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भरत नाट्य शास्त्र का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Bharata Natya Shast

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Bhishma Kukreti:

    नर्तकी क रंगमंच प्रवेश नियम

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )   २७३ -२७४  , पद /गद्य भाग   बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १३२
s = आधा अ
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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हे मुनियो ! यथोपयुक्त संगीत वाद्यों की व्यस्था /स्थापना करणो पश्चात सूत्रधार का प्रयोग कारो।
तब वीणा अर  गीतों से युक्त उपोहन का प्रयोग करणो उपरान्त नर्तकी तै रंगमंच म प्रवेश करण /छिरण  चयेंद जु भांड  वाद्य क वादन का दगड़  हो।  २७३- २७५।
ये समय प्रयुक्त संगीत विशुद्ध करणों व जातियों से युक्त हों अर दगड़म वाद्य क वादन बि हो। फिर ताल अनुसार गति प्रदर्शन करद  फिर नर्तकी चारि तरफ प्रदर्शन करे। 
नर्तकी ' तै बैशाखस्थान ' द्वारा सबि  रेचकों से युक्त गति क प्रदर्शन करे अर अंजलि म पुष्प लेकि मंच पर प्रवेश करण  चयेंद।  २७५-२७६। 
देवगण हेतु अर गोळ चक्कर लगांद अपण  हथों से वैतै हथों से रंगमंच पर विकीर्ण कौरि दिबतौं  तै प्रणाम कौरि फिर विभिन्न गीत अर मुद्राओं प्रदर्शन दगड़ अभिनय शरू करण  चयेंद।  २७७ -२७८।


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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -  १३८  -१३९
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,

Bhishma Kukreti:
 नर्तकी प्रवेश व भैर होण
  भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग २७८ - २७९   बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १३३
s = आधा अ
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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जब अभिनय तै कै गीत अनुसार प्रदर्शन हूणु ह्वावो तब वैक दगड़ वाद्य संगीत की संगत नि  हूण चयेंद, किन्तु अंगहारों क प्रयोग दशा म भांड वाद्य (मृदंग आदि ) की संगत अवश्य हो।  २७८-२७९। 
तांडव म जै वाद्य की संगत  ह्वावो वु  वाद्य सम , रक्त , विभक्त व स्फुट ह्वावो , अर  स्पष्ट प्रहारों से शुद्ध ताल उतपन्न करदा नृत्य क विभागों तै यथोचित बतलाण  वळ  ह्वावो।  २७९-२८०
ये प्रकार से गीतुं वाद्यों दगड़ प्रदर्शन कौरि नर्तकी रंगमंच से भैर  आवो व इनि  ऑवर नर्तकी बि  प्रवेश कारन।
यी नर्तकी क्रमश: येयी विधान अनुसार तब तक 'पिण्डीबन्ध' क रचना या प्रदर्शन न करिन जब तक सबि क्रमश: अपण प्रदर्शन पुअर नि कर ल्यावन। यांक बाद 'पर्यस्तक 'तै प्रदर्शन करण शुरू कर दे अर 'पिंडबंधन ' क प्रयोग हूणो उपरान्त ही यी नर्तकी भैर जवन।  २८० -२८२। 

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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -  १३९ 
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,

Bhishma Kukreti:


 आसारित' प्रयोग

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग  २८३   बिटेन २८८  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १३३
s = आधा अ
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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यूं पिंडबंधुं  मंच पर प्रदर्शन अवसर पर बजनेरों  द्वारा वाद्यों  इन  वादन  हूण चयेंद जु अनेक (भौत सा )  या विचित्र बोध अर करणों से युक्त ह्वावन अर जो पर्यसत्क 'समय प्रयुक्त वाद्य जन ही हो।
अब दुबर 'असरित' को बि प्रयोग हो। एक गीतै  बी यजना करे जाय अर नर्तकी (नचाड़ ) मंच म प्रवेश कार अर  वा वाई गाण क विषय वस्तु अनुसार नृत्य कार अर अभिनीत कार २८३-२८५ ।
ये प्रकार नर्तकी 'असारित' विधि पूर करि मंच ब्रिटेन  चल जावो।
तब अन्य नर्तकियां प्रवेश कारन अर इनि नृत्य प्रदर्शन कारन।
ये प्रकार प्रत्येक पद गति पर 'आसारित' प्रयोग विधि अनुसरण हो।  भांड वाद्य का बजणेर अर  गितांग बि इनि  अनुसरण कारन।  पैल  गीतौ  एक पद गाये जाय। दुसर पाद तै द्वी बेर ,तिसर तै तीन बेर अर  चौथो पाद तै चार बेर गाये जाय।  २८६-२८८

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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - १४०  -१४१ 
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,

Bhishma Kukreti:

पिंडी , पिण्डीबन्ध व्याख्या
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग  २८९  बिटेन  २९२  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १३४
s = आधा अ
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती    
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पिंडिक चार प्रकार हूंदन - जन कि -पिंडी ,श्रृंखलिका ,लटबंध व मेद्यक।
यांक पिंडी या  पिण्डीबन्ध  नाम पिण्डीभूत  (गुल्म ) हूणो कारण धरे गे।  गुल्म हूण से श्रृंखलिका परस्पर जाल जन  गुंथे जाण से , लताबंध अर मेद्यक नृत्य से युक्त यु प्रकार च जां  से नृतिका अलग ह्वे  जावन। २९०। 
पिण्डीबंधक प्रयोग कनिष्ठ (पैलो या छुट  )  , आसारित म ,श्रृंखला प्रयोग लय क मध्य म , लटबंधक प्रयोग मध्य स्थिति या मध्यम ासरित म अर  मेद्यक क प्रयोग जेष्ठ आसारित म करण  चयेंद।  २९१। 
पिंडिक उद्भव द्वी प्रकार से च -  एक यंत्र से दुसर भद्रासन।  यूंकि  विधिवत शिक्षा लीण  चयेंद अर  तबि प्रयोग हूण  चयेंद। 
ये मुनिगण ! बर्धमानक क प्रयोग बि  प्रशिक्षण से ही हूण  चयेंद . .  २९२। 

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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - १४१   
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,

Bhishma Kukreti:

नृत्य , संगीत वाद्य यंत्र म बंधन
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग  २९३  बिटेन  २९८ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १३५
s = आधा अ
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती    
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छंदक गीत विधि व लक्षण -
अब मि  दुबर  छंदक,  गीत विधि  व लक्षणों विषय म बुल्दु।  यीं  विधिम जु गीत विषय वस्तु से ठीक से आबद्ध छन अर जु  अंगों से बि आबद्ध छन अब ऊंको नृत्य तथा वाद्यों  दगड़ हूण वळ  प्रयोग बथांदु।  (यूं ) गीतों समय नर्तकी क प्रवेश करवाण  चयेंद।  ( तब )  सबि  वाद्यों (भांड  व अवनद्ध ) प्रयोग हो ,अर  सबि तंतुवाद्य अर प्रतिक्षेप से बजाए  जाण  चएंदन।   सबसे पैल , समग्र विषय वस्तु तै मुद्राओं द्वारा अभिनीत करे जाय अर फिर वी गीत विषय वस्तु नृत्य द्वारा अभिनीत करे जाय।  २९३- २९७
नृत्य , अभिनय , संगीत अर वाद्य वादनै  ज्वा विधि पैल बताए गे वैइ  आसारित विधि गीतों व विषय वस्तु प्रयोग म बि  लागू हूंद।  ये प्रकारन मीन विषय वस्तु से निबद्ध गीतों की विधि निरूपण बताई।  २९७-२९८

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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - १४२   -१४३
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,

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