Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448391 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
April 3 at 3:49pm ·
पर ये दोस्ती कुछ और है
बिना पढ़े ही वो अब लिख देते हैं
दोस्ती का बस वो दम भर देते हैं
लाइक कमेंट्स का हाँ मैं मोहताज हूँ
शायद गरीब समझ झोली भर देते हैं
ध्यानी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
April 3 at 2:22pm ·
अब भी बड़ा सकूं है
अब भी बड़ा सकूं है
उस मेरे भूले गाँव में
उस पिपल की छांव में
उन कागज की यादों की नाव में
अब भी बड़ा सकूं है ......
याद आते ही वो मैं उस संग झूम जाता हूँ
अपने को कहाँ हूँ मैं ये तुरंत भूल जाता हूँ
गोते खता हूँ उस अविस्मरणीय पल में
सुखद अनुभूति पाता हूँ रोते मेरे दो नयन से
अब भी बड़ा सकूं है ......
हर पल साथ धड़कता है वो मेरे दिल के धड़कन जैसा
स्वास को जब छूती सुगंध उसकी मेरी जिंदगी में लग जाता तड़का
महक उठता है पूरा आलम गुलशन मेरा वो सारा खिल जाता
सौंधी सी मिटटी से लिपे जब कोई मेरा यहां मेरे गले मिल जाता
अब भी बड़ा सकूं है ......
अभी मैं मचल जाता हूँ अब भी मै खूब तड़पता हूँ
अब भी एक अँधेरे से कोने बैठ खुद पर मैं खूब भड़कता हूँ
कौन सा जिंदगी का मोड़ था वो जब छूटा मेरा वो अपना
एक सपने को पाने को मैं रोज यूँ ही जब बिखर जाता हूँ
अब भी बड़ा सकूं है ......
बालकृष्ण डी ध्यानी
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औ माँ तुझे सलाम
काफी प्यार काफी दुलार
आज दिखा है माँ बस तेरे लिये
रहे सदा ऐसा प्यार माँ बरकरार
हरपल यूँ बरसता तेरे लिये
हर वाल पे माँ आज तू ही तू छायी
आज तेरे बच्चों को ज्याद माँ तेरी याद आयी
यूँ ही हर रोज सुबह शाम कैमरे में
माँ वो रोज यूँ ही सदा तेरी तस्वीर खींचे
फेस बुक में नहीं माँ तुझे
वो सदा प्यार से अपने मन भीतर सींचे
एक दिन ही नहीं होना चाहिए माँ बस तेरा
माँ मुझ पर सदाअधिकर होना चाहिये तेरा
औ माँ तुझे सलाम ........
बालकृष्ण डी ध्यानी
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ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने कब से
क्या खो गया है वो
क्यों खो गया है वो
क्या है वो मेरा
क्यों इतना परेशान हूँ मैं
क्यों इतना चिंतित
ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने कब से
किसने कहा वो सूरज है
किसने कहा श्याद वो चंदा होगा
लेकिन वो मुझे क्यों पता नहीं है
वो क्या मेरा होगा
जो खो गया है वो मुझसे
वो इतना दूर चला गया है अब मुझसे
फिर क्यों वो मेरा होगा
या मैं उससे दूर हो गया हूँ खुद से
कुछ समझ नहीं आ रहा मुझे
कुछ खबर भी कोई अब क्यों लाता नहीं
क्योंकि वो अब पुराना पता मेरा खो चुका है
जिस पर कभी चिट्ठियां आती थी मेरी
वो आंसूं पाती कुछ कह जाती थी
सुन नहीं सका उन अक्षरों को
तब मैं जब मैं अपने में था
अब तो मैं अपने से गुम हो चुका हूँ
कब से ना जाने क्यों
इस बात की क्यों खबर मुझे लगी नहीं
ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने कब से
क्या खो गया है वो
क्यों खो गया है वो
क्या है वो मेरा
क्यों इतना परेशान हूँ मैं
क्यों इतना चिंतित
ना जाने क्या ढूंढ रहा हूँ मैं
ना जाने कब से
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
May 5 at 7:49am ·
सफरनमा
बस ये एक सफर है और ये कुछ नहीं
एक कब्र की सैर है और ये कुछ नहीं
आना है तुमको और जाना है मुझको
बस एक बहाना है वो और ये कुछ नहीं
.... ध्यानी

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पहाड़ टूट रहे हैं
पहाड़ टूट रहे हैं
या पहाड़ को कोई तोड़ रहा है
अपना खड़ा दूर उस से बहुत दूर
बस दूर से देख कर मुस्कुरा अपना मुंह मोड़ रहा है
जलता है कभी वो खुद से
कभी कोई आ कर उसे जला रहा है
पानी तो बहुत है लबालब भरा हुआ
पर आज उसका ही वो पानी उसे तरसा रहा है
खिसक रहा है अचानक चूर हो रहा है
रो रहा है वो अब अकेले मजबूर हो रहा है
मूक है चुपचाप अलग थलग पड़ा
खोद खोद कर उसे अब कोई उसे लूट रहा है
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
April 30 at 3:15am ·
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...
कुछ कहानियाँ अधूरी ही
अब अच्छी लगती है हमें
वो किनारे दूर के
अब क्यों इतना भाते हैं हमें
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...
वो दर्द का मेरा अहसास
क्यों सुखद लगता है अब मुझे
आँखों से बहते आँसूं अपने
बहते बहते क्यों चैन दे जाते हैं मुझे
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...
तड़पता हुआ वो मन मेरा
जब दुख झेलता है यूँ ये तन मेरा
क्यों उसे अब अच्छा लगता है
अकेला जब वो यूँ ही उसकी यादों में जब चलता है
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...
बिछड़ता है जब खुद ही वो खुद से
टूटता है जब वो प्यार इस दिल के भीतर से
वो कसक इतनी मदहोश कर जाती है क्यों
पीछे पीछे वो हर बार ऐसे क्यों मेरे अब आती है
कुछ कहानियाँ अधूरी ही ...
बालकृष्ण डी ध्यानी
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बहुत कम लोग होते हैं
बहुत कम लोग होते हैं
जो दूसरों के दुःख में रोते नहीं
तब वो हमदर्द हो जाते हैं
उनकी तकलीफ
उनको अपनी लगती है
तब वो हम पथ हो जाते हैं
यातना में आँसूं गिरना
ये तो सब में आम बात है
तब वो उन्हें टिप जाते हैं
फर्क बस इतना
उन में और बस हम में है
हम भूल जाते है वो काम कर जाते है
बिना किसी लोभ के
वो सत्कर्मी अपने मार्ग में
जीवन के लिये धन्य हो जाते हैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
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आज कल
बस तेरी कमी खलती रही
आँखों की ये नमी कहती रही
आज कल आज कल
राज रहता नहीं वो साथ मेरे
कोई कहता नहीं आके वो पास मेरे
आज कल आज कल
मर्ज़ क्यों कम अब होता नहीं
दर्द क्यों आकर अब हँसता नहीं
आज कल आज कल
रास्ते मिल गये मंजिल मिलती नहीं
जो छोड़ गये उनके निशाँ दिखते नहीं
आज कल आज कल
चाँद बहुत बेताब है अकेला
सूरज भी अब धधकता है बहुत अकेला
आज कल आज कल
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रूठा है वो
तुम जैसा छोड़ गयी थी
वैसा ही है अपना वो घर
ना जाने क्या बात हुयी है उसके साथ
बहुत चुप रहता है वो आज कल
ना कोई आवाज है आती
ना कोई इस ओर अब है आता
टूट चुका उसका वो सबसे रिश्ता
तेरे शिवाय उसे कोई ना अब भाता
गुमसुम है गुम वो अपने में ही
खाता है क्या ग़म उसे क्यों अब तक पता नहीं
अब भी इन्तजार है उसको तेरा बस तेरा
कितने दिन रातों से वो सोया नहीं
रूठा है वो किस बात पर मेरे
मुझको आज तक उस बात का क्यों पता नहीं
मिनतें की गिड़गिड़ाया अकेले में बहुत
उसके सम्मुख मैं क्यों बोल पाया नहीं
बिलकुल वैसा ही बिलकुल वैसा अब भी वो
पर थोड़ा सा मैं बदल गया हूँ पूरा बदल गया हूँ
अब तो मुझे उसकी सूद रहती ही नहीं
ना जाने तुम्हारे यादों में मैं किस कदर खो गया हूँ
तुम जैसा छोड़ गयी थी
वैसा ही है अपना वो घर
ना जाने क्या बात हुयी है उसके साथ
बहुत चुप रहता है वो आज कल
बालकृष्ण डी ध्यानी
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