते हैं
कहने की किसी में हिम्मत नहीं
मन ही मन उस बात में हम रह जाते हैं
दिन गुजरा शाम गुजरी समय बीता
तब हम बस सिर्फ अफ़सोस जताते हैं
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