Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447061 times)

devbhumi

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इन बनते संवरते रिश्तों में बस

इन बनते संवरते रिश्तों में बस
उसमे वो प्रेम का धागा तेरा मेरा हो
जितने भी  हम दूर तुम से चले जायें
उन दिलों से उलझा हिस्सा तेरा मेरा हो 

इस सफर में कहां से तुम मिल गए हो
राही बनकर मेरे हमसफ़र
हसरत भरी उन निगाहों से ना यूँ देखो
मुझे कर दोगे तुम मुझ से ही बेदखल

आईने को देखकर अब संवरने लगे हैं
अपने से ही अकेले में यूँ मिलने लगे हैं 
समेट लेना चाहता आगोश अब हमको
अपने से ही अपने में वो सिमटने लगा है   

आज फिर प्यार में अब कयामत होगी
नज़दीकियां दूरियों में लगता है गफ़लता होगी
बेपरवाही आलम अब यूँ मुझ पर छाने लगा है
लगता है तुम पर भी उसका असर आने लगा है
इन बनते संवरते रिश्तों में बस   ....

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बस थके कदमों से

 नदियां जब सूखने लगी
आंखों में क्यों कर उमड़ाने लगी
मजबूरी मेरी सब बयां कर गई
सारे सपने मेरे फना कर गई

पहाड़ अकेले अब रहने लगा
अपनों की खतिर बिखरने लगा
कारण पूछो तो बस बेरोजगारी है
पलायन की ओर वो बढ़ने लगा

दर्द से मिलकर दर्द उभरने लगा है
प्रवासी  प्रवासी से जब मिलने लगा है
पुरानी बातों में यादें उमड़ाने लगी है
बिछड़ा पहाड़ फिर आँखों से गाने लगा है

अकेले में अक्सर वो आ मिलता है
अकेला सफर मेरा ऐसे  आगे बढ़ता है
आंखें मेरी जब भर कर खूब रोने लगी हैं 
आवेग में आते ही वो बस बहने लगी है

बस थके कदमों से थक कर रोज आता हूँ
टूटे ऐनक को मेज पर रख सो जाता हूँ
सपनो में जाने की भरपूर कोशिश होती  है
नाकाम फिर होता हूँ फिर रो जाता हूँ
 
बालकृष्ण डी ध्यानी
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सबसे अलग है  जो माँ है

बहुत कम हैं बची साँसे इनकी
बहुत साँसों को लेना बाकी है
दो साँसें छोड़ दी हैं उसने
दो  को पकड़ना अब भी बाकी है

गूंजती है उन आँखों में
वो ख़ामोशी दिल में उतरती है
तकती रहती है ना जाने किसे
 ना जाने किसे वो खोजती है 

जी भर करें  आँखों से बातें हम
इनका हंसना रोना बाकी है
कभी घोल उनका मीठी मिश्री सी
कभी ग़म सी वो  नमकीन है

आहिस्ता सँभल कर पढ़ना इन्हे
ख़्वाब बुने टूटे इन मे हजारों है
पैरों की आवाज़ नहीं है इन मे
ऐ  सीधे दिल में उतरा करती  है

रोज नगमा नया गूंजता है
आँखों कि वो आलमारी झाँकती हैं
सवाल करती है वो कितना
और आँखों से ही वो जवाब देती  है

हसरत से तकती रहती है
रिश्तों के लिये जीती और मरती है
सिसकी निकलती है उसकी
लफ़्ज़ों के लिए गिरती फिर उठती है 

सबसे अलग है जो माँ है
हर एक ओर  से वो  गुजरा करती है
कभी गोदी में लेती हैं हमे
कभी सीने में हमे रखा करती है

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अब जताने  लगी है

ऐ गीत यूँ ही लिख दिया
और ऐ साल भी
यूँ ही अब गुजर गया 

सोच जब मैंने  .......
पाया नहीं  सब खो दिया
जब अपनों को छोड़ उस ओर  गया
मायने  बस बदलता  रहा 
पायदन जिंदगी के
अकेले चढ़ता उतरता रहा

आकाश पर  .......
सदा नजर ऐ गढ़ी रही
बढ़ती इच्छाओं को ना टोक सका
अम्लिका खठी-मीठी सी
रह रह कर वो ललचाती रही
मुझे अपनों से और दूर ले जाती रही

सपने जो देखे .......
वो देखो अब भी अधूरे पड़े
आवेग स्थिल कभी उछलते रहे
अश्व समान मन दौड़ता रहा
थक कर बस वो हँपता रहा
ना पाने पर खुद से टूटता रहा

कैलेंडर  सा  .......
अब खुद को बदलने लगा हूँ
घड़ी के काटों पर जब चलने लगा  हूँ
वो अब मुझे समझाने लगी है
अपने आप खूब इतराने  लगी है
हक़ है मुझ पर (अब जताने  लगी है)   .... २ 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ख़्वाब

देखे हैं ख़्वाब नये नये
हम ने जागते और सोते होये
आंखें खुली हो या बंद मेरी
बस तुम से मुलाक़ात होते होये

सजाने लगा हूँ ख़्वाब खुद से ही मैं
अब खुद से ही बडबड़ा ने लगा हूँ मैं
देखों जब तुम्हे मुस्कुराते हुये
अब मुस्कुराने लगा हूँ मैं

तेरी  मौजूदगी दिखती है अब
वो सच झूठ मेरे ख़्वाब का
जंजीर  इस कदर बांध दी हैं तुम ने 
अब रह गया हूँ मैं बस नाम का

वो किरन जब छू कर आती तुम्हे 
अब सीधे जाती है इस सीने में
क्या नये रंग रूप ले आती हो तुम
इन अँधेरे ख़्वाबों के घेरों में

जब से हमने ख़्वाब देखना छोड़ दिया
तब से खुद से ही मिलना हमने  छोड़ दिया
जब से बिखरी इन सुनहरी ओस की बूंदों ने
सूरज की तपिश में तपना शुरू किया

देखे थे ख़्वाब नये नये .....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ऐसे ना बिखर जाऊं

बिखरें पड़ें हैं समेटों कैसे
उनको अपने में लपेटों मैं कैसे

उभरकर  तमाम वो लोग
जब आ खड़े हुए  समाने मेरे

माँ  ने कितना कुछ कहा था
अनसुना किया था तब जैसे

किस्तों की मौत होती है कैसे
आ कर कोई मुझको देखे ऐसे

बस सवालों में बिखरी पड़ी है
चंद खुशियां जो उलझी पड़ी है

जवाब देना नहीं चाहत है कोई
बस सवालों को समेटे हुए हैं

ऐसे ना अब बिखर जाऊं मैं
इन दूरियों में ना गुजर जाऊं मैं

बिखरें पड़ें हैं समेटों कैसे

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आगे बढ़ कर यूँ ही  निर्वाह करता हूँ अब मै

इतना प्यार हमने तुम से ही किया है
हर सांस ने बस तुम्हरे लिये ही जिया है 

जता ना पाए  बता ना पाए हम
बस खुद ही खुद से हमने इकरार किया है

देखते रहे रोज तुम्हे हम तुम से ही छुपकर
आँखों को ऐसे ही हमने आराम दिया है

माना हमने मर्ज भी तुम दवा भी तुम हो
इसलिए सब कुछ अपना तुम पर वार दिया है

अकेले ही जब हमने अकेले से प्यार किया है
तुम मजबूर हो कंही ऐ हमने स्वीकार किया है 

बस यूँ ही अब ध्यान देता हूँ तुम पर अब मै
आगे बढ़ कर यूँ ही निर्वाह करता हूँ अब मै

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मैं पुरानी किताब हूँ

मैं पुरानी किताब हूँ
पढ़ सको तो पढ़  लो कभी
आज पड़ी हूँ किसी कोने में
ढूंढ सको तो ढूंढ  लो कभी

अलफ़ाज़ मेरे बदलेंगे नहीं
पन्ने पलट पलट कर देखो कभी
हम आज जैसे है, कल भी वही
अकेले सफर में चलो चलें कभी

कितनी भी पुरानी मैं गर हो जाऊंगी
तेरे किसी  ना किसी काम मै आऊंगी
अपना समझ  जो मुझे उठा ले गया
मै उसी की साथ साथ चली जाऊंगी

उस कोरे कागज पर ऐसे बिखरी हूँ मैं
जीवन के कितने रंगों संग सिमटी हूँ मैं
एक एक शब्द मेरे कई छिपे जज्बात हैं
हर उस पन्ने से लिपटे मेरे अहसास हैं

कभी घने बादल बन कर मिलूंगी  तुझे
तुझ से टकराकर तुझ पर बरसूँगी यूँ ही
वो किताबों का ज़माना सदा तेरा मेरा रहे
वो मेरा अफ़सान तेरा दिल बार बार कहे

मैं पुरानी किताब हूँ  .............

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कश्मकश

पत्ते झड़ने लगे हैं  आज कुछ ज्यादा 
रात सर्द है ठहर ठहर के अब ऐ गुजरेगी

बैठे दूर जब तुझ से मै क्यों रोने लगा
जाने क्या दबी ख़लिश है  जो चुबने लगी

कोई उम्मीद ही नहीं कोई आ पूछेगा
बरसों के याराने जो पीछे मोड़ छोड़ आया

बड़ी देर लगी मुझे जिंदगी तुझे समझने में
जब समझ आने लगी  तू बस रुक्सत थी

दिल की धड़कनो को बस मै धड़काता रहा
अपनों के खतिर खुशियों से कतराता रहा

शांत बगल से मेरे बस वो हवा बन बहती रही
आज भी याद हो  तुम कश्मकश कहती रही

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चलो आज कहीं

चलो आज कहीं चल दें हम तुम यूँ ही
तुम गुम कहीं और  हम गुम कहीं
सीने से लिपटे अपने कई राज हैं
कुछ तुम खोलो और कुछ हम सही

यूँ तो शिकायतें  सैंकड़ों हैं मगर
एक मुस्कान काफी है तेरी ,सुलह के लिये
बेरुखी की देखो कितनी  इन्तेहाँ हो गई
ख़फ़ा हो गए तुम  और खामोश हम

खोकर तुम्हे पाना है ठाना है  आज फिर
पुराने ख्यालों से तेरे गुजरते रहे हम कल रातभर 
हम कितने पागल हैँ ये हमने अब तक जाना नहीं
मर्जी उनकी थी और हम इंतजार करते रहे

हम तुम्हे छोड़ दें ये हमें बिलकुल मंजूर नहीं
रोकेगा ज़माना तो कह दूँगा तुम से प्यार है
तुम को  भी पता चल जायेगा एक दिन
तुम ने  क्या खोया ,  क्या पाया मेरे  बिन

चलो आज कहीं .......

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