मधुर रस गुण व लक्षण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 26 th, छब्बीसवां अध्याय ( भद्र काप्यीय अध्याय ) पद ४०
अनुवाद भाग - २९६
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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यूं छै रसुं मदे एक एक रस क आधार द्रवानुसार गुण कर्मै व्याख्या करला। यूं मदे मधुर रस जन्म से इ सरैलका अनुकूल हूंद। रस , रक्त , मांस , मेद , मज्जा , आज अस्थि अर शुक्र बढ़ान्दू, आयुवर्धक, श्रोत्र , वक , नासिका , चक्षु , रसना से पांच ज्ञानेनेन्द्रिय , मन यूं सब तैं प्रसन्न अर निर्मल करद। बलकारक , कांतिकारक , पित्तनाशक , विषनाशक , वायुनाशक , तृष्णानाशक , त्वचा , केश , अर स्वर कुण हितकारी , आल्हादजनक , अभिघात आदि से वेहोश व्यक्ति तै जिंदगी दिँदेर , तृप्ति करंदेर , वृद्धि कारक , स्थिरकारक , छीण व कष्ट व्यक्ति तै शक्ति दायक , टूटयां तै जुड़न वळ , नाशिका , मुक , कंठ , ऊंठ अर जीब क आह्वाहन करण वळ , जळण अर मूर्छानाशी , भौंरा अर किरमळुं प्रिय , स्निग्ध , गुरु व शीत च। हालाँकि मधुर रस म इथगा गुण छन किन्तु इखुलि भौत दिन तक खाण से कमजोरी , कोमलता , अळगस , नींद की अधिकता , भारीपन , भोजन से अरुचि , अग्नि की निर्बलता , मुक -गौळम मांस वृद्धि , श्वास , कास , प्रतिस्वास , अलसक , शीत जौर , अफारा , मुखक मधुरता , वमन , संज्ञा नाश , स्वर नाश , गळगंड , गण्डमाला , स्लॉपद , गौळै उस्याण /सूजन , वस्ति , धमनी म मांस , चर्बी बढ़ सकद , नेत्र रोग ,अभिभयंद , कफ आदि रोग ह्वे जंदन। ४०
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३०३ -३०४
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
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