स्वेद दीणो भिन्न भिन्न तरीका
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , चौदवां , स्वेद अध्याय ) पद २० बिटेन २८ - तक
अनुवाद भाग - १०९
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
-
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
--
स्वेद योग्य व्यक्ति -
जुकाम , खांसी हिचकी , दमा ,सरैलौ भारीपन ,कंदूड़ो डा /दर्द ,मन्या शूल ,शिरशूल , स्वरभेद,गलगंड ,मुखाक लकवा ,एकांगी वात्त ,सर्वांग वात्त ,पक्षाघात रोग,बिनामक म ,अफ़रा , मल्ल मूत्र अवरोध म ,वीर्य अवरोध , बिंडी जमै आण , पार्श्वशूल ,पृष्टवेदना,कटिशूल ,कुक्षिशूल ,गृघ्रसी रोग ,मूत्रकृच्छ , अंडकोष वृद्धि ,सरा सरैलम डा /वेदना ,खुटम डा /ऐंठन (खुट खाण ) ,हाथ खुट खाण /वेदना , घुंड अर जंगड़ों म डा ,हाथ पाँव क ऐंठन ,आम रोग ,शीतावस्था, कंपकंपी ,वातकंटक ,गुल्फाश्रित,वात रोग , शरीर तै संकुचित करण वळ वात रोग ,आयाम , अंतरायाम वात रोग ,शूलवेदना , जड़ता , भारीपन , स्पर्श आभाव ,शून्यता , ज्वरादि ,वात श्लेमा आदि स्तिथि म स्वेद याने पसीना दिलाण हितकारी च। २०-२४।
तिल , उड़द ,कुल्थी , चांगेरी ,घी , तेल ,ओदन पक्यां चौंळ ,खीर , तिल अर मांस खिचड़ी ,यूं पदार्थों ढिन्डी बणैक ,पिंड -स्वेदक प्रयोग करण चयेंद।
रुक्ष स्वेद का द्रव - गाय गोबर , गधा मोळ ,ऊंट , सुंगरौ मोळ ,घ्वाड़ा लीद ,छिलका वळ जौ ,बबारीक रेत ,इंटक चूरा ,यूंक पोटलीबणऐक कफ रोगी तै स्वेद दीण चयेंद। अर उड़द आदि से वात रोग्युं तै स्वेद दीण चयेंद। पिंड स्वेद तै शंकर स्वेद बुल्दन। यि तिल आदि पदार्थ प्रस्तर स्वेद म बी प्रशस्त छन।
नाड़ी स्वेद - जमीन खोदि बणायूं घर ,कृत्रिम विधि से गरम कर्युं घर ,बिन खिड़की घर ,यूं माँ लकड़ी जळैक , धुंवा रहित आग से घर गरम करे जावन। शरीर स्नेहन का बाद मनिख स्वेद ले सकद। २५-२८
-
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ १७५ बिटेन तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
चरक संहिता कु एकमात्र विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म रोग निदान , आयुर्वेदम रोग निदान , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली