Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447600 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मील बोउडी आण
 
 मील बोउडी आण दिदियु
 मील बोउडी आण
 हेरा मेरा बाटा दिदियु
 मील बोउडी आण .....२
 
 देणु नी मी सरू दिदियु मील बोउडी आण 
 उत्तराखंड तेरा बाण दिदियु मील बोउडी आण
 ऊँचा निचा डाणडी दिदियु मील बोउडी आण
 तेडा मेडा बाटा दिदियु मील बोउडी आण
 मील बोउडी आण .....२
 
 ऊँचा हीमाला मेरा मील बोउडी आण
 बद्री -केदार को धमा मील बोउडी आण
 गढ़ देश गढ़वाल मील बोउडी आण
 हरीद्वरा हर की पाड़ी मा मील डुबकी लगाण 
 मील बोउडी आण .....२
 
 अलखनंदा भगीरथी मील बोउडी आण
 गढ़ देश को ढुंगा गार मील बोउडी आण
 ये मेरी बोई ना रोई मील बोउडी आण
 बाबाजी को दे प्रणाम मील बोउडी आण
 मील बोउडी आण .....२
 
 उजड़ा पड्या मेरा डंडा मील फिर खिलाण
 बंजा पड्या पुंगडा फिर उपजाओ बाणण
 छुडी गै भै बंद भी गढ़ देश फिर तिल आण
 रुतैला उत्तराखंड फिर स्वाणु बाणण
 मील बोउडी आण .....२
 
 ध्यै लगाणी मात भूमी मीथै मील बोउडी आण
 तेरु उपकार हे देवभुमी मेरी मील कण बिसराण
 लियुं प्रण हमरु गढ़देशा फिर सरग तै थै बाणण
 कृपा रख माँ भगवती हम पर मील बोउडी आण 
 
 मील बोउडी आण दिदियु
 मील बोउडी आण
 हेरा मेरा बाटा दिदियु
 मील बोउडी आण .....२
     
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रत्यक्ष
 
 प्रत्यक्ष को प्रमाण की
 आवश्यकता नहीं होती
 झूठ को धार नहीं होती
 सच्चाई अजर अमर है
 रहती है भले अंधेरे मे
 कुछ समय के लिये फिर भी
 पर उजाले आने के बाद
 देर पर अंधेर नहीं होती
 प्रत्यक्ष को प्रमाण की
 आवश्यकता नहीं होती.........
 
 अकेले रहती है सदा वो
 कभी मुखागार नहीं होती
 चलती रहती अपनी दिशा मे
 कभी सीमा पार नहीं होती
 सच्चाई सच्चाई होती है
 उसकी कंही बात नहीं होती है
 बस दिल की आँखों से बस
 चुपके से वो बायाँ होती है
 प्रत्यक्ष को प्रमाण की
 आवश्यकता नहीं होती........
 
 असत्य रहता है खुलकर
 एक मे एक जुड़ जाता है
 जाना चहता वो दूर कंही
 बीच मे ठोकर वो खाता है
 ढोल नगाडा ले घुमता है
 अपने सर पर जा फुटता है
 अंतं समय मै देखो वो 
 अकेले ही वो जीता है
 प्रत्यक्ष को प्रमाण की
 आवश्यकता नहीं होती........
 
 रहती है आँखों के सामने
 वो ओझल नहीं होती
 लेती है इतने इन्तीहान
 जींदगी के साथ नहीं होती
 दुःख दर्द ही लेकर आती है
 जीगर के पार नहीं होती
 सत्य असत्य के बाजार मे
 बस एक चीज नीलम होती है
 प्रत्यक्ष को प्रमाण की
 आवश्यकता नहीं होती........
 
 उजाले की चाह मे चलकर
 अँधेरा से हार नहीं होती
 गंदी गलियों मे घुमती रहती है
 खुशबु गार हवों से बात नहीं होती
 सत्य असत्य का चक्कर मे
 आते हैं कितने ही चक्कर
 पर उन की अकेले बात नहीं होती
 बस इमान की ही चलती है
 सत्यवादी हरिश्चन्द्र राजा की
 भी यंहा सखा नहीं बचती
 प्रत्यक्ष को प्रमाण की
 आवश्यकता नहीं होती........
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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प्रभु दया
 
 शंकर भोले.................२औ 
 सुनलो  पुकार भगवन
 तुम हो दया के सागर 
 
 गगरी खाली है भोले
 देदो गंगा जी का तड़पंन
 अश्रु धार लिये भगवन
 आया हो कैलाश दर पर
 
 शंकर भोले.................२औ 
 सुनलो  पुकार भगवन
 तुम हो दया के सागर 
 
 जब भी जिसने भी बुलाया 
 तुरंत पहुंचें तुम  सब तज कर
 मेरी भक्ती मै खोट है देव मेरे
 क्यों बैठे हो मुझ से साईं रूठ कर
 
 शंकर भोले.................२औ 
 सुनलो  पुकार भगवन
 तुम हो दया के सागर 
 
 मै बालक अति अभिमानी
 पिता बनकर मीटवो  गिलानी
 हाथ जोड़ बैठा हों प्रभु मेरे
 कंहा छुपे मेरे सुखकर
 
 शंकर भोले.................२औ 
 सुनलो  पुकार भगवन
 तुम हो दया के सागर 
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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ख्वाइश
 
 चाँद को पाने की ख्वाइश  मै
 गुजरी रात तमाम
 झिलमिल करते रहे सितारे 
 देते रहे उसे सलाम
 चाँद को पाने की.....................
 
 कागज और कलम
 ने लिखा कुछ पैगाम
 दिल कोँन से नगर भेजों
 संदेश अब उनके  नाम
 चाँद को पाने की......................
 
 जुगनु की तरहं मै
 जलता और बुझता रहा 
 अब तो सारे आम
 फिर भी ना मिला मक़ाम
 चाँद को पाने की......................
 
 कोशिश तो की मैने
 पाने की ऐ खुदा मेरे
 दे दे वो चाँद मुझे या
 सर दे दे  मेरे इल्जाम
 चाँद को पाने की......................
 
 चला जाओंगा यंहा से
 मुख से मुक बनकर यूँ
 आऊँगा तेरे दरबार मै
 ये चोला मै यंहा तजकर
 चाँद को पाने की......................
 
 चाँद को पाने की ख्वाइश मै
 गुजरी रात तमाम
 झिलमिल करते रहे सितारे 
 देते रहे उसे सलाम
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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धरती
 
 अगर यदि या तथापि
 धरती क्षेत्र मै बसी पृथ्वी
 आश्चर्यजनक अनन्तकाल सनातनत्व नित्यता
 यंह  बसी है कंही विविधता   
 
 क्रोध,वासना,प्रेम,आवेग,जोश
 आरम्भ ओर अन्त के बीच लगा रोग
 जीव्न ओर मन का संजोंग
 उस पर लगा धन का प्रकोप
 अगर यदि या तथापि
 धरती के क्षेत्र मै बसी पृथ्वी....
 
 इच्छा, लालसा, आशा, अभिलाषा
 यंहा लिखी इनकी परीभाषा
 मया और लालच की है ऐ भाषा 
 अंत तक सजती है यंहा आशा
 अगर यदि या तथापि
 धरती के  क्षेत्र मै बसी पृथ्वी....
 
 न्यायपूर्ण, सच्चा, नेक, निष्कपट
 सॉ मै सों है यंह कपट
 मान, मर्यादा, प्रसिद्धि, कीर्ति, यश
 इस को पाने है इन्सान विवश
 अगर यदि या तथापि
 धरती के क्षेत्र मै बसी पृथ्वी....
 
 विरोधता, दुश्मनी, वैर, लाग
 यंह लोभ मै बसा है वैरगाया
 मान, कीर्ति, विशिष्ठता, ख्याति
 अब उस से ही बड़ी यंह भ्रांती
 अगर यदि या तथापि
 धरती के क्षेत्र मै बसी पृथ्वी....
 
 अगर यदि या तथापि
 धरती क्षेत्र मै बसी पृथ्वी
 आश्चर्यजनक अनन्तकाल सनातनत्व नित्यता
 यंह  बसी है कंही विविधता 
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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बस राही की
 
 बस राही की तरंह
 रुका कुछ वकत इस तरहां
 और आगे की राह पर चल पड़ा
 कुछ काहा कुछ सुना
 और वो होलै से मुस्कुरा दिया
 बस राही की तरंह ...............
 
 राह पर उडती धुल की तरंह
 सा मै ठगा का ठगा राहा
 एक एक कण उस धुल के उड़े इस तरंह
 और मै बस देखता ही रहा   
 बस राही की तरंह ...............
 
 राह पर बने पद चिन्हों पर मै चलता राहा
 एक नयी मंजील को मै खोजता राहा
 गम और खुशी के फर्क को बस मै
 महसुस मात्र  ही करता राहा
 बस राही की तरंह ...............
 
 राह मै कभी सवेरा आया तो कभी आयी रात
 कभी भरी  दोपहरी से तपा मै
 तो कभी संध्या से जा मै मिला
 बस प्रकाशा और अंधकार मुझसे खेलता राहा
 बस राही की तरंह ...............
 
 नदी के कल कल धार सा बहता राहा
 पल के बाद पल सागर से मिलता राहा
 मै जीवन नमका नैया मै  सुख-दुःख लेकर
 बीच भंवर मै अकेले ही वो नैया खैवियांता राहा
 बस राही की तरंह ...............
 
 पर आज भी राहा मै राही की तरंह
 वकत की खोज के पद चिन्ह बनता चला
 अगर कभी कोई राही आ जाये भटकर
 मेरी तरंह खोजने एक नयी मंजील 
 बस राही की तरंह ...............
 
 बस राही की तरंह
 रुका कुछ वकत इस तरहां
 और आगे की राह पर चल पड़ा
 कुछ काहा कुछ सुना
 और वो होलै से मुस्कुरा दिया
 बस राही की तरंह ...............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
मील बोउडी आण

मील बोउडी आण दिदियु
मील बोउडी आण
हेरा मेरा बाटा दिदियु
मील बोउडी आण .....२

देणु नी मी सरू दिदियु मील बोउडी आण
उत्तराखंड तेरा बाण दिदियु मील बोउडी आण
ऊँचा निचा डाणडी दिदियु मील बोउडी आण
तेडा मेडा बाटा दिदियु मील बोउडी आण
मील बोउडी आण .....२

ऊँचा हीमाला मेरा मील बोउडी आण
बद्री -केदार को धमा मील बोउडी आण
गढ़ देश गढ़वाल मील बोउडी आण
हरीद्वरा हर की पाड़ी मा मील डुबकी लगाण
मील बोउडी आण .....२

अलखनंदा भगीरथी मील बोउडी आण
गढ़ देश को ढुंगा गार मील बोउडी आण
ये मेरी बोई ना रोई मील बोउडी आण
बाबाजी को दे प्रणाम मील बोउडी आण
मील बोउडी आण .....२

उजड़ा पड्या मेरा डंडा मील फिर खिलाण
बंजा पड्या पुंगडा फिर उपजाओ बाणण
छुडी गै भै बंद भी गढ़ देश फिर तिल आण
रुतैला उत्तराखंड फिर स्वाणु बाणण
मील बोउडी आण .....२

ध्यै लगाणी मात भूमी मीथै मील बोउडी आण
तेरु उपकार हे देवभुमी मेरी मील कण बिसराण
लियुं प्रण हमरु गढ़देशा फिर सरग तै थै बाणण
कृपा रख माँ भगवती हम पर मील बोउडी आण

मील बोउडी आण दिदियु
मील बोउडी आण
हेरा मेरा बाटा दिदियु
मील बोउडी आण .....२

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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गेड
 
 माया का गेड मा
 बंध्युं मन का घेरा मा
 टूट्य सप्नियु का देश मा
 माया का गेड मा................
 
 कंण हिटो पहाडा
 कांटा चुब्याँ जीकोडी का घेरा मा
 थकी खुटी की पीड़ा मा
 माया का गेड मा................
 
 उकालु चड़दा चड़दा
 दाणा होंयाँ दाणु का डैरमा
 तिशुल तो कखक हरचै
 माया का गेड मा................
 
 उन्दरी बाटा बोउगी गै
 लालच लोभ मा अटगै
 एक गेडा मा तो भटकै
 माया का गेड मा................
 
 धगुली धगुली का छेड़ा
 उलझेगै तो कंण रेघा मा
 जींदगी का खेला मा
 माया का गेड मा................
 
 माया की थ्गोली
 णा सील पायी तैण झगोली
 कैका बाण तिल सगोड़ी
 माया का गेड मा................
 
 माया का गेड मा
 बंध्युं मन का घेरा मा
 टूट्य सप्नियु का देश मा
 माया का गेड मा................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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कभी याद
 कभी याद अगर आये मेरी
 तो तुम रोना नहीं
 किसी कोने मै बैठे 
 अपने आप मै खोना नहीं
 कभी याद अगर आये  …..
 
 आखों कै आसूं को खोना नहीं
 चेहरे की हंसी को उन से धोना नहीं
 उमड़ उमड़ आ जाये गम के बादल कंही से 
 उनकी की  कड़कड़हट से डरना नहीं
 कभी याद अगर आये  …..
 
 अकेलेपन को मन मै धरना नहीं
 कुछ भी हो  तुम हिम्मत हरना नहीं 
 पर फिर भी याद अगर आ जाये मेरी प्रिये
 किसी किताब के पन्ने  मै मुझे टाटोंलना नहीं 
 कभी याद अगर आये  …..
 
 तस्वीर तेरी दिल मै बसी है इस तरह 
 नजरों से बस तो ही तो दीखे  अब हर जगह 
 भीड़ मै रहो या मै अकेले मै  याद आयी तेरी
 उस हंसी मन के मेले
 इस  हंसी को तो खोना नहीं 
 कभी याद अगर आये  …..
 
 बसता हों मै अब उस हंसी चेहरे मै   
 उस दिल मै उस मन के मस्तिषक मै
 इन्हे उधास कभी करना नहीं 
 दिल के तार जुडे इस दिल से 
 इनको को कभी रुसवा करना  नहीं   
 कभी याद अगर आये  …..
 
 कभी याद अगर आये मेरी
 तो तुम रोना नहीं
 किसी कोने मै बैठे 
 अपने आप मै खोना नहीं
 कभी याद अगर आये  …..
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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प्रत्यक्ष
 
 प्रत्यक्ष को प्रमाण की
 आवश्यकता नहीं होती
 झूठ को धार नहीं होती
 सच्चाई अजर अमर है
 रहती है भले अंधेरे मे
 कुछ समय के लिये फिर भी
 पर उजाले आने के बाद
 देर पर अंधेर नहीं होती
 प्रत्यक्ष को प्रमाण की
 आवश्यकता नहीं होती.........
 
 अकेले रहती है सदा वो
 कभी मुखागार नहीं होती
 चलती रहती अपनी दिशा मे
 कभी सीमा पार नहीं होती
 सच्चाई सच्चाई होती है
 उसकी कंही बात नहीं होती है
 बस दिल की आँखों से बस
 चुपके से वो बायाँ होती है
 प्रत्यक्ष को प्रमाण की
 आवश्यकता नहीं होती........
 
 असत्य रहता है खुलकर
 एक मे एक जुड़ जाता है
 जाना चहता वो दूर कंही
 बीच मे ठोकर वो खाता है
 ढोल नगाडा ले घुमता है
 अपने सर पर जा फुटता है
 अंतं समय मै देखो वो 
 अकेले ही वो जीता है
 प्रत्यक्ष को प्रमाण की
 आवश्यकता नहीं होती........
 
 रहती है आँखों के सामने
 वो ओझल नहीं होती
 लेती है इतने इन्तीहान
 जींदगी के साथ नहीं होती
 दुःख दर्द ही लेकर आती है
 जीगर के पार नहीं होती
 सत्य असत्य के बाजार मे
 बस एक चीज नीलम होती है
 प्रत्यक्ष को प्रमाण की
 आवश्यकता नहीं होती........
 
 उजाले की चाह मे चलकर
 अँधेरा से हार नहीं होती
 गंदी गलियों मे घुमती रहती है
 खुशबु गार हवों से बात नहीं होती
 सत्य असत्य का चक्कर मे
 आते हैं कितने ही चक्कर
 पर उन की अकेले बात नहीं होती
 बस इमान की ही चलती है
 सत्यवादी हरिश्चन्द्र राजा की
 भी यंहा सखा नहीं बचती
 प्रत्यक्ष को प्रमाण की
 आवश्यकता नहीं होती........
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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