कुछ अंगहारुं व्याख्या
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भरत नाट्य शाश्त्र अध्याय चौथो ४ (ताँडव लक्षण ) , पद /गद्य भाग १७० बिटेन १८१ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - १२१
s = आधा अ
पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एक मात्र लिख्वार -आचार्य भीष्म कुकरेती
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स्थिरहस्त
द्वी हथों तैं अळगा तरफ फैलैक 'उत्क्षिप्त' करे जाय अर 'समपाद' स्थानो प्रदर्शन करेजाव, बैं हथ तै अळगै तरफ 'व्यंसित' अर 'अपव्यंसित' अवस्था म फैलाये जाय फिर 'प्रत्यालीढ़' म स्थित ह्वेका 'निकुट्टित', उरुद्वृत्त 'आक्षिप्त, स्वस्तिक, नितम्ब,करि हस्त अर कटिच्छिन्न करणों तै क्रमश: प्रदर्शित करे जाव तो 'स्थिरहस्त'नामौ अंगहार बण जान्दन। यु भगवान शिव तै बड़ो प्रिय च। १७० -१७३।
पर्यस्तक -
जु 'तलपुष्पपुट' अपविद्ध,अर वर्तित अर निकुट्टित करणो तै क्रमश: प्रदर्शित करे जाय फिर प्रत्यालोढ़ ,अर निकुट्ट को तथा उरुद्वृत्त , आक्षिप्त,उरोमण्डल ,करिहस्त अर कटिच्छिन्न ,करणो तै क्रमश प्रदर्शन करे जाव त 'सूचिविद्ध' अंगहार हूंद। १७३ -१७५।
हथों से अलपल्ल्व अर सूची मुद्राओं प्रदर्शन का उपरान्त जुकि क्रमशः करे जांद फिर विक्षिप्त ,आवर्तित , निकुट्टक , उरद्वृत्त ,आक्षिप्त ,उरोमण्डल,करिहस्त ,कटिच्छिन्न ,करणो क्रमश प्रदर्शन करण पर 'सूचीवृद्ध'' अंगहार हूंद। १७५- १७७।
(सर्वप्रथम ) अपविद्ध,ार सूचीविद्ध करणो प्रदर्शन कौरी फिर हथों से उद्वेष्टित करण का प्रदर्शन करे जय जु हथ अर त्रिक को एक घुमाव दींद फिर उरोमण्डल मुद्रा म हस्तों तै स्थिर कर कटिच्छिन्न करणो प्रदर्शन करे जाव तो 'अपविद्ध' नामो अंगहार हूंद। १७७-१७९.
आक्षिप्तक -
सर्वपर्थम ,नुपुर करणो प्रदर्शन कौरि फिर विक्षिप्त ,अलातक ,आक्षिप्त ,उरोमण्डल ,नितम्ब ,करिहस्त ,अर कटिच्छिन्न करणों क्रमशः प्रदर्शन करे जाय त 'आक्षिप्तक' अंगहार हूंद। १७९ - १८१।
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सन्दर्भ - बाबू लाल शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - ११६ -११८
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भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of Bharata Natyashastra in Garhwali , प्रथम बार जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक ) के कुकरेती द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,