Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 298967 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आज जनमु

आज जनमु ये हिमाल...२
गढ़ देश गढ़वाल
मयारू धन धन भगा ....२
मी जनमु ये हीमला
आज जनमु ये हिमाल...२

बद्री -केदार मेरा भगवाना
पहाड़ों मा बघती गंगा धारा
शिव जाटा को लेण सहरा
भागीरती ण इस धारा उतारा
आज जनमु ये हिमाल...२

पांचा खंड मा पंच केदार
बद्री धाम बैठो बद्रीविशाला
अलखनंदा भागरीथी संगम
देव प्रयागा अलख जगा मयारू मन
आज जनमु ये हिमाल...२

माँ नन्दा जात यख
माँ भगवती को मंडण
पांडव भी ऐये यख
करणकोण स्वर्ग रूहण
आज जनमु ये हिमाल...२

संत साधु को देश ये
उत्तरछेत्र को परीवेस ये
देव भूमी च भूमी न्यारी
बोई सी अंग्वाल लगदी वा मेरी
आज जनमु ये हिमाल...२

आज जनमु ये हिमाल...२
गढ़ देश गढ़वाल
मयारू धन धन भगा ....२
मी जनमु ये हीमला
आज जनमु ये हिमाल...२

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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मी  ठेकदार
 
 गों गों बाजार बाजार
 देख माया का ठेकदार
 क्या मची लुँट क्या मची छुट
 दगडया तू भी गै लुँट
 
 गों गों बाजार बाजार
 देख माया का ठेकदार ........
 
 हर की पैडी हरीदावर
 माँ गंगा को पवन घार
 उख भी बैठ्चन ठेकदार
 भक्त का ठगना छान बारंबार
 
 गों गों बाजार बाजार
 देख माया का ठेकदार .......
 
 कोटद्वार मा लगी बाजार
 वख बस अड्डा बसों  को आत्याचार
 गड्वाली फुदणी बांदों गीतों का घुंघटा
 बाडा बाडी दीदी दादा को बुरो हाला
 खुट धराण कोण कखकच हाथ
 
 गों गों बाजार बाजार
 देख माया का ठेकदार .......
 
 देहरदुन बाजार की क्याच बाता
 वख खुल्याँ बड़ा बड़ा बाजार
 ऐ सी को ठंडा मा दिदवो म्यार
 भाव माला को देखैकी छूटों पसीना तालो 
 
 गों गों बाजार बाजार
 देख माया का ठेकदार .......
 
 मंदिर सडकी दुकान
 सब मा बैठा ठेकदार
 मंख्युओं थै खोज कभी अपडा
 तुभी छे बेटा क्या हिस्सादार
 
 गों गों बाजार बाजार
 देख माया का ठेकदार .......
 
 गों गों बाजार बाजार
 देख माया का ठेकदार
 क्या मची लुँट क्या मची छुट
 दगडया तू भी गै लुँट
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी   
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ   
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
बिरहा

कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ
दिल कैसे समझाओं
ब्वारै मन को कैसे मनाओं
इस तडपन कैसे छुपाओं
कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ .....

बीते पल की बिरहा संग
उचाट हो जाता ये तन
यादों की नश्तर की चुबन
चुभता रहता है यह बदन
कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ .....

रातभर गिरती रहती है
पलकों पर आँखों की शबनम
जलते हो ये चाँद पर बदली
जैसै उठती है मरहम बनकर
कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ .....

कसका उभरती है विचारों की
पेशानी पर रेखा बन बनकर
सिकोड़ जाती है ये जवानी
बस साजना की राहतक कर
कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ .....

कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ
दिल कैसे समझाओं
ब्वारै मन को कैसे मनाओं
इस तडपन कैसे छुपाओं
कुछ छुना चाहों तो छुना पाऊँ .....


बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
गढ़वाली गीतों का क्या हल

दीद पह्ड़ा ना कर ईणी बदनाम
बांद बांद मा बांद्च ये गढ़ धाम
ना दे इन नाम म्यार पहाडा बांद
गड्वाली गीतों जपना इन नाम

गढ़वाली गीतों का क्या हल ........

कण उधाण लग्युं दीदा
केलै इन गीत लगाणा दीदा
पारंद कीले लगाणु दुखण दीदा
बेटी बावरी को दैदे अब माण दीदा

गढ़वाली गीतों का क्या हल ........

जख रामी बोराणी ब्वारी दीदा
जख जशी जैसी दीदी दीदा
तीलू रुतैली वीरगाण दीदा
उत्तरखंड की ये दीदी भुली दीदा

गढ़वाली गीतों का क्या हल ........

बांदा का लासका दह्स्का दीदा
म्यार गढ़ देश पुराणी रीता दीदा
वो भी हमरी दीदी भुली दीदा
पहाडा की जपले संस्क्रती दीदा

गढ़वाली गीतों का क्या हल ........

दीद पह्ड़ा ना कर ईणी बदनाम
बांद बांद मा बांद्च ये गढ़ धाम
ना दे इन नाम म्यार पहाडा बांद
गड्वाली गीतों जपना इन नाम

गढ़वाली गीतों का क्या हल ........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
क्या खोयी

मील क्या पाई
मील क्या खोयी
ये गढ़ देश तै छुड़ीकी
ये मेरा देशा तै छुड़ीकी

मील क्या पाई ............

म ण की रेखा को जहाज
उड़ युं ये सुप्नीयुं अक्सा
पुन्ह्च गै सात समंदर पार
टाका माया मेर साथ साथ

मील क्या पाई .............

पीछणे छुटा गै अन्खोंयांमा
बारमास को बरसात
हैरी को बाटा हराण
ओ घुघूती को घुरण

मील क्या पाई .............

ऊँचा नीचा डंडा
ओ हरा भरा बाण
उकाली उंदरी म्यार मन्ख्युं
कण लगी परदेशा को फैरा

मील क्या पाई .............

बठैयुंच अब ओ धरा
अब आणी याद मेरा घार
ओ गढ़ देश मेर गढ़वाल
ओ मेर भारत विशाला
मील क्या पाई .............

मील क्या पाई
मील क्या खोयी
ये गढ़ देश तै छुड़ीकी
ये मेरा देशा तै छुड़ीकी

मील क्या पाई ............

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
मै भी इन्सान

मै भी एक इन्सान हों
आप की तरह भग्यशाली कंहा
कोप्षण का शिखार हों
अपनी अपनी किस्मत है
पर तुमसे बहुँत हैरान हों

मिलाता है सब कुछ तुम्हे
पर मै ढांचे का परिमाण हों
हस्ती मेरी कुछ भी नहीं
पर तुम से मै शर्मशार हों
मै भी एक इन्सान हों

दाने पानी को तरसता मै
अपने अस्तीत्व से लड़ता मै
आपकी एक नजर उदारता
को कई सालों से तरसता मै
मै भी एक इन्सान हों

अन्ना जब करते तिरस्कार तुम
क्या तुम्हे तब भी मै याद आता नहीं
शराब और शबाब मै डूबे रहते तुम
उस एक दाने दाने को तरस जाता मै
मै भी एक इन्सान हों

सर मेरा झुखा होआ देख
कद तुम्हरा अब तनता क्यों नहीं
मेरी इस छ्वी को देखकर भी
अब तू क्यों बदल जाता नहीं
मै भी एक इन्सान हों

मै भी एक इन्सान हों
आप की तरह भग्यशाली कंहा
कोप्षण का शिखार हों
अपनी अपनी किस्मत है
पर तुमसे बहुँत हैरान हों

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ मेरी प्रीत बिंगा ......२
 मेरी .....मेरी जीकोड़ी.......२ मेरी माया बिंगा दे
 मेरी प्रीत बिंगा ......२
 
 मेरु मनखीहो  हो  होआ  आ आ
 मेरु मनखी माया भरमिगे
 तेर सवणी मुखडी देखी की .....२
 मी थै बोल्या बाणी गै
 मेरी प्रीत बिंगा ......२
 
 जै टैम भाटैक देख मिल
 ये माय्ल्दी आंखी  हो  हो  होआ  आ आ ...२
 ये माय्ल्दी आंखी दगडी
 मेरी निंदी सैणी खाणी हारची गै
 मेरी प्रीत बिंगा ......२
 
 गढ़ देश  मयारू गढ़ देशा भैजी
 रोंलूं का ढुंगा गदनयूँ का गारा  हो  हो  होआ  आ आ ...२
 बांदा यख भली भली ये दीदा ....२
 वा बांद थै मेरी ब्योली बाण दै
 मेरी प्रीत बिंगा ......२
 
 मेरी प्रीत बिंगा ......२
 मेरी .....मेरी जीकोड़ी.......२ मेरी माया बिंगा दे
 मेरी प्रीत बिंगा ......२
 
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
हम और तुम

रेत के समंदर पर युं घर बनान तेरा
लहरों संग बाहा शामियाना मेरा
तुम साथ देती हम साथ होते दिलबर
उस किनारे डुबा आशियाना मेरा
हम और तुम

गाता है दिल अब तराना तेरा
यादा आ रहा है हमे मुस्कुराना तेरा
बातों बातों पर रूठा जाना तेरा
चुपके से आ कर ओ गुन गुनान तेरा
हम और तुम

सागर के थापेडै युं याद आना तेरा
तुफान के इस घेरे युं समझाना तेरा
आती जाती हवाओं मै होना तेरा
विश्वास कश्ती मै पतवार धोना तेरा
हम और तुम


साहील के बाँहों लिखा ये फ़साना तेरा
नील ले गगन के तले ये दीवाना तेरा
तनहईयुं मै अकसर युं आंशों बहना तेरा
तडपात है सदा युं दुर हमसे चले जाना तेरा
हम और तुम

रेत के समंदर पर युं घर बनान तेरा
लहरों संग बाहा शामियाना मेरा
तुम साथ देती हम साथ होते दिलबर
उस किनारे डुबा आशियाना मेरा
हम और तुम


बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
कब आलो उत्तरखंड ध्यै लागाणु

ओ बाटा ओ कुडा ध्यै लगाण छन
ओ तिमाला का डाला मी थै बोलणा छान
मण खुद सैरु व्हायेगे
पीड़ा मेरी गैरू व्हायेगे
ओ बाटा ओ कुडा ध्यै लगाण छन

बैठों छुं मी पल छाला
मुख अपर मोड़ी की
अब कोई नी ध्यै लगाणआंदु बोई
भै बन्द गों गोठयर छुडीकी
ओ बाटा ओ कुडा ध्यै लगाण छन

रीटा डंडा रीटा मन्खी
रीटा होयेगे ये गढ़ सरा
पंच प्रयाग पंच बद्री ध्यै लगाण आज
कखक छुडीकी चलगै तु ये छाला
ओ बाटा ओ कुडा ध्यै लगाण छन

बोई बोई भी तैथै ध्यै लगाण आज
कखक लुकीगै मेरा बाला
कै बादल कै कुलंण लुकागै आज
आंखीण बघणी गंगा की धारा
ओ बाटा ओ कुडा ध्यै लगाण छन

कब आलो कब आलो बोडैकी
देखण छन दाणी आंखी बाटा
कब मीलालो मोक्ष मी थै धरा
कब आलो ओ भगीरथी सा बेटा
ओ बाटा ओ कुडा ध्यै लगाण छन

ओ बाटा ओ कुडा ध्यै लगाण छन
ओ तिमाला का डाला मी थै बोलणा छान
मण खुद सैरु व्हायेगे
पीड़ा मेरी गैरू व्हायेगे
ओ बाटा ओ कुडा ध्यै लगाण छन

बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
कुडै मै जिन्दगी

कुडै मै भी देखो जिन्दगी साथ निभाती
अपने और अपना रंग दिखती जिन्दगी
कितने साथी और साथ साथ चलती जिन्दगी
एक नया गुल और एक नया रूप खिलती जिन्दगी
कुडै मै भी देखो जिन्दगी साथ निभाती

दुःख सुख मेरे साथी ओ हमदम
ओ अमीरी ओ गरीबी का चोली दामन
विहंग की तरहं उड़ता मेर मन
आशा है अपने लक्ष्य तक पहुंचने की लगन
कुडै मै भी देखो जिन्दगी साथ निभाती

कर निरंतर संघर्ष रह तु अविचल
कुडै मै ही खिलेगा मेहनत का कँवल
एक नयी विश्व का अविष्कार करेगा
तेर ये त्यागा बलिदान एक दिन फलेगा
कुडै मै भी देखो जिन्दगी साथ निभाती

कुडै मै भी देखो जिन्दगी साथ निभाती
अपने और अपना रंग दिखती जिन्दगी
कितने साथी और साथ साथ चलती जिन्दगी
एक नया गुल और एक नया रूप खिलती जिन्दगी
कुडै मै भी देखो जिन्दगी साथ निभाती

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