Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 18981 times)

Bhishma Kukreti

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संतर्पणीय व अतर्पणीय चिकित्सा
 
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 23rd ,  त्याइसवौं   अध्याय  (  संतर्पणीय   अध्याय   )   पद  २६  बिटेन  ४०  तक
  अनुवाद भाग -  १८३
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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संतर्पण रोगों  औषध बताई याल अब अपतर्पण तै बतौला अर अपतर्पण  जन्य रोग अर   औषध बतौला - अपतर्पण से ज्वर, कास व कास संबंधी विकार; बल , कांती  आज , शुक्र , मांस  आदि क क्षय ; कर्मेन्द्रियोंम  कमजोरी,    उन्माद , प्रलाप , हृदय पीड़ा , मल मूत्र रुकण, जांग ,ऊरु अर त्रिक (कटि तौळ ) प्रदेशम डा ; पर्व , अस्थि अर संधियों म टूटन अर अन्य वातजन्य विकार ,वायुक मथि चढ़न , आदि रोग अतर्पण से हूंदन।  अतर्पण जन्य रोगों म संतर्पण क्रिया औषध च। 
संतर्पण क्रिया द्वी प्रकारै हुँदै- सद्य संतर्पण अर अभ्यास  (सनै -सनै) ।  जु व्यक्ति एकदम अतर्पण से बीमार हूंद वाई तै सद्य संतर्पण से ठीक करे जांद अर देर से क्षीण हुयुं व्यक्ति बिन अभ्यास का संतर्पण क्रिया से ठीक नि हूंद। जु व्यक्ति देर से क्षीण ह्वावो वैमा शरीर जठराग्नि , दोष , औषध , बल , मात्रा अर समय क विचार कौरि शांति (शीघ्रता न ह्वावो )  से चिकित्सा करण  चयेंद। इन रोगी कुण  रस , मांस , दूध , घी , स्नान , वस्तियां , मर्दन , संतर्पण करण वळ क्रिया करण चयेंद।
जौर , कासक रोग्युं कुण , निर्बलुं कुण , मूत्रकृच्छ्र रोग्युं कुण , तिसा रोग्युं कुण, ऊर्घ्वापात  रोग्युं कुण , हितकारी तर्पण क हिदायत दिए जांद- शक़्कर , पिपलीमूल , घी , शहद तै समान भाग लेकि अर युं सब्युं से दुगण सत्तू मिलैक मंथ बणाओ।  सत्तू , शहद , मदिरा , शक्कर यूं सब्युं  मंथ तैयार करि वायु , मल मूत्र क अनुलोमन (अधो मार्ग से भैर करण ) अर पित्त व कफ तै अनुकूल करणो कुण प्रयोग करण  चयेंद।  फणित (राव ), सत्तू , घी , दधिमंड , धन्याम्ल, कांजी , यूं से निर्मित मंथ , मूत्रकृच्छ्र नाशी , उदारवत्त रोग नाशी तर्पण च ।  खजूर , मुन्नका , इमली , कोकम , अनारदाना , फालसा , औंळा से निर्मित मंथ मदिरा क विकार नष्ट करद।  खट्टा -मीठा (अनारदाना )  पदार्थ पानी दगड़  निर्मित , घीयुक्त या घी बिहीन मंथ सद्य संतर्पण च अर स्थिरता , बल कांति दायक च ।  २६- ३९।
संतर्पण अर अतर्पण जन्य रोग छन उन्कि औषधि ये 'संतर्पणीय' अध्याय म बोली याल।  ४०। 
त्याईसवां संतर्पणीय अध्याय समाप्त
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २६५- २६७
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द

Bhishma Kukreti

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रक्त  दूषित हूणो कारण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 24 rd ,   चौबीसवां   अध्याय  (   विधिशोणितीय    अध्याय   )   पद  १  बिटेन १०   तक
  अनुवाद भाग -  १८४
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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अब विधिशोणितीय अध्याय क व्याख्यान ह्वालु जन भगवन आत्रेय न बोलि छौ।  १ - २।
देशसात्म्य , कलासात्म्य अर अभ्याससात्म्य क जु ब्यूंत बतायीं छन ऊं विधि से मनिखक जु  रक्त उतपन्न हूंद , वु जु विशुद्ध ह्वावो त व्यक्ति तैं बल , वर्ण, सुख , आयु दाता हूंद।  किलैकि   प्राणीयुं म प्राण रक्तौ अनुसरण करद। ३- ४।
रक्त दूषित हूणो कारण छन -  अपण  प्रकृति विरुद्ध भौत तीखो, भौत गरम , मद्य  या इनि अन्य अन्नन , भौत लूण , खार या खटाईन ,कड़ु रस से , गहथ , उड़द, राजशिम्मी , तिलौ तेल खाणन , पिंडालु, हरी भुज्जी खांणन ; जलीय प्रदेश वासी , पर्वत वासी , मांस भक्षी पंछी क मांस खाण से , दही , खट्टी वस्तु /कांजी खाणसे , सुरा पीण से , सड़्युं -गळ्यूं , दुर्गंध युक्त भोजन भोजन खाण से, भोजन करी दिन म सीण से ; तरल , स्निग्ध व भारी भोजन भक्षण से , बिंडी खाणसे , क्रोध , धुप , आग को अधिक सेवन से ; वमन वेग रुकण से , रक्त दूषित हूण से (ठंडियों म रक्त मोक्षण नि करण ) , अति परिश्रम से , चोट से , संताप से , बिन भोजन पच्यां भोजन खाण से, शरतकाल म स्वभाव से रक्त दूसित हूंद। रक्त दूषित हूण से नाना प्रकारै रक्त जन्य रोग हूंदन। ५ -१०। 
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २ ६७ -२६८
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द

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रक्त  दूषित हूणो कारण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 24 rd ,   चौबीसवां   अध्याय  (   विधिशोणितीय    अध्याय   )   पद  १  बिटेन १०   तक
  अनुवाद भाग -  १८४
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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अब विधिशोणितीय अध्याय क व्याख्यान ह्वालु जन भगवन आत्रेय न बोलि छौ।  १ - २।
देशसात्म्य , कलासात्म्य अर अभ्याससात्म्य क जु ब्यूंत बतायीं छन ऊं विधि से मनिखक जु  रक्त उतपन्न हूंद , वु जु विशुद्ध ह्वावो त व्यक्ति तैं बल , वर्ण, सुख , आयु दाता हूंद।  किलैकि   प्राणीयुं म प्राण रक्तौ अनुसरण करद। ३- ४।
रक्त दूषित हूणो कारण छन -  अपण  प्रकृति विरुद्ध भौत तीखो, भौत गरम , मद्य  या इनि अन्य अन्नन , भौत लूण , खार या खटाईन ,कड़ु रस से , गहथ , उड़द, राजशिम्मी , तिलौ तेल खाणन , पिंडालु, हरी भुज्जी खांणन ; जलीय प्रदेश वासी , पर्वत वासी , मांस भक्षी पंछी क मांस खाण से , दही , खट्टी वस्तु /कांजी खाणसे , सुरा पीण से , सड़्युं -गळ्यूं , दुर्गंध युक्त भोजन भोजन खाण से, भोजन करी दिन म सीण से ; तरल , स्निग्ध व भारी भोजन भक्षण से , बिंडी खाणसे , क्रोध , धुप , आग को अधिक सेवन से ; वमन वेग रुकण से , रक्त दूषित हूण से (ठंडियों म रक्त मोक्षण नि करण ) , अति परिश्रम से , चोट से , संताप से , बिन भोजन पच्यां भोजन खाण से, शरतकाल म स्वभाव से रक्त दूसित हूंद। रक्त दूषित हूण से नाना प्रकारै रक्त जन्य रोग हूंदन। ५ -१०। 
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २ ६७ -२६८
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रक्त जन्य रोगुं  जानकारी
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 24th  ,   चौबीसवां   अध्याय  (   विधिशोणितीय    अध्याय   )   पद ११    बिटेन १७    तक
  अनुवाद भाग -  १८५
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रक्त दूषितसे  हूण वळ रोग जन – मुखपाक , आंखुं सुजण(लालिमा ) , नाक बिटेन बुरी गंध , मुख बिटेन दुर्गन्ध, गुल्म , उपकुश, वीसर्प, रक्तपित्त , प्रमीलक,विद्रधि, रक्त प्रमेह , प्रदर, वातरक्त, विवर्णता, जठराग्नि क नष्ट या ठंडो हूण , भारी शरीर ,संताप , अतिनिर्बलता , अरुचि, मुंडर,अपचन, कड़ोया खट्टा डंकार , निष्क्रियता , अधिक क्रोध , बुद्धिभ्रंश,मुख कु नमकीनपन , पसीना आण, शरीर बिटेन दुर्गन्ध , मद , कम्मण , स्वर्नाश , तन्द्रा , बिंडीनिंद,  आंखुं समण अँध्यारो,
 ख्ज्जी , कोठ, फुंसियां , चर्मदल (चमड़ा फटण ) , यी सब रक्त आश्रित छन I जु रोग शीत , उष्ण , स्निग्ध , रुक्ष चिकित्सा द्वारा सिद्ध निह्वावन तो समज ल्यावो यी रक्त जन्य रोग च I11 -17 I
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*संवैधानिक चेतावनी: चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २६८ -२६९
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021


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रक्त जन्य रोग चिकित्सा मुख्य  सूत्र 

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 24th  ,   चौबीसवां   अध्याय  (   विधिशोणितीय    अध्याय   )   पद  १८   बिटेन   १९  तक
  अनुवाद भाग -  १८६
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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रक्त जन्य रोग चिकित्सा – रक्त जन्य रोगुम रक्तपित्त नाशक क्रिया, करण चएंद अर्थात विरेचन ,उपवास ,या रक्त मोक्षणकरण चएंद  I रक्त की मात्रा अर रक्त जन्य व्याधिक स्वरूप की मात्रा , जथगा रक्त निष्कासन से रक्त शुद्ध ह्वावो , इथगा दूषित रक्त स्थान देखि मनुष्यक रक्त निकाळण चयेंद.
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*संवैधानिक चेतावनी: चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २६९
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विशुद्ध रक्त लक्छण
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 खंड - १  सूत्रस्थानम , 24th  ,   चौबीसवां   अध्याय  (   विधिशोणितीय    अध्याय   )   पद   22  बिटेन  25   तक
  अनुवाद भाग -  १८८
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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विशुद्ध रक्तक लक्छण – सोना जन , वीर बहूटीजन रंग , लाल कमल जन या महावर रंग जन  , लाल रत्ती जन रंग , विशुद्ध रक्तक रंग हूंद I रक्त मोक्षण उपरान्त ना त अधिक गरम न अधिक शीत , लघु व अग्नि वर्धक खान पान करण च्येंद I रक्त मोक्षण का बाद रक्त वेग चंचल हूंद इले अग्नि रक्षा आवश्यक च , अग्नि /ताप मंद नि हूण च्येंद  I
विशुद्ध रक्त वळ व्यक्ति क लक्छण – जै व्यक्ति म कांति वर्ण , इन्द्रिय निर्मल होवन, इन्द्रियाँ अपण विषय की इच्छा कारन, बिना रुकावट का मल मूत्र निष्काशन ह्वावो , मन अंड अनुभव कारो , प्रसन्नता व बल दिख्यावो त वे व्यक्ति क रक्त विसुध समजण चएंद I २२ -२५ I
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*संवैधानिक चेतावनी: चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २६९ -२७० 
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021


Bhishma Kukreti

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संन्यास रोग (मूर्छा , कोमा ) उपचार

भूत भगाने(अचेत संज्ञाहीन  दूर करना )  की क्रिया में चरक उपचार
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 24 rd ,   चौबीसवां   अध्याय  (   विधिशोणितीय    अध्याय   )   पद  ४५  बिटेन   ५३ तक
  अनुवाद भाग -  १९१
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 जन बुद्धिमान मनिख   गैरो पाणिम डूबद  भांड तै तैरदा ही पकड़नो कोशी करदो उनी सन्यास रोगी (कोमा आदि )  तै भीम गिरण से पैलि चिकित्सा आवश्यक च।  यांकुण  आँखों म अंजन लगाण , नाकम औषधि (नस्य चिकित्सा ) , नाक म  औषधि धूम्रपान, प्रमथन (नाकम फूंक मारी दवा पौंचाण ), स्यूण घुप्याण , गरम सौर /डंडी से डमण (डाम धरण ) , नंगों म स्यूण घुप्याण , बाळुं तै खैंचण , दांतुन कटण , कौंच फली शरीर पर घसण ,  कर्म   व्यक्तिक चेतना बौड़ाणो हितकारी कर्म छन। तीक्ष्ण व कटु युक्त द्रव्य या मद्य रोगिक मुख पर डळण चयेंद। 
सोंठ युक्त बिजौरा या निम्बू रस , मद्य या खट्टो कांजी म सौंचल मिलैक या हींग या सोंठ मिरच (काळी ) पीसिक रोगी तै पिलाण , तब तक दींद जावो जब तक व्यक्ति चेतना म नि आवो। 
व्यक्तिक चेतण पर हळको खाणा दीण चयेंद।  मधुर छ्वीं , चमत्कारिक बात बुलण , गाण -बजाण , आनंददायक चित्र दिखायिक विरेचन , वमन , धूम्रपान, अंजन , मुखम औषध , व्यायाम कराईक , अंगों मालिस करि , व्यक्ति तै हर समय बिजाळिक़   रखण चयेंद।  रोगी तै मूर्छा वळ कारणों से दूर रखण चयेंद।  ४५- ५३
 
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २७३
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
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मूर्छा रोग उपचार
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 खंड - १  सूत्रस्थानम , 24 rd ,   चौबीसवां   अध्याय  (   विधिशोणितीय    अध्याय   )   पद  ५४  बिटेन  ६०  तक
  अनुवाद भाग -  १९२
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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मूर्छा अर मद रोगुंम बल व दोष अनुसार स्वेदन /पसीना देकि वमन, विरेचन (शुद्धि ) , नस्य , अस्थापन अर अनुवासन पंचकर्म करण चयेंद।  उन्माद चिकित्सा म बुल्युं 'पानीय कल्याण घृत' (अट्ठाइस दवा मिश्रण ) , महात्तीक घृत या महाषटपल घृत पान  उत्तम च।  घी , शहद व त्रिफला उपयोग , दूध दगड़ शिलाजीत उपयोग , दूधौ दगड़ पीपली चूर्ण या चीतामूल पटयोग करण , रसायन तथा दस साल पुरण  मटका म धर्युं घी प्रयोग करण उत्तम हूंद।  रक्त मोक्षं , वेद आदि ग्रंथ अध्ययन  करण , सर्जक , स्वाध्यायी सतगुण वळ व्यक्त्यूं संगत करण म मद व मूर्छा शांत हूंद।  ५४ -५८।
शुद्ध या अशुद्ध रक्त , यूंक कारण , रक्त प्रदोष से हूण  वळ रोग , यूंक औषध , मद , मूर्छा , संन्यास रोगुं कारण, लक्छण  व चिकत्सा सब विषय' विधिशोणित' अध्याय म बुले गेन। ५९  - ६० 
 
चौबीसवां   अध्याय  (   विधिशोणितीय    अध्याय   ) 
 
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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द

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 रोग जनक को ?  - आत्मा , पुरुष या मन पर चर्चा !

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 25 th,  पचीसवां   अध्याय  (  यज: पुरुषीय     अध्याय   )   पद  १  बिटेन  ११  तक
  अनुवाद भाग -  १९३
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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अब 'यज: पुरुषीय     अध्याय ' की ब्याख्या करला।  जन भगवान आत्रेयन बोलि छौ। १ -२।
धर्म तै प्रत्यक्ष कयां महर्षि आत्रेय एक दैं महर्षियों दगड़ छ्वीं लगाण लगिन बल - आत्मा , इन्द्रिय , मन अर विषय यूं से युक्त 'पुरुष' बणद।  एकी अर रोगुं उतपत्ति कन अर  कखन  हूंदी? ये प्रसंग म काशी राजा वामक ऋषि सभा क सन्मुख बुलण लगिन -हे भगवन  जौं  कारणों से ' पुरुषों' की उतपत्ति हूंदी, ऊं कारणों से इ रोग पैदा हूंदन।  इन मनण संगत च या ना ? ऋषि पुनर्वसु न बोलि - ये महर्षियो ! तुम सब ज्ञान भंडार छंवां , विज्ञान से तुमर सब शंका दूर हुईं छन , तुम लोक काशी राजाक संदेह दूर कारो। ३ - ७।
पारक्षी मौद्गल्य बोलण मिसेन - पुरुष आत्मा से उतपन्न हूंद अर रोग बि आत्मा से इ ।  या आत्मा आहार व्यवहार आदि कर्म करवांदी अर  यांसे इ आरोग्यता व रोग रूपी कर्मफलों क भोग करदो। किलैकि 'चेतना धातु' बिन आत्मा सुःख -दुःख  हेतु रूप आरोग्यता या व्याधि ह्वेइ नि सकद। ८ -९।
शरलोमा ऋषि न बोलि -यु ठीक नी , आत्मा स्वभाव से दुःख से दोष रखण  वळ  आनंद माय च ।  इलै आत्मा दुःख उतपन्न कारी व्याधि दगड़ युक्त नि कौर सकद।  असलम 'सत्व' नामक मनक दगड़ रज व तम मिलिक पुरुष अर रोग उतपन्न करदन।  १०-११।

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २७५ -२७६
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द

Bhishma Kukreti

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रोग उतपत्ति कारण पर चर्चा
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 25 th,  पचीसवां   अध्याय  (  यज: पुरुषीय     अध्याय   )   पद  २०  बिटेन  २५  तक
  अनुवाद भाग -  १९५
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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यांमा भरद्वाज ऋषिन बोलि - कर्म से पैल कर्ता हूंद। बिन कर्मों कर्म फल नि दिखे जांद।  प्रथम , कर्म हूण से फल हूंद जांन पुरुष उतपन्न हूण चयेंद। कर्म करणो कर्ता (पुरुष ) आवश्यक च।  इलै मनुष्य रोग उतपत्ति  कारण 'स्वभाव' इ  च।  जन पृथ्वी , अप,  वायु , अग्नि , खरखरापन , द्रवत्व (तरलता ), चलत्व , अर उष्णत्व सब स्वभाव से इ हूंद।  २०-२१।
कंकायन ऋषिन बोलि -यु सई नी च।  जु  स्वभाव से रोग अर पुरुषों सिद्धि या असिद्धि हूंदी त आरम्भ अर्थात लोक अर शास्त्र म प्रसिद्धि , यज्ञ , कृषि , पढ़न , पढ़ाण , आदि कार्य निष्प्रयोजन ह्वे जाल।  ये सुख दुःख बणाण वळ अर चेतन अर अचेतन क कर्ता अनंत संकल्प कर्ता ब्रह्मा पुत्र प्रजापति च।  २२ -२३। 
भिक्षुरात्रेय बोलि - यु  न  सई नी।  यु संसार प्रजापति से पुत्र रुपेण नि उतपन्न ह्वे।  किलैकि प्रजा क भल कामना करण वळ प्रजापति संतान से द्वेष करण वळा तरां कनो दुःख दींद , अपण संतान तै दुखी करद , वास्तव म पुरुष काल से उतपन्न हूंद अर रोग बि काल से उतपन्न हूंदन ।  सरा दुन्या काल वश म च अर सब जगा काल इ कारण च।  २४ - २५ ।   -
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २७७ - २७८
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द

 

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