मेरा पहाड़ .कौम के श्री महिपाल सिंह मेहता के साथ वीरेन्द्र पंवार की लिखा-भेंट--------
महिपाल सिंह मेहता (एम् एस मेहता) आम उत्तराखंडी के लिए भले ही अभी नया
नाम हो लेकिन इस युवा ने उत्तराखंड को इन्टरनेट के जरिये विश्वपटल पर
सर्वसुलभ बना दिया है ३२ वर्षीय श्री मेहता पेशे से आई टी हैं.बर्तमान
में वे नॉएडा में रहतेहैं .श्री मेहता अपनी टीम के साथ इन्टरनेट पर 'मेरा
पहाड़ 'फोरम संचालित करते हैं.
इस फोरम ने २१ अप्रैल २०१२ को पांच वर्ष पूरे किये हैं. इस फोरम पर उत्तराखंड
के इतिहास ,भूगोल,साहित्य ,संगीत, पुरातत्व , कला-संस्कृति एवं करियर से लेकर
तमाम अद्यतन गतिविधियों की जानकारी अत्यंत ब्यवस्थित तरीके से उपलब्ध है.इस
फोरम के जरिये उत्तराखंड को एक नयी पहचान मिल रही है .अपनी इस उपलब्धि के
लिए मेरा पहाड़ की पूरी टीम बधाई की पात्र है.इस अवसर पर प्रस्तुत है इस
फोरम के प्रमुख कार्यकर्त्ता महिपाल सिंह मेहता के साथ हुयी बातचीत
के प्रमुख
अंश -----------
वीरेन्द्र पंवार - सबसे पहले आपको 'मेरा पहाड़' के ५ साल पूरे करने पर हार्दिक बधाई
!हमारे पाठकों के लिए आपसे ये जानना चाहेंगे की इन्टरनेट की सोसल साईट पर
सामाजिक तौर से आप कबसे सक्रिय हैं ?
महिपाल सिंह मेहता- - धन्यवाद पंवार जी! अपनी मात्र भूमि से दूर जब पहाड़ की नराई / खुद
सताती है कभी नेट में बैठे हर कोई कुछ न कुछ अपने इलाके के बारे में गूगल
सर्चमें जानकारी खोजता है! मेरा भी इसी प्रकार से एक सोसियल नेटवर्किंग
साईट सेसंपर्क हुवा, किन्ही कारणों से वह साईट चल नहीं पाई! मेरे संपर्क
में श्री कमल कर्णाटक जी के मेरापहाड़ के संथापक है एव एक अन्य मित्र अनुभव उपाध्याय
जी आयेऔर यही से शुरुवात हुयी मेरापहाड़ मंच को तैयार करने की! २१ अप्रैल
२००७ में हमलोगो ने आधिकारिक रूप से मेरापहाड़ फोरम को सञ्चालन शुरू
किया! शुरवाती सालो में बहुत ही संघर्ष हमें करना पड़ा लेकिन धीरे-२
कारवा बढता चल गया और आज मेरापहाड़ में १५,००० से ज्यादे पंजीकृत सदस्य
है और हर महीने ७ लाख से ज्यादेवियुज मेरापहाड़ फोरम में होते है !
वीरेन्द्र पंवार - आप किस प्रकर के कार्यक्रम इन्टरनेट पर आपरेट कर रहें हैं, सामाजिक,
आर्थिक, राजनैतिक साहित्यिक, मनोरंजक अथवा समस्त सन्दर्भ! इन्टरनेट पर 'मेरा
पहाड़' के अतिरिक्त अन्य कोई और मंच भी है,जो आप संचालित करते हो ?
महिपाल सिंह मेहता- मेरापहाड़ फोरम के अलावा हमारे अन्य भी साईट है जैसे
www.merapahad.com,
www.apnauttarakhand.com &
www.hisalu.com ! मुझे यह बात कहने गर्व
महसूश हो रहा है कि मेरापहाड़ मंच के द्वारा हम प्रवासी उत्तराखंडी कही न
कही उत्तराखंड की लोक संगीत, भाषा, पर्यटन, लोक संगीत, इतिहास आदि को
बढावा देने में अपना थोडा योगदान दे पा रहे है! आज मेरापहाड़ फोरम के
द्वारा कई पर्यटक उत्तराखंड भ्रमण के लिए हमें संपर्क करते है, अभी तक हम
सैकड़ो लोगो को उत्तराखंड में भेजचुके है! हर दिन हमारे पास १०-२० मेल और
इसी प्रकार से फोन कॉल भी आते है! इसके आलवा हम मेरापहाड़ फोरम के द्वारा
उत्तराखंड में सरकारी और गैरसरकारी नौकरी के
बारे में भी विज्ञापन देते है जिसे लोगो को नौकरिया भी मिल पा रही है!
मेरापहाड़ में समय -२ पर करियर गाईडैन्स और विपिदा के समय पहाड़ में कैप भी
लगाये है !
वीरेन्द्र पंवार - इन्टरनेट के जरिये उत्तराखंडी समाज से आपका जुड़ाव अधिक है, वर्तमान में
संचार एवं सूचनाओं के इस तीव्रतम दौर में समग्र उत्तराखंडी (प्रवासी एवं
अप्रवासी) समाज को कहाँ पर खड़ा पाते हैं?
महिपाल सिंह मेहता- हाँ यह बात सही है, नेट पर ज्यादे लोग प्रवासी उत्तराखंडी है! लेकिन अभी नेट
मोबाईल के द्वारा लोग गाँवों में भी इस्तेमाल कर रहे है! मुझे अभी लोगो के कॉल
उत्तराखंड के कई हिस्सों से आते है, जब मै लोगो से पूछता हूँ आपको मेरा नंबर
कहाँ से मिला तो लोग बताते है मेरापहाड़ फोरम के जरिये! मुझे इन्टरनेट के
जिरिये लगता है कि प्रवासी लोगो का अब उत्तराखंड की तरफ काफी लगाव बड़ रहा है
और लोग अपने-२ गावो में कुछ न कुछ सामाजिक कार्यो में हिस्सा लेना चाहते है,
लेकिन अप्रवासी समाज उत्तराखंड में अपेक्षित विकास ना होने से काफी नाखुश है!
वीरेन्द्र पंवार - प्रवासी एवं अप्रवासी समाज में से इन्टरनेट का उपयोग सर्वाधिक कौन कर रहा
है! इसमें पहाड़ की क्या स्थिति है?
महिपाल सिंह मेहता- निश्चित रूप से प्रवासी समाज ज्यादे इन्टरनेट पर सक्रिय है! नयी पीड़ी कही न कही
अपनी जड़े इन्टरनेट के जरिये खोज रही है!
वीरेन्द्र पंवार - उत्तराखंड से इन्टरनेट के जरिये किस तरह के मुद्दे अधिकतर उठाये रहे हैं,
आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक अथवा अन्य?
महिपाल सिंह मेहता- मेरापहाड़ फोरम के माध्यम से हमने उत्तराखंड हर पहलू को छूने की कोशिश की है
चाहे हो उत्तराखंड के राजधानी गैरसैंन का मुद्दा हो, उत्तराखंड में बन रहे डामो
के बारे में, वन संपदा के बारे, पर्यटन सम्बंधित आदि! सामाजिक मुद्दों पर हम
जनता की राय फोरम में लेते है एक दो बार हमें फोरम में उत्तराखंड के मंत्रियो
का भी जनता से लाइव चैट करवाया है! ताकि लोग अपनी बात व्यक्त कर पाए! इसके आलवा
हमने कई मुद्दों पर अपने एक्सपर्ट के द्वारा लोगो के मुफ्त जानकारी देने भी
व्यस्था की है! जैसे करीर के बारे, मधुमेह के बारे में, टैक्स के बारे में,
तकनीकी जानकारियों के बारे में, पर्यटन के बारे में आदि, लोग हमारे इस पहल का
काफी लाभ उठा रहे है!
वीरेन्द्र पंवार - इन्टरनेट पर उत्तराखंडी भाषा-साहित्य की स्तिथि क्या है? क्या साहित्य को
पर्याप्त स्थान मिल रहा है?
महिपाल सिंह मेहता- हमने मेरापहाड़ फोरम में उत्तराखंड के भाषा साहित्य के लिए एक अलग बोर्ड
बनाया है जहाँ पर हमारी कोशिश है कि उत्तराखंड के साहित्य, कवि,
रचनाकारों और आदि के बारे में ज्यादे से ज्यादे जानकारी पोस्ट की जा सके!
कुश हमारे वरिष्ठ सदस्य जैसे भीषम कुकरेती जी, पूरन चन्द्र कांडपाल जी,
नवीन जोशी जी, डी एन बडोला जी आदि लोग काफी जानकारी दे रहे है!
वीरेन्द्र पंवार - आपकी दृष्टि में इन्टरनेट के जरिये किस हिस्से में उत्तराखंडी भाषा साहित्य
ज्यादा प्रचारित-प्रसारित हो रहा है-ब्लॉग, ईमेल, फेसबुक आदि
महिपाल सिंह मेहता- मेरे हिसाब से फेसबुक और ब्लॉग से उत्तराखंडी भाषा को प्रचारित एव प्रसारित में
काफी मदद मिल रही है! बाकी मेरापहाड़ में भी उत्तराखंड के साहित्य की काफी
जानकारी समाई हुयी है !
वीरेन्द्र पंवार - आपकी दृष्टी में गढ़वाली और कुमाउनी साहित्य में मोटे तौर पर क्या समानताएं
दिखाई देती हैं? एवं क्या फर्क है?
महिपाल सिंह मेहता- मै समझता हूँ गढ़वाली और कुमाउनी भाषा में 90% समानता है! जब में कोई भी
गढ़वाली गीत सुनता हूँ तो मुझे 90% पूरा गाना समझ में आता है! कही-२ पर शब्दों
में विभिन्नता है! गढ़वाल और कुमाऊ की भौगौलिक स्थिति एक ही है तो साहित्य में
जहाँ भी पहाड़ी की सुन्दरता यह जन जीवन की बात कई गयी है मै समझता हूँ उसमे कोई
अंतर नहीं है!
वीरेन्द्र पंवार - इन्टरनेट पर उत्तराखंडी भाषाओँ की कविताओं के अतिरिक्त क्या प्रकाशित हो
रहा है?
वीरेन्द्र पंवार - जहाँ तक इन्टरनेट में कविताओ का सवाल है लोगो ने अपने ब्लॉग में बही काफी जगह
अपनी स्वरचित कविताये पोस्ट की है लेकिन मेरापहाड़ में हमारी सदैव कोशिश रही है
कि हम उन कवियों की कविताये पोस्ट करे जो अभी हमारे बीच नहीं है! इसके अलावा
गढ़वाली कुमाउनी नाटको के बारे में भी मेरापहाड़ फोरम में काफी जानकारी हमने
प्रस्तुत की है! सबसे ज्यादे हमने उत्तराखंड की लोकोक्तिया, आण (पहेलियाँ) आदि
प्रस्तुत की है, ये सारी जानकारियां केवल मेरापहाड़ फोरम में ही उपलब्ध है जहाँ
इन्टरनेट की बात है!
वीरेन्द्र पंवार - नेट पर प्रकाशित हो रही कविताओं का स्तर आपकी दृष्टी में कैंसा है?
जहाँ कविताओं के स्तर का सवाल है मेरे हिसाब से इन्टरनेट में लोगो ने काफी
कविताएं पोस्ट की है! यहाँ सिर्फ एक ही चीज का दुर्प्रयोग हो रहा है वह है कॉपी
पेस्ट का! लोग कई बार दूसरो के रचनाओं के नीचे अपना नाम लिख कर अपने-२ ब्लॉग या
फेसबुक में पोस्ट कर देते है और असली रचियता को उसका श्रेय नहीं मिलता है!
वीरेन्द्र पंवार - गढ़वाली और कुमाउनी रचनाकारों में कौन से इन्टरनेट पर अधिक सक्रिय है?
महिपाल सिंह मेहता- गढ़वाली और कुमाउनी रचनाकारों में नयी पीड़ी के लोग जो इन्टरनेट चलाना जानते है
वो तो पूरी तरह से नेट पर सक्रिय है! इसमें से अधिकतर गढ़वाली कवी ही नेट पर
अधिक सक्रिय देखे गये है!
वीरेन्द्र पंवार - दोनों भाषाओँ में किस भाषा में स्थानीय भाषा एवं शब्दों का अधिक इस्तेमाल
हो रहा है?
वीरेन्द्र पंवार - मुझे लगता है गढ़वाली! लेकिन गढ़वाली एव कुमाउनी भाषा में भी काफी शब्द विलुप्त
होते जा रहे है! जैसे कुमाउनी के यह शब्द लीजिये ... डाड (पेट)! अगर किसी कहना
है, "मेरे पेट दर्द हो रहा है"! वह कुमाउनी में बोलता है "म्यार पेट में दर्द
हुण रेई:" ! आजकल के आम बोल चाल में "डाड" शब्द अब कही न कही गायब हो रहा है!
वीरेन्द्र पंवार - आपकी दृष्टि में इन्टरनेट पर उत्तराखंडी साहित्य को हिंदी अथवा अंग्रेजी
में प्रकाशित करना लाभप्रद अथवा नुक्शानदेह होगा?
महिपाल सिंह मेहता- - मेरे हिसाब से हिंदी में लोगो की अच्छी रूचि बड़ रही है! शायद लोग इंलिश ज्यादे
सजह न हो पाय! जहाँ तक प्रकाशित करने की बात है इसमें मुझे नुक्सान ज्यादे
नहीं दिख रहा है! अगर उत्तराखंड के साहित्य को राष्टीय एव अंतरराष्ट्रीय पटल पर
ले जाना है तो शायद हिंदी एव अंग्रेजी में प्रकाशित करना लाभदायक होगा! आज
बंगला कवियों के कई साहित्य हिंदी एव अंग्रेजी में प्रकाशित है और बांगला के
आलवा सारे हिंदी भाषी इन कृतियों को पड़ते है!
वीरेन्द्र पंवार - इन्टरनेट के उपयोग से उत्तराखंडी भाषाओँ का कितना भला हो सकता है?
महिपाल सिंह मेहता- इन्टरनेट से मुझे लगता है उत्तराखंड के भाषाओ का अच्छा प्रचार हो रहा है! नयी
पीड़ी की इन्टरनेट के जरिये से भाषा सिखने की ललक बड़ रही है जो एक अच्छा संकेत
है!
वीरेन्द्र पंवार - उत्तराखंडी भाषाओँ के पक्ष में इन्टरनेट के उपयोग को आप किस तरह से देखते
हैं?
महिपाल सिंह मेहता- साकारात्मक है! इन्टरनेट में लोगो ने अपने ब्लॉग गढ़वाली एव कुमाउनी भाषाओ में
भी लिखे है जिससे कही न कही इन भाषाओ का प्रचार एव प्रसार हो रहा है!
वीरेन्द्र पंवार - उत्तराखंडी साहित्य को इन्टरनेट पर आप किस तरह से प्रस्तुत करते हैं ?
महिपाल सिंह मेहता- इन्टरनेट पर सामग्री मूल रूप में अभी दो तरह से प्रस्तुत की जाती है,एक
तो फोरम के जरिये और दूसरी वेबसाइट के जरिये.वेबसाइट के जरिये लोगों की
व्यूवार्शिप गूगल सर्च में आ जाती है .
वीरेन्द्र पंवार - क्या आप बताएँगे कि लगभग कितने लोग इन फोरम या टॉपिक को देखते या पढते हैं ?
महिपाल सिंह मेहता- व्यूवर्सिप के अनुसार जैसे 'मेरा पहाड़' फोरम के अंतर्गत भीष्म कुकरेती
जी के टॉपिक क़ी मासिक व्यूवर्सिप २-३ हज़ार से अधिक है .उनके टॉपिक को दो
साल के अंदर करीब ३० हज़ार से अधिक लोगों ने देखा या पढ़ा है .इसी तरह
वीरेन्द्र पंवार जी के टॉपिक क़ी व्यूवर्सिप ६ महीने के अंदर ५ हज़ार से
अधिक है. बर्तमान में 'मेरा पहाड़' फोरम क़ी व्यूवर्सिप(अप्रैल २०१२
में ) ७ लाख पहुँच गयी है.
वीरेन्द्र पंवार - आप कहना चाहते हैं कि इन्टरनेट पर पहाड़ के मुद्दों को देखने या पढने
वालों कि तादात बहुत जादा है ?
महिपाल सिंह मेहता- जी बिलकुल .
वीरेन्द्र पंवार - इन्टरनेट पर प्रकाशित हो रहे उत्तराखंडी साहित्य से उत्तराखंडी समाज कितना
जुड़ पा रहा है?
महिपाल सिंह मेहता- मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि उत्तराखंड की नयी पीड़ी जी महानगरो में पली
बड़ी है, उनका लागाव काफी अच्छा दिख रहा है! मै इन्टरनेट पर कई लोगो के ब्लॉग
पड़ता हूँ और लोग हमें संपर्क करते है उत्तराखंड के विभिन्न साहित्यकारों एव
रचनाकारों के बारे में जानकारी लेने के लिए!
वीरेन्द्र पंवार - वर्तमान में कुछ ऐंसे नाम गिनाएं जो रचनाकार इन्टरनेट के जरिये
(उत्तराखंडी साहित्य में) अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए हों?
महिपाल सिंह मेहता- बहुत सारे नाम है जिनमे से प्रमुख है जैसे जगमोहन सिंह जाय्डा, बाल कृष्ण
ध्यानी, मन मोहन सिंह बिष्ट, जगमोहन सिंह आज़ाद, महेंद्र सिंह राणा आदि !
वीरेन्द्र पंवार - इन्टरनेट पर प्रकाशित हो रही साहित्यिक सामग्री पर उत्तराखंडी समाज की
क्या प्रतिक्रिया है? क्या वह साहित्य में रूचि ले रहा है?
महिपाल सिंह मेहता- मेरा अनुभव इस अनुभव बहुत ही अच्छा रहा है! जिस तरह से लोगो के फोन कॉल एव मेल
मेरे पास आते है उससे प्रतीत होता है लोगो की काफी रूचि है उत्तराखंड के
साहित्य एव साहित्यकारों के बार में! हमारी कोशिश रहेगी की हम उत्तराखंड के
साहित्य के बारे में और भी विशिष्ठ जानकारियां इस पोर्टल के माध्यम से जनता तक
पहुचाये!
वीरेन्द्र पंवार - प्रवासी उत्तराखंडी अपनी भाषाओँ के सम्बन्ध में क्या विचार रखते है?
महिपाल सिंह मेहता- जैसे कि मैंने पहले भी कहा है! लोगो की रूचि अभी बड़ रही है अपनी लोक भाषावो को
सिखने के लिए! शायद इसमें इन्टरनेट का बहुत अच्छा योगदान रहा है!
वीरेन्द्र पंवार - जनसामान्य में इन्टरनेट के बढ़ रहे चलन से (ऑफलाइन प्रकाशित हो रही)
पत्र-पत्रिकाओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
महिपाल सिंह मेहता- हाँ यह जरुर एक चिंता का विषय है! यहाँ तक के देश के प्रमुख समाचार पत्रों पर
भी यह खतरा दिख रहा है! अभी बड़े-२ समाचार पत्रों ने भी ई पेपर इन्टरनेट पर
डालना शुरू कर दिया है! दूसरी तरफ शायद देखा जाय तो इन्टरनेट के द्वारा इनका
प्रचार प्रसार बड़ भी रहा है!
वीरेन्द्र पंवार - उत्तराखंडी राज्य में छोटे छोटे शहरों से इतर ग्रामीण छेत्रों में
इन्टरनेट के प्रति कितनी जागरूकता दिखाई देती है?
महिपाल सिंह मेहता- मोबाइल क्रांति के द्वारा अब दूर-२ गावो में भी लोग इन्टरनेट से जुड़े हुए है और
लोगो की जागरूकता काफी बड़ी हुयी है! भविष्य में 4G के पूरे तरह आने पर
इन्टरनेट के प्रति रुझान और भी बढेगा!
वीरेन्द्र पंवार - इन्टरनेट और अंग्रेजी के बढ़ते साम्राज्य की रौशनी के बीच उत्तराखंडी
भाषाओँ का भविष्य आपको कैंसा लगता है?
महिपाल सिंह मेहता- पहले इन्टरनेट पर केवल अंग्रेजी में ही लोग लिख या पड़ पाते थे, लेकिन यूनिकोड
के आने से कई भाषाओ को भी हम आज अपनी बात इन्टरनेट पर लिख सकते है! जहाँ तक
बोल चाल की बात है वह थोडा सा चिंता का विषय है! महानगरो में रहने वाले लोगो को
इस तरफ ध्यान देने की जरुरत है! उत्तराखंडी लोग अपनी भाषा अपनी पीड़ी को जरुर
सिखाये तभी संस्कृति का भी विकास हो पायेगा!
वीरेन्द्र पंवार - - मौजूदा सच्चाइयों को स्वीकार करते हुए उत्तराखंडी भाषाओँ को जीवित रखने के
लिए आपकी दृष्टि में बर्तमान प्रयासों के अतिरिक्त और क्या किया जाना चाहिए?
महिपाल सिंह मेहता- मै कई उत्तराखंड के सांस्कृतिक कार्यकर्मो में भाग लेता रहा हूँ लेकिन वहां पर
मुझे एक निराशा हाथ लगती है वह है अपनी बोली में वार्तालाप का न होने का !
कलाकार अपनी प्रस्तुतियां गढ़वाली या कुमाउनी बोलियों में देते है लेकिन मंच
में उद्घोषक केवल हिंदी में ही बात करते है! अगर भाषा को बचाए रखना है हमें नीव
डालनी होगी कि सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक माचो से उत्तराखंड के बोलियों में
संवाद किया जाय! उत्तराखंड व्यक्ति विशेषो को भी जनता के बीच अपनी बोलियों में
बोलनी की शुरुवात करनी चाहिए! मेरापहाड़ फोरम के तहत हमने कई टोपिक बनाये है
जहाँ पर हम लोगो को भाषा सिखाने की कोशिश कर रहे है!
वीरेन्द्र पंवार - 'मेरा पहाड़' जैसे फोरम में भविष्य की अन्य क्या योजनाये है?
महिपाल सिंह मेहता- मेरापहाड़ ग्रुप उत्तराखंड के भाषा, लोक संगीत, कला, संस्कृति, पर्यटन आदि के
प्रचार प्रसार के लिए सक्रिय है और भविष्य में भी और सक्रिय रहेगा! आज
मेरापहाड़ फोरम को इन्टरनेट में ज्वाइन करने वालो के संख्या दिन प्रतिदिन बड़ते
जा रही है! इसके पीछे केवल एक ही कारण है वह है इस फोरम में उपलब्ध विशिष्ठ
जानकारियां! हमने मेरापहाड़ के तहत उत्तराखंड के कई विशेष व्यक्तियों के लाइव
चैट भी समय-२ पर करवाए है जैसे उत्तराखंड से पैत्रिक सम्बन्ध रखने वाले
प्रसिद्ध हाकी खिलाड़ी मीर रंजन नेगी, हिंदी फिल्मो की पार्श्व गायिका सपना
अवस्थी, अभिनेता हेमंत पाण्डेय, दीपक डोबरियाल, फिल्म निर्मेत्री बेला नेगी,
पूर्व मंत्री प्रकाश पन्त, उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक नरेन्द्र सिह नेगी,
अनिल बिष्ट, गजेन्द्र राणा, ललित मोहन जोशी, प्रीतम भरतवाण, पराशर गौर जी, आदि!
मेरापहाड़ फोरम के सदस्यों ने उत्तराखंड के लोक संगीत को बढावा देने कल लिए २
म्यूजिक एल्बम भी बाजार में निकल है "म्यर पहाड़ 1 और म्यर पहाड़ 2! इसके आलवा
उत्तराखंड लोकोतियों एव आण की एक किताब भी मैंने और हमारे सदस्य दयाल पाण्डेय
ने प्रकाशित की है!
हमारी योजनाये समय-२ बनती रही है और इस पर कार्य होते रहता है !
वीरेन्द्र पंवार - अपने ब्यस्त समय में से समय निकालने के लिए आपका बहुत धन्यवाद.
महिपाल सिंह मेहता- धन्यवाद.
वीरेन्द्र पंवार
Copyright@ Virendra Panwar, Pauri, Pauri Garhwal, 10/5/2012