Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 233142 times)

devbhumi

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निश्चित ही

कुछ कंही कोई थोड़ा सा रह ही जाता
मिलता बहुत पर कुछ हात नहीं आता

इने-गिने में मैं रोज उनको ही हूँ चुनता
ऐसे नहीं लंबा सफर उन बिन है गुजरा

बहुत नहीं पर थोड़ा ही साथ काफी है
साथ चले नहीं पर वो ही मेरा साथी है

कोई चीज़ ना ही ना ही कोई वस्तु उनकी
छोटी हो उनसे चुपके से मैंने ना लपकी

किंचित ही था जो वो संकोच था मेरा
कह नहीं सका उनसे उस ने डाल रखा था पहरा

कुछ थोडे चन्द शब्द जो उभरे पटल मेरे
इसी तरह ह्रदय संग उन्होंने रोज लिए फेरे

निश्चित ही कुछ कंही कोई थोड़ा सा रह ही जाता
मिलता बहुत पर कुछ हात नहीं आता

बालकृष्ण डी ध्यानी
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सम्मान

ना चाह थी
ना आस थी
जिंदगी बस बर्बाद थी

कभी आह पे
कभी शाख पे
प्रश्न उभरे हर ख्याल पे

कभी दूर हूँ
कभी पास हूँ
बस नजरों से परेशान हूँ

थोड़ी मीठी सी
थोड़ी खारी सी
चटपटी भेल लाजवाब सी

मुश्किलों घिरा हुआ
टूटा हुआ थोड़ा जुड़ा हुआ
बस हौसलों संग लगा हुआ

लड़ रहा हूँ
बस सम्मान के लिए
फिर जीत हो या हार हो

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कुछ लिख दिया
कुछ लिखना बाकी रह गया
एक दिन देखो ऐसे ही
एक ओर चल दिया
मैं पूछता रहा
सोच सोच कर
और वो बिन सोचे ही
आगे बढ़ गया

ध्यानी बस ऐसे ही लिख देता है

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आभास

अर्जन करता रहा ये मन
उज्ज्वल कल के लिए

उपयुक्त था ऐसा करना मेरा
क्या आने वाले पल के लिए

निर्माण सदैव करता रहा
एक दिन निर्वाण होने के लिये

कंगाल अब होने लगा हूँ
अब कंकाल होने के लिए

आदि काल जो गया वो गया
आदी होके जीने के लिए

बालिका तरुणी हो गयी
तरणि लहरों के वेग के लिए

देव अब बन सकता नहीं
दैव में ऐसा लिखा हुआ

आवास सदैव साथ रहा
सिर्फ आभास होने के लिए

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कुछ शब्द याद रखेंगे मुझे

जब कुछ शब्द
याद रखेंगे मुझे
मैं शब्दों संग
इस तरह बस जाऊँगा
समाने तुम्हारे
जब वो आ जायें तो
तो मैं भी
उन संग साथ आ जाऊँगा

बिलकुल
हैरानी होगी तुमको
तब देख मुझे ऐसा
मै भी मंद मंद मुस्कुराऊंगा
ख्वाहिश तुम्हारी फिर जागेंगी
अपनी धाक जमकर तुम पर
मै तुम पर फिर छा जाऊंगा

उन शब्दों संग हम दोनों
कितने साल साथ रहे थे
हम दोनों के बिछोह में भी
वो हरपल आस पास रहे थे
दे जाते थे साँसों को भरोसा
उस सुखद कल के आने का

उन शब्दों में मैं तो बसा हूँ
तुम भी उन संग घुल जाना
रहे ना रहे ये नश्वर अंग हमारा
कुछ ऐसा शब्द तुम रच आना
राह बैठा हूँ मैं शब्दों को लेकर
मुझ से इन शब्दों को ले आते वक्त
किसी और को भी जीवन दे आना

बालकृष्ण डी ध्यानी
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तेरे बारे में

मेरी नजर को अपनी नजर
तुम बनाकर देख लो
क्या महसूस करता है दिल
बस नजर मिलाकर देख लो

तुम्हारे सिवा, ना कोई मेरा
तुम हो तो, सब कुछ मेरा
देख मेरी धड़कने देती है गवाह ,सुनना है तुम्हे
तो कभी मेरी धड़कन को अपना बनाकर देख लो

तेरे बारे में इतना ही... बस इतना ही था
तेरे बारे में मै और क्या लिख पाता बता
मेरी क़लम भी तुम ही हो ,मेरा कोरा पन्ना भी तुम
तुम्ही आ कर अब खुद को लिख दो जरा

तुम्हारे बिना मेरा जीना भी मुश्किल
तुम्हारे बिना मेरा मरना भी मुश्किल
दर्द भी तुम ही हो मेरी दवा भी तुम्ही
तुम्हारे बिना यंहा मेरा रहना भी मुश्किल

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण धीरजमणि ध्यानी

जिंदगी के पन्ने एक एक कर कम हो रहे हैं और फिर भी मन है की
रह रह कर पहले पन्ने पर जाने को क्यों व्याकुल रहता है

कैसे मना करूँ ध्यानी उन्हें

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काश मिल का पत्थर मैं बन जाऊं
कोई ना कोई मुझे लक्ष्य बनाएगा

लक्ष्य ध्यानी

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कौन

अपनी धुन में रहते हैं सब
आकर मुझ संग कौन मिलेगा
मेरी तो बस एक अभिलाषा है
फूलों से काँटों को कौन चुनेगा

दूरियां अपनों में बढ़ती जा रही
आकर इनको कौन सिमटेगा
सोचने लगा हूँ खुद से अब माँ
तेरे सा सुलझा मुझे कौन मिलेगा

आती है याद उस बड़े पीपल वृक्ष की
संग मेरे उसकी छाँव तले कौन चलेगा
अपने से बाहर सब देखने लगे हैं
अपने भीतर को अब कौन टटोलेगा

नारंगी रंगवाली वो तितली मेरी है
आज मेरे संग बचपन से कौन मिलेगा
एक ही गांव में रहते थे सब मिलकर
सोचा ना शहरों आ जुदा हमे कौन करेगा

अनदेखा सा सब मुझे करने लगे हैं
मेरी लिखी ये कविता अब कौन पढ़ेगा
उभरते अहसासों का बस बंधक हूँ मैं
पढ़े ना पढ़े कोई मै तो लिखता रहूंगा

अपनी धुन में रहते हैं सब

बालकृष्ण डी ध्यानी
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