Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 447990 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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"प्रेम का पहला कदम"
 
 प्रेम का पहला कदम बडे
 ना ढोल बाजै ना मर्दांग
 ना झंजार बाजै ना पायल
 सरगम  लगी गाने आज
 सात सुरों को लेके साथ साथ
 कैसी मची हलचल दिल कैसी झंकार बाजै दिल
 
 धडकन बडती जाये पल पल
 लम्हा लम्हा अहसास जगाये दिल
 होलै धीरे से पास बुलाये दिल
 फिर कोई गीत गुन गुनाये दिल
 कैसी मची हलचल दिल कैसी झंकार बाजै दिल
 
 आंखें आँखों से बोलती है
 एक एक राज अब वो खोलती है
 सोये सोये अब वो जगा देती है
 स्वप्ना अब नया सजा देती है
 कैसी मची हलचल दिल कैसी झंकार बाजै दिल
 
 कैसा मोड़ा कैसा मोहा है
 सब भुल जाता हों मै अब
 दर्द का वो जो अब दुर छोर है
 माध्यम प्रेम की ऐ भोर है
 कैसी मची हलचल दिल कैसी झंकार बाजै दिल
 
 प्रेम का पहला कदम बडे
 ना ढोल बाजै ना मर्दांग
 ना झंजार बाजै ना पायल
 सरगम  लगी गाने आज
 सात सुरों को लेके साथ साथ
 कैसी मची हलचल दिल कैसी झंकार बाजै दिल
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
 http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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गढ़ बरखा
 
 घिर घिर की ऐ बरखा
 च्खाल पखाल कैगै बरखा   
 एक सर पडी डंडों पुँर तक
 सब चीखलाणु कैगै बरखा   
 घिर घिर की ऐ बरखा ...................
 
 सबथै घिर भीर कैगै बरखा   
 भिजलाणु माया दैगै बरखा
 हरयालो मन बसेगै बरखा
 जीकोडी तिस जगगै बरखा
 घिर घिर की ऐ बरखा ...................
 
 कण ऐ तो कण चलगै बरखा
 म्यार गढ़ देशा की तो छे बरखा
 एक धार पाडीकी ऐ बरखा
 कण झट तो रुअडी गै बरखा
 घिर घिर की ऐ बरखा ...................
 
 दाणा लोगों थै भरमीगै बरखा
 कण मुंडा मारयु ऐ बरखा की बल
 इत्गा पुडणा बाण तो किले ऐ बरखा
 बस झोला पडी सर चलीगै बरखा 
 घिर घिर की ऐ बरखा ...................
 
 घिर घिर की ऐ बरखा
 च्खाल पखाल कैगै बरखा   
 एक सर पडी डंडों पुँर तक
 सब चीखलाणु कैगै बरखा   
 घिर घिर की ऐ बरखा ...................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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दर्द
 
 एका एक खयाल आ बैठा
 दूर बैठे बैठे वो मुस्कुरा बैठा
 वंही पास से रुदन स्वर आ बैठा
 मैने अपने से युं  पुछा बैठा
 कौन से रिश्ता के साथ तो  बैठा
 एका एक खयाल ................
 
 गम और आनंद की परीणीती
 मै आज खुद को युं उलझा बैठा
 सुख दुःख की सीमा मै आज
 खुद को आज मै फंसा बैठा
 एका एक खयाल ..............
 
 खुशी मै चेहरा खिला बैठा
 दुःख मै अफसोश जता बैठा
 आप नो मै कभी मै आ बैठा
 कभी परायों को गले लगा बैठा
 एका एक खयाल ..............
 
 जश्न मै फीजोल मना बैठा
 दर्द मै जब युं करहा बैठा
 तब रिश्ता दर्द का बना बैठा
 तब  उसे अपने से मै लगा बैठा
 एका एक खयाल ..............
 
 एका एक खयाल आ बैठा
 दूर बैठे बैठे वो मुस्कुरा बैठा
 वंही पास से रुदन स्वर आ बैठा
 मैने अपने से युं  पुछा बैठा
 कौन से रिश्ता के साथ तो  बैठा
 एका एक खयाल ................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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"अब भी कुछ बाकी है"
 
 अब भी कुछ बाकी है
 दीये संग जल रही बात्ती है
 अँधेरा रात का उजाला दिन का साथी है
 सुख दुःख बस बड भागी है
 अब भी कुछ बाकी है ................
 
 हल्की सी लहर वो जीवन की
 उमीदों भरी वो झांकी
 सागर तट पर बैठा सोच अकेला मै 
 सुख और दुःख  अब विहंगों की भांती है
 अब भी कुछ बाकी है ................
 
 रहता है वो कभी कभी
 सुँदर स्वप्न को जो मेला है
 नीले आकाश तले साथ साथ चलों मै
 सुख दुःख ओर इंसान अकेला है
 अब भी कुछ बाकी है ................
 
 रोका होआ है वो डांटा होआ है वो
 पग पथ पर अडिग होआ है वो
 राही राह के मंजील लक्ष्य के   
 सुख दुःख बीच भवंर फंसा है वो
 अब भी कुछ बाकी है ................
 
 अब भी कुछ है वो पल पर घटित है
 बुलओं कैसे जो खुद ही प्रवर्तित है
 प्रवाह धार मै वह स्वंय प्रवाहीत है 
 सुख दुःख जो तेरे कर्म भाग संचित है
 अब भी कुछ बाकी है ................
 
 अब भी कुछ बाकी है
 दीये संग जल रही बात्ती है
 अँधेरा रात का उजाला दिन का साथी है
 सुख दुःख बस बड भागी है
 अब भी कुछ बाकी है ................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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मोक्ष अवरुद !!
 
 ना कोई गुरु यंह
 ना कोई शिष्या यंह
 बस बाजार लगा है माया का
 खुद को खुद से तो बेच रहा यंहा
 
 जंह जाऊं वंहा तो दिखे
 इस अंतर मन मै अब तो ही हंसें
 भगवे रंग मै तो खुब अब सजै
 धर्म का रंग कपड़ों पर अब चडे
 जंह जाऊं वंहा तो दिखे............
 
 भीड़ ही भीड़ देखो खुब जमै
 सदगुरु मगर ना कंही मीले
 जादुगर ने खुब जादु दिखया
 माया ने मुझे और  भरमाया
 जंह जाऊं वंहा तो दिखे.................   
 
 आज मुझे भी मया ने हंसाया
 मोक्ष का मार्ग मुझे बिसराया
 भौतिक सुख पाने को ल्लच्या
 आलोकिक सुख मुझसे दुर भगाया 
 जंह जाऊं वंहा तो दिखे.................   
 
 मन रावण तन रावण आज
 जंह देखों वँह रावण खडा आज
 खुद के भीतर छुपा रावण के अंत को
 प्रभु श्री राम को बुलाओं कंह
 जंह जाऊं वंहा तो दिखे.................   
 
 ना कोई गुरु यंह
 ना कोई शिष्या यंह
 बस बाजार लगा है माया का
 खुद को खुद से तो बेच रहा यंहा
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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उत्तराखंड नेग

मैती वाली दीदी ......मैती वाली ऐ
ब्योहा वहाई हरयाली लाई
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ
डंडी कंडी अब डंली जमाली
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ

प्रथा मेरा गढ़ा की निराली
ब्योहा मा अब वा दमके देखे
ऐ ब्योला डाली दगड माया लगै
जुतों थे ना अब हमल चुरै
गढ़ देश थै ब्योला अपरू नेग दे
एक डाली अब तो जमै एक डाली अब तो जमै
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ

म्यार मैता की दीदी भुली
गढ़ देश की म्यार बेटी ब्वारी
ऐ बात आपरा साथ बांध दे
ब्योला ना लागलो एक डाली
तबै बारात ना जली परते
म्यार जंगलात तो खिले ऐ ब्योला
एक डाली अब तो जमै एक डाली अब तो जमै
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ

धन मेरु उत्ताराखंड धन मेरा उतराखंडी
जैण सोची समजी की ऐ दान
बनोला अपरा ऐ भारत महान
हरीयालू पसरील अब ऐ संसार
देख नात लगाणी ब्योला डाली
ऐ व्हैग्या अब तेरी श्याली ब्योला श्याली
एक डाली अब तो जमै एक डाली अब तो जमै
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ

मैती वाली दीदी ......मैती वाली ऐ
ब्योहा वहाई हरयाली लाई
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ
डंडी कंडी अब डंली जमाली
मैती वाली दीदी..... ..मैती वाली ऐ

बालकृष्ण डी ध्यानी
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"अब भी कुछ बाकी है"

अब भी कुछ बाकी है
दीये संग जल रही बात्ती है
अँधेरा रात का उजाला दिन का साथी है
सुख दुःख बस बड भागी है
अब भी कुछ बाकी है ................

हल्की सी लहर वो जीवन की
उमीदों भरी वो झांकी
सागर तट पर बैठा सोच अकेला मै
सुख और दुःख अब विहंगों की भांती है
अब भी कुछ बाकी है ................

रहता है वो कभी कभी
सुँदर स्वप्न को जो मेला है
नीले आकाश तले साथ साथ चलों मै
सुख दुःख ओर इंसान अकेला है
अब भी कुछ बाकी है ................

रोका होआ है वो डांटा होआ है वो
पग पथ पर अडिग होआ है वो
राही राह के मंजील लक्ष्य के
सुख दुःख बीच भवंर फंसा है वो
अब भी कुछ बाकी है ................

अब भी कुछ है वो पल पर घटित है
बुलओं कैसे जो खुद ही प्रवर्तित है
प्रवाह धार मै वह स्वंय प्रवाहीत है
सुख दुःख जो तेरे कर्म भाग संचित है
अब भी कुछ बाकी है ................

अब भी कुछ बाकी है
दीये संग जल रही बात्ती है
अँधेरा रात का उजाला दिन का साथी है
सुख दुःख बस बड भागी है
अब भी कुछ बाकी है ................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
34 minutes ago
हमेशा

तुम रहोगै हमेशा
यंही पर कंही
इन गली गलियारों
फूलों की क्यारियों मै
मद मस्त हावों मै
दूर तक बीछी राहों मै
तुम रहोगै हमेशा
यंही पर कंही.......................

सवेरे संग तुम्हरा
सुरज देगा साथ तुम्हरा
पलकों मै जागी रातें
ओस करैं तुमसे बातें
रवि कीरण की बुंदें
चेहरें को आकर छुयें
देख तेर ही साथ अब
उनके पास हमेशा
तुम रहोगै हमेशा
यंही पर कंही.......................

दोपहर के साथ
कभी संध्या के पास
लेके अँधेरा का हाथ
चली सपनो के पार
टीम टीम तारें वो सितारे
नील गगन के सारे पुकारे
लेकर चाँद का साथ
देंगे साथ हमेशा
तुम रहोगै हमेशा
यंही पर कंही.......................

हर श्नण प्रतिश्नण
चाहों साथ तुम्हरा
इन अधरों का सहारा
प्रेम का रूप तुम्हरा
रहता इस नयनो
वो रूप बस तुम्हरा
तु रहोगी हमेशा
साथ मेरे बनके
कविता का सहारा
तुम रहोगै हमेशा
यंही पर कंही.......................

तुम रहोगै हमेशा
यंही पर कंही
इन गली गलियारों
फूलों की क्यारियों मै
मद मस्त हावों मै
दूर तक बीछी राहों मै
तुम रहोगै हमेशा
यंही पर कंही.......................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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"पोट्गी"

पोट्गी भूखी
जीकोडी चुप
छुपा बुल्दी
रोटालू तोड़दी

पोट्गी
गरीबी का रोग
पाणी को भोग
सदनी का सदनी
जाण तिल फिर भी रैण

पोट्गी
उसाह्यल पड़णी
बाटा हेरणी
सुख का दगडया
दुःख गीणणी

पोट्गी
गार टिप्पणी
ढुंगा ढुंगा सैरणी
आंखी बोलाणी
टिप टिप रोंलों पोडणी

पोट्गी
क्या क्या तो करणी
माया लुटाणी
आबरू लज्जा छुटणी
डाली फंसा लगणी

पोट्गी
पोट्गी ऐ पोट्गी
तेणु ऐ खेल रच्या
गढ़ देश थै भरमाया
मी थै यकुली बनया

पोट्गी
पोट्गी भूखी
जीकोडी चुप
छुपा बुल्दी
रोटालू तोड़दी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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"वो हाथ वो साथ "

जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..२
देखो बारात चली दुर मेरे खवाबों मै
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

दिल का अहसास जगा हाथों से ....२
नजरों ने साथ दिया इन हाथों का
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

करने चली वो बात इन हाथों से ...२
फिर होगी मुलकात कंही हाथों से
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

छुपे होऐ जजबात जागेंगे हाथों से ...२
जब हल्का स्पर्श मीला इन आँखों का
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

सांसों मै अब छु रही हो मुझको ..२
हाथों सहरा लै कंधे पै तुम झुल रही हो
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

अजब कशीश है इन हाथों मै ...२
रेखाओं से अब मेरा मुकदर संवरता है
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

याद खनकी है तेरे हाथों की चूड़ी की ...२
बस देना साथ मुझे तेरे इन हाथों का
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..२
देखो बारात चली दुर मेरे खवाबों मै
जब मिला हाथ तेरा हाथों मै ..............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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