Uttarakhand > Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य

चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita

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Bhishma Kukreti:

सोळा मूलनी  अर  यूंक औषधियों म प्रयोग

Root Based herbs described in Charak Samhita
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय  बिटेन ७७ -८०   तक
  अनुवाद भाग -   १०
अनुवादक - भीष्म कुकरेती

  (अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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हस्तिदन्ति (रतनपुरुष ) , हैमवती (श्वेत बच ), श्यामा (त्रिवृत ), त्रिवृत् (लला जड़ )  , अधोगुडा (विधारा ), श्पटला (शिकाकाई ),  श्वेतनामा , प्रत्यक  श्रेणी (जमलगोटा ), गवाक्षी (इन्द्रायण ),  ज्योतिष्मती , बिम्बी, शणपुष्पी , विपाणिका , अजगन्धा , द्रवन्ती, क्षीरणी  सोळा  मूलनि छन। ७७ , ७८
मथ्या सोळा  मूलनियों  औषधियों  मदे शंखपुष्पी ,  बिम्बी ,अर  हेमवती , यी तीन उकै  (वमन ) म प्रयोग करण  चयेंद।  श्वेत अपराजिता , ज्योतिष्मती यी द्वी शिरोविरेचन म ,  अर  शेष अग्यारा मूल विरेचन म प्रयोग लीण  चयेंद।  सब कार्यों म यी प्रयोग हूण  चएंदन।  ये प्रकार से यूं  सोळा 'मुलवळि '  वनस्पतियों नाम  अर  कर्मों विवरण बोली दे।  अब फलनि वनस्पतियों वर्णन सूणो।  ७९ , ८० 

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita

Bhishma Kukreti:

 फलनि पादप अर  ऊंक  कर्म

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय ८१  बिटेन  - ८५ तक
  अनुवाद भाग -   ११
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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 फलनी  पादप -
शंखनी , बिडंग , त्रपुष (ककड़ी , खीरा ), मदन , आनूप   क्लीतक, सतलज क्लीतक ,(मुलैठी ), धमर्गव ( बड़ी  , तोरई ), इक्ष्वाकु, (कड़ी तोरई ), जीमूत , कृतवेधन (तोरई )  , प्रकीर्या व उदकीर्य्या , प्रत्यक पुष्पा , अभया , अन्तःकोटरपुष्पी , शारदा हस्तपर्णी , कम्पिल्ल्क, आरग्व ध , कुटज  ये १९ फलनि वनस्पतियां  छन।  ८१ -८३
फलनि पादपों कर्म -
धामार्गव , इक्ष्वाकु , जामूत , अमलतास , मैनफल , कुड़े फल, खीरा , अर  शरद हस्तपर्णी  यी  आठ शरद ऋतू क फल , उकाई/उल्टी , आस्थापन्न म अर  निरुह  करण   चयेंद।
 आपामार्गौ  फल नस्य कर्मों म प्रयोग हूंद।  अर  शेष फलनियुं  प्रयोग विरेचन कार्यों म करण  चयेंद।  ये प्रकार से १९  फलनि अर  यूंक  कर्म क बड़ा म बुले  गे  . ८४- ८५ 
 

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita

Bhishma Kukreti:

स्नेह /चर्बी  , लूण   प्रकार अर  यूंक  कर्म

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय ,  ८६ बिटेन  - ९२  तक
  अनुवाद भाग -   १२
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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 चार स्नेह -
घी , तेल , वसा /चर्बी, अर  मजा  यी चार स्नेह  छन।  ८६
यूं स्नेहों कर्म -
यी चर्री  स्नेहों  सरैल म मुख मार्ग से दीण, मालिश करण , गुदा या उप स्थानों म दीण  अर  नाक से दीण  पर  प्रयोग हूंदन।  यी स्नेह सरैल तै  कोमल  करदन, सरैल तैं  जीवन दींदन , बल अर  शक्यात  वृद्धि करदन।  यी स्नेह बात , पित्त अर  कफ नष्ट करदन।  ८७
लवण -
पांच प्रकारो लूण  हूंदन - सैंधव (सर्वश्रेष्ठ लूण ) , सैंचल।  काळो  लूण , काचो लूण  अर  समोदरो  लूण।  ८८
लवणों कर्म -
यी लूण  स्निग्ध , उष्ण , तीक्ष्ण , अर  अग्नि वृद्धि करण  (दौंकार )  वळ  हूंदन।  यी लूण  आलोपन (humidity ) , स्नेहन (चिकनाई ) म ,  पसीनाम , अधोभाग विरेचन ,  ऊर्घ्व  विरेचन (दस्त )  द्वारा दोषों तैं  भैर गडणम , निरुहण , अनुवासन म ,अभ्यंगम , भोजनम ,ार शिर विरेचनम ,शस्त्र कर्मम फल वर्ति आदिम, अंजनम , उबटनम , अजीर्णम ,अफारेम , वायु रोगम , गुल्मम ,शूल रोगम, उदर रोगोंम काम आंदन।  ८९-९२ 

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;  चरक संहिता में चर्बीयुक्त पदार्थों का पयोग , चरक संहिता में नमक पदार्थं का प्रयोग
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita, Types  and  Uses  of  Fats  and  Salt  in  Charak Samhita translated  by  Bhishma  Kukreti

Bhishma Kukreti:

भौं भौं प्रकारा  मूत  गुण  अर   उपयोग

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय ९३  बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   १३
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
s= आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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 आठ मुख्य मूत्र -
अब जु मुख्य मूत्र आत्रेय  ऋषिन बतैन   ऊ  छन -
ढिबरौ मूत , बखरौ मूत , गौड़ी मूत , भैंसौ मूत , हाथीs मूत , ऊंटौ मूत , घ्वाड़ा मूत ार गधा मूत  I  ९३
यि  आठ प्रकारौ मूत गरम , तीक्ष्ण , रूखा , कड़ु रस , लूण्या रस युक्त छन।  अठी प्रकारा मूत उपसादनम , आलापन म, लेपम , आस्थापनम , निरुहम , विरेचनम ,स्वेदनम , नाड़ीस्वेद (स्वेद =पसीना ) , अनाड़ म (अफरा ), विषनाशम उपयोग हूंदन। 
उदर रोगुंम , अर्श रोगम , गुल्म , कुष्ठम अर  किलासम , उपनाहम ,पुलटिस आदि सेचन कार्यम , उपयोग हूंदन।  यी मूत अग्निदीपक, विषनाशक, अर कृमिनाशक बुले जांदन।  यी पाण्डु रोगियूं  कुण पीणो , आहार अर  भेषज आदि म , उत्तम , हितकारी छन।  पियूं  मूत कफौ  शमन करद।  वायु कु अनुमोलन (पेट क गाँठ  सही  करण )   म उपयोग अर  पित्त तै अधोभाग म खैंचद अर पित्तौ  विरेचन करदन।  ९४ - ९९

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita

Bhishma Kukreti:

 आठ मूतों /मूत्रों  गुण व कर्म अर   दूधों गुण

Properties and Uses  of  Urine  and  Milk
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय  १००   बिटेन  १११ - तक
  अनुवाद भाग -   १४
अनुवादक - भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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 आठ मूतूं  मध्य अलग अलग मूत्र  क गुण  इन छन -
ढिबर /भेद मूतो / मूत्र  गुण - ढिबरो  मूत  थोड़ा तिक्त , स्निघ्ध , अर  पित्त क अवरोधी (रुकण वळ )  होंद , वु  ना तो पित्त कम करदो ना इ  वृद्धि।
बकरी मूत्र , बखरौ मूत - कसैला अर  मिठु रस वळ , स्रान्तों  कुण  हितकारी हूंद ार त्रिदोष निवारक च। 
गौड़ी मूत , गाय मूत्र - कुछ मिठो , दोष नाशक , कृमिमारक , हूंद।  ये तैं  पीण  से खज्जी /पीत  समाप्त हूंदन।  गौड़ी मूत वायु उत्पादित रोगों शमन म हितककारी च।
भैंसो मूत , भैंसो मूत्र - भैंसो मूत बबासीर , शोथ , उदर रोग शमन म  हितकारी हूंद . थोड़ा  खारो व मलभेदक च।
हाथी मुर , हस्ती मूत्र - हाथी मूत लुण्या , कृमि अर कुष्ठ रोगम पुरुषों कुण  हितकारी हूंद . अवरुद्ध मल-मूत्र /कब्ज , ॉस्क रोग , विष रोग , श्लेष्मा  जन्य रोग ,  बबासीर  म श्रेष्ठ च।
ऊँटो  मूत /मूत्र - थोड़ा तिक्त , कड़ो , स्वास , कास , अर्श रोगम  हितकारी च।
घ्वाड़ो  मूत तिक्त , कटु अर  कोढ़ , विष , ार व्रण  जन रोगों उपयोगी।
गधौ मूत /गधा मूत्र - गधा मूत मिर्गी , हिस्टीरिया , उन्माद म हितकारी हूंद .  १००- १०४
ये प्रकार से ये शास्त्र म सामन्य अर विशेष द्वी प्रकारों अर्थात मूत जन छन तन्नि  बताये गे।  अब  ान आठ प्रकारौ दूधों  कर्म अर गुण  पर बुले जाल - (१०५ ) -
अब आठ प्रकारौ  दूध -
भेड़ /ढिबरौ , बखरौ , गौड़ी , भैंसौ , ऊंटनी , हाथी, घोड़ी अर  स्त्रियों दूध (१०६ )
 
सब दूध प्राय: मधुर रस /मिठु , स्निग्ध , शीत , (माओं कुण )  दूध वृद्धिकारक , पुष्टिदायक ,  वृद्ध्य  (बाढ़ दायक ), वीर्य वर्धक , वृद्धि कुण  हितकारी , बदलदायक, मन प्रसन्न करंदेर ,  श्रमहारी (थकौट मारक ), खास , कफ छोड़ि  अन्य  कासों  तै मिटाण .  वळ . हूंद  I   दूध रक्त पित्त नाशक, टूटयां  तै जुड़न वळ हूंद।  सब प्राण्युं सात्म्य दोष नाशक , तीस नाशी , तपन वर्धक , क्षीण व कष्ट रोगियों कुण हितकारी , पांडु रोग , वात पित्त , शांप , गुल्म , अतिसार जौर , डाह , शोथ रोगों म विशेष कर  पथ्य च।  यौन रोगों , मूत्र कृच्छ , मलावरोध म  पथ्य हितकारी च।  दूध वात पित्त रोगियों कुण  बि  पथ्य च।  (१०७ - १११ )


संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita

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