Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 232139 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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By- Bal Krishna D Dhayni.

जी की तिस

खुदैडी खुद लगाणदी
प्रीती का रीत बातणदी
ऋतू आणदी ऋतू जाणदी
पह्ड़ा चोमस बीत जाँणदी
खुदैडी खुद लगाणदी........

कोयेडी यख लोक्याँली
माया अब धोंप्यान्ली
चों डंडा पुअरा देख जी
जीकोडी अब लोंप्यान्ली
खुदैडी खुद लगाणदी.........

हंश्ली धगुली पोंछी
बाजूबंद नथुली मुरकुला
गुलबंद माँगा टीका स्वामी
सभी अब संभाली धैर्यली
खुदैडी खुद लगाणदी.........

उखली उरकली अब
मुशालूँ मार सैर्यली
तपता तवों चुल्ह्नाण
रोटी दगडी हाथ सेखाली
खुदैडी खुद लगाणदी.........

टिप टिप पडदा
यूँ अन्ख्युं का पाणी नै
रोंल्युं का गद्न्य भोर्याली
माया मेरी परदेश पहुंचादी
खुदैडी खुद लगाणदी.........

घुघूती हीलंषा
देख पहाडमा क्ख्क
बुरंस प्युओंली
अब छुपी मेर तिस
खुदैडी खुद लगाणदी.........

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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क्रांती खो गयी

अधर पटल पर
क्षीतिज है तेज
मुख पर अंचा
और जल रहा देश

कैसा है परिवेश
भ्रस्ताचार निवेश
मुख्टों पर छिपा
शब्द अग्निवेश

बाण के तीखे
अस्त्रों पर ये
मचा ये भेद
शांती पर अभेद

लोक जन पर
चल रह है खेल
एक तरफ आम
दूजी तरफ खास

ठानी है अब तो
अब बारी आयेगी
देखना हमे अब
गरीब या गरीबी हटाई जायेगी

मंहगाई की आगा
अब ना सही जायेगी
सरकार अब तु
अपनी बात मनयेगी

खो गया है आज वो
जो उठा था कुछ माह पहले
सो गया है आज वो
जिसने जगाया कुछ माह पहले

अधर पटल पर
क्षीतिज है तेज
मुख पर अंचा
और जल रहा देश

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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दीदी समन्य

दीदी तु हीट्ती जा
पह्ड़ा थै नापती जा
ऊँचा कैलाश ध्यै लगाणु
दीदी ती थै च आज बुलाणु
दीदी तु हीट्ती जा ...................

मेरा उत्तरखंड की तु छे शान
मी थै लागु मी थै मील ये सन्मान
फुल का गुछा थै वहाई अभिमान
दीदी तु हरदम रहै एक समाना
दीदी तु हीट्ती जा ...................

नारी की तु छे परीभाष
गढ़ की तु एक अभीलासा
हर घार घार तु देखै दीदी
पहाड़ बेटी का सुपुनीयुं तु सजै दीदी
दीदी तु हीट्ती जा ...................

मेर च ती थै प्रणाम दीदी
कर तु गढ़ का अगणे नाम दीदी
तेरी अखंड ज्योती रहै जगमग दीदी
माँ भगवती का चरणु ये पुकार दीदी
दीदी तु हीट्ती जा ...................

दीदी तु हीट्ती जा
पह्ड़ा थै नापती जा
ऊँचा कैलाश ध्यै लगाणु
दीदी ती थै च आज बुलाणु
दीदी तु हीट्ती जा ...................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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धुण भुण

लगी लगी धुण
गों गों मा भागी धुण
कैंका बाण कैका बाण
मारी सुर कंण भागी धुण
लगी लगी धुण...............

दूँण दूँण की पैली बात
भुण खैगे सारु भात
दुर तक चली आज बात
दिल्ली बठै ऐगे बारात
लगी लगी धुण...............

गैर-सैण मा ऐगे बात
बिसरी गे सब बीती बात
सतरा जिलों की खैरात
बाल बणी राजधानी की बात
लगी लगी धुण...............

लंबा गों मा पुंछी बात
टिहरी डैम मा होई शुरवात
आन्दोलन चलणु अब दीण रात
सरकार चुप छे बल जिले की बात
लगी लगी धुण...............

लैंसनडोन की अब बात
सैनिक चुप छे अब शहीदों की बात
अमर होयां बिता कद्गग दीण रात
कुटम्ब थै ना मिले अब तक सन्मान
लगी लगी धुण...............

गों गों मा पूंछगे अब ये बात
खैरी विपदा म्यार पहडै के साथ
भुलह भुली भुलेगे सारी बात
गढ़ छुडीके कखक चलेगे आज
लगी लगी धुण...............

सारी बात घुमै के ऐगे मेर पास
अब मी सचणु क्या करु बात
आँखों मा ऐगे उमली बरसता
दीण रात बहणी अब मेर साथ
लगी लगी धुण...............

लगी लगी धुण
गों गों मा भागी धुण
कैंका बाण कैका बाण
मारी सुर कंण भागी धुण
लगी लगी धुण...............

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अस्त

ब्युओखनी घाम वहाई अस्त
देख पह्ड़ा वहई मस्त
रोल्युं गद्न्युं रात पुडी झाम
घार घार बाती बले भाम
ब्युओखनी घाम वहाई अस्त ...

दीण चर्या को विराम पडी
काका ब्वाडा थै आराम पडी
पुंगडी मा कमरी तुडैकी बाब
खट्लों थै देख अब कम पडी
ब्युओखनी घाम वहाई अस्त ...

नारी को विपदा को ना ची अंत
खैरी की रुटालो अब भी संग
चूल्हों दगडी दगडी रात सैखी
चुलह दगडी ही रात छे खुली
ब्युओखनी घाम वहाई अस्त ...

कखक भाटे की आयु दीण
कखक भाटे की ग्याई रात
म्यार पह्ड़ा थै भ्रमैगे दीण
रात ग्याई हेर हेरी की बाट
ब्युओखनी घाम वहाई अस्त ...

कब आलो वा दीण कब आली वा रात
अपर वाहला अपरा साथ
कब अली यैसी प्रभात दगडया
कब मील जोली की रोहाला एक साथ
ब्युओखनी घाम वहाई अस्त ...

ब्युओखनी घाम वहाई अस्त
देख पह्ड़ा वहई मस्त
रोल्युं गद्न्युं रात पुडी झाम
घार घार बाती बले भाम
ब्युओखनी घाम वहाई अस्त ...

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मै भी इन्सान

मै भी एक इन्सान हों
आप की तरह भग्यशाली कंहा
कोप्षण का शिखार हों
अपनी अपनी किस्मत है
पर तुमसे बहुँत हैरान हों

मिलाता है सब कुछ तुम्हे
पर मै ढांचे का परिमाण हों
हस्ती मेरी कुछ भी नहीं
पर तुम से मै शर्मशार हों
मै भी एक इन्सान हों

दाने पानी को तरसता मै
अपने अस्तीत्व से लड़ता मै
आपकी एक नजर उदारता
को कई सालों से तरसता मै
मै भी एक इन्सान हों

अन्ना जब करते तिरस्कार तुम
क्या तुम्हे तब भी मै याद आता नहीं
शराब और शबाब मै डूबे रहते तुम
उस एक दाने दाने को तरस जाता मै
मै भी एक इन्सान हों

सर मेरा झुखा होआ देख
कद तुम्हरा अब तनता क्यों नहीं
मेरी इस छ्वी को देखकर भी
अब तू क्यों बदल जाता नहीं
मै भी एक इन्सान हों

मै भी एक इन्सान हों
आप की तरह भग्यशाली कंहा
कोप्षण का शिखार हों
अपनी अपनी किस्मत है
पर तुमसे बहुँत हैरान हों

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क्या खोयी

मील क्या पाई
मील क्या खोयी
ये गढ़ देश तै छुड़ीकी
ये मेरा देशा तै छुड़ीकी

मील क्या पाई ............

म ण की रेखा को जहाज
उड़ युं ये सुप्नीयुं अक्सा
पुन्ह्च गै सात समंदर पार
टाका माया मेर साथ साथ

मील क्या पाई .............

पीछणे छुटा गै अन्खोंयांमा
बारमास को बरसात
हैरी को बाटा हराण
ओ घुघूती को घुरण

मील क्या पाई .............

ऊँचा नीचा डंडा
ओ हरा भरा बाण
उकाली उंदरी म्यार मन्ख्युं
कण लगी परदेशा को फैरा

मील क्या पाई .............

बठैयुंच अब ओ धरा
अब आणी याद मेरा घार
ओ गढ़ देश मेर गढ़वाल
ओ मेर भारत विशाला
मील क्या पाई .............

मील क्या पाई
मील क्या खोयी
ये गढ़ देश तै छुड़ीकी
ये मेरा देशा तै छुड़ीकी

मील क्या पाई ............

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गढ़वाली गीतों का क्या हल

दीद पह्ड़ा ना कर ईणी बदनाम
बांद बांद मा बांद्च ये गढ़ धाम
ना दे इन नाम म्यार पहाडा बांद
गड्वाली गीतों जपना इन नाम

गढ़वाली गीतों का क्या हल ........

कण उधाण लग्युं दीदा
केलै इन गीत लगाणा दीदा
पारंद कीले लगाणु दुखण दीदा
बेटी बावरी को दैदे अब माण दीदा

गढ़वाली गीतों का क्या हल ........

जख रामी बोराणी ब्वारी दीदा
जख जशी जैसी दीदी दीदा
तीलू रुतैली वीरगाण दीदा
उत्तरखंड की ये दीदी भुली दीदा

गढ़वाली गीतों का क्या हल ........

बांदा का लासका दह्स्का दीदा
म्यार गढ़ देश पुराणी रीता दीदा
वो भी हमरी दीदी भुली दीदा
पहाडा की जपले संस्क्रती दीदा

गढ़वाली गीतों का क्या हल ........

दीद पह्ड़ा ना कर ईणी बदनाम
बांद बांद मा बांद्च ये गढ़ धाम
ना दे इन नाम म्यार पहाडा बांद
गड्वाली गीतों जपना इन नाम

गढ़वाली गीतों का क्या हल ........

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बिरहा

कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ
दिल कैसे समझाओं
ब्वारै मन को कैसे मनाओं
इस तडपन कैसे छुपाओं
कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ .....

बीते पल की बिरहा संग
उचाट हो जाता ये तन
यादों की नश्तर की चुबन
चुभता रहता है यह बदन
कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ .....

रातभर गिरती रहती है
पलकों पर आँखों की शबनम
जलते हो ये चाँद पर बदली
जैसै उठती है मरहम बनकर
कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ .....

कसका उभरती है विचारों की
पेशानी पर रेखा बन बनकर
सिकोड़ जाती है ये जवानी
बस साजना की राहतक कर
कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ .....

कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ
दिल कैसे समझाओं
ब्वारै मन को कैसे मनाओं
इस तडपन कैसे छुपाओं
कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ .....


बालकृष्ण डी ध्यानी
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मी ठेकदार

गों गों बाजार बाजार
देख माया का ठेकदार
क्या मची लुँट क्या मची छुट
दगडया तू भी गै लुँट

गों गों बाजार बाजार
देख माया का ठेकदार ........

हर की पैडी हरीदावर
माँ गंगा को पवन घार
उख भी बैठ्चन ठेकदार
भक्त का ठगना छान बारंबार

गों गों बाजार बाजार
देख माया का ठेकदार .......

कोटद्वार मा लगी बाजार
वख बस अड्डा बसों को आत्याचार
गड्वाली फुदणी बांदों गीतों का घुंघटा
बाडा बाडी दीदी दादा को बुरो हाला
खुट धराण कोण कखकच हाथ

गों गों बाजार बाजार
देख माया का ठेकदार .......

देहरदुन बाजार की क्याच बाता
वख खुल्याँ बड़ा बड़ा बाजार
ऐ सी को ठंडा मा दिदवो म्यार
भाव माला को देखैकी छूटों पसीना तालो

गों गों बाजार बाजार
देख माया का ठेकदार .......

मंदिर सडकी दुकान
सब मा बैठा ठेकदार
मंख्युओं थै खोज कभी अपडा
तुभी छे बेटा क्या हिस्सादार

गों गों बाजार बाजार
देख माया का ठेकदार .......

गों गों बाजार बाजार
देख माया का ठेकदार
क्या मची लुँट क्या मची छुट
दगडया तू भी गै लुँट

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