Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 235576 times)

devbhumi

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बेटे मेरे

करनी है कुछ बातें
कुछ बातें तुम से दोस्ती की
करनी है कुछ मुलाकातें
मुलाकातें तुम से दोस्ती की

कुछ बताना है तुम को
ना कुछ समझ ना है तुम को
ना ये हक जताना है मेरा
ना ये प्यार दिखाना है मेरा

हो गये हो अब बड़े तुम
समझदार हो गये हो काफी अब तुम
दोस्तों हूँ मैं तुम्हरा कोई दुश्मन नही
बस रास्ता हूँ मैं तुम्हरा कोई मंजिल नही

बातें मेरी सूल सी लग रही होंगी
किसी कोने तुम्हे अब भी चुभ रही होंगी
उस कोने में मुझे प्यार से बिठा दो
दो अक्षर हैं मेरे अपना जीवन सुधार दो

करनी है कुछ बातें ..............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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devbhumi

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अपने से लगा हूँ मैं

अपने से लगा हूँ मैं
ना जाने किस सपने से लगा हूँ मैं
किस अंधेर छिद्र से
एक रौशनी की रहा खोज रहा हूँ मैं
चलते चलते अब
सांसें चढ़ने लगी है
ढलती उम्र का
वो अहसास कराने लगी है
मंजिल भी अब तक
साफ़ नजर नहीं आ रही है
ऐनक का नंबर
शायद अब बढ़ गया होगा
वहीँ दूर मेज पर पड़ी
पुराने अखबार फड़फड़ाने लगे हैं
लेकिन अब भी है की
उम्मीद लगी पड़ी है
किस कोने में
वो अब भी दबी पड़ी है
अंकुरित होती रहती है वो
आँसूं के प्रवाहित होते ही
सूखे नाले में
जैसे जल के प्रवाहित होते ही
दबे दबे उठे कदम
अब ना जाने क्या कहने लगे हैं
पर वो सपने अब भी
अब भी उस अंधेर छिद्र से
मुझे ललचाने लगे हैं
और मैं हूँ की
लगा हूँ उन सपने को पाने
अपनों को खोकर
अपने से लगा हूँ मैं

बालकृष्ण डी ध्यानी
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इसी तरह रोज मैं ..............

अपनी कविताओं में
मैं बस अपनों को देखता हूँ
हर अक्षर में मैं अपने
पहाड़ का रास्ता खिंचता हूँ

कभी नदी कभी खाई
आ जाते हैं मेरे रास्ते में
उन मेंअपने शब्दों के पुल
मैं बांधने कोशिश करता हूँ

हर अपनी उन यादों को मैं
उनकी हरयाली से रंग देता हूँ
फूल पत्ते उसके चुन चुन के
उस पथ के बिछे कांटे चुनता हूँ

बहती नदी की तरह बहता हुआ
झरनों की तरह गुनगुनाता हूँ
पक्षियों की चहचहाते हुये रोज
मैं अपनों को आवाज लगाता हूँ

इसी तरह मैं अपनों को
अपनेपन का अहसास दिलाता हूँ
कुछ की आँखों से आंसूं बहाकर
उनका दर्द को थोड़ा काम कर देता हूँ

इसी तरह रोज मैं ..............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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वो भौर मेरी कुछ और है

ना आवाज है ना कोई शोर है
वो भौर मेरी कुछ और है

आये जाये वो गुनगुनाते हुये
इठलाते हुये बलखाते हुये

भौंरों की यंहा गुंजन कुछ और है
फूलों की यंहा खनखन चहुं और है

धूप खेले किरणों के संग संग
इनकी आंख मिचौली भरे उमंग

चूमते गलियों में वो नन्हे कदम
थकते नही वो हिलोरे भरते दम

दादा दादी की कहानी कुछ और है
वो माँ हाथों मीठी रोटी कुछ और है

कागज की कस्ती का वो जमाना
बस खुद को खुद से वो आजमाना

जी भर के जिया वो हरपल
बचपन गया वो बडा सयाना

गाँव की वो धूल भरी पगडंडियां कुछ और है
पनघट पर बढ़ते वो मेरे कदम कुछ और है

ना आवाज है ना कोई शोर है
वो भौर मेरी कुछ और है

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ऐ बॉडर

खूब सूरत है तू
गुले गुलजार है तू
मेरे खून की
बहती धार है तू

खड़ा हूँ
तेरे प्यार के लियॆ
ऐ माँ मेरी
तेरे सम्मान के लिये

ये वर्दी तेरी
मेरे ख़ाक से बनी
तेरे तिरंगे से
मेरी जान ये लिपटे

सांस ले तू
मैं दिन रात खड़ा
अपनी साँसों को
दूँ तुझ पे चढ़

ऐ बॉडर ........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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जो बात मैंने कह नी थी

जो बात मैंने कह नी थी
वो बात मैंने कह दी जी
जो बात तुम को अब करनी है
वो बातअब तुम हम से कह दो जी

बदलते रंगों में रंग गिरगिट का
छुपा है कहीं वो संग गिरगिट का
आ ही जाता है नजर
कितना भी तुम छुपा लो मगर
जो बात मैंने कह नी थी ...............

महसूस है वो हवा की रवानी में
बेकस आहों की उन निगाहों में
बेबसी की खोज वो गमगीन कहानी है
मुस्कुरा बैठी है वो उस दर्द के सिरहाने में
जो बात मैंने कह नी थी ...............

खयालों मे कब्ज़ा मेरी अनुभूति का है
हर गुफ़्तगू अब तुझ से मेरी बेज़ुबानी है
ऐसे ही अब मेरी जिंदगानी है
दो घूंट आंसू दो घूंट पानी है
जो बात मैंने कह नी थी ...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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उड़ती मिटटी

हरे भरे खेत थे वो सो गये कहां
अपने थे वो सब खो गये कहां

बांधी रखी है गेड़ी किसने उस पेड़ पर
कटने का डर है जिसे ज्यादा उस मोड़ पर

उड़ती हवा देखो छू कर गयी
दिल के कोने से वो क्या कह गयी

आंखें ऐसे ही अब डबडबा गयी
ना जाने क्यों अब तेरी याद आ गयी

धूल उड़कर भी अब अकेली ही रही
थके क़दमों लेकर अब वो कहां चली

हरे भरे खेत थे वो सो गये कहां.....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बाहों के वो सहारे

बाहों के वो सहारे ... २
बिन तुम्हारे बिन हमारे
बाहों के वो सहारे
रह गये अधूरे से बेसहारे
वो हमारे तुम्हारे किनारे
बाहों के वो सहारे ........

कह ना सके ... २ जो कह ना था
वो लिख ना सके
चलते चलते अकेले ... २ मिल ना सके
वो दूर ही रहे
बाहों के वो सहारे ........ २
बिन तुम्हारे बिन हमारे
बाहों के वो सहारे ........ २

साँसे फंसी है अब ... २ जो अब तक बची हैं
वो थोड़ी सी जमीं
और थोड़ इन्तजार ... २ और बेकरार
वो भुला बिसरा प्यार
बाहों के वो सहारे ........ २
बिन तुम्हारे बिन हमारे
बाहों के वो सहारे ........ २

आंखें भी चुप है वो ... २ नजरें भी चुप हैं
वो क्यों बैठी चुप चुप है
परेशां है वो ... २ ना जाने क्या गम है
वो क्यों इतनी गुमसुम है
बाहों के वो सहारे ........ २
बिन तुम्हारे बिन हमारे
बाहों के वो सहारे ........ २

बालकृष्ण डी ध्यानी
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वो प्रेम मेरा

आज सारा किस्सा तमाम मैं करने आया हूँ
आज बता दूँ की तुझ से प्रेम करने आया हूँ मैं

किसी का कोई इतना इन्तजार नहीं करता
तेरे जितना यंहा इतना प्यार मुझ से कोई नही करता
उसी इश्क से ये आंखें चार करने आया हूँ मैं
आज बता दूँ की तुझ से प्रेम करने आया हूँ मैं

रखी हुयी है तूने मेरी सारी चीजें सँभाले हुये
आज उन्ही से मुलाकात करने आया हूँ मैं

एक हल्का सा अपना इशार तू दे दे मुझे
फिर एक बार अपने आँचल का सहारा तू दे दे मुझे
सँभल जाऊंगा आके मैं आगोश में तेरे
आज उन्ही से मुलाकात करने आया हूँ मैं

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अपने सफर का अब शरू मैं आयाम करता हूँ
फासले बतायंगे कितनी कीमत मैं अदा करता हूँ

ध्यानी

 

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