Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448557 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बहुत अँधेरा है समाज के अंदर
बहुत अँधेरा है समाज के अंदर
कोई तो आ के अब दीप जला दे
एक हुये थे कभी कई सालों पहले हम
फिर वैसे ही कोई आकर ये बुझी मशाल जला दे
बहुत अँधेरा है समाज के अंदर ...........
घर छूटा है गांव , पहाड़ है छूटा मेरा
कोई आओ हमे इस छूटने से हम को बचाने
भरोसा किया हमने अपनों पर अब तक
अपनों ने ही हमे अब तक लूटा है
बहुत अँधेरा है समाज के अंदर ...........
कोई तो जगमग ज्योति होगी कहीं पर
जो हमें प्रकाशित करने को होगी बेकरार
ऐसी ललक तू जगा दे आकर हम में
हम भी हो जायें इस धरा पर लौटने बेकरार
बहुत अँधेरा है समाज के अंदर ...........
अपने से पूछ अपने को जानो तुम
क्यों कर रहे हो तुम किस का इन्तजार
वो दीपक तुम हो वो मशाल तुम ही हो
बस अब प्रकाशमान होने को हो जाओ तयार
बहुत अँधेरा है समाज के अंदर ...........
बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अभी करने हैं मुझे कार्य बड़े
अभी करने हैं मुझे कार्य बड़े
अभी अग्नि पथ पे मेरा चलना बाकी है
अभी तो शुरू है ये प्रथम अध्याय है
अभी १८ अध्यायों को पूर्ण करना बाकी है
अभी करने हैं मुझे कार्य बढे .............
अभी अपनों के संग मैं खेली पढ़ी बढ़ी
अभी अपने कर्म पथ पर आगे बढ़ना है बाकी
अभी तो सोच और खुद को समझ रही हूँ मैं
अभी अपनों के लिए पहला पद आगे धरना है बाकी
अभी करने हैं मुझे कार्य बढे .............
अभी तो पहाड़ की बस एक घस्यारी हूँ मैं
अभी तीलू रौंतेली मुझे बनना है बाकी
अभी चकबंदी दारूबंदी के खिलाफ लड़ना है मुझे
अभी तो पहले अपने अपनों को एक करना है मुझे
अभी करने हैं मुझे कार्य बढे .............
निधि असवाल भुलि
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
February 21 at 5:58pm ·
मैंने कुछ लिखा भी नहीं फिर भी तुमने पढ़ लिया
मैंने मुंह खोला भी नहीं फिर भी तुमने बोल दिया
अचरज ये राज क्या है ये कैसा कह देती हो तुम
बताओ ना छुपाओ कैसे कर देती हो अपने से तुम
ध्यानी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अपने को खोकर मैं इस जहाँ को पाने चला हूँ ........ रोको ना मुझे
अपने को खोकर मैं इस जहाँ को पाने चला हूँ ........ रोको ना मुझे
इस ही फितूर में मैं अब अपनी जिंदगी जलाने चला हूँ
अपने सपनो की एक नई दुनिया मैं अब अपनों से दूर बसाने चला हूँ
अपनों की बसी बसाई दुनिया को फिर मैं उजाड़ा के चला हूँ
अपनों की बातों को अनसुना कर अब दुनिया की सुनने चला हूँ
रोते बिलखते अपनो की आँखों को और मैं भीगा के चला हूँ
छोड़कर अपनों का रास्ता नये राह पर अपने क़दमों को बढ़ने चला हूँ
किसी को पीछे छोड़कर आज मैं किसी और का साथ निभाने चला हूँ
फितूर के इस घोसले के लिये मैं घर अपना जला के चला हूँ
खुद अपनी और अपनों की अर्थी मैं अपने कन्धों पर उठकर चला हूँ
अपने को खोकर मैं इस जहाँ को पाने चला हूँ ........ रोको ना मुझे
बालकृष्ण डी ध्यानी
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जब भी
पढ़ लेना इसे समय मिले जब भी
अपना - २ सा वो जरूर लगेगा
सोचेगा वो मन फिर खुद ही खुद से
फिर प्रश्न अपने से ही पूछ लेगा
क्यों ना पूछा क्यों छुपाया उसे मैंने
जब अंतर मन मन से छलेगा
बड़ी वेदना बड़ा कष्ट होगा मन को
वो प्रश्न तेरा जब प्रश्न रहेगा
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
February 25 at 7:06pm ·
देखो कमजोर अब वो धागे होने लगे
टूटते टूटते अब वो आधे से होने लगे
अपना ना लगे ना वो कभी पराया भी
फिर भी वो किस्से अब पुराने होने लगे
ध्यानी

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अपने को खोकर मैं इस जहाँ को पाने चला हूँ ........ रोको ना मुझे
अपने को खोकर मैं इस जहाँ को पाने चला हूँ ........ रोको ना मुझे
इस ही फितूर में मैं अब अपनी जिंदगी जलाने चला हूँ
अपने सपनो की एक नई दुनिया मैं अब अपनों से दूर बसाने चला हूँ
अपनों की बसी बसाई दुनिया को फिर मैं उजाड़ा के चला हूँ
अपनों की बातों को अनसुना कर अब दुनिया की सुनने चला हूँ
रोते बिलखते अपनो की आँखों को और मैं भीगा के चला हूँ
छोड़कर अपनों का रास्ता नये राह पर अपने क़दमों को बढ़ने चला हूँ
किसी को पीछे छोड़कर आज मैं किसी और का साथ निभाने चला हूँ
फितूर के इस घोसले के लिये मैं घर अपना जला के चला हूँ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
February 26 at 9:59am ·
जब भी
पढ़ लेना इसे समय मिले जब भी
अपना - २ सा वो जरूर लगेगा
सोचेगा वो मन फिर खुद ही खुद से
फिर प्रश्न अपने से ही पूछ लेगा
क्यों ना पूछा क्यों छुपाया उसे मैंने
जब अंतर मन मन से छलेगा
बड़ी वेदना बड़ा कष्ट होगा मन को
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मेरा नाम ना हो
मेरा नाम ना हो
बस मेरा वो काम हो
इस जग में मेरा काम से
बस सब का काम हो
मैं वो कीच बनो
जिस में कमल खिले
इच्छा मेरी प्रभु के पद से
वो कमल जा के मिले
वो अन्धेरा मैं बनो
जिसमे कई दीप जले
सदैव प्रकाशमान रहे वो मन
ना मैं- (अँधेरा) तब रहूँ
उस सोच का मैं पथ बनो
जिस पर करोड़ों कदम चले
उस लक्ष्य को प्राप्त कर ही
करोड़ों कदम उस पथ पर रोकें
मेरा नाम ना हो
बालकृष्ण डी ध्यानी
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