Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 18984 times)

Bhishma Kukreti

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आनूप, वारिशय, जलचर पशु -पक्षी
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  ३९   बिटेन  ४४    तक
  अनुवाद भाग -  ३१८
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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बौणौ   सुंगर, चौंर गौड़ी , गैंडा , भैंस , नील गाय , घ्वीड़ , काखड़ , हाथी , हिरण , घर्या सुंगर , बारासिंगा यी सब आनूप समूह अर्थात जल बहुल पशु छन।  ३९। 
कछुवा , गिगुड़ , माछ , सीप -शंख , शिशुमार , उदबिलाव , कुम्भीर , चुलुकी व मकर यि 'वारिशय' या जलचर पशु छन।  ४०। 
हंस , क्रौंच , बलाका , बगुला , बत्तख , लव , शरारि, पुष्कराह , केशरी , मानतुन्डक , जलकवा , कादम्ब , काकतुंड, कुरल , पुण्डरीकाक्ष, मेघनाद मोर, , जल कुकुट, आरा , नंदमुखी, वाखि , सुमुख, सहचारी , रोहणी , कामकाली सारस , लाल मुंड्या सारस , चकवा आदि जलचर पंछी जल म चलण वळ  छन। ४१ -४४। 
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*संवैधानिक चेतावनी: चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३२९
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में


Bhishma Kukreti

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मिरग मांस वर्ग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  ४५  बिटेन   तक
  अनुवाद भाग -  ३१९
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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 कबरण्या  (चित रंग्यां)  हिरण, हिमालयी महा मृग , श्वदृष्टा , मृगमातिका , शस हरिण , गोकर्ण हरिण , कुरंग , कोटकारक हरिण , चअरुष्क हरिण , सांभर , कालपुच्छ , ऋष्य अर परपोत यी जंगली मृग छन।  ४५-४६।

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३३०
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में


Bhishma Kukreti

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मुर्गा , प्रतुद  जाति पंछी मांस वर्ग विवरण 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद ४७    बिटेन   तक
  अनुवाद भाग -  ३२०
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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बटेर, तीतर ,बगुला, बतख, सफेद तीतर, चकोर, उप चकोर, कुक्कुभ, रक्तवर्णक, विष्किर पंछी छन।  बटेर,वर्तिका,मोर , तीतर, कुखुड़, कङ्क, सारपद, इन्द्राभ,गोनर्द, गिरिवर्त्तक,क्रकर, अवकर,बारटा सब मुर्गा जाति पंछी छन।  ४८-४९।
शतपत्र (कठफोड़ा ) , भांवरा (भृंगराज ), कोड़ा,जीवजीवका,कैरात,कोकिला, अत्यूहा, गोपपुत्र, प्रियात्मज,लट्वा,लटूवक, वभ्रु,बटहा, दुंदुभि,वकार, लोहपृष्ठ, कूलिंग,कबूतर, कळ्ळू, , चारक , चिरीटा, कुकुयष्टिक,सारिका,कलविन्क,चटक, अंगारचुस्वा, पारावत,पाणविक यी सब प्रदुत  वर्ग का पंछी छन।  ५० -५२।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३३० -३३१
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
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Bhishma Kukreti

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मांसौ ८  उतपत्तिस्थान
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  ५३  बिटेन  ५५  तक
  अनुवाद भाग -  ३२१
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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गौड़ , घ्वाड़ा , बाघ आदि भक्ष्य दृष्टि से एकदम भोजन पर टुटदन।  इलै  यी प्रासाह छन।  गुरा , मिंडुख, मूस बिल म रंदन इलै  यी बिलेशय छन।  हाथी , भैंस जल ाश्रयी छन इलै युंकुण 'आनूर' बुल्दन।  जल म रण से जलज अर जल विचरण वळ जलचर बुले जांदन।  जंगळम फिरण वळ  जांगल्य। तीतर  अदि अपण खाणो  फ़ोळि  खांदन इलै 'विष्किर' अर तोता  जन पंछी  खाणो तोड़ि खाण वळ पंछी प्रतुद  हूंदन। ये अनुसार मांस क आठ उतपति स्थान छन। ५३-५५।

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३३१
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
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Bhishma Kukreti

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मांशाहारी पशु पक्षी मांस से उपचार
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 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  ५६  बिटेन६०     तक
  अनुवाद भाग -  ३२२
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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यूंमा प्रसद , भूशय , आनूप , जलज अर जलचर प्राणियों मांस गुरु ,स्निग्ध , मधुर  शक्तिवर्धक, वीर्यवर्धक वातनाशक, कफ -पित्त वर्धक हूंद अर यूंक मांस नित्य व्यायाम करण वळ , जौंक जठराग्नि प्रदीप्त ह्वावो , उन्कुण हितकारी हूंद।  प्रसह पशु द्वी प्रकारौ हूंदन -एक मांस भक्षी जन शेर दुसर शाकाहारी जन गौड़।  यूं मदे  मांस भक्षी पंछी या पशुओं मांस पुरण अर्श ,ग्रहणी , क्षय रोग व निर्बल व्यक्तियों कुण उपकारी हूंदन।
बटेर आदि विष्किरवर्गै पंछी प्रतुदपंछी, जंगळुं पशुुं मांस लघु , शीतल , मधुर कषाय रस , अर पित्तप्रधान , मध्यम वात , कनिष्ठ कफ वळ , सन्निपातम हितकारी हूंदन।  बटेर आदि पंछी क मांस प्रश् श्रेणी मांसुं  गुण से मिल्दन।  थोड़ा  इ अंतर हूंद।  ५६-६०।   
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३३३ -
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में


Bhishma Kukreti

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बनि बनि  पशु अर पन्छयुं  मांस गुण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  ६१  बिटेन  ७८  तक
  अनुवाद भाग -  ३२३
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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बखरौ मांस न शीत  अर  ना इ भौत भारी  हूंद ,  नाइ भौत  स्निग्ध ,   कुछ ठंडो , कुछ गुरु अर कुछ स्निग्ध हूंद।  इलै दोषुं  तैं कुपित नि करद . कफ उतपन्न नि करद।  जु गुण मनिखों धातु म हूंदन वी गुण बखरौ मांस म हूंदन त  पुष्टिकारक हूंद। 
भेड़क मांस मधुर , ठंडो अर  भारी हूंद।  मधुर अर  शीतल हूण न यु पित्तनाशी हूंद। 
मोरक  मांस -आँख , कंदूड़ , मेधा , अग्नि , तारुण्य , वर्ण , स्वर व आयु कुण  हितकारी च ; बलकारी , वायुनाशक अर मांस व शुक्र वर्धक च।  मोरक मांस गुरु , उष्ण , स्निग्ध , मधुर , स्वर  व वर्ण व बल वर्धक , शुक्रवर्धक , पुष्टिकारी व वात्तनाशक हूंद। 
कुखड़ो मांस - मधुर , स्निग्ध , उष्ण , वृष्य , पुष्टिकारक स्वर ठीक करंदेर , बलकारक वात्तनाशक , अर पसीना लांद।
तीतर (मरुभूमि अर अनूप भूमि वासी  ) क मांस -मध्यम गुरु , मध्यम उष्ण अर  मध्यम मधुर च अर वातप्रधान व सन्निपात शांत करंदेर च। 
कपिंजल पक्षी मांस - ठंडो , मधुर अर लघु हूण से वातs जोर कम हूण पर रसयुक्त पित्त व रसयुक्त कफ म प्रशस्त हूंद। 
आवा (बटेर ) कषाय , मधुर , लघु , अप्रिय वर्धक सन्निपात शमन करण वळ विपाक म कटु हूंद।
घरम पळ्यां कबूतरs  मांस -कषाय , विशद, शीत , रक्तपित्तनाशक, मधुर विपाक वळ हूंद। 
जंगळs  कबूतरs  मांस यूंसे कुछ हळको , शीत, संग्राही अर मूत कम करण वळ हूंद। 
कळ्ळू  मांस -कषाय , विपाक म अम्ल, रूखो , ठंडो , शोथ , क्षय , दमा म हितकारी, स्तम्भक , हळको दीपक हूंद। 
खरगोशs  मांस कषाय , स्वच्छ, रुखो , शीत , विपाकम कटु , हळको , मधुर , अर हीनवायु सन्निपातम प्रशस्त च। 
चिड़िया मांस -मधुर , स्निग्ध, शक्ति व वीर्य वर्धक , सन्निपात शांत करण वळ अर  वायुनाशी हूंद।
गीदड़s  मांस मधुर रस , मधुर विपाक , त्रिदोषनाशक हूंद। 
काळो हिरणs  मांस -हळको , ठंडो , मल मूत्र रुकण वळ  च। 
छिपड़ौ  मांस - विपाक म मधुर , कषाय, कटु , वात -पित्तनाशक , पुष्टिकारक, बलवर्धक च।
शल्लकी मांस - मधुर अम्लरस,  विपाकम कटु , त्रिदोष नाशक व खास -स्वास नाशक च।  ६१ -७८। 
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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३३३
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
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Bhishma Kukreti

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गौड़ -भैंस आदि क मांस गुण  व हितकारी प्रभाव
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  ७९  बिटेन   तक
  अनुवाद भाग -  ३२४
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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माछों मांस - गुरु, उष्ण, मधुर,, बलकारी, पुष्टिकारक,वायुनाशक,वायुनाशक , दृश्य, वीर्यवर्धक, अर  भौत सा दोष उत्पादक बि च।
रोहू माछो  मांस -काई खाण से कबि नि सीण से , दीपनीय , अग्निवर्धक, पचणम लघु,अर भौत बल दिंदेर हूंद।
सुवरक मांस - स्नेहन,वृहण, वीर्यवर्धक, थकान व वायु नाशक , बलकारक , रुचिकारक, भौत पसीना लाण वळ हूंद। 
कछुआ मांस - बलकारक, वातनाशक, वीर्यवर्धक , आँखों कुण हितकारी, बलकारी मेधा -बुद्धि-स्मरण शक्ति  वर्धक , आयु कुण हितकारी, शोथनाशक ,च। 
गौड़ी मांस - केवल वात रोगुंम ,पीनसम ,विषम जौरम , सुखी खांसीम ,थकानम , अग्नि या भौत अधिक मांस क्षय समय हितकारी च।
भैंसक मांस - स्निग्ध , उष्ण , मधुर , वीर्य वर्धक, भारी, पुष्टिदायक, शरीर म दृढ़ता , पुष्टि , उत्साह अर  नींद  लाण वळ हूंद।
काळ खुट  अर चूंच वळ हंस, चकोर , मोर बतख , छड़ियों अंडा वीर्य क क्षीणताम ,खासुम , हृदय रोगम, क्षतम हितकारी हूंदन। मधुर , अधिविपाकि ,  तत्काल हितकारी हूंदन
खाद्य पदार्थों म शरीर म बल  लाणम मांस से बढ़ क्र क्वी वस्तु नि  हूंद। 
यु तिसर  मांस वर्ग बोली याल।  ७९ -८६। 
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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३३५ -
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
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शाक वर्गै वनस्पति
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  ८७  बिटेन १२२   तक
  अनुवाद भाग -  ३२५
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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शाकवर्ग
पाठा  , सुशावी (सौंफ )  , कचूर, बथुआ, मेथी यि  सब शाक ग्राहक व त्रिदोषनाशक छन पर बथुआ जरा रेचक छन।  मकोय भाजी तीनि दोषनाशक अर पुष्टिदायक व रसायन च।  यु न त बिंडी गरम ना इ भोत ठंडी हूंद , मध्यम वीर्य , रेचक , अर  कुष्ठनाशी हूंद। 
राजक्षवक की भाजी त्रिदोषनाशक , लघु , संग्राही अर ग्रहणी अर अर्श रोगम हितकारी च।
काल नामौ शाक कटु , अग्निदीपक, संयोगजन्य, विषनाशक अर शोथनाशक , लघु , उष्ण , वायकारी व रुखो  च। 
खट्टी चंगेरी की भाजी अग्निदीपक , उष्णवीर्य, संग्राही , कफ वायु रोगम उत्तम , ग्रहणी अर  अर्श म हितकारी हूंद। 
उपदिका  मधुर रस, मधुर विपाक , रेचक , श्लेष्मवर्धक , वृष्य , स्निग्ध, शीतल , उन्मादनाशी (धतूरा आदि क नशा ) च। 
तंडूलीयक रुखा , मद व विषनाशक , रक्त पित्त रोगम श्रेष्ठ, मधुर रस , मधुर विपाक, अर शीतल च। 
मंडूकपर्णी  का शाक बेत कु  अगनैक  भाग , कुचेला , धनतिक्ता , ककोड़ा, बाबची,परबल , शकुनाहनी, अडूसे (बसिंग )  क फूल , शाङ्गेष्टा , केबुक, पुननर्वा , नाड़ी, मटर , गोजिहा , बैंगन, हुलहुल, करेला क भेद , कर्कश, नीमक शाक , पित्तनाशक, भाजी कफ नाशक, तिक्त , ठंडो , कटु विपाक च।  वृकधूमक , लक्ष्मणा , चक्रमर्द , कमल नाल , एक प्रकार की तुलसी , लूणी/लुण्या , खेत पापड़ा , भुज्यल, बावची, सफेद शालपर्णी, शालकल्याणी , हंसपादिका , मोरबेल , की भाजी भारी , रूखी , धीरे धीरे पाचक , जब तक पचद नी पुटुक भारी रौंद , मधुर , शीतवीर्य, मलरेचक , छन।  यूं तैं बगैर पानी म भपेक रस  तै घी तेल म मिलैक लीण सही हूंद .
सन , कचनार, , लाल कचनार, सिम्बलक फूल संग्राही छन, इलै रक्तपित्त प्रशस्त च।  बड़ , गूलर , पिपुळ ,पिलखन , कमल आदि क पत्ता कसाय  रस,स्तम्भक, शीत   पित्त तिशारम हितकारी हून्दन। 
गिलोय क भाजी वायुनाशक , कड़ु जिमीकंद अर चीता भुज्जी कफनाशी, गज पिप्पली , बिल्वपर्णी , अर बेल लाबुं  भुज्जी वायुनाशी च।  भिंडी , शतावर , बला , खरौटी , जीवंती , पर्वणी , पर्वपुष्पी की भुज्जी पित्तवायुनाशक च।  कलिहारी , लाल एरंड की भुज्जी तिक्त , रेचक , अर लघु हूंद।  बेंतs  साग , एरंड की भुज्जी वायुकारी , कटु तिक्त, अम्ल  व रेचक च।  कुसुम्भ की भाजी रुखा , अम्ल , उष्ण , कफ नाशक , पित्तवर्धक च।  खीरा , ककड़ी व स्वादु , गुरु , अवस्तम्भ करण वळ व ठंडो हूंद।  यामा खीरा ककड़ी , स्वादु , रुखो अर मूत लाण वळ हूंद।  पकीं कखडी जलन , तीस अर थकान नाशक हूंद।  दूधी , घीया , मल रेचक , रुखो , ठंडो अर  भारी हूंद।  चिर्भटी कखडी - भी रेचक हूंद।  भुज्यल (पेठा क कद्दू ) रेचक , छार युक्त , मधुर , अम्ल , लघु , मल मूत्र रेचक , त्रिदोषनाशक हूंद। 
 केबुक कंद शाक , कदम्ब नंदे माषक , ऐन्द्रक  की भुज्जी स्वच्छ , गुरु , शीतल , कफकारी हूंद।  नीलो कमल कषाय रस , अर रक्त पित्तनाशक हूंद।  ताड़ अंकुर , खजूर , ताड़ सर मज्जा , रक्तपित्त व क्षय नाशी हूंदन।  तिरट कंद भैस , कमल डंडी , लाल कमल कंद , डूकर कमल कंद , कशेरू , सिंगाड़ा , उतपल कंद , गुरु , बिष्ठाम्भी , सफेद कमल , नील कमल , फूल व फल समेत ठंडो ,  कषाय , मधुर रस , कफ वायु का प्रकोपक छन।  पुष्कर बीज कषाय रस  ,   कुछ बिष्टम्भ करण  वळ  , रक्तपित्त नाशक , मधुर रस अर मधुर विपाक छन।  मुञ्जातक कंद बलकारी , ठंडो , गुरु , स्निग्ध , तृप्तिकारी , वृहण , पुष्टिकारी , वातपित्तनाशक , मधुर बृष्य च।  बिदारीकंद , जीवनीय , बृहण , बृष्य , स्वर कुण हितकारी हूंदन, रसायन  म प्रशस्त , बलकारी , मूतरेचक , मधुर , ठंडो हूंद।  अमली कंद (आसाम म हूंद ) ग्रहणी , अर्श म हितकारी, लघु ,भौत गरम , कफवात नाशक  ,   संग्राही अर मदास्यय रोग म प्रशस्त च।  सरसों साग त्रिदोषनाशक , मलमूत्र अवरोधक ,  हूंद।  पिंडालू बि इनी च।  किन्तु कंद हूण से स्वादु च।  खुम्बी छोड़ी बकै शाक शीतल पिनक रोग उत्पादी , मधुर , गुरु हूंदन।  ये प्रकारन पत्ता , कंद , मूल नाल /डंठल ,फलवळ शाक वर्ग पूरो हवे  गे  I ८७ -१२२   I
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३३६ -३४०
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में


Bhishma Kukreti

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  चरक संहिता म फल वर्ग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद १२३   बिटेन  १६३  तक
  अनुवाद भाग -  ३२६
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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फलवर्ग -
पकीं किशमिस तीस ,जलन , जौर , स्वाश , रक्तपित्त , उरक्षत , क्षय , वातपित्त , उदावर्त , स्वरभेद, मदात्यय, कड़ो मुख , अर खासु  शीघ्र दूर करद।  यु वृहणी पुष्टिकारक, वृष्य , मधुर, स्निग्ध , ठंडो हूंद।  खजूर मधुर ,पुष्टिकारक , शुक्रवर्धक, गुरु , शीतल अर क्षय , चोटलगण , जलन, अर वातपित्त म हितकारी हूंद।  अंजीर (बेडु ) तृप्ति दिंदेर , गुरु , विष्टम्मी अर ठंडो हूंद।  फालसा , महुआ वातपित्त म हितकारी च।  आमड़ा मधुर , पुष्टिकारक , बलकारक , तृप्तिकारक , गुरु , स्निग्ध , कफकारक , ठंडो , वृष्य अर पुटुक म आफरा करदो।  ताड़फल व पक्यूं  नरियुळ स्निग्ध , वृहण , ठंडो , बलकारी व मधुर हूंद। 
कमरख मधुर , अम्लकषाय , विष्टंभि , गुरु , शीतल, पित्तश्लेष्मकारी, स्तम्भक , मुख शोधक हूंद। 
खट्टो फाल्सा , द्राक्षा , झाडी क बेर , आड़ू , यी पित्त कफ तै कुपित करदन।  इनि बेर व लकुच बि कफ पित्त कुपित करदन।
आलू बुखारा भौत गरम नि  हूंदन , मधुर स्वादु , खाणम स्वादिष्ट, भेजा / बुद्धि पुष्टिकारक , शीघ्र पाच्य , हूंद
पारावंत  द्वी प्रकारा जन हूंद -मधुर अर अम्ल।  मधुर शीतल ,  अर अम्ल उष्ण  गुरु , अरुचि , अग्नि तीब्रता नाश करण वळ  हूंद। 
गंभारी फल लगभग कमरस फल जन ही हूंद।  इनि खट्टा फालसा  फल जन शहतूत फल  बि  हूंद।  टंक क फल कषाय , मधुर , वातक , गुरु अर शीतल हूंद।  कच्चो कैथ स्वर नाशी , विषनाशी,ामक संग्राहक अर वायकारी च।  पाक्युं  कैथ , मधुर , अम्लकषाय रस , सुगंधित हूणन रुचिकर हूंद, भरपूर पकण  पर दोषनाशी , विषनाशी , संग्राहक व गुरु हूंद।  पक्यूं बेल पचणम दुर्जर , दोषकारी , दुर्गंध युक्त ,वायुकारी हूंद।  कच्चू बेल स्निग्ध , उष्ण , तीक्ष्ण , अग्निदीपक, कफ वायु नाशी हूंद। 
गुठली लगण  से पैल कच्चो आम रक्त पित्तकारी पित्तकारी हूंद।  पकण पर वायु नाशी , मांश , शुक्र व बल वर्धक हूंद। 
पाक्युं फळिंड  (जामुन ) कषाय , मधुर रस , गुरु , विष्टम्भी , शीतल, कफ -पित्तनाशी, संग्राही अर  वायु  कारी हूंद। बेर मधुर स्निग्ध , रेचक , वातपित्तनाशक च।  सुक्यूं बेर कफ वात्तनाशक , पित्त कुण अविरोधी च  पित्त प्रकोप नि करद। 
सेव (सफरचंद ) कषाय , मधुर रस , शीतल , संग्राही च। 
नागबला अर करौंदा , कंदूरी , तोंदन , अर धायक फल मधुर कषाय , शीतल , पित्त कफ नाशी च। 
पक्यूं कटहल , क्याळा , खिरनी , स्वादु, कषाय , स्निग्ध , गुरु अर स्निग्ध च। 
हरफारेवडी कषाय ,अर विशद , सुगंधित हूणन रुचिकर हूंद ,वायुकारी , खैक दुसर फलों म रूचि जगदी।
कदम्ब , शरका , पीलु , केतकी , विककंत , आमलक फल  दोषनाशक , अर  विषनाशी छन। 
इंगुद फल  तिक्त ,मधुर , स्निग्ध , उष्ण अर  वात -कफनाशी हूंद। 
तेन्दु फल कफ -पित्त नाशी , कषाय , मधुर अर लघु हूंद। 
औंळा म लूण छोड़ि सौब रस छन , अर स्वेद  भेद , कफ वमन रूचि अर पित्त रोग नाशी च, रूखो , स्वादु , कषाय अम्ल, कफ पित्त नाशी हूंद । 
 बयड़  (बहेड़ा ) रस रक्त , मांस , मेद जन्य रोगनाशी च, स्वर भेद , कफक उत्क्रेड , पित्त नाशी च । 
खट्टो अनार कषाय , मधुर ,वातनाशी , संग्राही , अग्निदीपक , स्निग्ध अर उष्ण च, अर  हृदय कुण रुचिकर ,कफ पित्तक अविरोधी ,(प्रकोपक ना ) फल च ।  मिठु अनार पित्तनाशी च अर यूमादे खट्टो अनार श्रेष्ठ च। 
कपकं संग्राही उष्ण , वात कफ म प्रशस्त च।  इमली फल पकण पर लगाबग्गी कोकम जन गुण वळ च पर रेचक च ।  बिजौरे लिम्बू क केश शूल , अरुचि , बिगँध , मंदाग्नि , मदासय्य , हिक्का , खासू , श्वास , वमन, मल संबंधी रोगोंम व वातकफ जन्य रोगुंम प्रशस्त अर  लघु च।  एकी छाल  गिरी आदि गुरु  अर वात  प्रकोपक च। 
बिन बक्कलक कचूर रोचक अग्निदीपक , सुगन्धित , कफ वात नाशक , श्वास , कीचकी , अर अर्श राम हितकारी च। 
नारंगी फल मधुर , कुछ खट्टो , खाणम रुचिकर , पाच्य , वातनाशक अर  गुरु च। 
बादाम , पिस्ता , अखोड़ , मकुचक , निकोच , गुरु , उष्ण , स्निग्ध , मधुर , शक्तिवर्धक, पुष्टिकारक , वायुनाशी , कफ पित्त वर्धक छन।  पियाल बि इनि च पर उष्ण नी। 
लसूड़ा  क फल कफकारी , मधुर , शीतल  अर  गुरु च।
अङ्कोटक फल गुरु , कफकारी , बिष्टम्भी अग्निनाशक च।
शमी क फल गुरु , उष्ण , मधुर , शीतल अर  बालनाशी च। 
करंजक फल बिष्टम्भी व वाट कफ कुण  अविरोधी च।
आम्रतक , दंतशठ (लिम्बू खट्टो ) करौंदा अर ऐरावत फल रक्तपित्तनाशी च।  वार्ताक वातनाशक, अग्निदीपक , कटुतिक्त  रस च।  पित्तपापडे फल वायुकारी , कफ पित्त नाशी च।
असिफी फल खट्टा , कफ पित्तनाशी , अर वायुकारी च।  पिपुळ , गूलर , पिलखन बड़  यूंक फल  पकण म मधुर , वातपित्त  नाशी छन। 
कच्चा फल कषाय , मधुर , अम्ल , वायकारी , गुरु हूंदन।
मिलावे का फल अग्नि जन (छाला लाण वळ ) , मिलावे की छाल -मज्जा स्वादु , शीतल च।  ये अनुसार फल वर्ग क पांचो भाग बि  बोल दियाल। १२३- १६३। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३४३  -३४५
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती - जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ


Bhishma Kukreti

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हरित वर्ग  ki भोज्य वनस्पति

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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद १६४   बिटेन १७५   तक
  अनुवाद भाग -  ३२७
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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हरित वर्ग
आदु , रोचक , अग्निदीपक , वीर्यवर्धक च।  आदु रस  कफ  वात जन्य अवरोधूं  म गुणकारी च।  लिम्बु रुचिकारी , दीपक , तीक्ष्ण , सुंगधित, मुख स्वच्छ करण वळ , कफ वात  नाशी , कृमिनाशी , अन्न पाचक च।
कच्ची मूली दोषनाशक , पकण पर त्रिदोषकारक हूंद, स्निग्ध अर पकण पर मूली वात नाशी अर सुकिं मूळी कफ वात नाशक च। 
तुलसी हिचकी , कास , विष श्वास , पार्श्वशूलक  नाशी च, पित्त कारक , कफ -वायु नाशक अर सरैलक दुर्गंध नष्ट करद। 
जवाण ,शोभांजन , अर्जक , शालेय शृष्टक , अर  राई हृदय तैं प्रिय , स्वादिस्ट , पित्त वर्धक च।
गंडीर (इखम लाल ) , जल पिप्पली , तुंबरू , गाजवा , यी तीक्ष्ण , कटु , रुखो , वायु कफ नाशी च। 
मुस्तूण  पुरुष्वत्व नाशक , कटु , रुखा , उष्ण व मुख शोधक च। 
काळो  जीरु कफ पित्त नाशक , वस्ति रोग व वस्ति शूलनाशक च।
धन्या , जवाण , तुलसी भेद , रोचक , सुगंधित व रोगुं  तै उत्तेजित करंदर  छन।
गाजर शजम  संग्राही , तीक्ष्ण , वात -कफ -अर्श रोग म हितकारी , स्वेदन कामम  हितकारी ,  योंका उपयोग जख पित्त नि बढ्यो  उख करण चयेंद। 
प्याज्र कफकारी वायुनाशी च।  पर पित्त नाशी नी  च।  प्याज भोजनम उपयोगी , बलकारी , गुरु , वृद्धि व रुचिकारी च। 
ल्यासण कृमि,  कुष्ठ , किलास रोगनाशी च, वायुनाशक , गुलमनाशी , स्निग्ध , उष्ण , वीर्यवर्धक , कटु अर  गुरु हूंद।
यी सब सुकण पर कफ वात नाशी छन। 
हरित वर्ग समाप्त ह्वे।  अधिकतर हरित वर्ग कच्ची इ उपयोग म लिए जांदन।  १६४  -१७५ 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३४५ -३४७
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ


 

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