Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448432 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
March 3 at 4:20pm ·
अपनी एक कविता
हर पल मन में कल कल वो बहे , जैसे बहे वो सरिता
तो आज मैंने भी लिखी डाली है देखो अपनी एक कविता
कुछ अक्षर उभरे थे मन में मन के इस शब्द पटल में
उनको ही अंकित कर डाला उन भावों को मैंने समेट डाला
अक्सर वो बात करती थी मुझसे और साथ रहती थी मेरे
ले कलम का सहरा आज मैंने उन्हें इस कोरे पन्ने में उतरा
पहली बार अहसास किया उसने आज एक नये सृजन का
मन अपना तृप्त किया उसने आज अपने को अर्पण किया
हर पल मन में कल कल वो बहे , जैसे बहे वो सरिता .....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी with Bhishma Kukreti and 75 others.
5 hrs · Manama, Bahrain ·
मैंने कल अपने
मैंने कल अपने
देवता को मना लिया
थोड़ा दूध थोड़े बेल पत्ते अर्पित कर
मैंने उन्हें रिझा दिया
मैंने कल अपने ............
भूखा रहा तन मन
निर्जला कर कैसे भी गुजार दिया
शिकारी की तरह
मृग परिवार साथ मैंने भी मोक्ष पा लिया
मैंने कल अपने .......
कुछ वस्तु उन पर चढ़कर
क्या मैंने सच में मोक्ष पा लिया
प्रश्न पूछा जब मैंने अपने मन तन से
उसने मुझे तुरंत झूठा करारा दिया
मैंने कल अपने .......
महाशिवरात्रि व्रत को
मैंने फिर एक बार व्यर्थ ही गँवा दिया
जलाभिषेक और दुग्‍धाभिषेक मेरा
भूखे पेट में जाना था मैंने नाले में बहा दिया
मैंने कल अपने .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
March 3 at 4:20pm ·
अपनी एक कविता
हर पल मन में कल कल वो बहे , जैसे बहे वो सरिता
तो आज मैंने भी लिखी डाली है देखो अपनी एक कविता
कुछ अक्षर उभरे थे मन में मन के इस शब्द पटल में
उनको ही अंकित कर डाला उन भावों को मैंने समेट डाला
अक्सर वो बात करती थी मुझसे और साथ रहती थी मेरे
ले कलम का सहरा आज मैंने उन्हें इस कोरे पन्ने में उतरा
पहली बार अहसास किया उसने आज एक नये सृजन का
मन अपना तृप्त किया उसने आज अपने को अर्पण किया
हर पल मन में कल कल वो बहे , जैसे बहे वो सरिता .....
बालकृष्ण डी ध्यानी
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और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
हमने देखली इन दोनों की घोड़ सवारी जी
उत्तराखंड को सजाने की कितनी है इन दोनों की तयारी जी
क्या है इनके मंसूबे क्या है इनका रोड मानचित्र के छलावे
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
कोई नींद में सोया रहा किसने जाग कर किया तंग
अपने कार्यों से इन दोनों ने अपने तरीके से अपनों को कितना किया दंग
पहाड़ पर बैठा भोला जनमानस बेचारा ये ही अब तक सोचता रहा
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
मनसा नहीं इनकी कुछ अपने से कर गुजरने की
है होड़ बस दोनों में फिर बस पांच वर्षों का सत्ता का सुख भोगने की
उत्तराखंड आंदोलन में हुये शहीदों की अभिलाषा अब भी अधूरी है
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
बस अपने अपने चूल्हे पर ये अब तक अपनी अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं
कितने ढीट बन गये हैं इतना खाने के बाद भी डकार नहीं ले रहे हैं
दिखता नहीं इन्हे भूख प्यास रोजगार से वंचित अपने अपना पहाड़ छोड़ रहे हैं
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
बालकृष्ण डी ध्यानी
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मौसम ठंडा ठंडा हो जायेगा जब ...
मौसम ठंडा ठंडा हो जायेगा जब .... ३
तुम बहुत मुझे याद आओगे तब .... २
सुर्ख लिफाफे के गर्म चदरों को मुझ पे उड़ते हुये
छू लिये थे गोरे नरम हाथ तुम्हारे जब धोते हुये
हर एक याद बात तुम्हारी तब जाग जायेगी
अब बता दो तुम्हारे बिन हमे नींद कैसे आयेगी
मौसम ठंडा ठंडा हो जायेगा जब ...
रात काली सर्द हमें जब तुम बिन सोने ना दे
पल पल तुम्हारे मेरे साथ होने का अहसास खोने ना दे
कैसे तुम बिन अब ये सर्द काली रात गुजरेगी बोलो
अपनी तस्वीर से मुझे देख कर तुम अब ऐसे ना हसों
मौसम ठंडा ठंडा हो जायेगा जब ...
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
March 27 at 6:31pm ·
मुझे आता नहीं लिखना
मुझे आता नहीं लिखना
वो मुझे लिखना सिखा रहे है
पकड़ के मेरे दो हाथों को
वो मेरी कलम को चला रहे है
मुझे आता नहीं लिखना .......
अजब है वो दोस्त सखा मेरा
वो कैसे मुझे देखो अपना बना रहे है
शब्दों शब्दों को आकार दे कर अपने
अपनी कल्पना को साकार बना रहा है
मुझे आता नहीं लिखना .......
पन्ना पन्ना भी है उसका
उस पर लिखा सपना भी है उनका
मैं तो हूँ उनका दास वो प्रभु मेरे लिखा कर
मुझे वो जिंदगी जीना सिखा रहे है
मुझे आता नहीं लिखना .......
मैं अज्ञानी प्रभु ज्ञानी मेरे
गुरु बनकर वो मुझे ध्यानी बना रहे है
सब कुछ जो लिखा था मैंने
वो सब मेरे प्रभु लिखा रहे हैं
मुझे आता नहीं लिखना .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
March 27 at 12:13pm ·
मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है..
मेरा आप की दया से , सब काम हो रहा है .....
मेरा आप की कृपा से, सब काम हो रहा है.......
करते हो तुम कन्हैया, मेरा नाम हो रहा है....
मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है...
पतवार के बिना ही, मेरी नाव चल रही है....
हैरान है ज़माना, मंजिल भी मिल रही है....
करता नहीं मैं कुछ भी, सब काम हो रहा है...
मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है...
तुम साथ हो जो मेरे, किस चीज़ की कमी है.....
किसी और चीज़ की अब, दरकार ही नहीं है......
तेरे साथ से ग़ुलाम अब, गुलफाम हो रहा है......
मैं तो नहीं हूँ काबिल, तेरा प्यार कैसे पाऊँ.....
टूटी हुई वाणी से, गुणगान कैसे गाऊं.....
तेरी प्रेरणा से ही, सब तमाम हो रहा है.....
तेरी प्रेरणा से ही यह कमाल हो रहा है.....
मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है.....
तूफ़ान आंधियों में तू ने ही मुझको थामा .....
तुम कृष्ण बन के आये, मैं जब बना सुदामा.....
तेरा करम है मुझ पर, सरे आम हो रहा है.......
करते हो तुम कन्हैया.. मेरा नाम हो रहा है.....
गज के रुदन से प्यारे, थे नंगे पाँव धाये.....
काटे थे उसके बंधन और प्राण थे बचाए.....
हर हाल में भगत का सम्मान हो रहा है.....
करते हो तुम कन्हैया मेरा नाम हो रहा है.....
मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है.....

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बालकृष्ण डी ध्यानी
March 25 at 11:08am ·
अपने से छुपता रहा
अपने से छुपता रहा
और गैरों से छुपाता रहा
दिया उसने इतना मुझे
फिर भी मैं भीख मांगता रहा
ना समझा था मैं उसे
जो उसे अब मैं समझने चला था
उसके नूर का सारा प्रेम
जब बिखरा हो हर जगह पर
करता भी क्या मैं ध्यानी
उस से ये सब कुछ छुपा कर
देख रहा है वो मुझ को हर पल
बैठा है वो मुझ में ही कहीं पर
अनजान सा फिर राह हूँ यूँ ही
जाना नहीं मैंने खुद को अब तक
साफ़ साफ नजर आ रहा हैं वो मुझे
फिर भी मैं अंधेरों को चाह रहा हूँ
अपने से छुपता रहा ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
March 22 at 10:24am ·
अब भी इतंजार तेरा है
अब भी इतंजार तेरा है
अब भी मेरा प्यार तेरा है
फागुन के इन बिछे मौसम रंगों में
मुझ पर चढ़ा रंग वो तेरा है
अब भी इतंजार तेरा है ......
ढोल दामों से गूंजता है अपना पहाड़
रसीले गीतों को यंहा छेड़ रही है ये बयार
वो पहला रंग तुम्हारा स्पर्श का अब तक चढ़ा
बावरा मन मेरा उसी प्रतीक्षा में खड़ा
अब भी इतंजार तेरा है ......
अभी तो तुम आ जाओ स्वामी
अभी तक सजाकर रखी है मैंने ये अपनी जवानी
अब तो ये इतंजार की वेदना सहना असहनीय है
बनकर फागुन की फुहार मुझ पर छा जाओ स्वामी
अब भी इतंजार तेरा है ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी with Nidhi Aswal.
March 16 at 11:17am ·
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
हमने देखली इन दोनों की घोड़ सवारी जी
उत्तराखंड को सजाने की कितनी है इन दोनों की तयारी जी
क्या है इनके मंसूबे क्या है इनका रोड मानचित्र के छलावे
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
कोई नींद में सोया रहा किसने जाग कर किया तंग
अपने कार्यों से इन दोनों ने अपने तरीके से अपनों को कितना किया दंग
पहाड़ पर बैठा भोला जनमानस बेचारा ये ही अब तक सोचता रहा
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
मनसा नहीं इनकी कुछ अपने से कर गुजरने की
है होड़ बस दोनों में फिर बस पांच वर्षों का सत्ता का सुख भोगने की
उत्तराखंड आंदोलन में हुये शहीदों की अभिलाषा अब भी अधूरी है
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
बस अपने अपने चूल्हे पर ये अब तक अपनी अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं
कितने ढीट बन गये हैं इतना खाने के बाद भी डकार नहीं ले रहे हैं
दिखता नहीं इन्हे भूख प्यास रोजगार से वंचित अपने अपना पहाड़ छोड़ रहे हैं
और कैसे किस तरह से बेवकूफ बनायेंगे ये हमें ?
बालकृष्ण डी ध्यानी
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