रंगमंच प्रतिष्ठा विधान अर भौं भौं देव थरपणौ विधान
भरत नाट्य शाश्त्र अध्याय तिसर , पद /गद्य भाग १ बिटेन तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - ९७
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी शब्द वर्जना प्रयत्न करे गे )
पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक अनुवाद करणवळ अनुवादक आचार्य – भीष्म कुकरेती
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ये प्रकार से सबि लक्षणों से युक्त शुभ नाट्य गृहौ चिण्याणो उपरांत , एक सप्ता तलक उख जपकर्ता बामणों तैं गौड़यूं दगड़ रौण चयेंद। १।
तब नाट्याचार्य रात्रिक आगमन बेला ( संध्या ) म अपण सरैल तै मन्त्रोच्चारित जल से ध्वेक /नयेक बिरण घरम वास करिक (इन्द्रियम संयम ) अर पवित्र ह्वेका तीन राति तक उपवास धरिक , नया वस्त्र पैरिक नाट्य गृह ार रंगमंच का डिबतौं आवाहन करवाये। २, ३ ,।
तब सम्पूर्ण लोकों सैं गुसैं भगवान शिव , पद्म पुष्प से अवतरित ब्रह्मा श्री , देवगुरु वृहस्पति, भगवान विष्णु , इंद्र , कार्तिकेय, सरस्वती , लक्ष्मी, सिद्धि , मेघा, वृति, मति , सोम , सूर्य , मरुत, लोकपाल , अश्विनीकुमार, मित्र , अग्नि, स्वर , वर्ण, रूद्र, काल, कलि, मृत्यु, नियति, कालदण्ड, सुदर्शन चक्र, नागराज, गरुड़, वज्र, विद्युत् , समुद्र, गंधर्व, अप्सराएं, मुनि , भूत, पिशाच, यक्ष, गुह्यक,महासर्पगण, असुर, नाट्य विघ्नों , दैत्यों तथा अन्य रागसों , सबि नाट्यकुमारी, महाग्रामणी अर अन्य स्वतंत्र राजविगणो तैं हाथ नवैक प्रणाम करदा अपण अपण योग्य स्थानों म स्थित देव गणुं तैं ंयुत दींद इन प्रार्थना करण चयेंद - हे भगवन ! तुम सबि आज रात यखी रावो अर हमर रक्षा करदा करदा अर हमर नाट्य कर्मों म अनुचर सहित सौ सैता कर्यां। ४-११।
जर्जर पूजा विधान -
तब सबि दिबतौं एक दगड़ी पुजणो वाद्यों प्रयोग कारो, अर नाट्य प्रसिद्धि बान जर्जर देव की पूजा कारो। १२।
हे जर्जर ! तू इन्द्रौ शस्त्र छे अर सभी दानवों नाशक छे। सबि देवगण द्वारा तू वघ्नों नाशौ कुण निर्मित करे गे . तू हमर राजा तैं विजय अर शत्रुओं तै पराजय दे अर तू गौ , ब्रह्मणों का हितकारी ार नाट्यकर्म को सहायक ह्वे जा । १३- १४।
ये प्रकार विधि से पूजा करी रातमनाट्य मंडप म निवास करदा सुबेर बुद्धिमान नाट्याचार्य देव आमंत्रण को कार्य शुरू कारन। १५।
यु रंगपूजन आर्द्रा, मघा,याम्या , तिनि पूर्वी , नक्षत्रों या अश्लेषा या मूल नक्षत्रों म करे जाय। एकागमन वळ पवित्र अर वर्त विशेषज्ञ नाट्याचार्य द्वारा रंगमंचो उद्घाटन करद देव पूजन करण चयेंद। १६ , १७।
दिनांत म आण वळ नाला, घोर अर दारुण नामौ मुहूर्त म आचार्य तैं नियमानुसार आचमन करदा दिबतौं की स्थापना करण चयेंद। ये देव पूजन म लाल रँगौ क ही सूत्र , कंगड़ा , उत्तम रक्तवर्णी चंदन , लाल पुष्प , ये इ वर्णो फल , प्रयोग हूण चएंदन। जौ , राई ,खीलों , धान क अक्षत नागपुष्पो मूल , चम्पक फल द्रव्यों दगड़ दिबतौं तैं बिठाण चयेंद। १८-२१।
सबसे पैल देवगणों तै बिठाणो कुण मंडल निर्माण करण चयेंद। यु मंडल १६ बालिस्त , लम्बो चौड़ हूण चयेंद अर विधान पूर्वक इखम चार द्वार बि धरे जाण चएंदन। यांक मध्य म द्वी तिरछी रेखा बि खैंचण चयेंद। यूं रेखाओं से निर्मित क्वाठौं दिबतौं स्थापना हूण चयेंद।
ये मंडलक मध्य म कमलासीन ब्रह्मा तै स्थापित करण तब पूर्व दिशा म भूत गणो दगड़ भगवन शिव स्थापित करो अर ये इ दिशाम नारायण , महेंद्र, कार्तिकेय,सूर्य, अश्विनी कुमार , चंद्र ,सरस्वती।लक्ष्मी , श्रद्धा , मेघा ,की स्थापना करे जावन। दक्खिण -पूर्व कोणम स्वाहा दगड़ अग्नि, विश्वेदेवा ,गंधर्व,रूद्र अर ऋषिओं स्थापना करे जाय। दक्खिणम यम अपण अनुचर मय मित्र , पितरगण ,पिशाच , सर्पगण ,अर गुह्यगणो की स्थापना हो। नैरऋत्य कोणम राक्षस अर बहुत स्थापित करे जावन। पच्छिमम जलाधिपति वरुणदेव अर समोदरों की स्थापना हूण चयेंद। वायव्य दिशा (उत्तर पश्चिम ) म सातपवनों , पक्षी व गरुड़ की स्थापना ह्वावो। उत्तर दिशाम कुबेर की भली भांति थरपे जाव अर इखम मातृकौं अर गुह्यों दगड़ यज्ञ बि थरपे जावन । ईशानम नंदी , गणेश्वर , ब्रह्मर्षि अर भूतूं संघों तै यथायोग्य स्थलों म थरपे जावो। २१-३१।
सन्दर्भ - बाबू लाल शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - ६१ बिटेन ६७
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भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of Bharata Natyashastra in Garhwali , प्रथम बार जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक ) के कुकरेती द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,