संतर्पणीय व अतर्पणीय चिकित्सा
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 23rd , त्याइसवौं अध्याय ( संतर्पणीय अध्याय ) पद २६ बिटेन ४० तक
अनुवाद भाग - १८३
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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संतर्पण रोगों औषध बताई याल अब अपतर्पण तै बतौला अर अपतर्पण जन्य रोग अर औषध बतौला - अपतर्पण से ज्वर, कास व कास संबंधी विकार; बल , कांती आज , शुक्र , मांस आदि क क्षय ; कर्मेन्द्रियोंम कमजोरी, उन्माद , प्रलाप , हृदय पीड़ा , मल मूत्र रुकण, जांग ,ऊरु अर त्रिक (कटि तौळ ) प्रदेशम डा ; पर्व , अस्थि अर संधियों म टूटन अर अन्य वातजन्य विकार ,वायुक मथि चढ़न , आदि रोग अतर्पण से हूंदन। अतर्पण जन्य रोगों म संतर्पण क्रिया औषध च।
संतर्पण क्रिया द्वी प्रकारै हुँदै- सद्य संतर्पण अर अभ्यास (सनै -सनै) । जु व्यक्ति एकदम अतर्पण से बीमार हूंद वाई तै सद्य संतर्पण से ठीक करे जांद अर देर से क्षीण हुयुं व्यक्ति बिन अभ्यास का संतर्पण क्रिया से ठीक नि हूंद। जु व्यक्ति देर से क्षीण ह्वावो वैमा शरीर जठराग्नि , दोष , औषध , बल , मात्रा अर समय क विचार कौरि शांति (शीघ्रता न ह्वावो ) से चिकित्सा करण चयेंद। इन रोगी कुण रस , मांस , दूध , घी , स्नान , वस्तियां , मर्दन , संतर्पण करण वळ क्रिया करण चयेंद।
जौर , कासक रोग्युं कुण , निर्बलुं कुण , मूत्रकृच्छ्र रोग्युं कुण , तिसा रोग्युं कुण, ऊर्घ्वापात रोग्युं कुण , हितकारी तर्पण क हिदायत दिए जांद- शक़्कर , पिपलीमूल , घी , शहद तै समान भाग लेकि अर युं सब्युं से दुगण सत्तू मिलैक मंथ बणाओ। सत्तू , शहद , मदिरा , शक्कर यूं सब्युं मंथ तैयार करि वायु , मल मूत्र क अनुलोमन (अधो मार्ग से भैर करण ) अर पित्त व कफ तै अनुकूल करणो कुण प्रयोग करण चयेंद। फणित (राव ), सत्तू , घी , दधिमंड , धन्याम्ल, कांजी , यूं से निर्मित मंथ , मूत्रकृच्छ्र नाशी , उदारवत्त रोग नाशी तर्पण च । खजूर , मुन्नका , इमली , कोकम , अनारदाना , फालसा , औंळा से निर्मित मंथ मदिरा क विकार नष्ट करद। खट्टा -मीठा (अनारदाना ) पदार्थ पानी दगड़ निर्मित , घीयुक्त या घी बिहीन मंथ सद्य संतर्पण च अर स्थिरता , बल कांति दायक च । २६- ३९।
संतर्पण अर अतर्पण जन्य रोग छन उन्कि औषधि ये 'संतर्पणीय' अध्याय म बोली याल। ४०।
त्याईसवां संतर्पणीय अध्याय समाप्त
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ २६५- २६७
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
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