प्रमेह , स्थूलता आदि निवारण उपाय
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 23rd , त्याइसवौं अध्याय ( संतर्पणीय अध्याय ) पद १२ बिटेन २५ तक
अनुवाद भाग - १८२
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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नागरमोथा, अमलतास,पाढ़ल , त्रिफला, गोखरू , खैरक बक्कल, नीमौ बक्कल, हल्दी, किनग्वड़, कूड़ा बक्कल, यूं औषधियों क्वाथ दोषानुसार सुबेर सुबेर रोज पीण से संतर्पणीय जन्य रोग दूर ह्वे जांदन। स्नेह साधन द्वारा त्वचा रोग निबट जांदन। कूठ , गोमदाक मणि , हींग , क्रौंच पंछी क अस्थि , सोंठ , काली मर्च , पिपली , बच, वासा, इलायची , गोखरू , जवाण, पाषाणमेद, यूं सब तै छाच ,दही मंड , या खट्टा बैरक रसक दगड़ पीण से मूत्रकृच्छ, रोग मिटदन। छांच अर हरड़ दगड़ या छांछ -त्रिफला प्रयोग से , प्रमेह म बतायां अरिष्टों उपयोगन प्रमेह आदि व्याधि समाप्त हूंदन। सोंठ , काळी मर्च , पिप्पली , त्रिफला, मधु, वायविडिंग, जवाण , पाणिम घिस्युं अगर , घी अर सत्तू , यूंक मंथ बणैक पेकि प्रमेह रोग खत्म हूंद। सोंठ , काळी मर्च , पिपली , वायविडिंग , शोभांजन , त्रिफला , कुटकी , छुटि कटेरी,, बड़ी कटेरी , जवाण, हल्दी, किनग्वड़, पाढ़ल, अतीस, धणिया, चीतामूल , सुवर्चल, जीरो, हाऊबेर, यूंक चूरण लीण चयेंद। अब चूरणक बरोबर घी , शहद , तेल सब बराबर मात्राम मिलाइ लीण चयेंद। एमा जौक सत्तू सोलहवां भाग मिलाइक खाण चयेंद। ये प्रकार से संतर्पण जन्य रोग मिटदन। प्रमेह, मूढ़वाल , कुष्ट, अर्श , कामला, प्लीहा , पांडुरोग , शोक, मूत्रकृछ, अरुचि , हृदय रोग, राज्यक्षमा,कास, श्वास, गौळौ अवरोध, कृमि ग्रहणी रोग ,श्वित्र रोग, , अतिस्थूल रोग मिटदन, जठराग्नि बड़द, अर स्मृति व बुद्धि बढ़द। नित्य व्यायाम करण वळ , पैलौ खाणक पचणो बाद ही खाणा खाण वळ , ग्यूं -जौ क भोजन करण वळ व्यक्ति संतर्पण रोगुं से मुक्त हूंद अर स्थूलता समाप्त हूंद ।१२- २५।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ २६४
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
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