Author Topic: भरत नाट्य शास्त्र का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Bharata Natya Shast  (Read 13805 times)

Bhishma Kukreti

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३२ अंगहारों  वर्णन

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४   , पद /गद्य भाग   १६  बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   

s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न  करे गे )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक अनुवाद करणवळ अनुवादक -   आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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अंगहार -
महेश्वरा वचन सूणी ब्रह्मा श्रीन बोलि -  हे देवाधिदेव तुम अंगहारों  विषय म ब्वालो। तब भगवान शिवन तंडू  तै बुलैक  बोलि - भरत मुनि तैं  अंगहार बारा म बथाओ।  १६ , १७। 
तब महामना तंडून करणों अर रेचक युक्त अंगहार का बारा म मे  बताई स्यू मि  अब व्याख्या करदो।   , १८। १९
अंगहार बत्तीस /३२ हूंदन -
स्थिरहस्त
पर्यस्तक
सूचीबिद्ध
अपविद्ध
आक्षिप्तक
उद्धट्टित
विष्कम्भ
अपराजित
विष्कम्भापसृत
मत्ताक्रीड
स्वस्तिकरे चित्त
पार्श्वस्वस्तिक
वृश्चिकापसृत
भ्र्मर
मत्तस्खलित
मदविलासित
 गतिमंडल
परिच्छिन्न
परिवृतरेचित
वैशाखरेचित
प्रवृत
अलातक
पार्श्वच्छेद
विद्युद्भ्रांत
उरुद वृत्त
आलीढ
रेचित
आच्छुरित
आक्षिप्तरेचित
संभ्रांत
अपसर्पित
तथा
अर्धनिकुट्टक           १९ -२७।
अब मि यूं अंगहारों का करणों पर निर्भर रण वळ  प्रयोगों बारा म बतांदु।  यांक अतिरिक्त मि  यी बि  बतौल बल अंगहार व करणों (नाच ) म हथ अर खुटुं गति (हलण -चलण ) कनो  हूण चयेंद। सबि अंगहार करणो द्वारा निष्पन्न हूंदन तो मि  पैल करणो  नाम बतांदु।  २८ - ३०।
नृत्यम हथ अर  खुटुं हलण -चलणौ कुण 'करण' बुल्दन।  द्वी करणों  योग से एक मातृका बणदि  अर  द्वी ,  तीन चार  मातृकाओं से अंगहार बणद।  तीन करणों द्वारा एक कलापक , चार करणों से एक मंडल , पांच करणों से संघातक।  ये अनुसार अंगहार छै , सात , आठ अर  नौ करणों मेल से बणदन।  अब यूंमा  हथ -खुटुं गति से बणन वळ  स्वरूपों / भेदों  बारम बथांदु।  ३० -३४।   




 

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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -  ८६ , 
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

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108  करण या शरीर हलण -चलण )
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४  (तांडव लक्षण )   , पद /गद्य भाग  ३४    बिटेन   ५५ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - १०६   
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न  करे गे )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक अनुवाद करणवळ अनुवादक -  आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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करण १०८ छन - तलपुष्पपुट  ,वर्तित , वलितोरु, अपविद्ध, समनख ,लीन, स्वस्तिकरेचित, मंडलस्वस्तिक,निकुट्टक ,अर्ध निकुट्टक , कटिछिन्न ,अर्द्धरेचित , वक्षःस्वस्तिक , उन्मत्त , स्वस्तिक, पृष्ठस्वास्तिक , दिक्स्वस्तिक, अलात , कटीसम ,आक्षिप्तरेचित , विक्षिप्ताक्षिप्तक , अर्धस्वस्तिक,अंचित,भुजंगत्रासित, उर्घ्वजानु, निकुञ्चित,मत्तल्लि , अधर्मतल्लि,रेचकनिक्कुट , पादपविद्धक, वलित, घूर्णित,ललित, दंडपक्ष , भुजंगत्रस्तरेचित,नूपुर,वैशाखरेचित , भ्र्मर,चतुर,भुजंगाचिंतक,दंडकरेचित,वृष्चिककुट्टित , वृश्चिक,व्यंसित ,पार्श्वनिकुट्टकम्, ललाटतिलक,क्रान्त, कुंचित,चक्रमंडल, उरोमंडल , आक्षिप्त, तलविलासित, अर्गल ,विक्षिप्त , आवृत,दोलपादक , विवृत,विनिवृत,पार्श्वक्रान्त,निशुम्भित,विद्युद्भ्रांत , अतिक्रांत ,विवर्तितक ,गजक्रीड़ित , तलसंस्फोटित , गरुड़प्लुतक ,गंडसूचि, परिवृत,पार्श्वजानु ,गृध्रावलीनक ,सन्नत ,सूची,अर्धसूची ,सूचीविद्ध ,अपक्रान्त,मयूरललित,   सपित,दंडपाद,हरिणप्लुत, प्रेंखोलित, नितम्ब,स्खलित,करिहस्तक प्रसर्पितक ,सिंहविक्रीडित , सिंहकर्षित, उद्वृत्त,उपसृत,तलसंघट्टित , जनित, अवहित्थक , निवेश , एलकाक्रीडित,उरूद्वृत्त ,मदस्खलितक,विष्णुक्रांत,संभ्रांत,विष्कम्भ,उद्धट्टित,वृषभक्रीडित,लोलितक,नागासपिंत , शकटास्य, गंगावतरण
ये प्रकार से मीन १०८ करण (शरीर हलण -चलण ) बतायिन।  ३४ -५५। 
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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - ८९   -९३
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of    Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


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सौष्ठव विवरण
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग   ५६  बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १०७


s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न  करे गे )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक अनुवाद करणवळ अनुवादक -   आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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यूं करणों  से नाच , युद्ध , बाहुयुद्ध,युध्धौ  समौ धरेण  वळ पद गति (चारी ) ,का गतिप्र्चाराध्याय म वर्णन करलु।  आचार्य गण यूं करणों प्रयोग उचित रूप  से कारन।  ५६-५७। 
प्रायः करणम बांयो हाथ छाती पर अर  दैण हाथ दैं खुटो अनुसरणकर्ता  हूण  चएंदन। ५७। 
अब  मि  हथ -खुटों उं  गतियूं  जु नृत्य म कटि , कोख, पिंडली , बक्षस्थल , पीठ अर लद्वड़ (उदर) से संबंद्ध रंदन  को वर्णन करलु।  ५८ -५९। 
स्थान , चारियां, अर नृत्यहस्त जो भि मथ्याक पदों म  बुले गेन  वु मातृकाएं ' बुले जांदन अर यूंक संयोजन से 'करण' बणदन।  ५९-६०।
जख कमर अर कंदूड़ समान स्तिथि म होवन मुंड अर बाजू बि  इनि  होवन अर छाती उच्ची उठाये जाव त  ये कुण  ' सौष्ठव' बुल्दन।  ये सौष्ठव तै सबि करणों  म सौंदर्याधान  की दृष्टि से संयोजित कर्ण चयेंद।  ६०-६१।

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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -  ९३ 
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


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प्रथम १० करणों  (सरैलो हलण ) लक्षण

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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    पद /गद्य भाग  ६२  बिटेन  ७२  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - १०८   


s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न  करे गे )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक अनुवाद करणवळ अनुवादक -  आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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करणों  लक्षण -
तलपुष्पपुट  करण -   बैं  ओर 'पुष्पपुट'  हस्त अर 'अग्रतल संचर' खुट  धरद  जु खुकली /कोख तैं  सन्नत (झुकीं ) राखो तो तलपुष्पपुट  करण  बुल्दन।  ६१ , ६२। 
वर्तितक करण -  जु  व्यावृत अर  परिवर्तित हथुं तै कलै पर झुकैक धारो अर अर पुनः हथुं  तै जांगुं म  धर  दे त वर्तित या वर्तितक करण  बुले जांद।  ६२ ,६३। 
बलितोरु करण -  जु  शुकतुण्ड मुद्रा वळ हथ व्यावृत (जु वृत्त न हो या खुला )  अर परिवर्तित हो अर जांग वलित मुद्रा म ह्वावन त ये तै ' बलितोरु ' करण  बुल्दन।  ६३ ।
अपविद्ध करण - जु  दैं  हथ तैं शुकतुंड मुद्रा म करद दैणी  जांग म धरे  जाव अर  बैं  हथ  छाती पर धर्युं ह्वावो त ' अपविद्ध ' करण  बुले जांद।  ६४-६५ ।
समनख  करण - जु द्वी खुट समनख अवस्था म रखे जाव अर एक दुसर तै भिड़ेणा (छूना ) ह्वावन, द्वी हथों तै लम्बो करद  तौळ जिना हलांद धरे जाव अर सरैल अपण  स्वाभाविक अवस्था म हो तो 'समनख ' करण बुले जांद।  ६५ , ६६।
(नाट्य शास्त्र इ  ना कखि हौर शास्त्रों म  बि समनख  अवस्था क वर्णन नि  मिल्दो।  )
लीन करण - जु 'पताक' मुद्रा वळ हथ तैं  छाती म अज्वाळ मुद्रा म धरे जाव , गर्दन ऊँचा हो ,अर कांद झुक्यां  ह्वावन त 'लीन ' करण बुले जांद।  ६६,  ६७।
स्वस्तिरेचित करण - जु रेचित अर आविद्ध मुद्रा वळ हथों  तै मिलैक स्वास्तिक बणाए जाव अर पुनः हटैक कटि पर धरे जाव  तो 'स्वस्तिरेचित' करण हूंद।  ६७ , ६८।
मंडलस्वस्तिक करण - जु हथों  तैं संयुक्त करि घुमान्द स्वस्तिक म धरे जाव -हथों तळवा तौळ समिण अर मथि समान रूप से घुमान्द  धरे जावन अर सरैल तै मंडल स्थान म धरे जाव त मंडलस्वस्तिक ' करण बुले जालो।  ६८ , ६९।
निकुट्टक करण - जु भुजा अर मुंड (मस्तक  )  का मध्य हथों  तै निकुट्टक दशा म धरे जाव त 'निकुट्टक ' करण  बुले जांद।  ६९ -७०।
  अर्धनिकुट्टक करण  -   जु अंचित  मुद्रा वळ हथों   तै समिण  ओर करे  जाव अर पिंडलियों तैं उब -तौळ  करे जाव त   'अर्धनिकुट्टक'  करण बुले जांद।  ७० -७१
कटिछिन्न करण - जु  कटि  क्रमश: छिन्न मुद्रा म अर  द्वी हथ  क्रमशः पल्लव मुद्राम मस्तिष्क म धरे जावन अर जु  ये विधान तै बार बार करे जाव त ये तै  कटिछिन्न करण  बुले जांद।  ७१ -७२।
चित्र हेतु निम्न सन्दर्भ देखें 

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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -   ९४  बिटेन  ९६ तलक  चित्रों हेतु उपरोक्त सन्दर्भ देखें

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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
 भरत नाट्यम में करणों लक्षणों की विवेचना,  भरत नाट्य शास्त्र में भिन्न भिन्न  करणों  (शरीर हिलना डुलाना ) की परिभाषा , भरत नाट्य में शरीर भाषा उपयोग  Body Language  Explaination  in Bharata  Natyam


Bhishma Kukreti

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स्वस्तिक संबंधी   दस करण लक्षण
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग ७२- ७३    बिटेन  ८१-८२ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - १०९   

s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न  करे गे )
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े  जण  वळ  एक मात्र लिख्वार -   आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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जु  यदि  हथ 'सूचीमुख' मुद्राम यथेच्छ डुलाये जाव , खुटों तैं क्रमश ंथी तौळ हलाये जाव अर कोख तन मुद्रा म हो तो 'अर्धरेचित' करण बुले जांद।  ७२ -७३।   
जु द्वी खुटों तैं 'स्वस्तिक ' मुद्रा म धरे जावो।  द्वी हथ रेचित  करदा झुकान्द छाती तल लावो अर तब बक्षष्ठल /छाती बि झुकाओ तो 'बक्षःस्वस्तिक ' करण बुले जांद।  ७३ -७४।
जु  द्वी खुट अंचित अर द्वी हथ रचित दशा म होवन त  नृत्यशास्त्रौ जणगर  येकुण 'उन्मत्त' करण  बुल्दन।  ७४-७५।
जु द्वी  हथ अर खुट 'स्वस्तिक ' मुद्रा म होवन त करण का अभिनेता ये तै 'स्वस्तिक ' करण जाणो।  ७५- ७६।
जु  द्वी बाहु  मथि  विक्षेप अर  तौळ  झटका दगड़ ''स्वस्तिक ' मुद्रा म करे जावन अर द्वी खुट  'अपक्रान्ता' अर 'अर्धसूची' चारियों दगड़ 'स्वस्तिक ' बणावन  त यु 'पृष्ठस्वस्तिक 'करण   बुले जांद।  ७६ -७७।
जु खुकली /कोख अर समिण ओर स्पर्श कर घुमद द्वी  हथ खुट  'स्वस्तिक' मुद्रा म रावन त 'दिक्स्वस्तिक ' करण  बुले जांद . ७७ -७८
जु 'आलात' चारी करदा सीधा हथ तैं कांध क बराबर से तौळ उतारे जाव, पुनः 'उर्घ्वजानु' चारि तै (क्रमश द्वी हाथ खुटों से ) सम्पादित करे जाव त 'आलात करण' बुले जांद। ७८-७९।
जु खुट स्वस्तिक करणो पश्चात अलग रखे जाव द्वी  हाथ नाभि अर कटि म धरे जाव अर कोख 'उद्वाहित' चेष्टा म धरे जाय त 'कटीसम 'करण बुले जांद . ७९-८०।
जु बैं  हथ हृदय पर अर सीधो 'रेचित; मुद्रा युक्त करि मथि अर कूण्यों म उछाला जाय तब  पुनः   द्वी हथ रचित ' अर चक्राकार /अपविद्ध 'मुद्रा म रखे जाय  तो 'आक्षिप्तरेचित' करण  बुले जांद . ८० -८१।
जु हथ अर खूट मथि उछाळे जावन (विक्षिप्त ) पुनः ऊं तैं तौळ पटका जाय तो हे मुनियो ! 'बिक्षिप्ताक्षिपक; करण  बुले जांद।  ८१  -८२ । 
 
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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -   ९६ बिटेन ९८

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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुंबई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


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 कुछ हौर करण - भाग ४
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग   ८२  बिटेन ९१- ९२  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १११
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न  करे गे )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े  जण वळ  एक मात्र लिख्वार  -   आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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जु द्वी खुट स्वस्तिक , सीधो हथ 'करिहस्त'मुद्रा म अर  बैं हथ वक्षस्थलम हो त  'अर्धस्वस्तिक 'करण  बुले जांद।  ८२-८३ । 
जु (यदि ) 'अर्धस्वस्तिक'करण  की अवस्थाम 'करिहस्त' मुद्रा वळ हाथ चक्राकार घुमाव म घूमो तथा परिवृत्त रखे जाव अर  तब नासिका क अगनै वळ  भाग की ओर  घुमाये जाय तो यु  'अंचित' करण  ह्वे।  ८३ -८४।
 जब 'कुंचित'' मुद्रा का खुटों   तै उब  उछाळा  जाय , वै तै तिरछा घुमै  दिए जाय अर कटि  व जांघ बि  वै  इ क्रम म घुमै  दिए जाय तो 'भुजंगन्नासित  ' करण  हूंद।  ८४ -८५।
जु कुंचित पाद तै उब  उछाळे  जाव , घुंड तै उब लिजैक छाती बरोबर फैलाये जाय अर  द्वी हथ नृत्य का प्रयोग का अनुकूल (ताल नाद आदि )  रखे जावन  त  यु 'ऊर्घ्वजानु' करण  हूंद।  ८५ -८६।
जु 'वृश्चिक' करणम खुटों  तै रखि हथ  कोखै  छ्वाड़ झुकै  द्या , अर  सीधो हथ  तै नाकै  नोक क अग्रभाग म पर झुकाई धरो त  ' निकुंचित' करण  हूंद। ८६-८७। 
जु  बैं अर  सीधो खुटों  द्वारा एक चक्करदार घुमाव लेकि तब वाई तै भ्यूं  पटके जाव , द्वी नाच करदा हाथ उद्वेष्टित अर अपविद्ध गति प्र्दशन करिन त  वु  'मत्तल्ली ' करण  हूंद।  ८७ -८८।
जु खुटों तैं 'स्खलित' करण म पिछ्नै लिजाये  जाय बैं हथ  तै ' रेचित' जाव , बैं  हथ  तै कटिम धरे जाव ,त अर्धमत्तल्ली' करण हूंद। ८८ -८९।
जु  सीधो हथ 'रेचित' , दैं खुट उद्घट्टित ' अर बैं  हथ दोला मुद्रा म धरे जाव त  ' रेचित -निकुट्टित' करण  हूंद।  ८९-९०।
जु  द्वी हथ 'कटकामुख'मुद्राम नौला निकट हथकुळ्युं  (हथेलियां ) तै  समिण जिनां करद  धरे जाव अर  द्वी खुट  'सूचीबद्ध 'अर  'अपक्रान्ता' चारि से युक्त हों त  'पादपविद्धक' करण  बुले जांद।  ९० -९१।
जु हथ अपविद्ध' मुद्राम अर खुट सूची' चारी म अर  त्रिक (अपण  अधोभाग सहित पीठ को भाग )  तै घुमा दिए जाय त  'वलित' करण  ह्वे  जांद।  ९१ -९२। 
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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -  ९८  - १०० 
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


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कुछ हौर करण  परिभाषा - 6
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग  ९७ -९८   बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत   नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   ११३


s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न  करे गे )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े  जण वळ  एक मात्र लिख्वार  -   आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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जु  हथ अर खुट 'रेचित' मुद्रा म  अर  इनि कटी व गौळ  बि  रेचित  मुद्रा म होवन अर  शेष अंग 'वैशाखस्थान' म रावन  तो 'ये करण  तै 'वैशाखरेचित'  बुल्दन।  ९७ -९८। 
जु  स्वस्तिक पादों तैं 'आक्षिप्त' चारिम धरिक हथों तै '  उद्वेस्टित ' अवस्थाम धरी अर त्रिक  तै चरों ओर  घुमौला त 'भ्र्मरक' करण  ह्वे जांद। ९८-९९। 
जु  बैं  हथ 'अंचित' मुद्राम दैं  हथ 'चतुरम' अर दैं खुट  कुट्टित' मुद्राम ह्वावो तो 'चतुर' करण हूंद।  ९९-१००। 
जु खुट 'भुजंगत्रासित' चारिम , दैं  हथ 'रेचित' मुद्राम अर  बैं  हथ 'लता' मुद्राम हो त 'भुजंगान्चित ' करण हूंद।  १०० -१०१। 
जु  हथ  अर  खुट तै सीधो दंडौ जन चर्री ओर झटकिक  सीधा कारों तब हथ अर खुटों   तैं  रेचित मुद्राम धरवां त 'दंडकरेचित' करण  बुले जांद। १०१-१०२। 
जु 'वृश्चिक' करण प्रदर्शित करी द्वी हथों तैं निक्कुट्टित ' करे  जाव तो 'वृश्चिक -कुट्टित' करण  ह्वे  जांद।  १०२-१०३।
जु खुट  सूची' चारीम करी बैं खुट 'अपविद्ध' मुद्राम धरे जाव अर कटि 'रेचित  मुद्रा म हो त 'कटिभ्रांत' करण  हूंद।  १०३-१०४।
जु  एक खुट 'अंचित ' मुद्राम पैथरा ओर  घुमाये जाय अर बैं हथ लता मुद्रा युक्त  हो  अर  वैका पंजा अर अंगुळी सिकुड़ी होवन अर मथि जिना धर्यावन तो 'लतावृश्चिक' करण हूंद। १०४-१०५।
जु 'अलपद्म' मुद्रा वळ  हथ कटि पर धरे जाव ,कटि 'च्छिन' मुद्रा म रावो अर क्रमश यिं  मुद्राम नचनेर शेष  संग तै 'वैशाखस्थान ' म धार तो 'छिन्न' करण  बुले जांद। १०५-१०६।
जु वृश्चिक'  चरण तै प्रदर्शित करी द्वी हथों तैं स्वस्तिक मुद्राम धरी 'रेचित' अर विप्रकीर्ण ' करे जाव त  यू करण ' वृश्चिकरेचित' बुले जांद।  १०६ -१०७। 

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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -  १०२ 
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

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कुछ हौर  १० करण  व्यख्या 

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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग  १०७ - १०८   बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   ११४

s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न  करे गे )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े  जण वळ  एक मात्र लिख्वार  -   आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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जु  द्वी हाथ झुक्यां हुयां हो  अर कांदम धर्यां  होवन , खुट झुक्यां  ह्वावन ,अर पीठs  पैंथर घुमांद  धरे जावन अर  पथ झुकीं मुद्रा म ह्वावो त  वे करण  तै 'वृश्चक ' करण  बुल्दन। १०७ - १०८।
जु  आलीढस्थान का प्रदर्शनौ  दगड़ द्वी हथुं  तैं छती पर रेचित मुद्रा म धरे  जाव अर  अळग -तौळ ओर  हलणा  रावन  तो वु करण 'व्यंसित ' हूंद।  १०८ -१९।
जु  स्वस्तिक मुद्रा वळ  द्वी हथ  कोख म धरे जावन खुट 'निकुट्टित ' होवन त  विद्वान ये तैं  'पार्श्वनिकुट्टित' करण  बुल्दन।  १०९ - ११०।
जु 'वृश्चक' चरण  का पश्चात खुटो   अंगूठा कपाळ  तक  ल्हेकि  वैमा तिलक करणो भाव प्रदर्शन करे जाव तो 'ललाटतिलक  करण जणे  जाव।  ११०- १११।
जु खुटों तै कुंचित करिक पैथरा ओर अर 'अतिक्रान्ता' चारी  म  चर्री  ओर घुमान्द  धरे जावा अर द्वी हथुं  तै तौळ जिना  झटके जाव त वु  करण  ' क्रांतक' होंद।  १११ -११२।
जु खुट तै पैल झुकैक 'अंचित' मुद्रा म दैण  हथ तै कुंचुत मुद्रा म रखे जाव जो बैं  खुकली म मथि  जिना पंजा वळ जन धरे जाव त  वु  करण 'कुंचित ' बुले जांद।  ११२ - ११३। 
जु अड्डिता चारी क भीतर सरैल तै झुकैक सीधी झूळदी  भुजाओं से युक्त धरे जाव त  वु करण  'चक्रमंडल' हूंद।  ११३ -११४।
जु 'स्वस्तिक' मुद्रा म द्वी खुट अगनै  बढ़ैक तब 'अपविद्ध' चारी  प्रयोग हो अर  द्वी हथ 'उरोमण्डल' मुद्रा म धरे जाव तो ' वै  तै  'उरोमंडल' करण  बुल्दन।  ११३ - ११४। 
जु  वेग से हथ -खुटो तै झटका -पटका जाय तो मुनियों ! यि 'आक्षिप्त' करण  हूंद।  ११४- ११५। 
जु खुट  अपण तलुवा अर अंगळ्यूं  मथ्या जिना पैथर  बिटेन  फैलाये जाय या उठाये जाय अर  द्वी हथों पंजा कुंचित अवस्था म धरे जावन त 'ततविलसित' करण  हूंद।  ११४ - ११५।


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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -   १०३ बिटेन
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,



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अर्गलं  से  अतिक्रांत तक १० करण परिभाषा
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण ) , पद /गद्य भाग  ११७  -११८   बिटेन  १२६ -१२७  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   ११५

s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न  करे गे )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित

गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़ेजण वळ  एक मात्र लिख्वार - आचार्य  भीष्म कुकरेती
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जु  खुट पैथरा ओर हटैक ढाई ताल (द्विजर्षभा:) तक धरे जावन अर  हथ  बि खुट अनुसार समिण  ओर घुमदा धरे जावन त 'अर्गलं ' करण  जाणो । ११७-११८।
जु  हथ खुटों तै पैथर अर बाजु की ओर एक संग एक हैंकाक अनुसरण करदा झटकै   जावन  तो  वै  तै 'विक्षिप्त; करण  जाणो , ११८ -११९।
जु कुंचित पाद तै शीघ्रतापूर्वक  लौटा /बौड़ाई ले अर  द्वी हथों प्रयोग क अनुसार रखदा हुयां तेज गति से घुमाये लें तो 'आवर्त' करण जाणो।  ११९ -१२०। 
जु  ' कुंचित' पाद तैं  अळग उठैक  द्वी ओर क्रमशः झुलाएं ,अर  द्वी हथों तै यीं  प्रक्रिया गतिशील रखे जाव त 'दोलापद ' करण जाणो।  १२० -१२१।  .
हे मुनिजन ! जु द्वी हथ - खुटों तै भैरा ओर उछाळा  देकि 'त्रिक' तै एक गोळ चक्र दींदा हथों तैं  'रेचित' मुद्रा म रखे जाव त 'विवृत' करण जाणों।  १२१ -१२२।
जु 'सूचीविध चर्री  ओर प्रयोग करणो  उपरान्त 'त्रिक'क  गोल  घुमाव दिए जाव अर हथों तै रेचित मुद्रा म रखे जाव तो 'विनिवृत' करण  जाणो।  १२२- १२३।
जु 'पार्श्वक्रान्ति' चारी क प्रयोग कौरि खुटों तै भूमि पर पटके जाव अर  हथों नृत्य प्रयोग अनुसार समिण  संचालित करे  जाव तो 'पार्श्वक्रान्त' करण  बुले जांद।  १२३ -१२४।
जु एक खुट  पैथर ओर  सिकुड़ेकि लिए जाव अर  छाती तै ऊंचो उठैक  रखे जाव।  हथ तै पिठै लगाणो चेष्टा म कपाळ तक लीजिए जाय तो 'निस्तंभित' करण बुले जांद।  १२४ -१२५।
जु  एक खुट  पैथर घुमाइक कपाळ पर लगदा रखे जाव अर  द्वी  हथों  तै 'मंडलाविद्ध'  दशा म संचालित कर्यां  त 'विद्युद्भ्रांत' करण  बुले जांद।  १२५ -१२६।
 जु अतिक्रांत' चारि का प्रदर्शन करणो उपरांत  द्वी हथों क नृत्य प्रयोग क अनुसार समिण फैलाये जाय त 'अतिक्रांत' करण  जाणो। १२६- १२७।



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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -   १०५   - १०७
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


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विवर्तिक से सूची करण तक १० करण
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग  १२७ -१२८  बिटेन १३६- १३७  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   ११६


s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न  करे गे )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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जु एक हथ अर  खुट तै अळग जिना उछाळा देकि त्रिक तै एक गोळ घुमाव देकि अर  दूसर हथ तै रेचित  मुद्राम धारो त 'विवर्तिक' करण  बुले जांद। १२७ -१२८।
जु बैं हथ  दैं कंदूड़ो न्याड़ सिकुड़ि लिजाये जाय,   दैं हथ लता मुद्राम अर  खुट 'दोलापाद' चारि म रखे जाव त 'गजक्रीड़ितक ' करण  हूंद।  १२८ -१२९।
जब  एक खुट  द्रुत गति से मथि उठैक समिण पटके जाय।  द्वी हथों तै 'तल -संस्फोटित ' मुद्रा म  धरे जाय त 'तलसंस्फोटित' करण हूंद। १२९-१३०। 
जु खुट पैथर जिना पसारिक (फैलाकर ) द्वी हथ  (दैं - बैं  ) क्रमश 'लता ' अर 'रेचित' म धरे जाय अर मस्तक तै मथ्या जिना तान दिया जाव त 'गरुड़प्लुतक 'करण  बुल्दन। १३०-१३१।
जु खुट 'सूची' म , कोख झुकीं , एक हथ  छती  पर अर  दुसर 'अंचित' मुद्राम कपोल परदेस तै स्पर्श करदो ह्वावो त 'गंडसूची' करण बुले जांद।  १३१-१३२।
जब   द्वी हथ 'अपवेष्टित' मुद्रा म अळग  उठाये जांय अर  खुट सूची अर त्रिक तै भ्र्मरी चारी  का  लक्षणुंम घुमाये जाय त 'परिवृत्' करण  बुले जांद। १३२-१३३।
 जु  एक खुट 'समपाद' चारी अर दुसर वैकि उर  भाग मा  (पैथर जिना ) धर्युं  ह्वावो अर मुष्ठि मुद्रा म छातीपर धर्युं ह्वावो त 'पार्श्वजानु' करण बुल्दन। १३३- १३४।
जब एक खुट पैथर  फैलैक  वैक घुंड थोड़ा  झुकाये जाय अर  द्वी हथ समिण पसारे (फैलाये ) जाय त वै तै 'गृघ्नावलीनक ' करण  बुल्दन।  १३४- १३५।
 जु एक उछाळ  देकि द्वी खुटों  तै स्वस्तिक बणैक समिण धरे जाय अर द्वी हथ दोला मुद्राम धारो तो वै तै 'सचत' करण  बुले जांद। १३५-१३६।
जु 'कुचित' खुट  उठैक अगवाड़ी  भूमि क जिना पर धरे  द्याए  जाय अर  द्वी हथों तै नृत्य प्रयोग अनुसार धरे जाय त 'सूची' करण बुल्दन। १३६-१३७।


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  सन्दर्भ - बाबू लाल    शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -    १०७ -१०९ तक
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,

 

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