अधुरा सा लगा
देश छुटा प्रदेश छुटा गौं छुटा
घर बार छुटा पहाड़ छुटा
हर बार छुटा बार बार छुट
साथ छुट साथी छुटे बात टूटी ....................
एक एक कर सब छुटा
सपना मेरा सपने के लीये टूटा
अपना मेरा दुर कंही छुटा
अकेले बैठा वो मुझ से रूठ
हर बार छुटा बार बार छुट
साथ छुट साथी छुटे बात टूटी ....................
पहाड़ मेरा ऐसे हर बार फूटा
दिल दर्पण सा वो आईना टूटा
जैसे तडपता होआ वो जल
आश्रु के धार सा आँखों से फूटा
हर बार छुटा बार बार छुट
साथ छुट साथी छुटे बात टूटी ....................
अकेलापन सुनापंन फैला है
दुर दुर तक निगाहों से अब तो
जहँ गया खाली खाली सा लगा
गढ़देश तेरे बिना अधुरा सा लगा
हर बार छुटा बार बार छुट
साथ छुट साथी छुटे बात टूटी ....................
देश छुटा प्रदेश छुटा गौं छुटा
घर बार छुटा पहाड़ छुटा
हर बार छुटा बार बार छुट
साथ छुट साथी छुटे बात टूटी ....................
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत — with
Mahi Singh Mehta and
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