Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 233118 times)

devbhumi

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कम सांसे बाकी है अब

कम सांसे बाकी है अब
बहुत काम सांसे बाकी है अब
मन की गहराइयों से
सड़क के किनारे
खड़ा हुआ हूँ
और थमी हुई सी सांसे हैं
पर अब भी मै जिंदा हूँ
अफ़सोस हैं बस यादें हैं
और यादों में बस तुम
आज है ये पल  कल बस यादें होंगी
जज़्बात.. हकीक़त में फरियादें होंगी
कुछ धुंधली सी
बस यूं ही बैठे-बैठे
बहुत हुआ
इन यादों को  आज़ाद करो अब
दोपहर की सूनसान
इन रातों से
ऐ सब यादें  कैद हैं बस इस डायरी में
उस अतीत के  कुऐं से भरी हुई
मेरी यादों में उन डुबकी ने
बस वक्त ने बदली करवट अपनी
कम सांसे बाकी है अब 
बहुत कम सांसे बाकी है अब  ....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कवितायें मेरी

कवितायें मेरी
तुम्हरे दिल में रहने का बस बहना ढूंढती हैं
तुम्हरे दिल के किसी कोने में
अपना वो कोई नया ठिकाना ढूंढती हैं

हंसाती हैं वो रुलाती है
माँ के ममता की  लोरी वो सुनाती है
जिंदगी से  कैसे लड़ना
अकेले में कभी, मिलके सिखा जाती है

आती है वो अकेले में
आकर मुझ से वो लिपट जाती  है
सफेद खाली उन पन्नो में
अपने आकृति खुद वो उभार जाती है

सुखद अनभुव वो देती है
परम् सुख के करीब वो ले जाती है
एक प्रवाह जब रुक जाता है
सुगम रास्ता वो  खोल देती  है

कवितायें मेरी  ................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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दानी जलेबी

कौथिक मां विं दगडी आज भेंट हुंई छा
आज विं नजरि दगडी  फिर मेल हुंई छा
जिकोडी को इंजन इन धक धक दौड़ी छा
कोटद्वार छोड़िक कि सट पौड़ी खाल रौड़ी छा

दानि जिकोडी न फिर माया गीत  लगै दे
वै चिफुलु बाटों मां मिथे फिर से चिफले दे
लाली बुरांस फुलि फिर यख  डाला डाला मां
फ्योंली बी शरमेग फिर पहाड़ा पहाड़ा  मां

दानी जलेबी आज फिर इंगलि पिंगली हैगे
रितू मौल्यार फिर फूफळी दन्तुलि मां छैगे
विं लटूलि चरखी को झँफा मिथे फिर झूलेगे
बौल्या बणयूं छ्या कबि फिर वा बौल्या बणिगे

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कौन खो नहीं जायेगा

कौन खो नहीं जायेगा
इन नजरों में , इन हजारों में
कौन खो नहीं जायेगा

ग़ज़लें, नज्में और गीत सभी
सब कुछ इन में खो गये
अनजाना शहर.अजनबी लोग
देखते इन को,इन के हो गये

कौन खो नहीं जायेगा
इन पहाड़ों में , इन गलियारों में
कौन खो नहीं जायेगा

कुछ लोग बदलते हैं मगर
ऐ किंचित नहीं बदलता है
जिंदगी से हार,भाग गये हैं
ऐ अब तक खड़ा नहीं हारा है

कौन खो नहीं जायेगा
इन गाँव में , इन खलियानों में
कौन खो नहीं जायेगा

चाँद चाहता है यही
काश ये धरती  रुक जाये
मैं वंहा अन्धेरा फैला दूँ 
उसे देखने ना कोई आये

कौन खो नहीं जायेगा
इस चांदनी में , इस उजाले में
कौन खो नहीं जायेगा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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हे गेल्या

हे गेल्या मिथे तुम ना
जून तारा जनि हंसे दे ना
हे तारा कया छ
मि तेथे जून जनि हंसे देलू

डाँडो धारु मां ...हे गेल्या
मिथे भेंटि ऐजा
अध्  बाटों मां रुमुक पड़लू
उजाळी मां भेंटि ऐजा

माया थे मेर तू ना परखी
मिथे ते थे भेंटि औंलू
अध्  बाटों मां रुमुक पड़लू
मि वै थे छंटी औंलू

हे गेल्या मिथे तुम ना
जून तारा जनि हंसे दे ना
हे तारा कया छ
मि तेथे जून जनि हंसे देलू

बालकृष्ण डी ध्यानी
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सुनो

ये घर कुछ बोल रहे हैं ?
दिल की आवजों को टटोल रहे हैं
जड़ों से अपने जो दूर हो रहे
ये घर कुछ बोल रहे हैं ?

वीरान सुनसाना कहानी
आबाद थी कभी यहाँ की जवानी
चहल पहल कभी खूब था यहाँ पर
उसी गुमशुदा उम्मीद को ढूंढ रहे हैं

दुख है उसका तो निवारण भी होगा
कर्ता तेरा कुछ कारण भी होगा
जड़ों से जोड़ी जो विरासत छोड़ रहे हैं
पहचान पर शर्मिंदगी हैं वो बोल रहे हैं

साये में धूप है फिर वो जी रहा हैं
टूटी कड़ियों को जोड़ने कोशिश कर रहा है
आज आपने छूटे टूटे द्वार वो खोल रहा है
मिट्टी चलो फिर से जोड़ें फिर बोल रहा है

इनके टूटे खव्बों का बोझ उठाना पड़ेगा
दूर गया तुझे लौट कर फिर आना पड़ेगा
झड़ती पत्तियाँ अपने जड़ों की ओर झडेंगी नहीं
तभी तक  इन पर वो नई कलियाँ खिलेंगी नहीं

ये घर कुछ बोल रहे हैं ? ...........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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दादी कि.....

दादी कु जोड़ा मां,बुराँस फूली गे
दादी कि गलोड़ी,फ्योंली सि शरमिगे

लाल लाल ऊंटडी नि,रंग  इन  जमाई
दादी कि आंख्युं न,घुटी सबु थे पिलाई

दादी कि बिंदुली न,कथा जबैर लगैई
भैर बैथ्यून दादा,भीतर झट दौड़ी आई

दादी कि कमरी लसाक मारीगे
रासो मां दादी आज खुब झूमिगे
ढोल दामों मां इन रास लगैई
हैंसदरी दादी न आज सबु थे हैंसैई

दादी कु जोड़ा मां,इनि बुराँस फूली रे  ......

बालकृष्ण डी ध्यानी
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इखलु  मां

झनि मेरु मन
कया गठयाणु छा
इखलु मां..... ३

कया शरणु हुलो अफि
कया अफि ढखयाणु छा
इखलु मां..... २

माया दाड़ी होलि
दाड़ी होलि वा कख
किलै लुकि होलि
लुकि होलि वा कख

हेरु जों  मि दिखे ना तू
दिखे ना तू
आँखि मिटी जिकोड़ि मां
(झळे जांद तू ).... २
इखलु मां..... २

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धीरे धीरे

धीरे धीरे
उठ रे कदम
थके हैं चलते चलते
धीरे धीरे

जाने कब शाम होगी
जाने कहाँ रात होगी
बढ़ते जा उस सुबह के लिये
धीरे धीरे

पथ पे मिलेंगे तुझे हमसफ़र
वो तेरी मंजिल ना होगी
बढ़ते बढ़ते रहे सदा कदम तेरे
चलते चल जहाँ तेरी तकदीर होगी
धीरे धीरे

रुक जायेगा तू ,कुछ ना पायेगा
हात से तेरे, सब छूट जायेगा
पछतायेगा फिर खुद से बहुत
वो वक्त ना फिर लौट कर आयेगा
धीरे धीरे

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तेरी  यांदें

तेरी  यांदें
मेरे साथ होंगी
ऐसे ही वो
मेरे आस पास होंगी

फुरसत से तब
उनसे बात होगी
एक नई फिर से
शुरुआत होगी

आँखों में पानी
दिल में हंसी वो
देखो अभी अभी
कुछ कह गयी वो

सांसें हैं मध्यम
तुम  नब्जों का संगम
धक धक धड़के
जैसे हो तुम नवजीवन

तेरी  यांदें ...............

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