Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 306181 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मी उत्तराखंडी छौ !

मी उत्तराखंडी छौ !
सीदु साधू भोलो भालू
एक गढ़ वासी छुं
बात करा णी कार याणी
मेरी मी उत्तराखंडी छुं

पर्वत माल मा बिछुं छुं गीजी छुं
पवन गंगा बोई दगडी बघी छुं
पहाडी पहाडी बोला मी थै
यूँ दगडी खेल कूदे की बच्युं छुं
मी उत्तराखंडी छौ !

बंजा पुंगडा देखा की रडयूँ छुं
रीटा ड़णड़ बाण लड्युं छुं
गंगा थै बचाण बाण मरयूं छुं
देश की राक्षा बाण शहीद होयूँ छुं
मी उत्तराखंडी छौ !

बोई छुडी की परदेश ग्यी छुं
दार मंदर गों गोंठ्यार छुडी छुं
जी थै यकुली छुडी यकुली रोई छुं
बाबा बोई खंड की खुद मा खोयी छुं
मी उत्तराखंडी छौ !

यकुला मनख्यूं मा खुदयुन छुं
अपरी अपरी मा कीले लग्युं छुं
चुप चाप कीले अब तक बैठुन्चुं
चल उठा जाग कीले सीयुं छु
मी उत्तराखंडी छौ !

मी उत्तराखंडी छौ !
सीदु साधू भोलो भालू
एक गढ़ वासी छुं
बात करा णी कार याणी
मेरी मी उत्तराखंडी छुं

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेरा माटा कूड़ा
मेरा माटा कूड़ा ध्यै लगाण छन
मेरा माटा का कूड़ा मेर दगडी बचाण छन
आपरी आपरी छुईं लगाण छन
गद देशा का इतिहास बताण छन
मेरा माटा कूड़ा ध्यै लगाण छन.....

सीधु साधू हमरु जन जीवन
सधारण हमरु देख रहन सहन
कपाल ढकी काला काला पात्टरों
चोक लीपी गुअडू बल्दुओं का मोलोंण
मेरा माटा कूड़ा ध्यै लगाण छन.....

अपरा संस्क्रती थै बचाण सजाण
चोपाल मा पोणा देबता भावो बोलणा
खान्दुं मा देखा कुल-देबता पूजाणा
चूलह को जलाण -भुझांण मेरु माटू को कुडू
मेरा माटा कूड़ा ध्यै लगाण छन.....

दारा मंदरा गों गोंठ्यार ओ मेरा दार
तिबारी डंडाली ओ फुलेरी फुलपत्ती
ओ मेरा गढ़ देस का बार-तीयोहार
एक कर याद आणो आज मी थै
मेरा माटा कूड़ा ध्यै लगाण छन.....

आज टूटी उजाड़ पडीयुं छुं
बिरला कुकर को घार बाणी छुं
कोणी देखादों मी थै गों को भैर करयूँ छुं
मी थै याद आण वो बीता दीण ओ खुदीमा पड़युं छुं


सीमैनटा कूड़ा आयी म्यार आस्त्तीवा गयाई
माया का लोभमा मा गढ़ रीटा वहाई
द्वेष राग भाईचारा देखा कखक लोकी ग्याई
मेर दगडी देख त्य्रू बचपन भी छुटी ग्याई
मेरा माटा कूड़ा ध्यै लगाण छन.....

मेरा माटा कूड़ा ध्यै लगाण छन
मेरा माटा का कूड़ा मेर दगडी बचाण छन
आपरी आपरी छुईं लगाण छन
गद देशा का इतिहास बताण छन
मेरा माटा कूड़ा ध्यै लगाण छन.....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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द्वी छुंयी


-खुदेड मन म्यार-
खुदेड मन म्यार
करदू रैंद भितर भैर
आंदि च कभी मितै खैर
नी दिखदू तब शाम सुबेर

- कैते बतो -
बैठ्यू रै ग्यू
सुचणू रै ग्य़ू
सुचदा सुचदा
रुमक पोडी ग्ये
क्वी दिखे नी
कैते बतो क्या सोची?

-क्या छंवी लगाण-
यू भी कर दूय़ं
वू भी कर दूयं
क्या बुतण
अर क्या चुसण
अब तुमम
क्या छंवी लगाण

- रगरयाट -
आज किलै ह्वाल
हुंयु यू तौं फिर
रगराय़ट
बुढे गीन पर
नी छुट यूंक
सदिन्यु क रगरयाट

- छुंयाल -
छुंयाल छौ !!!
इन बुल्दिन लोग
कभी छ्वी इनै की
कभी छ्वी उनै की
पर बुल्दु छौ जु
लोग बुल्वदिन ..

- बिसर ग्यो -
ध्यै लगेकि ब्वालि वीन
चिन्नी लयेन आंद दफे
पहुंची जब बज़ार
मिल गीन यार द्वी चार
लगिन गप्प अर
घूंट गीन भितर द्वी चार
लमडदू लमडदू
पौंछि मी गौ मा
कैकि चिन्नी
मित बिसर ग्यु अपर घार

-प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल , अबु धाबी
http://meeuttarakhandi.blogspot.com/2010/06/blog-post_20.html

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मेरी माया'

ठंडी बयार कण बहणी चा ...२
हे दागड़या मेरी माया बथो णी चा

घुन्घरल्या लटोली देख कण उड़णीचा..२
जीकोडी मेरी अपरा लटालो मा उलझाणीचा
ठंडी बयार कण बहणी चा ...२

तेर सवाणी मुखडी माण ही माण मुश्कणी चा....२
मी थै बोल्या बाणणी ची
ठंडी बयार कण बहणी चा ...२

नथोली मुद्री देख कण चमकाणी चा
मी थै वा लोभाणी चा
ठंडी बयार कण बहणी चा ...२

म्यार पहाड़ की बांद कण लस्क दस्का लगे की
मेर दिल लुछी ले जांद च
ठंडी बयार कण बहणी चा ...२

नाख्र्यली म्याल्दी ओ घ्स्यारी पहाडा की नार...२
मी थै अब रोज याद कीले आंद
ठंडी बयार कण बहणी चा ...२

घुघूती हीलंस सी मी थै उडी ले जांदा ...२
बुरांस प्युओंली देख ओ लज्जांद
ठंडी बयार कण बहणी चा ...२

ठंडी बयार कण बहणी चा ...२
हे दागड़या मेरी माया बथो णी चा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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हम उत्तराखंडी

हम उत्तराखंडी हम उत्तराखंडी
हीन्दुस्तान हमारू भग्याविधाता
देवभूमि है हमरु गाथा
गंगा जमुना सी बघती
दैखुला उत्तराखंडी भी अपरी हस्ती
हम उत्तराखंडी हम उत्तराखंडी ....
ना कहो हमे दुणी ना कहो कुमावाणी
ना कहो गढ़वाली ना कहो अब पहाडी
हम है ये धरा पर निर्झर बहते
अचल अवील विचार ये करते
हम उत्तराखंडी हम उत्तराखंडी ....
खंडू खंडू मै ना बाटों ना जिलों मै बाटों
ना प्रेम भवना मै बाटों ना ईशवर के दर बाटों
सचः सीधा सदा मीठी मेरी बोली
कभी कबार खबर मै छाता हिम खंड
हम उत्तराखंडी हम उत्तराखंडी ....
अन्याय पर लडते हम आपने मुदों पै अड़ते हम
एक विचार मै अब जब सोचे हम
प्रगती के भी आगे हम देखो दूडै
बस हम उतरखंड के बारे मै सोंचे
हम उत्तराखंडी हम उत्तराखंडी ....
हम उत्तराखंडी
हम उत्तराखंडी हम उत्तराखंडी
हीन्दुस्तान हमारू भग्याविधाता
देवभूमि है हमरु गाथा
गंगा जमुना सी बघती
दैखुला उत्तराखंडी भी अपरी हस्ती
हम उत्तराखंडी हम उत्तराखंडी ....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ऋषिकेश से कर्णप्रयाग जाली वा

देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख
कण चलणीच देख अब ये रेल
पहड़ों मा लास्का दस्का लगाण
होली वा नाखर्याली जाण बांद
देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख

सपना अब पूरा वाहला
जो हमारा आँखोंल देख
आली वा बेटी बाण या
लागली बावरी सी वा
देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख

गोचार५ नवम्बर २०११ को आली वा
पहाड़ों को करणी देख-रेख
अपरा हाथों सजली वा
छुयीं हमरी लागली वा
देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख

बथों मा ठंडी बायरा लाहली वा
ऋषिकेश से कर्णप्रयाग जाली वा
उत्तरखंड की महीमा अब गाली वा
बद्री-कदर धाम कब आली वा ?
देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख

दीदी बेटी ब्वारी तुम भी आवा
दादा भूलह बाडा तुम भी गाव
चल झट कर ना हो जाये देर
देर-सवेर अब देव भूमि मा येगे रेल
देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख

देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख
कण चलणीच देख अब ये रेल
पहड़ों मा लास्का दस्का लगाण
होली वा नाखर्याली जाण बांद
देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ओ उंगली स्पर्श की

उंगली का स्पर्श तु कैसे भूलह
जिन हाथों से तु बचपन झुल्हा
तकलिफा नहीं होई तनिक भर भी
इस उम्र मै तुने उन्हे बीच रहा छुड़ा
उंगली का स्पर्श तु कैसे भूलह .......

लगानै लगा बोझ जो था बहुँत थोड़ा
आया उनका मोड़ा तु आपने को मोड़ा
जिसने तेरी खुशी के लिये सब छुड़ा
उनके आखरी पड़वा तुने उनको छुडा
उंगली का स्पर्श तु कैसे भूलह .......

माँ पिताजी पुकरतै जीवाह नहीं थकती थी कभी
उनकी प्रेम वर्षा तेरे लिये कभी रुकती नहीं थी कभी
अपनी बस्ती बस्ती उनकी कश्ती टुटा गयी क्यों
जीवनभर की उनकी कुंजी इस तरंह रूठ गयी
उंगली का स्पर्श तु कैसे भूलह .......

अब भी वक़्त है मोका है अपने को बदल ले
ना जाने फिर ये वक़त क्या करवट बदल ले
आज खडे माँ पिताजी जिस छुड पर
ना आये तेरे जीवन मै ओ मोड़ा फिर मोड़कर
उंगली का स्पर्श तु कैसे भूलह .......

उंगली का स्पर्श तु कैसे भूलह
जिन हाथों से तु बचपन झुल्हा
तकलिफा नहीं होई तनिक भर भी
इस उम्र मै तुने उन्हे बीच रहा छुड़ा
उंगली का स्पर्श तु कैसे भूलह .......

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अधुरा प्रेम पत्र जो पुरा ना हो सका

यादों मै खोया प्यार मै रोया
तन्हा रात मै चाँद के पलक पर
खाबुँ को आपने मै सजाता
कलम उठा कर उसे लिख ना सका
अधुरा प्रेम पत्र जो पूरा ना हो सका
एक लडकी जो लगी भली सी
खिली मन मै कली कली सी
पुहंचा वंहा जंह उसकी गली थी
क़दमों को आगे बड़ा ना सखा
अधुरा प्रेम पत्र जो पुरा ना हो सका
क्या कशिश थी उन आँखों की
उन आँखों से नजरें हाटा ना सका
कोशिश की थी नजरों नै मेरी मगर
दिल की बात उठों तक ला ना सका
अधुरा प्रेम पत्र जो पूरा ना हो सका
डर था उस के ना कहने से मै
यही गम सीने खलता रहा
परवाह की समाज की मैने
उन को रुसवा ना कर सका
अधुरा प्रेम पत्र जो पूरा ना हो सका
यादों मै खोया प्यार मै रोया
तन्हा रात मै चाँद के पलक पर
खाबुँ को आपने मै सजाता
कलम उठा कर उसे लिख ना सका
अधुरा प्रेम पत्र जो पूरा ना हो सका
बालकृष्ण डी ध्यानी
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प्रीत निराली

प्रेम की परिभाषा अति निराली
मधमती रहे चंपा की वो बेली
कहती है सखी ओ मेरी सहेली
ये तो है एक अजब सी पहेली
प्रेम की परिभाषा अति निराली ......

दिये संग जले है देखो बत्ती
बिती ना ऐसी कोई भी राती
पत्ती पत्ती मै बिखरे फुल पत्ती
काँटों संग ही खिले है प्रीती
प्रेम की परिभाषा अति निराली.......

राधा को पुकारों या मीराँ का लों नाम
उनकी प्रीती का बोलो क्या दों नाम
चाहे वो मेरे या तेरे घनश्याम
प्रीत की इस रीत बस लो मै नाम
प्रेम की परिभाषा अति निराली .....


प्रेम की परिभाषा अति निराली
मधमती रहे चंपा की वो बेली
कहती है सखी ओ मेरी सहेली
ये तो है एक अजब सी पहेली
प्रेम की परिभाषा अति निराली ......

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नेता और गढ़ राजनीती

बीता दिणो की बीती बात
बल ऐगे एक नये प्रभात
छुड़ा भुलों पीछणे की बात
ऐगे विधान सभा चुनोवा
चला करोला नयी शुरवात
बीता दिणो की बीती बात ....

भ्रसटाचार बल हर जगे छेगे
पांचा वर्ष हमरी याद ना ऐ
नेता तेर कण बंजा पुअडै
खै खा की अब हाथ जोडै
कथनी करणी मा फर्क व्हये
बीता दिणो की बीती बात ....

मुख्या थै गददी थै हटे
क्या सोची ये प्रपंच लडै
लोकयुकत लैकै तीला
अपरू वोट बैंक को बडे
बाजु का दल रहेगे खडे
बीता दिणो की बीती बात ....

बाजु का नेता देख जगे
उतरखंड को रेल अब ऐगे
जनता को सपुनीय जागे
माया का मन फिर भरमै
कंण कूटनीत की चाल चले
बीता दिणो की बीती बात ..

प्रगती का नाम मा बासै
दूँण सैण मा राजधानी रंचै
पहाडा की राणी को छुड़ के
शहर मा राजा को दरबार लगे
क्रांती की आवाज फिर दबे
बीता दिणो की बीती बात ..

जब चली ना बात इन मा
विस्की रअम का फार्मूला लगे
एक पैक पी पीला की
भै भूलोंह का गम थै भुले
देख तेर वोट की राजनीती
म्यार गढ़ देशा का दिल दुखै
बीता दिणो की बीती बात ..

बीता दिणो की बीती बात
बल ऐगे एक नये प्रभात
छुड़ा भुलों पीछणे की बात
ऐगे विधान सभा चुनोवा
चला करोला नयी शुरवात
बीता दिणो की बीती बात ....

भ्रसटाचार बल हर जगे छेगे
पांचा वर्ष हमरी याद ना ऐ
नेता तेर कण बंजा पुअडै
खै खा की अब हाथ जोडै
कथनी करणी मा फर्क व्हये
बीता दिणो की बीती बात ....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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