Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447993 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आ जाओ मेरे गाँवों में .. आ जाओ ना
आ जाओ मेरे गाँवों में ..
मेरे पहाड़ों में ये मेरा घर बार
मेरे मन के साथ और मेरे मन के पास
आ जाओ ना
आ जाओ मेरे गाँवों में
आओ सुनो ना ....मेरी बातें सुनो ना
मेर मन की बात आपके प्रेम के साथ
इन बहारों के साथ इन नजारों के पास
आ जाओ ना
आ जाओ मेरे गाँवों में
चाहे तुम्हे मैं अब इतना पसंद आऊं ना
तुमको अब मैं बस इतना कहने आया हूँ
देख ना कुछ है मेरे साथ सब है इसके पास
आ जाओ ना
आ जाओ मेरे गाँवों में
बालकृष्ण डी ध्यानी
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ये बाटो मा हिटदा हिटदा

ये बाटो मा हिटदा हिटदा
यो बाटो बी बल अब कटै जालो ...... २
ज्योति जिंदगी को यो यात्रा मा
दुक सदनि अब इन कने रालो
ये बाटो बाटो मा हिटदा हिटदा........

ये आँखा थे कबि वा हंसे देंदी
कबि यूँ थे वा रुवै जांदी
सुक की खोज करणा कोन
ये खुटा सदनि अब मिथे हिटे देंदी
ये बाटो मा हिटदा हिटदा........

सुबेर भतीक ब्योखनी काज बल
रात सैरी गुजरी सिरना गैणा गिनि बल
ऎना फिर बी कुच ऐ हात बल
सुदी सुदी यु जिंदगी को सारो कामकाज बल
ये बाटो मा हिटदा हिटदा........

बिशरा देंदी वा सब अपरा परया
बाटो न हम परी इनि कया टोटका कया
बिशरी गै मि हर्चि गै मि कख
निच मेरो खबर निच कूच अब मेरो पता
ये बाटो मा हिटदा हिटदा........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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यूँ उट्ठरयु मा

यूँ उट्ठरयु मा माया बसीच
विं पतळी अधरों देकदा देकदा
कदगा ये बाटा बिरडया छन
यूँ उट्ठरयु मा

बैठ्युं छों कलम और कागद लेकि
तेरा रूप की जबै मिल वा गागर देकि
भूली ग्युं बिसरि ग्युं कै बाण यख मि अयुं छों
यूँ उट्ठरयु मा

तेर उट्ठरयु न इन मै परी जादू कयाई
हर्चि गै सब मेरो मैसे कुच बी न राई
यखुली नि छों मि अब तू बस साथ मैमा
यूँ उट्ठरयु मा

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बरोस बारिस बतेक

बाणग सलगी च
बरोस बारिस बतेक
मेरो जंगलता मा मेरो पहाड़ा मा
कबि हैरु भैरु घास बाण
कबी पोटगी को दांडी कंठी को आग बाण

सुपनिया का वो आँखा धैर धरिकि
बैठ्या छन वा वै भविष्या का बाटा मा
आस लगै की वैन धरिचा लुकऐंच
जिकुड़ी को कै एक भागा मा

पेटदी रैंदी इंनि सदनि
हर बारी वा रै रैकी अपरा अपरा मा
ईंनि सदनि धैय लगांदि रैंदी वा
यखुली यखुली डाली बोटी की चढ़ी कन्धा मा

कबि नि बुझेंदी वा
कबि नि वा अड़ेदी ना वा कबि थमेंदि
सर सर सर रौड़ी दौड़ी जांदी वा
कबि ना हत आंदी वा ना पकडे जांदी
मेरो जंगलता मेरो पहाड़ा की आग वा

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मि त अपरा गौं मुल्क जानू छों

मि त अपरा गौं मुल्क जानू छों
तू बी ऐजा भुला
अपरि ईं जिकुड़ी थे
तू इन और्री ना रुला

बुरांस फ्योंली फूली गेली
तै थे च क्या च पता
मस्त बसंत पहाड़ों पसरयों गे हुलो
तै थे च क्या च पता
अप्रि जल्म भूमि देख हाक देणी
तू बी विन्थे हाक देकि बथा
मि त अपरा गौं मुल्क जानू छों
तू बी ऐजा भुला
अपरि ईं जिकुड़ी थे
तू इन और्री ना रुला

मि दोल दामों बोलणो
मास्को बाजा मि रिझानु
धिगतालो वा मेरी दगडी लगाणो
ईं मेरी जिकुड़ी थे जी ऊ नचानु
तू बी ऐकि चल मेरो दगड़
विन्थे दुंला वख जैकी नचा
मि त अपरा गौं मुल्क जानू छों
तू बी ऐजा भुला
अपरि ईं जिकुड़ी थे
तू इन और्री ना रुला

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तै देख्द .......

तै देख्द
जिकुड़ी मेर लूछी गे
अग्ने-पिछने दौड़ी भागी
वा त्वैमा जै लूकिगे

तेर मुखडी से
मेर माया इन जुडी गे
झणी सोँण भोंदों बरखा
आच झम झम बरसी गे

तै लिपटी की
ऊं बरखा धार मेसै कैगे
ज्वानी को पियार मा
तू बी पौड़ी गे

तै देख्द .......

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अब की बरसात में

बस अपने थे वो
जो सपने थे वो
देख ना पाये हम उन्हें साथ में
अब की बरसात में

क्या बात हुयी
ये भी ना जान पाये हम
अपनों के हाथों की अग्नि को भी
ना पार पाये हम
अब की बरसात में

क्या रात थी वो
क्या दिन था वो
ना जाने क्या वो बात थी
वो भी बोल ना पाये हम
अब की बरसात में

रोना ना ना कुछ खोना
जीवन तो एक सपन सलोना
उस सपन सलोने में
इस बार ना झूल पाये हम
अब की बरसात में

जागे हैं या सोये हम
हलचल हुयी सब खोये हम
अब ना हम मिल पाएंगे तुम से
इस अगली बरसात में
अब की बरसात में

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बहुत कम लोग होते हैं

बहुत कम लोग होते हैं
जो दूसरों के दुःख में रोते नहीं
तब वो हमदर्द हो जाते हैं

उनकी तकलीफ
उनको अपनी लगती है
तब वो हम पथ हो जाते हैं

यातना में आँसूं गिरना
ये तो सब में आम बात है
तब वो उन्हें टिप जाते हैं

फर्क बस इतना
उन में और बस हम में है
हम भूल जाते है वो काम कर जाते है

बिना किसी लोभ के
वो सत्कर्मी अपने मार्ग में
जीवन के लिये धन्य हो जाते हैं

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आज कल

बस तेरी कमी खलती रही
आँखों की ये नमी कहती रही
आज कल आज कल

राज रहता नहीं वो साथ मेरे
कोई कहता नहीं आके वो पास मेरे
आज कल आज कल

मर्ज़ क्यों कम अब होता नहीं
दर्द क्यों आकर अब हँसता नहीं
आज कल आज कल

रास्ते मिल गये मंजिल मिलती नहीं
जो छोड़ गये उनके निशाँ दिखते नहीं
आज कल आज कल

चाँद बहुत बेताब है अकेला
सूरज भी अब धधकता है बहुत अकेला
आज कल आज कल

बालकृष्ण डी ध्यानी
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रूठा है वो

तुम जैसा छोड़ गयी थी
वैसा ही है अपना वो घर
ना जाने क्या बात हुयी है उसके साथ
बहुत चुप रहता है वो आज कल

ना कोई आवाज है आती
ना कोई इस ओर अब है आता
टूट चुका उसका वो सबसे रिश्ता
तेरे शिवाय उसे कोई ना अब भाता

गुमसुम है गुम वो अपने में ही
खाता है क्या ग़म उसे क्यों अब तक पता नहीं
अब भी इन्तजार है उसको तेरा बस तेरा
कितने दिन रातों से वो सोया नहीं

रूठा है वो किस बात पर मेरे
मुझको आज तक उस बात का क्यों पता नहीं
मिनतें की गिड़गिड़ाया अकेले में बहुत
उसके सम्मुख मैं क्यों बोल पाया नहीं

बिलकुल वैसा ही बिलकुल वैसा अब भी वो
पर थोड़ा सा मैं बदल गया हूँ पूरा बदल गया हूँ
अब तो मुझे उसकी सूद रहती ही नहीं
ना जाने तुम्हारे यादों में मैं किस कदर खो गया हूँ

तुम जैसा छोड़ गयी थी
वैसा ही है अपना वो घर
ना जाने क्या बात हुयी है उसके साथ
बहुत चुप रहता है वो आज कल

बालकृष्ण डी ध्यानी
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