शूक धान्य
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 27th सत्ताइसवां अध्याय ( अन्नपान विधि अध्याय ) पद ८ बिटेन २२ तक
अनुवाद भाग - ३१५
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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अब शूकधान्य अन्न वर्ग -
रक्तशालि ,महाशालि , कलम , शकुनाहुत , तूर्णक , दीर्घाशूक , गौर , पाण्डुक , लांगुळ , हंसराज , लोहवाल , शारिबा , प्रमोदक ,पतंग अर तपनीय , अर अन्य चौंळ , ठंड , रस अर विपाक म मधुर छन अर किंचित वातकारी , स्निग्ध , पुष्टिकरी , शुक्र व मूत्रवर्धक छन । मल तैं थोड़ा उतपन्न करण वळ अर रोकु छन। यूं सब चौंळुं म लाल चौंळ सर्वश्रेष्ठ हूंदन लाल चौळ भुखनाशी व त्रिदोषनाशी छन। यूं से उतर कैक ,महान शालि फिर कलम फिर उत्तरोत्तर गुण न्यून हूंद गेन। सवक , हायन , पांसु , वाप्य , नैषध आदि चौंळ , लाल चौंळा विरोधी गुण वळ हूंदन। अर्थात शीत , लघु , मधुर, त्रिदोष नाशी व सरैल तै दृढ करंदेर हूंदन। यूं मदे सफेद चौंळ श्रेष्टतर हूंदन। बाकी काळ जाति चौंळ हीन हूंदन।
(४ ) वरक , उद्दालक , चीन , शरद , उज्वल , दुर्दुर , गंधक , अर कुरुविंद यी षष्टिक धान्यों जाति हूंदन। यी गुणुं म हीन छन। ( ५ ) व्रीहि (शरद म पकण वळ ) चौंळ , मधुर रस , अम्लपाकी , पित्तकारक गुरु छन। यूंम पाटल जाति धान्य मल मूत्र वर्धक अर त्रिदोषकारी छन।
(५ ) कोदो , झंगोरा , यी धान्य कषाय , मधुर रसयुक्त , लघु , वायुकारक , कफ -पित्त नाशी , शीतवीर्य अर संग्राही अर शोषक हूंदन।
(६ ) हस्ति , सांवक , नीवार / देवभात , तोयवर्णी , गवेधुक , प्रशातिका , अम्भःश्यामक , लोहिताणु , कांग , मुकुंद , झिंटी , गरमुटि , चारुक , वरक , शिविर , उत्कृष्ट , जोनार सब झंगोरा /सांवक जन गुण वळ छन। जौ रूखा , शीत , गुरु , मधुर रस , वायु अर मलकारक , सरैल तै स्थिर करंदेर , कषाय रसी , बल कारी , अर कफ जन्य विकार नाशी हूंद।
वेणुयव रूखो , मधुर , कषाय अनुरस , कफ -पित्त नाशी , मेद , विष अर कृमि नाशी अर बलकारी च।
ग्युं टूटयूँ तैं जुड़ण वळ, वातनाशी , स्वादु रस , शीतवीर्य , जीवनीय , वृहण कारक , वृष्य , शुक्रवर्धक , स्निग्ध , स्थिरकारी, गुरु हूंद।
नांदीमुखी अर मधुलि यी द्वी मधुर , स्निग्ध अर शीतल हून्दंन । शूक धान्यों पैलो वर्ग समाप्त हवे। ८ -२२।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३२४ - ३२६
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
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