Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 18979 times)

Bhishma Kukreti

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मद्य वर्ग   लक्षण व गुण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद १७६   बिटेन  १९३  तक
  अनुवाद भाग -  ३२८
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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स्वभावन मद्य खट्टो , उष्ण च जु अम्ल नी किन्तु विपाकम अम्ल च।  पीण पर दांत खट्टा ह्वे जांदन।  मुख बिटेन स्राव आंदो इलै अम्ल च।  या बात सब मद्दों म सामान च।  अगनै  विशेष बुले जाल। 
अनुदघृतमंड कृष व्यक्तियुं  कुण , मूत्र रुकण पर , ग्रहणी  अर अर्श रोगम  हितकारी हूंद, वायुनाशी अर दूध अर रक्त क्षय म हितकारी च ।  मदिरा हिचकी , श्वास , प्रतिश्वास, कास , मलावरोध , अरुचि , वमन ,अफारा, विबंधम हितकारी व वायुनाशी च। 
अन्नन बणी सुरा शूल , प्रहाविका , आफरा , कफ वायु , अर्श रोगुंम हितकारी अर संग्राही , रुखा , अन्न पाचक , शोफनाशी हूंद। 
अरिष्ट (औषध क्वाथ से निर्मित दारु ) शोथ , अर्श ,ग्रहणी , पाण्डु , अरुचि *, ज्वर , कफजन्य रोग नष्टकारी च, रोचक अर  अग्निवर्धक हूंद ।   
शर्कर ( शक्कर क प्राकृतिक  आसव  ) खाणम प्रिय , सुखपूर्वक नशा करण  वळ , सुगंधित , वस्तिरोग नाशी , जीर्ण ह्वैक पचण वळ , हृदय कुण प्रिय , वर्ण अर कांतिकारी च।
गन्ना  रस उबालि बणयुं रोचक , अग्निदीपक , हृद्य , शोथ , शोफ , अर्श रोगुंम हितकारी च। 
गुड़ न बण्यु  मद्य रेचक , वायुअअनुमोलक, तृप्तकारी , अग्नि वर्धक च।
बहेड़ा मद्य पांडुरोग अर  दृण म हितकारी व दीपक च। 
सुरासव (बिन जल क सुरा  ) तीब्र मदकारी , वायुनाशी, मुख व सरैल कुण प्रिय च। 
क्वादो फूलूं से निर्मित असाव छेदक व तीक्ष्ण च , मैरेय  मधुर व गुरु हूंद।
धाय क पुष्पं  से निर्मित शराब हृद्य , रुखो , रोचक अर दीपक च। 
मृदिका रस व गन्ना रस मिलैक निर्मित आसव मापविक से निर्मित आसव  तरां गरम नि हूंद , रोचक , दीपक , हृद्य , बलकर अर पित्त कुण अविरोधी च। 
मधु प्रधान आसव विबन्धनाशी , कफनाशी , लघु अर थुड़ा सि  वायुकारी हूंद। 
यव तण्डुली से निर्मित मद्य रुखो , उष्ण , वात -पित्तकारी हूंद। 
ग्युंन निर्मित मद्य गुरु , पुटुक  म आफरा पैदा कोरी जीर्ण हूंद, कफकारी च । 
धान्य तुषन निर्मित कांजी दीपक , लघु हृदय पांडु , कृमि , रोगनाशी , ग्रहणी , अर्श रोग म हितकारी , अर रेचक च।
खट्टी कांजी पीणन दाह , जौर नष्ट हूंद, वात , कफ नाशी, विबन्धनाशी , अविस्रंसी  अर  दीपक  च , ।
नयो मद्य प्रायः गुरु अर  दोष प्रकोपक हूंद।
पुरण मद्य स्रोत शोधक , दीपक , लघु , रुचिकर , हर्षोलास वर्धक , बलकारी , पुष्टिकारी , भय , शोक , भ्रम मिटाण वळ  हूंद। 
सात्विक विधिन उपयोग कर्युं  मद्य अमृत जन हूंद।  यु मद्य अति वीर्यवर्धक , प्रतिमा , प्रसन्नता , पुष्टिकारी हूंद।
यु मद्य वर्ग समाप्त।  १७६ - १९३। 

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३४८ -३५०
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ


Bhishma Kukreti

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चरक संहिताम जल वर्ग  : लक्षण व गुण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  १९४  बिटेन   २१५ तक
  अनुवाद भाग -  ३२९
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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जलवर्बग  -
सब  पाणि एकि प्रकारौ च।  यु  जल बरखा से अगास बिटेन गिरदो।  जल गिरिक गुण  दोष कुण देस (क्षेत्र ) ,  समय   की अपेक्षा करद।  अकास बिटेन गिरदो जल ऋतू  अनुसार सूर्य , चन्द्रमा , अर  वायु अर  भूमि म गिरिक ऋतु अनुसार  भूमिक शीतलता , उष्णिमा , स्निघ्ता, रूखापन का गुण  लेकि उनी  गुण  वळ  ह्वे जांद। ( जनकि गुजरात म जल क्षार गुण वळ  ह्वे जांद किन्तु बदरनाथ म स्वच्छ ) . अकास बटें  गिरण  वळ जल स्वभावन शीतल , पवित्र , कल्याणकारी , स्वादिष्ट , स्वच्छ , हळको  जन छह गुणों वळ हूंद।  भूमि म गिरण से भूमि अनुसार जल क  गुण परिवर्तन हूंद।  श्वेत भूमि पर गिरणन जल कसैला ,पाण्डुर भूमि म गिरन से तिक्त , छारमिश्रित भूमि म गिरण से लुण्या , पाड़ क भूमि म गिरण से जल कटु , अर काळी  भूमि म गिरण पर जल मधुर ह्वे जांद।  भूमिक जल छह प्राकरौ हूंद। 
बरसातौ पाणी , ह्युं  क पाणी , ढांडौ पाणीम क्वी रस नि हूंद।  अकास से गिरदो पाणी गाड -गदन छोड़ि कै शुद्ध भांड म कट्ठा करे  जाव त  तै जल तैं बरसातौ पाणी बुल्दन।  यु जल राजाओं पीण लैक  हूंद।  ऋतु ऋतु अनुसार  बरखौ पाणी गुण  हूंदन।  जु जल थोड़ा कषाय ,मधुर , सूक्ष्म , स्वच्छ , लघु , अरुक्ष , अभिष्यिन्द , निकफी जल उत्तम जल हूंद। 
बरसातौ नयो पाणी गुरु , अभिष्यिन्द , अर मधुर रस हूंद।
शरद ऋतु क  बरखौ जल भौत स्वच्छ , अभिष्यिन्द , लघु अर निकफी हूंद।  यु पाणी सुकुमार , विशेषतः स्निग्ध , भौत भोजन खाण वळ क भोजन म , भक्षण म (दांत से काटि भोजन ) , पीण अर चटण म प्रशस्त करद।  हेमंत ऋतु क बरखौ  जल स्निग्ध ,गुरु , वीर्यवर्धक बलकारी हूंद। 
शिशिर ऋतु म बरखौ जल हेमंत ऋतु क जल से कुछ हळको अर कफ -वात नाशी हूंद। 
वसंत ऋतुम बरखौ पाणी कषाय , मधुर रस अर रूखा हूंद। 
रुड्यूं म बरखा पाणि कफनाशी अर रुखो हूंद , विभ्रांत अर्थात बरसात म बादळुं से गिरण वळ पाणी दोषकारी हूंद। 
राजाओं , सभ्रांत, सुकुमार धनी  लोकों तै शरद ऋतु म बरखा पाणी कट्ठा करी सरा वर्ष पीण चयेंद।
हिमालय बिटेन   उतपन्न गाड -गदन (नदी ) क जल पत्थरों टक्करौ कारण छुळे  जाण से निर्दोष , पथ्यकारी व पुण्य हूंद।  यूं तै दिवता  व ऋषि सेवन करदा छा त  पुण्य च।  मलयाचलपर्वत से उतपन्न  जल बि  पाड़ , रेतीला भूमि म बगण  से अमृत जस च।  पच्छिम सागर म गिरण नदी बि पथ्यकारी व स्वच्छ छन ।  पूर्व समोदर म बगण वळ नदी धीमा छन तो जल गुरु  जल च. पारियात्र  पर्वत  से उतपन्न नदी , विंध्याचल व सह्याद्रि से उतपन्न नदी हृदयरोग , शिरोरोग , कुष्ठ व श्लीपद रोग उतपन्न कारी च। 
बरखौ जल कृमि,  माटु , कीड़ा ,  गुरा , मोसो आदि व यूंक मल से दूषित ह्वेक नदी म गिरदो तो नदियों जल  यूं  ऋतुओं म दोषकारक हूंद। 
रौ , खाळी , कुआ , बावड़ी , छ्वाया , छिंछ्वड़ (झरना ) , ताल -सरोवर , आदिs  जल अनूप , देस , अर्थात जंगल आदि गुण दोष अनुसार ही हूंदन।
जो जल चिकास, कृमि युक्त , क्लीन , पत्ता , शैवाल , या कीच से मिल्युं हो , जै झलक रंग परिवर्तित ह्वे गे  ह्वाओ , रस बिगड़ गे ह्वावो , रस , गाढ़ो , दुर्गन्धि , ह्वाओ त हितकारी नि हूंद।  समुद्रौ जल खारी , त्रिदोषकारी हूंदन तो नि पीण चयेंद। 
अब आठवां वर्ग -जल वर्ग समाप्त ह्वे गे। १९४- २१५। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३५१ - ३ ५३ 
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ


Bhishma Kukreti

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चरक संहिता म  गोरस (दूध, दै , प्यूंस , घी , नौणी , छांछ आदि  ) वर्ग 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद २१६   बिटेन  २३५  तक
  अनुवाद भाग -  ३३०
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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क्षीर वर्ग -
दूध मधुर ,शीतल , मृदु , स्निग्ध , बहल , श्लक्ष्ण ,प*पिच्छिल , गुरु , मंद , प्रसन्न यूं  दस  गुणों क हूंद। आज क बि यी गुण हूंदन।  इलै सामान्य हूण पर बि दूध आज बढ़ांद।  इलै  जीवनीय  वस्तुओं  म  दूध  अधिक  श्रेष्ठ  मने जांद।  दूध रसायन च।
भैंसौ दूध - गौंडी दूध से भारी , ठंडो , अर घी बिंडी बणदो।  अनिद्रा रोगी कुण व अगन बढ़न  पर  हितकारी हूंद, अगन कम करदो ।   ,
ऊंटनी दूध - ऊंटनी दूध रुखा उष्ण , कुछ लुण्या , लघु , वात , कफ , अनाह , कृमि , शोफ , उदर , अर्श रोगम  हितकारी। 
एक खुर वळ घोड़ी या गधी  दूध बलकारी सरैल तै स्थिर करण वळ , उष्ण , लवण अम्ल रस , रुखा , हथ -खूटों वातविकार नाशी हूंद। 
बखरौ दूध - कसैला , मधुर , शीतल , संग्राही , लघु , रक्तपित्त , अतासीर , नाशक , क्षय , कासु , जौरम हितकारी हूंद। 
ढिबरौ दूध - हिक्का , स्वास रोग पैदा करदो, ग्राम व पित्त उत्पादक हूंद । 
हथनी दूध - बलकारी , गुरु व सरैल तै दृढ कारी हूंद।
स्त्रियों दूध जीबनीय , बृंहणीय , शारीरक सात्म्य , स्नेहक , नत्स्य कुण अर रक्तपित्त म हितकारी हूंद।  आँख दुःखण म ाँह म डळणम हितकारी। 
दहीक गुण -  दै  (दही ) रुचिकारी , अग्निदीपक , वीर्यवर्धक , स्नेहन योग्य , बलवर्धक , अम्ल विपाक म , उष्णवीर्य, वातनाशक , मंगलकारी , बृंहण , पौष्टिक च।  पीनस, अतिसार , शीतजन्यविषम रोगम , अरुचि , मूत्रकृछ्र , अर  स्वाभाविक कृशता म दै उत्तम च।  शारद -ग्रीष्म अर वसंत ऋतुम दै नि खाण चयेंद। मंदक (जब दै पुअर नि जमी ह्वावो )  त्रिदोषकारी च अर  ठीक जमीं दै  वातनाशी च ।  दै मथि मलै शुक्रवर्धक च।  दै क मं ड (  स्वच्छ जल भाग- मस्तु  ) कफ -वातनाशी हूंद , सत्र साफ़ करण वळ च।
छांची  गुण - शोफ , अर्श,  मूत्रवरोध , उदर रोग , अरुचि , स्नेहन जन्य रोग , अरुचि , पाण्डु व संयोग जन्य विषों म उत्तम च। 
नौणी (मक्खन ) - संग्राही , अग्निदीपक , हृद्य , ग्रहणी , अर्श रोग नाशी , अरुचि समाप्त करण वळ  च।
गौड़ी घ्यू गुण - स्मरण शक्ति, बुद्धि , शक्ति ,  वर्धक , उत्साह , आज , कफ-मेद वर्धक हूंद।  वात , पित्त , विष , उन्माद , शोथ , दौर्भाग्य , अशुभ , अर जौर नाशी हूंद।  सौब स्न्हेऊँ म घ्यू उत्तम च, शीतल ,मधुर च ।
नाना प्रकारौ कर्म करण वळ  द्रव्यों से घीक संस्कार करण  पर घी सहस्त्रों प्रकारौ संस्कार कौर सकुद।  मद , अपस्मार , मूर्छा , शोथ , उन्माद , विष , जौर , योनिरोग , कर्ण रोग , मुंडक शूल , कुण  पुराणो  घी प्रशस्त च। 
अन्य पशुओं घी उन्का  दूध गुण अनुसार बिंगण चयेंद।
प्यूंस , मोरट (जब प्यूंस अगली दिन बि  स्वच्छ नि  ह्वावो ) , किकाट )मलाई रहित दूध ) , अर इनि  वस्तु , जौंक  अग्नि बढ़ीं ह्वावो , अनिद्रा रोगी , ऊँकूण  सुखदायी च, गुरु तृप्तकारी , पौष्टिक , वीर्यवर्धक , वातनाशी च । 
पनीर स्वच्छ , गुरु , रूखो व संग्राही च। 
नवां गोरस वर्ग समाप्त ह्वे।  २१६ - २३५
   








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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३५३-३५६
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ


Bhishma Kukreti

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गन्ना , गुड़ , शक्कर , राव , मधु गुण  व यूंसे उपचार
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद २३६   बिटेन २४८    तक
  अनुवाद भाग -  ३३१
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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अयेक्षु  वर्ग -
इक्षुविकार वर्ग- गन्ना  तैं दांतुं न चूसि खयूं रस वीर्यवर्धक ,शीतल , रेचक , स्निग्ध , पौष्टिक , मधुर , अर कफकारी हूंद। 
कुलड़ो पेल्युं  गन्ना रस विदाहयुक्त  ह्वे जांद , छिलका अर  गाँठ क योग से विदाह उतपन्न हूंद , अर  भैर वायु  अर  घामक  योग से बि  विदाह उतपन्न ह्वे जांद।  नरम छिलका गणना रस बिंडी शीतल , बिंडी निर्मल (प्रसन्नता दायी ) , बिंडी  मिट्ठु हूंद।  बांस गन्ना यांसे  अधिक खसखसो हूंद।
गुड़ - अतिशय , कृमि , मज्जा , रक्त , मेद , अर मांस वर्धक हूंद , काळ रंगो गुड़ क्षुद्र , गुड़ चार भाग से निर्मित गुड़ से अर  चार भाग क गुड़ तीन भागक गुड़ से बिंडी  गुरु हूंद।  साफ़ याने कम मल(गंदगी मिटटी आदि )  से निर्मित गुड़ कम हानिकारक हूंद।  राव , खांड , शक्कर उत्तरोत्तर स्वच्छ हूंदन।  जन जन यूंमा स्वछता बढ़दि तन्नि शीतलता बि।  अर्थात राव से खांड, खंड से शकरर अधिक शीतल हूंद। 
 गुड़ निर्मित शक्कर वीर्यवर्धक ,क्षीण , उर:क्षत रोगी कुण हितकारी व स्नेहयुक्त हूंद।
 घमसा क क्वाथ से निर्मित  शक्कर कषाय मधुर रस , शीतल , अर कुछ तिक्त हूंद।
मधु क शक्कर रूखो , वमन , अतिसार , नाशक , कफ तोडू हूंद। 
तीस , रक्तपित्त , अर जलन म सब शक्कर हितकारी।
मधु क गुण -
मधुक चार जाति  छन -
१- रिंगाळ (बड़ी मधुमक्खी ) अर  या चिमुल्ठों  निर्मित
२-भौंर (मधुमक्खी ) क निर्मित मधु
३-क्षौद्र )छुटि  मधुमक्खी से निर्मित
४- पीली मधुमक्खी निर्मित श्वेत मधु
यूं मदे माक्षिक मधु सर्वश्रेष्ठ हूंद। भौंरों निर्मित शहद गुरु हूंद। 
मधु -वायुकारक , गुरु , शीतल ,रक्तपित्त , कफनाशी , व्रणों  तै जुड़न वळ , कफ-मेद आदि तै उखाड़न वळ , रुखो , कषाय व मधुर  हूंद।
मधु बनि बनि प्रकारौ फूलों से विषैली मधुमखियों द्वारा निर्माण हूंद।  इलै गर्म अवश्था म दीणन मार्क हूंद।
मधु गुरु , कषाय रस, शीतल, रूखो  हूण से कम मात्रा ही ठीक मात्रा च। 
मधु बिंडी  सेवन से जु  रोग उत्प्पन्न हूंदन वो असाध्य ही हूंदन किलैकि एकी चिकित्सा म विरोध हूंद , इलै  विष जन मनुष्य मार दीन्दो । किलैकि आम रोग म उष्ण उपचार करण पड़द  जु मधुम विरुद्ध च,  अर  शीतल हूण से रोग उपचार म अड़चन च।  इलै मधु जन्य रोग दुसाध्य छन जु  विष जन मनिख तै मार दींदन । 
नाना प्रकारौ ऊर्जा वीर्य युक्त  औषधियों युक्त पुष्पों से मधु निर्मित हूंद त  मधु म भौत सि  शक्ति हूंदन। 
इलै अर प्रभावक कारण मधु योगबाही अर्थात वमन कारी , आस्थापन या वृष्य कर्म करण वळ , जै द्रव्य दगड़ दिए जावो स्यु उनी कार्य करद।
ये अनुसार इक्षुविकार वर्ग समाप्त। २३६ -२४८।

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३५७-३५८
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ


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मांड  आदि वर्ग गुण -लक्षण व उपयोग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद २४९   बिटेन २५५   तक
  अनुवाद भाग - 
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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कृतान्न  (मांडो आदि ) वर्ग
एया (१ गुणो पाणिम बणी कांजी ) भूक -तीस , ग्लानि , दुर्बलता , उदर रोग तैं  नष्ट करदी, स्वेदकारी , अग्निवर्धक , वायु अर मल क अनुलोमन कारी हूंद । 
विलेयी  (चार गुणो पाणि म बणयिं  कांजी ) तृप्तिकारी , संग्राही , लघु व हिंदी क अनुकूल हूंद। 
मंड (चार गुणो पाणिम बणी कांजी ) अग्नि दीपन अर वायु क अनुलोमन करद, सूत्रों तैं  बंद करद  अर पसीना लांद ।  उपवास , विरेचन का बाद, संगहण जीर्ण हूण पर , तीस लगण पर अग्निदीपक अर लघु हूण से
 मंड हितकारी हूंद। 
लाजपेय (खील से बण्यु पेय ) श्रमनाशी गौळौ  सुकण म हितकारी हूंद। 
आजमंड  अग्निवर्धक ,दाह -मूर्छा नाशी हूंद।  मंदाग्नि अर विषमाग्नि  वळ व्यक्तियों कुण , बच्चा , वृद्ध , कोमल प्रकृति वळ तैं आजमंड  पकैक दीण चयेंद .
जु  भूक तीस सहन नि  कौर  साकन तौं  तै पथ्य  सेवन करदा होवन , वमन विरेचन से जु शुद्ध होवन ,किन्तु थोड़ा सी मल वमन रुक्यूं हो तो  यिं अवस्था म अनारदाना , पिप्पली , सोंठ से बणयूं अजमंड हितकारी हूंद जु  अग्निवर्धक व वायु तै अनुलोमन करद ।  २४९ -२५५। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३५९ -
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ


Bhishma Kukreti

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 बनि  बनि यूथ (रस्सा , रस , सूप ):  गुण व चरित्र
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद २५६    बिटेन  २६०  तक
  अनुवाद भाग -३३३   
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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भली प्रकार से धुयां , मांड गड्यां , गळायां  चौंळ  (भात )  लघु हूंदन।  गळयां अर ठंड भात गुरु हूंद।  कृत्रिम विष अर कफजन्य रोगम भून्युं  चौंळुं भात हितकारी हूंद।  पूर  नि  धुयां , बिन मांड उतार्यूं  ,मांस , शाक , वसा , तेल , घी , मज्जा , अर फल मिलैक चौंळ बलकारक , संतर्पक , हृदय प्रिय , गुरु , अर पौष्टिक हूंद।  इनि उड़द , तिल , दूध , मूंग क योग से बणयूं  भात बि गुणकारी हूंद।
जौ  थोड़ा पकायुं  गुरु , रुखो , वायुकारी व रेचक हूंद।  भाप देकि त्यार वस्तु , जु उड़द , मूंग , ग्युं  , जौ  क पीठ से बणये जाव त  जै  बि वस्तु से पकाये जावन  स्यू  इ गुण  वे अंतिम वस्तु म हूंदन अर्थात अवयव का गन ही अंतिम वस्तु म गुण  हूंदन।
  बिन धन्य मसले से संस्कारित नि  होयुं  यूथ  , मसलाअओं से संकरित यूथ , पतळो अर मांस से संस्कारित यूथ , मांस रस , खट्टी दाल /खट्टा सूप , यी उत्तरोत्तर भारी छन।  तनुमांस रस से संस्कारित , मांस रस भारी च।  अमलसूप से अनअम्ल रस भारी च।  २५६ -२६०। 


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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३५९ -३६०
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ


Bhishma Kukreti

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सत्तू, जौक बड़ी, पूरनपोली , मालपुआ
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद   २६१ बिटेन   तक
  अनुवाद भाग -  ३३४
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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सत्तू वायुकारक, रुखो , पुष्कल मल, उतपन्नकरण  वळ।  वायु क अनुलोमन, पीण पर त्वरित तृप्त करंदेर, त्वरित बलदायी हूंद।  हेमंत धान्य से बण्यु  सत्तू मधुर ,लघु शीतल हूंदन।  यी संग्राही , रक्तपित्त , तृष्णा , वमन , अर  जौर  नाशी हूंदन।  २६१- २६२। 
जौक पूड़ा , जौक बड़ी, भुन्यां जौक चौंळ ,  यी उदावर्च , प्रतिश्याय , प्रमेह , अर गौळs  रोग  मिठांद ।  भुन्यां  जौ लेखन अर कफ आदि उखाडन वळ  हूंदन।  सूखा हूण से तीस बढ़ांद।  विष्टम्भी हूण से देर म पचद।  अंकुरित धान्य , शष्कुली (चौंळ  आटुम तिल मिलैक पकाण  से  ) , मधुक्रोड़ा  ( चौंळ  पकाइक  पीठ मध्य शहद धौरी ) , सपिण्डिका क्रोड़ा (पूरनपोली ), पूड़े मालपूआ , यी गुरु अर पौष्टिक हून्दन। २६३ -२६५।

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  ३६०
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ


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मांस , फल ,वसा, , दुग्ध मिश्रित पेय ,गुड़ ,   शाक गुण  व उपयोग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  २६६  बिटेन  २६८  तक
  अनुवाद भाग -  ३३५
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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फल , मांस , वसा , शाक , तिलौ चूरण , मधु क योग से बण्युं भोजन वीर्यवर्ध , बलकारी , गुरु अर पौष्टिक हूंदन।  वेश वार  या कीमा (बिन हड्डी मांस पत्थर पर पीसी , पीपली , मर्च , गुड़ , घी दगड़ पकायुं  मांस पदार्थ ) गुरु , स्निग्ध , बल व शक्ति वर्धक हूंद।दूध अर  गन्ना  रस से तैयार पदार्थ , गुरु बलकारी, तृप्तकारी , वीर्यवर्धक हूंदन।  गुड़ तिल   , दूध ,  शक़्कर क योग से बण्युं  पदार्थ वीर्यवर्धक , बलकारी , भौत गुरु हूंदन।  २६६-२६८
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  ३६१ 
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Bhishma Kukreti

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ग्युं क पंजरी,  हलवा आदि  विवरण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद २६९   बिटेन  २७०  तक
  अनुवाद भाग -  ३३६
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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ग्युं क आटो म घी मथिक (मिलैक )  या घी म पकैक नाना प्रकार का जो भि पकवान पकाये जान्दन यी सब गुण तृप्तिकारी , वीर्यवर्धक व खाणम आनंददायी हूंदन।  इनि ग्यूं  आदि पदार्थुं  तै  बिंदी देर तक अग्नि संयोग से पकाये जांद  त ग्युं गन गुरु से लघु ह्वे जांद।  इनि ग्यूंकी पीठि (लोई ) . धान्य पर्पट , भारी  हूंदन किन्तु संस्कार से लघु करे जांदन।  इलै वैद्य तैं संस्कारों विचार कौरि गुणों निश्चय करण  चयेंद।  २६९ -२७०। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३६२
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ


Bhishma Kukreti

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चूड़ा /चिवड़ा /बुखणो  गुण  व लक्ष्ण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  २७१  बिटेन  २७३  तक
  अनुवाद भाग -  ३३७
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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पृथुका (चिवड़ा ) चूड़ा गुरु हूंद। भुन्युं चूड़ा कम खाण चयेंद।  जौक  चूड़ा पुटुकुंद अवरोध कोरी जीर्ण हूंद। अणभुन्युं  जौ  रेचक हूंद। सुप्या न्न अथवा  मूंग , उड़द आदि से बणीं वस्तु (चबेना  या बुखण )  वायुकारक , रुखा व शीतल हून्दन।  यूं तैं  घी /तेल (स्निग्ध वस्तु )  अर  लूणौ  दगड़  कम मात्रा म खाण चयेंद।  जु  धीमी आंच पर पकदन  सि कठोर व स्थूल हूंदन (आग म सिकण  बि )। यी भारी , देर से पचण वळ पुष्टिकारक बल दायी हूंदन। २७१ - २७३।  .


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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३६२
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ


 

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