चरक संहिता म गोरस (दूध, दै , प्यूंस , घी , नौणी , छांछ आदि ) वर्ग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 27th सत्ताइसवां अध्याय ( अन्नपान विधि अध्याय ) पद २१६ बिटेन २३५ तक
अनुवाद भाग - ३३०
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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क्षीर वर्ग -
दूध मधुर ,शीतल , मृदु , स्निग्ध , बहल , श्लक्ष्ण ,प*पिच्छिल , गुरु , मंद , प्रसन्न यूं दस गुणों क हूंद। आज क बि यी गुण हूंदन। इलै सामान्य हूण पर बि दूध आज बढ़ांद। इलै जीवनीय वस्तुओं म दूध अधिक श्रेष्ठ मने जांद। दूध रसायन च।
भैंसौ दूध - गौंडी दूध से भारी , ठंडो , अर घी बिंडी बणदो। अनिद्रा रोगी कुण व अगन बढ़न पर हितकारी हूंद, अगन कम करदो । ,
ऊंटनी दूध - ऊंटनी दूध रुखा उष्ण , कुछ लुण्या , लघु , वात , कफ , अनाह , कृमि , शोफ , उदर , अर्श रोगम हितकारी।
एक खुर वळ घोड़ी या गधी दूध बलकारी सरैल तै स्थिर करण वळ , उष्ण , लवण अम्ल रस , रुखा , हथ -खूटों वातविकार नाशी हूंद।
बखरौ दूध - कसैला , मधुर , शीतल , संग्राही , लघु , रक्तपित्त , अतासीर , नाशक , क्षय , कासु , जौरम हितकारी हूंद।
ढिबरौ दूध - हिक्का , स्वास रोग पैदा करदो, ग्राम व पित्त उत्पादक हूंद ।
हथनी दूध - बलकारी , गुरु व सरैल तै दृढ कारी हूंद।
स्त्रियों दूध जीबनीय , बृंहणीय , शारीरक सात्म्य , स्नेहक , नत्स्य कुण अर रक्तपित्त म हितकारी हूंद। आँख दुःखण म ाँह म डळणम हितकारी।
दहीक गुण - दै (दही ) रुचिकारी , अग्निदीपक , वीर्यवर्धक , स्नेहन योग्य , बलवर्धक , अम्ल विपाक म , उष्णवीर्य, वातनाशक , मंगलकारी , बृंहण , पौष्टिक च। पीनस, अतिसार , शीतजन्यविषम रोगम , अरुचि , मूत्रकृछ्र , अर स्वाभाविक कृशता म दै उत्तम च। शारद -ग्रीष्म अर वसंत ऋतुम दै नि खाण चयेंद। मंदक (जब दै पुअर नि जमी ह्वावो ) त्रिदोषकारी च अर ठीक जमीं दै वातनाशी च । दै मथि मलै शुक्रवर्धक च। दै क मं ड ( स्वच्छ जल भाग- मस्तु ) कफ -वातनाशी हूंद , सत्र साफ़ करण वळ च।
छांची गुण - शोफ , अर्श, मूत्रवरोध , उदर रोग , अरुचि , स्नेहन जन्य रोग , अरुचि , पाण्डु व संयोग जन्य विषों म उत्तम च।
नौणी (मक्खन ) - संग्राही , अग्निदीपक , हृद्य , ग्रहणी , अर्श रोग नाशी , अरुचि समाप्त करण वळ च।
गौड़ी घ्यू गुण - स्मरण शक्ति, बुद्धि , शक्ति , वर्धक , उत्साह , आज , कफ-मेद वर्धक हूंद। वात , पित्त , विष , उन्माद , शोथ , दौर्भाग्य , अशुभ , अर जौर नाशी हूंद। सौब स्न्हेऊँ म घ्यू उत्तम च, शीतल ,मधुर च ।
नाना प्रकारौ कर्म करण वळ द्रव्यों से घीक संस्कार करण पर घी सहस्त्रों प्रकारौ संस्कार कौर सकुद। मद , अपस्मार , मूर्छा , शोथ , उन्माद , विष , जौर , योनिरोग , कर्ण रोग , मुंडक शूल , कुण पुराणो घी प्रशस्त च।
अन्य पशुओं घी उन्का दूध गुण अनुसार बिंगण चयेंद।
प्यूंस , मोरट (जब प्यूंस अगली दिन बि स्वच्छ नि ह्वावो ) , किकाट )मलाई रहित दूध ) , अर इनि वस्तु , जौंक अग्नि बढ़ीं ह्वावो , अनिद्रा रोगी , ऊँकूण सुखदायी च, गुरु तृप्तकारी , पौष्टिक , वीर्यवर्धक , वातनाशी च ।
पनीर स्वच्छ , गुरु , रूखो व संग्राही च।
नवां गोरस वर्ग समाप्त ह्वे। २१६ - २३५
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३५३-३५६
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
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