सबसे अलग है जो माँ है
बहुत कम हैं बची साँसे इनकी
बहुत साँसों को लेना बाकी है
दो साँसें छोड़ दी हैं उसने
दो को पकड़ना अब भी बाकी है
गूंजती है उन आँखों में
वो ख़ामोशी दिल में उतरती है
तकती रहती है ना जाने किसे
ना जाने किसे वो खोजती है
जी भर करें आँखों से बातें हम
इनका हंसना रोना बाकी है
कभी घोल उनका मीठी मिश्री सी
कभी ग़म सी वो नमकीन है
आहिस्ता सँभल कर पढ़ना इन्हे
ख़्वाब बुने टूटे इन मे हजारों है
पैरों की आवाज़ नहीं है इन मे
ऐ सीधे दिल में उतरा करती है
रोज नगमा नया गूंजता है
आँखों कि वो आलमारी झाँकती हैं
सवाल करती है वो कितना
और आँखों से ही वो जवाब देती है
हसरत से तकती रहती है
रिश्तों के लिये जीती और मरती है
सिसकी निकलती है उसकी
लफ़्ज़ों के लिए गिरती फिर उठती है
सबसे अलग है जो माँ है
हर एक ओर से वो गुजरा करती है
कभी गोदी में लेती हैं हमे
कभी सीने में हमे रखा करती है
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित