Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 19412 times)

Bhishma Kukreti

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  कब्ज दूर करणम स्नेह /तेल प्रयोग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद  ५७  बिटेन  -  ६९ तक
  अनुवाद भाग -  १०१
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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जैक टट्टी  रुकीं हो, रुक्षता , वायु अपण प्रकृति म नि ह्वावो ,जठराग्नि मंद ह्वाव, सरैलम कर्कशता रूखापन ह्वावो , त समजि ल्यावो स्नेह क्रिया ठीक नि ह्वे। ५७।
वायु की अनुकूलता ,जठराग्नि बढ़न (भूख लगण ) , चिपुळ अत पतळ  मल (टट्टी ),अंगों म कोमलता या चिकनापन ह्वावो तो समज ल्यावो स्नेह क्रिया संतोष ढंग से ह्वे  . ५८। 
पीलोपन , निश्तेज  वर्ण , शरीर म भारपब ,अळगस , मल भली प्रकार  नि  पकण , अरुचि , सुस्ती , उकै की इच्छा (वमन इच्छा  ),  यि अतिस्नेह का लक्छण छन।  ५९।
स्नेह से पैल लीण वळ योग्य हितकारी पदार्थ - स्नेह इच्छाधारी तै  स्नेह पीण  से एक एक दिन पैल  द्रव व गरम जु कफकारी न ह्वावो ,अतिस्निग्ध ,अतिविकारयुक्त ,अर्स किरण भोजन  उचित  मात्रा म लीण चयेंद। जु द्वी तीन अवयवों तै मिलैक नि बण्यु  ह्वावो  अर अगिल  दिन जब भूक लग तब संशमन स्नेहक पान करण।  ६०।
संशोधन क उद्देश्य से स्नेह पान करणो रातौ भोजन पचण पर सुबेर स्नेह लीण चयेंद . ६१।
स्नेहकालम तीन हित -अहित - पीण , स्नान ,शौच आदि कार्यों म गरम पाणी प्रयोग, मैथुन छोड़ दीण चयेंद।  रातम ही  सीण , दिनम नि सीण, रातम नि बिजण ,मल , मूत्र , डकार का वेगों तै नि रुकण।  व्यायाम श्रम ,जोर से या अधिक भाषण ,क्रोध , सर्दी व गरम  सहन नि करण।  खुली हवा म हवा समिण  नि बैठण , ना इ सीण।  स्नेहपान क पैथर यि कार्य करण चएंदन। स्नेह पीणो  बाद स्नेहपान , स्नेह पेकी फिर से भोजनम स्नेह लीण , स्नेह क मिथ्यायोग से भयंकर रोग ह्वे  जांदन। ६२-६४। 
मृदुकोष्ठ वळ व्यक्ति स्नेहपान करणो तीन रात तक सेवन से स्निघ्ध ह्वे जांद।  क्रूरकोष्ठ वळ  व्यक्ति  सात दिन तक स्नेह  पान करण पर स्निग्ध ह्वे जांद।६५।
गुड़ , गन्ना रस ,दही क द्रव्य भाग , दूध , बिरोइं  दै (मट्ठा ), खीर , खिचड़ी , घी , गम्भीरी रस ,त्रिफला , अंगूर रस ,पीलु जल , गरम जल , नवीन मदिरा यांक पीण से मृदुकोष्ठ वळ व्यक्ति क विरेचन ह्वे जांद। ६६-६७।
यूं पदार्थों से क्रूर कोष्ठक व्यक्तियों विरेचन नि  हूंद , किलैकि करोररकोष्ठक वळाक नाड़ी अति प्रबल वायु वळ हूंद। ६८।
मृदुकोष्ठ की ग्रहणी अर पित्त प्रबल व मंद कफ अर अलप वायु युक्त च।  इलै गुड़ आदि से ही विरेचन ह्वे जांद। ६९।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १६४  बिटेन    १६६ तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली


Bhishma Kukreti

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स्नेह  जन्य विकार
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद  ७०   बिटेन  - ८१  तक
  अनुवाद भाग -  १०२
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व्याप्ति भाव
जैक ग्रहणी  प्रबल पित्त वळ ह्वावो ,(कफ व वायु युक्त न हो ) , अर जैक अग्नि बल  बड्युं    हूंद वाई व्यक्ति पियूं स्नेह अग्नि ज भष्म ह्वे जांद। यो महाबलवान जठराग्नि पियूं स्नेह तै जीर्ण करी फिर बलवान बणी आज घटांदी  उपद्रव युक्त तीस लांदी।  इन अवस्था म स्नेह क कारण बढ़ी जठराग्नि तै गुरु भोजन बि समर्थ नई हूंद।  इलै इन व्यक्ति तै जल नि द्यावो तो तकलीफ हूंद, जनकी सांप अपर विष्ट से स्वयं ही तकलीफ उठांदो ।  ७० -७२। 
व्याप्ति निदान -
स्नेहक जीर्ण हुयां  बगैर जु  तीस लग तो वैद्य वमन कराये ।  फिर  ठंडो पाणि  देकी रुक्ष भोजन  करैक अर वमन कराये।  पित्त की प्रधानता म घी नि पीण चयेंद।  पित्त क कारण तीक्ष्ण गुण  हूण से घी सरा शरीर म फ़ैल जांद।  स्नेह सरा शरीर म फ़ैल जांद, शरीर पाइल पड़ जांद  अर चेतना नाश ह्वेका प्राण नाश क्र दीन्दो।  ७३-७४।
आलस , वमन इच्छा ,अफरा ,ज्वर , जड़ता , संज्ञानाश , कुष्ठ ,खाज , पांडुपन ,शोथ , अर्श , तीस , ग्रहणी रोग , ऐंठन , मरोड़ ,उदरशूल , वाणी बंद हूण यी स्नेह क मिथ्यायोग क लक्षण छन।  इनमे बि वमन कराण व पसीना लिवाण  करण  चयेंद।  स्नेह दोष समाप्ति तक भोजन नि करण चयेंद। इनि तक्रारिष्ट प्रयोग व रखा भोजन व आठों प्रकारक मूत्र अर त्रिफला स्नेह जन्य  बीमारी  दूर करदन। ७५-७८। 
रोग हूणों  कारण -
जै  तै जु स्नेह नि पीण वु पे जाव , ठीक समय पर स्नेह नि लीण , उचित मात्रा म नि  लीण , स्नेहक अघळ , मिथ्या व अनुचित प्रयोग से स्नेह जन्य विकार पैदा ह्वे जांदन। ७९।   
स्नेहपान क पैथर व्यक्ति तीन रत तक ठहरे ,यु तीन दिनों म स्नेह मिश्रित द्रव , उष्ण मांश रसयुक्त भात खाइक विरचन ल्यावो ,एक दिन जैन आराम कार अर  पैल   जन वमन कारी द्रव प्या।  ८०-८१। 

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १६६    बिटेन १६८    तक
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Bhishma Kukreti

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स्नेहन विधियां
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद   ८२ बिटेन  -८८  तक
  अनुवाद भाग -  १०३
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-  !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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संसमन उद्देश्य हेतु स्नेहपान करणम विरचन लियुं जन इ व्यवहार करण  चयेंद।
विरेचन प्रयोग -
जु व्यक्ति स्नेह (घी -तेल )  से द्वेष करदो हो , जु रोज स्नेह (घी -तेल )  प्रयोग करदा ह्वावन , मृदुकोष्ठ वळ , कष्ट सहन नि करण वळ , जु नियत मदिरा सेवी  ह्वाओ  , वै तैं  विचारणा प्रयोग करण  चयेंद। प्रयोग विधि बुल्दां - वटेर ,मोर , हंस, सूअर ,मुर्गी , हाथी ,बखर, ढिबर , अर  माछ रस स्नेहन क्रिया म हितकारी च।  यूं  मांसरसो संस्कार वास्ता जौ , बेर ,गहथ , घी या तेल , गुड़ , शक़्कर , अनारदाना , दही , सोंठ ,काली मिर्च , पिप्पली ,यूं  तै यथायोग्य मिलाण  चयेंद।   ८२-८४।
घी म भूनीं  तिलकुट  तै भोजन से पैल  खाण पर शरीरौ स्नेहन करे  जांद। इनि  खूब घी वळ खिचड़ी अर तिल युक्त 'कॉम्पलिक यश '  भोजन से पािल शरीरौ स्नेहन करे जांद। ८५।
अध् पक गणना रस ,आदु ,तेल , यूं तिन्युं  तै एक एक कौरिक शराब म मिलैक रुक्ष व्यक्ति प्यावो।  एक जीर्ण हूण पर मांश भोजन खाण चयेंद। ८६।
वात  प्रकृति वळ मनुष्य शराब या मांडो  दगड़ तेल , वसा या मज्जा मैलिक प्यावो ,तो स्नेहन  (चिकनापन , चिपुळ , smoothing ) हूंद। वात प्रकृति व्यक्ति राव (अदपको गणना रस )  दगड़  दूध प्यावो त स्नेहन हूंद।  ८७।
धरोष्ण , ताजो दूध  तै चिन्नी दगड़  पीण  से चौड़  स्नेहन हूंद। राव दगड़ दै सेवन से बि चौड़  स्नेहन हूंद।  ८८।

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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १६८    बिटेन   १६९  तक
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Bhishma Kukreti

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उड़द चौंळ  खीर  व कुछ यूष  पाक विधि
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 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद   ८९ बिटेन  -९४  तक
  अनुवाद भाग -  १०४
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 पांचप्रसृतिका पेय  ' से  मनिख शीघ्र स्निघ्द ह्वे  जांद। उड़दों तै चौंळुं दगड़  मिलैक घी आधी स्निघ्द म खूब भुटी घी युक्त दूध म पकायीं खीर जल्दी स्निघ्द कर दींदी। पांचप्रसृति पेया ' - घी , तेल ,वसा , मजा व चौंळ तै प्रत्येक तै आठ आठ तौला लेकि  छ  गुणा  पाणी म पकावो।  एको नाम पांचप्रसृतिका पेय ' च।  स्नेहन की इच्छा वळ तैं 'पांचप्रसृतिका पेय' लीण चयेंद। ८९-९०।
कुष्ठ रोगी सोज रोगी,प्रमेह रोगी,आद्यूं कुण ग्राम्य निन्दित मांस , जलीय मांस ,गुड़ , दही ,दूध , तिल को प्रयोग नि करण चयेंद। किलैकि यी  वै रोगवर्धक छन। इन रोगियों तै रोग निवारण हेतु यूं रोगुं नाशकारी औषधि ससिद्ध घी ,आदि स्नेह  व यूं  रोगियों पर जु स्नेह  बुरो  प्रभाव नि डळण वळ नेहों से चिकित्सा करण  चयेंद। अन्यथा पिप्पली ,क कल्क , हरड़ का कल्क अथवा त्रिफला कल्क द्वारा सिद्ध स्नेह द्वारा कुष्ठ रोगी , प्रमेय रोगी व शोथ रोगी क चिकित्सा करे जाण  चयेंद। ९१ -९२।
द्राक्षा यूष , औंळा यूष , अर खट्टी दही , (ये मिलित चार भाग ) ,सोंठ , मरिचि ,और पिप्पली (मिलित एक भाग ) युंक कल्क डाळि उचित मात्रा से घृत सिद्ध करण  चयेंद। ये घी तै पीणन मनिखौ स्नेहन  हूंद। ९३।
जौ , बेर ,कुल्थी प्रत्येकक क्वाथ ,दूध , दही ,अर मद्य , क्षार अर  घी यूं तै मिलैक घी सिद्ध करण  चयेंद। यु स्नेहन कुण श्रेष्ठ च।  ९४।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १७०    बिटेन   १७१  तक
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स्नेह प्रोयग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद ९५   बिटेन  - १०० तक
  अनुवाद भाग -  १०५
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तेल, वसा, घी,मज्जा, बेर अर त्रिफला क्वाथ (हरड़ , बयड़ , औंळा  रस ) म पृथक या मिश्रण म स्नेह सिद्ध करण  चयेंद।  यु स्नेह योनिरोग अर वातरोगम  लाभकारी च।  ९५।
जै हिसाब से कपड़ा उचित मात्रा म हि पानी ग्रहण करदो अर  जादा मात्राक पाणि  निकळ  जांद; इनि अग्नि स्नेह की उचित मात्रा तै इ  जीर्ण करद  बाकी भैर निकळ जांद। ९६।
जै  हिसाबन माटौ ढिलका पर पाणि डाळे  जाय त  माट  गिल्लु  ह्वे  जांद अर  गळण  मिसे जांद  तनी जल्दी म  बिंडी मात्रा म पियूं  स्नेह गुदा रस्ता जल्दि  भैर ऐ  जांद।  जथगा बि स्नेह बुले गेन  सेंधवा लूणो  दगड़  सेवन से मनिख तै शीघ्र स्निग्ध कर दींदन। किलैकि लूण अरूखो , द्रवकारक ,सूक्ष्म , उष्ण अर व्यवायी गुण वळ च।   संसोधन से पूर्व  स्नेह सेवन  करण  चयेंद। बाद म स्वेदन करण चयेंद। स्नेह व स्वेदन बाद ही संसोदःन हूण  चयेंद।  ९७-९९। 
स्नेहों क प्रकार ,सम्पूर्ण स्नेह विधि , स्नेह की व्यापत्तियाँ , उन्को भेषज -औषध सिद्धि समेत सिद्धि भगवान पुनर्वसु आत्रेय न अग्निवेश का प्रश्नानुसार सब बोली याल।  १००।
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इति   स्नेह अध्याय /तेरवां अध्याय समाप्त
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १७१   बिटेन  १७२   तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

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Bhishma Kukreti

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स्वेद औषधि क्या च ?
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  चौदवां  अध्याय (स्वेद अध्याय )     )   पद  १   बिटेन  -६  तक
  अनुवाद भाग -  १०६
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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                       स्वेद अद्ध्याय , १४ वां अध्याय
स्नेह विवरण पश्चात अब स्वेद संबंधु अध्याय का  ब्याख्यान  करला जन भगवान आत्रेय न बोली छौ। १, २।
अब स्वेद  (पसीना ) विधियों उपदेश करला। जौंक  उचित प्रकार से करण  से स्वेदन से शांत हूण वळ  कफ , वात जन्य रोग शांत ह्वे जांदन। ३।
पैल स्नेहन कार्य करी वायु को शमन करण से शरीर म मल , मूत्र व वीर्य कै  बि  तरां से नि  रुकदन। ४।
सुक्यां काठ /बांस बि  स्नेहन अर स्वेदन  द्वारा मन अनुसार  मुड़े   जांदन।  फिर जीवित मनुष्यों वैद्य स्नेहन व स्वेदन से इच्छानुसार परिवर्तित नि कौर सकद क्या ?५।
व्याधि , काल रोगी , पुरुष ,इच्छा यूंको अनुसार न गरम /तातो ,न भौत कोमल , वे वे रोग तै नाश करण  वळ द्रव्यों द्वारा स्वेदन करण वळ स्थानों से दिए गे स्वेद कार्य करणम समर्थ हूंद।  ६।

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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १७२   बिटेन १७३    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

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स्वेद उपचार प्रकार

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  चौदवां , (स्वेद अध्याय  )   पद७    बिटेन  १२ - तक
  अनुवाद भाग -  १०७
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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शीतरोग म अर शीत शरीरम महाबलवान पुरुषो कुण उथगी महा स्वेद लीण  चयेंद  जथगा  शरीर सहन कौर साक। शीत रोग वळ   दुर्बल  व्यक्ति  व दुर्बल शरीर वळ  तै  दुर्बल स्वेद  दीण चयेंद।  मध्यम  शीत रोग व शरीर वळ  तै मध्यम स्वेद  दीण  चयेंद।  वात कफ जनित रोगम स्निग्ध व रुक्ष द्रव्यों  से निर्मित स्निग्ध -रुक्ष स्वेद  दीण चयेंद।  केवल वातजन्य रोगुंम स्निग्ध स्वेद  दीण  चयेंद।  कफजन्य व्यधि म  रुक्ष द्रव्य निर्मित रुक्ष स्वेद दीण चयेंद।  ७ , ८।
वायु यदि कफष्ठान (अमाशय ) म पौंची गे   ह्वावो  त पैल स्नेहकर्म न करि रुक्ष कर्म करण चयेंद जां से कफ निकळ जा।  फिर जब कफ शांत ह्वे जावो त  वायु शान्ति बान स्नेहन  कर्म करण  चयेंद। इनि जब कफ वात स्थानम ह्वावो त पैल स्नेहन कर्म नि  करि  रुक्ष कर्म करण  चयेंद।  जिकुड़ी , आँख ,यूंको मृदु स्वेद से  स्वेदन करण  चयेंद।  जु  बिन  स्वेद क काम चल जावो तो स्वेदन नि करण  चयेंद।  बंक्षण म मध्य स्वेदसे स्वेदन हूण  चयेंद अर  अन्य अंगों म  रोगी इच्छानुसार स्वेदन हूण  चयेंद।  ९ , १०।
धुल आदि दूषक पदार्थुं  से रहित रुई वस्त्रों अथवा ग्युं की पोटली बाँधि आँखों स्वेदन करण  चयेंद।  स्वेद दीण से पैल कमल या नील कमलों पत्ता से आँख ढक दीण चएंदन। शीतल मोट्यो माळा से शीतल पात्रों से पाणिम भीजिं  कमल पत्ता से अर  हाथों से हृदय क स्वेदन हूण  चयेंद। ११ -१२। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
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स्वेद उपचार प्रकार , अतिस्वेद  लक्ष्ण , उपचार

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 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  चौदवां , (स्वेद अध्याय  )   पद७    बिटेन  १९ - तक
  अनुवाद भाग -  १०७
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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शीतरोग म अर शीत शरीरम महाबलवान पुरुषो कुण उथगी महा स्वेद लीण  चयेंद  जथगा  शरीर सहन कौर साक। शीत रोग वळ   दुर्बल  व्यक्ति  व दुर्बल शरीर वळ  तै  दुर्बल स्वेद  दीण चयेंद।  मध्यम  शीत रोग व शरीर वळ  तै मध्यम स्वेद  दीण  चयेंद।  वात कफ जनित रोगम स्निग्ध व रुक्ष द्रव्यों  से निर्मित स्निग्ध -रुक्ष स्वेद  दीण चयेंद।  केवल वातजन्य रोगुंम स्निग्ध स्वेद  दीण  चयेंद।  कफजन्य व्यधि म  रुक्ष द्रव्य निर्मित रुक्ष स्वेद दीण चयेंद।  ७ , ८।
वायु यदि कफष्ठान (अमाशय ) म पौंची गे   ह्वावो  त पैल स्नेहकर्म न करि रुक्ष कर्म करण चयेंद जां से कफ निकळ जा।  फिर जब कफ शांत ह्वे जावो त  वायु शान्ति बान स्नेहन  कर्म करण  चयेंद। इनि जब कफ वात स्थानम ह्वावो त पैल स्नेहन कर्म नि  करि  रुक्ष कर्म करण  चयेंद।  जिकुड़ी , आँख ,यूंको मृदु स्वेद से  स्वेदन करण  चयेंद।  जु  बिन  स्वेद क काम चल जावो तो स्वेदन नि करण  चयेंद।  बंक्षण म मध्य स्वेदसे स्वेदन हूण  चयेंद अर  अन्य अंगों म  रोगी इच्छानुसार स्वेदन हूण  चयेंद।  ९ , १०।
धुल आदि दूषक पदार्थुं  से रहित रुई वस्त्रों अथवा ग्युं की पोटली बाँधि आँखों स्वेदन करण  चयेंद।  स्वेद दीण से पैल कमल या नील कमलों पत्ता से आँख ढक दीण चएंदन। शीतल मोट्यो माळा से शीतल पात्रों से पाणिम भीजिं  कमल पत्ता से अर  हाथों से हृदय क स्वेदन हूण  चयेंद। ११ -१२। 
सरदी, वेदना  दूर हूण पर सरैलम जड़ता अर भारीपन नि लगण पर , सरैलम कोमलता आण पर अर पसीना आण पर स्वेद विधि बंद कर दीण  चयेंद।  १३।
अतिस्वेदन क लक्षण अर  उपचार -
अतिस्वेदन (अधिक पसीना ) दीण से पित्तौ प्रकोप , मूर्छा , सुस्ती,तीस लगण , जलन , भौत पसीना आण , अंगों म निर्बलता आयी जांद।  अतिस्वेदौ  कुण  अध्याय छ म बताईं ग्रीष्म ऋतू की मधुर ,स्निग्ध , शीतल , गुणवळि  सम्पूर्ण परिचर्या कारन  (शराब छोड़ि ) . या इ  अतिस्वेद की चिकत्सा च। १४- १५।
  जु वात , कफ रोगी होवन , जु रोज मद्य अर पाचनादि कषायों सेवन करदो हो ; गर्भवती ,रक्तपित्तौ रोगी ,पित्त प्रकृति या पित्त जन्य रोग ग्रसित,अतिसार रोगी ,रुक्ष प्रकृति ,मधुमेही,, प्रमेह रोगी ,जौंक गुदा पक गे ह्वावो ,गुदा भैर आई  गे  हो ,विषरोगी ,नशा म मस्त,या शराब जन्य रोग ग्रस्त,परिश्रम से थक्यूं ,बेहोश, मोती चर्बी वळ , पित्तजन्य प्रमेही ,तीसा मनिख, क्रोधी , भूको, शोकग्रस्त या चिंताग्रस्त , कामला, उदर रोगी ,कोढ़ी ,वात रक्त रोगी ,निर्बल , भौत रुक्ष सरैल वळ , ओजहीन ,अर तिमिर रोग्युं  तै अतिस्वेद नि  दीण चयेंद। हाँ आवश्यकतानुसार अलपस्वेद दिए सक्यांद। १६-१९। 

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १७३   बिटेन  १७४    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021

Bhishma Kukreti

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स्वेद दीणो भिन्न भिन्न तरीका

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  चौदवां , स्वेद अध्याय    )   पद  २०  बिटेन  २८ - तक
  अनुवाद भाग - १०९ 
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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स्वेद योग्य व्यक्ति -
जुकाम , खांसी हिचकी , दमा ,सरैलौ  भारीपन ,कंदूड़ो डा /दर्द ,मन्या शूल ,शिरशूल , स्वरभेद,गलगंड ,मुखाक लकवा ,एकांगी  वात्त ,सर्वांग वात्त ,पक्षाघात रोग,बिनामक म ,अफ़रा , मल्ल मूत्र अवरोध म ,वीर्य अवरोध , बिंडी जमै आण , पार्श्वशूल ,पृष्टवेदना,कटिशूल ,कुक्षिशूल ,गृघ्रसी  रोग ,मूत्रकृच्छ , अंडकोष वृद्धि ,सरा सरैलम डा /वेदना ,खुटम डा /ऐंठन (खुट खाण ) ,हाथ खुट खाण /वेदना , घुंड अर जंगड़ों म डा ,हाथ पाँव क ऐंठन ,आम रोग ,शीतावस्था, कंपकंपी ,वातकंटक ,गुल्फाश्रित,वात रोग , शरीर तै संकुचित करण वळ  वात  रोग ,आयाम , अंतरायाम वात रोग ,शूलवेदना , जड़ता , भारीपन , स्पर्श आभाव ,शून्यता , ज्वरादि ,वात श्लेमा आदि स्तिथि म स्वेद याने पसीना दिलाण  हितकारी च।  २०-२४।
तिल , उड़द ,कुल्थी , चांगेरी ,घी , तेल ,ओदन पक्यां चौंळ ,खीर , तिल अर मांस खिचड़ी ,यूं पदार्थों ढिन्डी  बणैक ,पिंड -स्वेदक प्रयोग करण  चयेंद।
रुक्ष  स्वेद का द्रव - गाय गोबर , गधा मोळ ,ऊंट , सुंगरौ मोळ ,घ्वाड़ा लीद ,छिलका वळ  जौ ,बबारीक रेत ,इंटक चूरा ,यूंक पोटलीबणऐक  कफ रोगी तै स्वेद दीण  चयेंद। अर उड़द आदि से वात रोग्युं  तै स्वेद दीण  चयेंद।  पिंड स्वेद तै शंकर स्वेद बुल्दन। यि तिल  आदि पदार्थ प्रस्तर स्वेद म बी  प्रशस्त छन। 
नाड़ी स्वेद - जमीन खोदि  बणायूं  घर ,कृत्रिम विधि से गरम कर्युं  घर ,बिन खिड़की घर ,यूं माँ लकड़ी  जळैक , धुंवा रहित आग से घर गरम करे  जावन। शरीर स्नेहन का बाद मनिख स्वेद ले सकद।  २५-२८

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १७५   बिटेन    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली   


Bhishma Kukreti

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नाड़ी स्वेद , उपानह स्वेद (पसीना लीण )
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  चौदवां , स्वेद अध्याय    )   पद   बिटेन २९  - ३८ तक
  अनुवाद भाग -  ११०
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती

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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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नाड़ीस्वेदौ कुण -
पालतू पशु अर  जलीय जंतु का मांस , दूध , बखरौ दूध ,सुंगरौ मध्य भाग ,पित्त , रक्त ,ऐरंडौ बीज , तिल ,यूं  सब्युं  तैं उबाळी नाळ से स्वेद द्यावो।  देश काल समज वळ सुयोग्य वैद्य स्वेद द्यावो। यू स्वेद वात्त रोगम हितकारी हूंद। निथर गिलोय , ऐरंड ,ल्यासणो , मूली  बीज ,बांसा , रेणु ,करंज , आक ,पाषाणभेद ,चंगेरी क पत्ता,सहजन, शिलाह्वा, तुलसी भेद, यूं पत्तों अर बक्क्ल  देश -काल समज रखण वळ वैद्य तै नाड़ी स्वेद दीण चयेंद।  यू  स्वेद कफ जन्य रोगुं  म हितकारी स्वेद छन। बड़ी जवाण ,पंचमूल , झिंटी ,दैक पाणी , आठ परकारा मूत ,अम्ल वर्ग से ,स्नेह , घृत,तेल आदि दगड़ काय /क्वाथ बणै  कफ वात्त म स्वेद दीण  चयेंद।  पालतू पशु मांस आदि क क्वाथ , क्रमश वात जन्य , कफ जन्य अर  वात्त -कफ जन्य रोग म रोगी तै क्वाथम खड़ो करी  स्वेद द्यावो।  स्वेद दीणो घी , दूध अर तेल क कोठा बि बणै दीण  चयेंद।  २९-३४।
उपनाह विधि -
ग्युंक दरकच  चूर्ण , जौ चूर्ण ,कांजी , तेल ,मद्यकिट , तैं  मिलैक गरम करी  कुटरी /पोटली बांधि  वात्तजन्य रोगुंम हितकारी हूंद। चंदन , अगरु आदि  द्रव्य मद्य पात्र म बैठ्युं  तळछट प्रक्षेप , जीवन्ति सौंफ ,कफ जन्य रोग म  लेप  बंधे जाण  चयेंद।  ये तै वात्त -कफ रोग्युं म प्रयोग करण  चयेंद।  दुर्गंध रहित , बाळ वळ अर उष्ण वीर्य वळी  खालों से लेप  बंधण  चयेंद।  जब इन  चमड़ा नई मील तो रेशम या ऊन का पटयोग करण चयेंद।  रात म बंध्युं  लेप तै बांधिक रखण अर  दिनम खोल  दीण  चयेंद।  दिनम बंध्युं लेप तै रातम खोल दीण  चयेंद।  शीत ऋतुओं  म लेप बंध्यू  बि  रावो तो क्वी डौर   नी।  ३५ -३८

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १७६  बिटेन   १७८   तक
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