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चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita

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Bhishma Kukreti:
मांश, दही, ल्हसी  क गुण 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  २७४  बिटेन २७६   तक
  अनुवाद भाग -  ३३८
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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कै पदार्थक गुरु या लघु हूणौ  नियम पदार्थक मूल स्वभाव , संयोग , संस्कार (पकाण  आदि ) , परिमाण , आदि बथों  तेन विश्लेषण कौरी  करण  चयेंद।  जौंमा यी  बात गुरु म आंदन तौं  गुरु समझण , जु हळ का होवण स्यु हळ का (लघु ) समझण। 
निमर्दक  (मांस पकाणो  बनि बनि  ब्यूंत से  ) , नाना प्रकारौ पदार्थों का मिश्रण से ,पकायुं , आम , क्लिन्न , भुन्युं  अंतर् से गुरु , हृदय कुण प्रिय , वीर्यवर्धक , बलवान मनुष्यों कुण हितकारी च। 
मलै वळि दही तै खूब छोळि  वामा इलैची , दालचीनी , तेजपात , जवाण , नागकेशर , गुड़, आदो ,सोंठ दगड़ मिलैक बणी रसदार ताकवर पुष्टिकारी , वीर्यवर्धक , स्नेहक बलकारी , रुचियुक्त हूंद।
गुड़ दगड़ दही स्नेहक , हृदय कुण प्रिय अर वातनाशी हूंद। २७४-२७६

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३६३
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ

Bhishma Kukreti:
धिक्कार ! बामपंथी इतिहासकारो !
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शरबत  दुनिया का पहला  सॉफ्ट ड्रिंक नहीं है !
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  चरक संहिता व सुश्रुत संहिताओं में  कई प्रकार के सॉफ्ट ड्रिंक्स (ठंड पेय ) का वर्णन मिलता है किन्तु भारतीयों को सिखाया जाता है कि दुनिया में शर्बत पहला सॉफ ड्रिंक है और भारत में मुगलों ने इसे भारत से परिचय कराया।
 बामपत्नी इतिहासकारों का यह घोङोना रूप है। 
आसुत  , कालामल (शर्बत )
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  २८२  बिटेन २८३    तक
  अनुवाद भाग -  ३४०
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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शुक्त (चुक्र ) निर्माण हेतु -गुड़ , शहद , कांजी सहित धान क ढेरम धरण से चुक्र निर्माण हूंद।  यु रस पित्तनाशक कफ तै पतळु  करंदेर , वायु अनुलोमक , हूंद।   , चुक्र म जु कंद फल आदि मिश्रित करे जावन तो ये तैं 'आसुत' बुल्दन।  सिरका म काळो  जीरो डळण पर से कालामल ह्वे  जांद  जु रोचक अर लघु हूंद।  ये कृतान वर्ग पर विडयों तैं  ध्यान दीण  चयेंद। २८२ -२८३
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३६४
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ

Bhishma Kukreti:
बनि बनि तेलों गुण व चरित्र 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  २८४  बिटेन   २९३ तक
  अनुवाद भाग -  २४१
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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आहारयोगि  वर्ग

तिलक तेल कषाय , अनुरस , स्वादु , सूक्ष्म , उष्ण , व्ययवायी , छिद्रों म पॉंचण  वळ , पित्तकारी , मल मूत्र रुकण वळ, पर कफ नि बढ़ांद।  वातनाशी , औषधियों म श्रेष्ठ , बलकारी , त्वचा कुण लाभकारी , बुद्धि व अग्नि वृद्धिकारक, संयोग व संस्कार करण पर रोगनाशी हूंद ।  प्राचीन कालम ये तेल प्रयोग से दैत्यविपति , बुढ़ापा रहित , विकारशून्य , परिश्रम सहन करणै शक्ति , नि थकण वळ , युद्ध म बल  लाभ सिद्ध ह्वे छौ।
    १ - एरंडी तेल -मधुर, गुरु , कफ वृद्धिकारी , वातरक्त , गुल्म , हृदयरोग , अजीर्ण , ज्वर नाशी हूंद।
 २- राई /सरसों तेल -कडु , रक्त पित्त तै दूषित करण वळ , कफ , शुक्र अर  वायु नष्ट करण वळ , कण्डु व कोठ नाशी च , सरसों तेल खाण से रक्त पित्त दूषित हूंद पर मालिस से ना।
 ३- पियाल या चिरौंजी तेल - मधुर , गुरु , कफ वृद्धिकारी , भौत गरम  नि  हूण से वात पित्त क सम्मलित विकारों म हितकारी च। 
४- अलसी तेल - मधुर , अम्ल , विपाक , म कटु , उष्णवीर्य , वात रोगम  हितकारी , रक्त -पित्त तै कुपित करदो .
५- धणया तेल - गरम , विपाकम कटु , गुरु , विदाही व सब रोगों तै कुपित करंदेर हूंद। 
जौं फलों से जु  बि  तेल निर्मित हूंद ऊं फलों क तेल फलों गुणानुसार समझण  चयेंद। 
 चिरायता तिक्तक , अतिमुक्तक , बहेड़ा , नरयूळ , बेर , अखोड़ , जीवंती , चिरौंजी , क़ुर्बुदार , सूरजबली , त्रपुस , ऐरायारू , ककरि , कृष्माण्ड आदि क तेल मधुर , मधुवीर्य,, मधुर विपाक वळ , वात पित्त  शांत करण वळ , शीतवर्य , मार्गशोषक , मलमूत्र कारी , अग्निवर्धक हूंदन।  मज्जा -वसा , मधुर रस , पुष्टिकारी , शुक्रवर्धक , बलकारी , हूंदन।  यूंक शीतता अर उश्णता प्राणियों अनुसार समजण  चयेंद।  जै प्राणी मांश उष्ण तो वैक मज्जा वासा बि उष्ण , जै प्राणी मांस शीत  टैक मज्जा बि शीत समझण  चयेंद।  २८४ -२९३। 


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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३६४ -३६५
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम ,चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना।  आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ

Bhishma Kukreti:

बनि  बनि मसाले, लूण  व छारों गुण  व लक्छण 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  २९४  बिटेन   ३०६ तक
  अनुवाद भाग -  २४२
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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सोंठ - थोड़ा स्निग्ध , अग्निदीपक , वीर्यवर्धक , गरम , वातकफनाशी, विपाक म मधुर , हृदय तै हितकारी व रुचिप्रिय हूंद।
हरी पिप्पली -कफकारी , मधुर , गुरु अर स्निग्ध हूंद।
सुखीं  पिप्पली - कफ वात नाशी , कटु , गरम व  वीर्यवर्धक हूंद।
काळी मर्च सूखी -बिंडी गरम नी , वीर्य तै न बढ़ाण  वळ , लघु , रुचिकारी , छेदन करण वळ , कफ आदि तै उखाड़ण वळ , कफनाशी व अग्निदीपक हूंद।
  काळी मिर्च  हरी अवस्था म स्वादु , गुरु व कफवर्धक हूंद।
हींग -वायु कफ नाशी , विवन्ध नाशी , कटु , गरम , अग्निदीपक , लघु , शूलनाशी अर पाचक हूंद।
सेंधा लूण - रुचिकर , अग्निवर्धक , आँखों कुण हितकारी , अविदाही , त्रिदोषनाशी , मधुर व लूणो म श्रेष्ठ च।
संचल लूण -सूक्ष्म , उष्ण , सुगंधित हूणन रुचिकर , विबंधनाशक , डंकार शोधक , हूंद।
काळो लूण - तीखो , उष्ण , व्ययायी (शरीर म फ़ैलण वळ ) , अग्निदीपक , शूलनाशी , वायु (अधो व् औरघवा द्वी )  अनुलोमन करंदेर हूंद। 
उदमिद् लूण -तीखो , कड़ु , छारयुक्त , वमन की रूचि पैदा करण वळ  हूंद। 
काळो लूणो  गुण संचल क जन हूंदन पर गंध नि हूंद ।  समुद्रो नमक मधुर हूंद। 
धोबीम  कपड़ा धूण  वळ लूण इन मिट्टी  से तैयार हूंद जु कड़ु अर टिकट हूंद।   
सब  लूण  रुचिकारक , अन्न पकाण वळ (सीजनिंग हेतु  बि ) , संस्री  व वातनाशी हूंदन।
जौ छार -हृदय , पाण्डु , ग्रहणी रोग , स्रीहा , ानाः रोग , गळरोग , कफ जन्य खासु , अर अर्श रोग नाशी हूंद।
सौब प्रकारा छार (टंकण , भुज्जी , पापड़ , छार आदि ) तीखा , उष्ण , लघु , रुखो , क्लेदि , अन्न व व्रण पकाऊ , पकयुं व्रण  तै फड़ण  वळ, जळाण  वळ , अग्निवर्धक , कफ तै फड़न वळ  अग्नि जन उष्ण गुण वळ  हूंदन । 
काळो अर मोटा जीरो रुचिकर , अग्निदीपक ,अर  वात कफ  दुर्गंध नाशी हूंद। 
खान पान म क्या क्या सही च क निर्णय करण कठण हूंद कारण  प्रत्येक मनुष्य क रूचि व शरीर विन्यास , स्थान -  ऋतू प्रभाव अलग अलग हूंद। 
आहारयोगी अध्याय समाप्त।  २९४- ३०६। 
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३६६ - ३६७
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022

Bhishma Kukreti:
शुकधान्य , शमी धान्य , मांस रसक गुण 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  ३०७  बिटेन ३१३   तक
  अनुवाद भाग -  २४३
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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शूकधान (चौंळ , ग्यूं आदि ) , शमीधान (मूंग , मसूर , उड़द आदि ) यी एक वर्ष पुरण म प्रशस्त हूंदन।  प्रायः पुरण धान्य रखा हूंदन।  जु धान्य बूणम शीघ्र जम जावो स्यु हळका हूंदन।  मूंग आदि क छुकल उतारी भून दिए जाय तो सि लघु ह्वे जांदन। ३०७-३०८।
ताज्य मांस - मर्यूं , कमजोर प्राणी क , भौत चर्बी वळ , बुड्या पशु , बाल पशु क , विष से मर्यूं , अपण प्राकृतिक स्थल छोड़ि अप्राकृतिक दुसर जगा म पळ्यूं , (जलीय देश का पशु तै मरुस्थल म पळ्युं ) , बाग़ आदि क मर्यूं पशु , ताज्य हूंदन।  यांसे विपरीत क मांस हितकारी, पोषक , बलशाली  हूंदन।   मांस रस पुष्टिकारी , सब प्राणियों कुण हितकारी , अर हृदय प्रिय हूंदन।  कृष हूंद , शुक द रोग से उठ्युं , निर्बल , बल चाहि पुरुष वास्ता मांस रस्सा अमृत जन हूंद।  मांस रस्सा सब रोगुं तै शांत करदार हूंद, स्वर कुण ठीक , आयु वर्धन ,बुद्धि अर इन्द्रियों कुण हितकारी व बलकारी हूंदन ।  जो पुरुष नित्य व्यायाम करदो , स्त्री संग शराब सेवन करद , नित्य मांस रस्सा सेवन करदन , लम्बी उमर पांदन, निर्बल नि हूंदन । ३०९ -३१३ 

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३६७-३६८
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022

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