करुण रस माँ भाव /करूण रस में प्रयुक्त होने वाले भाव
(गढवाल म खिल्यां नाटक आधारित उदाहरण )
Sentiment of the Pathos Rapture
( इरानी , अरबी शब्दों क वर्जन प्रयत्न )
भरत नाट्य शास्त्र अध्याय - 6, 7 का : रस व भाव समीक्षा - 71
s = आधी अ
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद आचार्य – भीष्म कुकरेती
व्यभिचारिणश्चास्य निर्वेदग्लानिचिंतौत्सुक्यावेगभ्रममोहश्रमभयविषाददैन्यव्याधिजडतोन्मादापस्मारत्रासालस्यमरणस्तम्भवेपथुवैववर्ण्याश्रुस्वरभेदादय। ।
(६. ६१)
गढ़वाली अनुवाद -
करुण रसम निर्वेद, ग्लानि , चिंता , औत्सुक्य, आवेग , वितर्क , मोह श्रम, भय, विशद, दैन्य, व्याधि, जड़ता, उन्माद, अपस्मार , त्रास, अळगस , मोरण, स्तम्भ , वेपथु, वैवर्ण्य, अश्रु अर स्वर भेद भावों प्रयोग स्वांग खिलण म हूंदन।
भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
गढ़वाली काव्य म भाव ; गढ़वाली नाटकों म भाव ;गढ़वाली गद्य म भाव ; गढवाली लोक कथाओं म भाव
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