Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 448177 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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व्यस्थता

दुनिया की व्यस्थता देख
अपने पर मै चौंक
रिश्ता जो आज कल का
देखो कंहा अब खोया

समय को पकड़ना चाह
साथ अपनों का छुट
बारी बारी देखो वो धागा
अब पीछे कंहा छुट

सुबह रात मै फर्क है
ना जाने क्या ऐ दर्द है
क्यों ?दौड राहा हों मै इस तरह
जाने इसका क्या मर्ज है

सब बिखरे बिखरे लगे
अपने आप मै टुकडे लगे
कटे अपने अपने मन से
व्यस्थता घिरे अपने तन से

दुनिया की व्यस्थता देख
अपने पर मै चौंक
रिश्ता जो आज कल का
देखो कंहा अब खोया

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गुमनाम जीवन
 
 यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा 
 कंही फुल बन मुस्कुराऊंगा 
 कंही नैना नीर छोड़ जाऊंगा 
 क्या फिर याद तुमको मै आऊंगा 
 यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा  ...................
 
 कलम पडी मिलेगी कंही
 पन्ना वंही पर कोरा होगा
 शब्द बिखरें बिखरें होंगे
 अक्षर गुमसुम लगे होंगे
 क्या फिर भी याद तुमको मै आऊंगा   
 यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा  ...................
 
 अकेला था अकेला रह जाऊंगा 
 उस कोने आज बैठा पाऊंगा 
 लिखने की कोशिश करूंगा
 पर लिखना कुछ पाऊंगा   
 क्या फिर भी याद तुमको मै आऊंगा   
 यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा  ...................
 
 सांसें चलते चलते
 एक दिन छुट जाऊंगा 
 रेखाओं की सिर्फ एक लाईन
 मै उसमे खो जाऊंगा
 क्या फिर भी याद तुमको मै आऊंगा   
 यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा  ...................
 
 यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा 
 कंही फुल बन मुस्कुराऊंगा 
 कंही नैना नीर छोड़ जाऊंगा 
 क्या फिर याद तुमको मै आऊंगा 
 यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा  ...................
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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शिक्षा की दीक्षा
 
 शिक्षा क्या दिक्षा मीली
 किले तो यख टपराणुच …२
 लिखी पडेकी बेटू  हमारू
 भैर देश अब जाणु  छा …२
 
 सील्काणी फुकराणुच
 दलकाणी अब खाणुच …२
 कच्ची पक्की पैकी देख
 रोल्युंमा बीडी सिलगाणुचा …२
 
 लिखी पडेकी बेटू  हमारू
 अपरी मवाशी खाताणुच …२
 शिक्षा क्या दिक्षा मीली
 किले तो यख टपराणुच …२
 
 बेटी ब्वारी बाटा अडाणुच
 फ़िल्मी गीत वो गाणुच  …२
 उत्तराखंड  का रे बेटा  राम
 खुब नाम अब झ्ल्काणु चा…२
 
 रैसै बाप ददुं को इज्जत
 बीच  बाजार उछालणु छ …२
 शिक्षा क्या दिक्षा मीली
 किले तो यख टपराणुच …२
 
 गढ़देशा थै यकुली छोड़ा
 कै बाटा तो अब जाणुचा…२
 उकलू  बाटा मन नी लगे
 उन्द्हरू बाटा मा अड़काणुच…२
 
 गुरु की शिक्षा की दीक्षा
 भले भले तो पतराणुच …२
 शिक्षा क्या दिक्षा मीली
 किले तो यख टपराणुच …२
 
 शिक्षा क्या दिक्षा मीली
 किले तो यख टपराणुच …२
 लिखी पडेकी बेटू  हमारू
 भैर देश अब जाणु  छा …२
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देख्यालीजी
 
 मेर अप्डों की
 खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी
 अपरा अंशुंल बस
 आँखों भातैक भैर भैर्यलीजी
 मेर अप्डों की
 खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी
 
 जमनोत्री यमनोत्री
 को रेत ठेकैदरों चुरयाली जी
 उत्तराखंड सरकार नी बस
 अपरा अपरा किसा भैर्यली जी
 मेर अप्डों की
 खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी
 
 दारू की गंगा
 गों गों अब बहाणी च ऐ भी देख्याली जी
 बेटी ब्वारी अन्दोलना करणी
 अपरा लोगों हाथ उपर कैर्यली जी   
 मेर अप्डों की
 खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी
 
 डाला डाली अब जलणा छीण
 जंगलात राखा होणा छीण ऐ भी देख्याली जी
 आगा भुजाण वालों थै हमोंण दीदा
 टुंडा सड़की तीरी बैठायां  दिख्याली जी 
 मेर अप्डों की
 खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी 
 
 रीटा  मनखी रीटा गढ़ देख्यालीजी
 बंजा पुंगडा रीटा  डंडा भी  देख्यालीजी
 दाना बोढ्या  नाना छोरों को उत्तराखंड
 बेटी ब्वारी यूँ कमर कसी संभाळली जी
 मेर अप्डों की
 खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी 
 
 मेर अप्डों की
 खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी
 अपरा अंशुंल बस
 आँखों भातैक भैर भैर्यलीजी
 मेर अप्डों की
 खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी
 
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प्रेम
 व्यथा मै व्यथीत होना ठीक नहीं
 दुःख मै दुःख से ग्रहीत होना ठीक नहीं
 प्रेम सिर्फ पाने का नाम  नही
 उसके खोने पर दुखी होना ठीक नहीं   
 
 जुदाई मै  इस पर और निखार आये
 मिलन की आरजु कुंदन सा तपये 
 कर्म से अपने भाग जाना ठीक नही
 अपनों मुख मोड़ जाना ये ठीक नही
 
 उजाले को खो जाना ठीक नही
 अंधेरों से मुंह दिखना ठीक नही
 प्रेम की सच्ची परीभाष है त्याग
 अपने को त्याग देना ठीक नही
 
 प्रेम तो बड़ा विरल होता है
 उस दिल से  दिल लगना ठीक नही
 प्रेम अत्मा अजर अमर सदीयुं से
 नश्वर शरीर से  प्रेम करना ठीक नही
 
 व्यथा मै व्यथीत होना ठीक नहीं
 दुःख मै दुःख से ग्रहीत होना ठीक नहीं
 प्रेम सिर्फ पाने का नाम  नही
 उसके खोने पर दुखी होना ठीक नहीं   
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देख्यालीजी

मेर अप्डों की
खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी
अपरा अंशुंल बस
आँखों भातैक भैर भैर्यलीजी
मेर अप्डों की
खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी

जमनोत्री यमनोत्री
को रेत ठेकैदरों चुरयाली जी
उत्तराखंड सरकार नी बस
अपरा अपरा किसा भैर्यली जी
मेर अप्डों की
खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी

दारू की गंगा
गों गों अब बहाणी च ऐ भी देख्याली जी
बेटी ब्वारी अन्दोलना करणी
अपरा लोगों हाथ उपर कैर्यली जी
मेर अप्डों की
खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी

डाला डाली अब जलणा छीण
जंगलात राखा होणा छीण ऐ भी देख्याली जी
आगा भुजाण वालों थै हमोंण दीदा
टुंडा सड़की तीरी बैठायां दिख्याली जी
मेर अप्डों की
खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी

रीटा मनखी रीटा गढ़ देख्यालीजी
बंजा पुंगडा रीटा डंडा भी देख्यालीजी
दाना बोढ्या नाना छोरों को उत्तराखंड
बेटी ब्वारी यूँ कमर कसी संभाली जी
मेर अप्डों की
खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी

मेर अप्डों की
खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी
अपरा अंशुंल बस
आँखों भातैक भैर भैर्यलीजी
मेर अप्डों की
खैरी विपदा आँखोंल देख्यालीजी

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गुमनाम जीवन

यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा
कंही फुल बन मुस्कुराऊंगा
कंही नैना नीर छोड़ जाऊंगा
क्या फिर याद तुमको मै आऊंगा
यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा ...................

कलम पडी मिलेगी कंही
पन्ना वंही पर कोरा होगा
शब्द बिखरें बिखरें होंगे
अक्षर गुमसुम लगे होंगे
क्या फिर भी याद तुमको मै आऊंगा
यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा ...................

अकेला था अकेला रह जाऊंगा
उस कोने आज बैठा पाऊंगा
लिखने की कोशिश करूंगा
पर लिखना कुछ पाऊंगा
क्या फिर भी याद तुमको मै आऊंगा
यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा ...................

सांसें चलते चलते
एक दिन छुट जाऊंगा
रेखाओं की सिर्फ एक लाईन
मै उसमे खो जाऊंगा
क्या फिर भी याद तुमको मै आऊंगा
यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा ...................

यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा
कंही फुल बन मुस्कुराऊंगा
कंही नैना नीर छोड़ जाऊंगा
क्या फिर याद तुमको मै आऊंगा
यूँ ही गुमनाम खो जाऊंगा ...................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
बस भ्रमित देखा

दर्द की आवाज आती है पहाड़ों से
रिसता है वो सडक के किनारों से
दर्द की आवाज आती है ............

वंहा आवाज गुँजती है टकराने से
पहाड़ों को पहाड़ों मै बुलाने से
दर्द की आवाज आती है ............

हर एक टूटा सा अब नजर आता है
पहड़ अब छुटा छुटा सा नजर आता है
दर्द की आवाज आती है ............

दुर दुर तक निगाहा राह तकती है
अब अपनों की उसे भी कमी खलती है
दर्द की आवाज आती है ............

विरानो से अब उसे स्नेहा होआ लगता है
देख तेरा रास्ता अब भी कोई तकता है
दर्द की आवाज आती है ............

पुकारते पुकराते वो थक गया है शायद
सीस्कीयाँ अब घर कर गयी है शायद
दर्द की आवाज आती है ............

उसका दर्द ना कोई अब इस तन लेगा
हमने यंह हर एक मजबुर मन देखा
दर्द की आवाज आती है ............

प्रेम तो बहुत है पर वो भी छलीत देखा
माया के लोभ मै बस भ्रमित देखा बस भ्रमित देखा
दर्द की आवाज आती है ............

दर्द की आवाज आती है पहाड़ों से
रिसता है वो सडक के किनारों से
दर्द की आवाज आती है ............

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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मी अजाण बाणी

मी अजाण बाणी अजाण बाणी ...२
कै डाला पीछणे धोली आली मेर प्छण
सीमटणी वहाली मेर कज्याण
मी अजाण बाणी अजाण बाणी ...२

बिरडे गों मी कै बाटा कै बाटा...२
अब उन्दारू मा बसी आस
उकालों मा छुटी मेर आशा
मी अजाण बाणी अजाण बाणी ...२

एकुली रैगे घारा घारा...२
टिपणी सकी यख भाग को गार
कुल्हंण लुकी गै सरू घसा
मी अजाण बाणी अजाण बाणी ...२

कंण कटणी वहाली दीण रता दीण रता ..२
सुरुक ऐजाणु वालो होलो मेरी याद
देख अणी वाली दणमण बरसाता
मी अजाण बाणी अजाण बाणी ...२

पुंगडी बंजा देखले आज देखले आज ...२
रीटा डंड रीटा कूड़ा को गढ़ देश आज
भैर बैठिक को मी थै झुराणु वहलो आज
मी अजाण बाणी अजाण बाणी ...२

मी अजाण बाणी अजाण बाणी ...२
कै डाला पीछणे धोली आली मेर प्छण
सीमटणी वहाली मेर कज्याण
मी अजाण बाणी अजाण बाणी ...२

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बिना बजट के ही फायर से फाइट

देख देखा कंण
दीण दिखाण छिण
अप्डी भुमी मा ऐ उत्तराखंड मा
आज को अखबार खुली
वख एक लेख पडी
बिना बजट को फायर फाइट

आगा लगी चा जंगला मा
सरकार सींयीं अपरा डेरा मा
बजट कैरी गड को सफट
नींद ऐगै यूँ थै देख कंण झपट
लटपट लटपट छे युंका काम
गड़बड़ कैगै सरू गड को धाम
बिना बजट को फायर फाइट

कंण उद्धार छे तू गढ़ नरेणा
अखबार मा रोज तेरी अब
कामा के झलकी झलकेंण
कब तक तिल हमु थै सताणु
अब भी जगी वहै जा नरेणा
तेर गद्दी दोई दीण को छेणा
बिना बजट को फायर फाइट

क्दगा वनसंपदा स्वाहा व्हागैनी
तेरी सवारी एक दा भी नी ऐणी
तेरा कर्मचारी भी सीयां रैणी
जाग्या सारा दारू टुंडा मिलैणी
बेटी बावरीयूँ खैरी णी देखैणी
सत्ता का लोभ तो मदमस्त वहैगैणी
बिना बजट को फायर फाइट

देख देखा कंण
दीण दिखाण छिण
अप्डी भुमी मा ऐ उत्तराखंड मा
आज को अखबार खुली
वख एक लेख पडी
बिना बजट को फायर फाइट

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