सुनो
ये घर कुछ बोल रहे हैं ?
दिल की आवजों को टटोल रहे हैं
जड़ों से अपने जो दूर हो रहे
ये घर कुछ बोल रहे हैं ?
वीरान सुनसाना कहानी
आबाद थी कभी यहाँ की जवानी
चहल पहल कभी खूब था यहाँ पर
उसी गुमशुदा उम्मीद को ढूंढ रहे हैं
दुख है उसका तो निवारण भी होगा
कर्ता तेरा कुछ कारण भी होगा
जड़ों से जोड़ी जो विरासत छोड़ रहे हैं
पहचान पर शर्मिंदगी हैं वो बोल रहे हैं
साये में धूप है फिर वो जी रहा हैं
टूटी कड़ियों को जोड़ने कोशिश कर रहा है
आज आपने छूटे टूटे द्वार वो खोल रहा है
मिट्टी चलो फिर से जोड़ें फिर बोल रहा है
इनके टूटे खव्बों का बोझ उठाना पड़ेगा
दूर गया तुझे लौट कर फिर आना पड़ेगा
झड़ती पत्तियाँ अपने जड़ों की ओर झडेंगी नहीं
तभी तक इन पर वो नई कलियाँ खिलेंगी नहीं
ये घर कुछ बोल रहे हैं ? ...........
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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