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चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita

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Bhishma Kukreti:
अनुपान क गुण व हित
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान
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विधि   अध्याय   )   पद  ३१७  बिटेन  ३२३   तक
  अनुवाद भाग -  २४५
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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अनुपान  (जु कै औषधि तै शक्ति प्रदान करद ) - जु पदार्थ आहार गुण का विपरीत ,अर जु  धातु  विरोधी नि होवन अपितु सास्म्य रखद  होवन सि अनुपान प्रशस्त छन।  यव: पुरुषीय अध्याय म ८४ प्रकारक आसव छन।  जल पीण या नि विचार कोरी हितकारी जल पीण  चयेंद। वायुदोष म स्निग्ध अर उष्ण , पित्तविकारम मधुर अर शीतल , कफ म रुखो अर उष्ण अर क्षय म रस उपयोगी च। 
उपवास से , मार्ग चलण से , बिंडी या उच्च बुलण से , अति स्त्री संग वायु धुप , पंचकर्मों या अन्य कारणों से थकान म अनुपान दीण से अनुपान म दूध अमृत जन पथ्य व हितकारी हूंद।  म्वाट शरीर वळ तैं पाणि म शाद सेवन उत्तम च।  जौं तै मंदाग्नि ह्वावो , अनिद्रा ह्वावो , तंद्रा शोक , भय , कलम से थक्यां , मद्य मांस सेवन करण वळुं कुण मद्य अनुपान उपयोगी च।
अनुपान क गुण - अनुपान शरीर क क तर्पण /तृप्ति करद , शरीर अर  जीवन तै पुष्ट करद , तेज बढ़ांद , खायुं भोजन से मिलिक शरीर म मिल जान्दो, खायें भोजन तै पचांद ।  मिल्युं अन्न तै तुड़द अर अलग अलग करद।  शरीर म कोमलता लांद , आहार तै क्लिन्न करद , पचांद अर सुखपूर्वक पचैक, शीघ्र शरीर म पंहुचायी दीन्द।   ३१७ -३२३। 

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३७०
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022

Bhishma Kukreti:

भोजन ही रोग उतपन्न व रोग समाप्त करद
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 28 th  अठाईसवाँ  अध्याय   ( विविधशित पीतीय   अध्याय   )   पद  ४   
  अनुवाद भाग -  २५१
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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ये आहारन तीन वस्तु बणदन -  प्रसाद रूपी रस ,किट्टं या आहार भाग अर  मल।  यामादे किट्ट  भागन पसीना , मूत , मल , वायु , पित्त , कफ अर कन्दूड़ , आँख , दुःख , आज , कूप , प्रजनन का उपमान हूंद।  अर दाड़ी , बाळ , रोम , मूछ , नंग आदि तै पुष्ट कारी हूंद। 
आहारक रस रुपए प्रसादन रस , रक्त मांस , मेद , अस्थि , मज्जा , शुक्र , ओज तथा पृथ्वी - तेज , २ वायु , आकाश पंचभूत त  इन्द्रिय निर्मित करदन।  अत्यंत शुद्ध रूप म वायु , शरीर तै बंधण वळ स्नायु , शिरा अदि संधियां , आर्तव व दूध निम्रं करदन।  यी सब मल नामक धातु या प्रसाद रूप धातु , रस अर मल द्वारा पुष्ट हूंदा आयु अनुसार परिणाम से निर्मित हूंदन।  ये अनुसार शरीर क आपण  स्वरुप स्थिर हूण पर धातु साम्यवस्था म रौंदन।  प्रसाद रूप धातुओं क क्षय व वृद्धि जु निमित्त लेकि हूंदी वो आहार क कारण ही हूंद।  इलै  आहार द्वारा क्षय व वृद्धि का समय उतपन ह्वेका आरोग्यता उतपन्न हूंद।  इनि किट  व मल बि आरोग्य सम्पादन म सहायक हूंदन।  अपण परिमाण से बिंडी वड़ यां किट  अर  मल बि भैर निकाळि शीत  से उतपन्न मल तै उष्ण , उष्ण से उतपन्न हुयुं मल तै शीतपरिचर्या से मल शरीर क धातुओं तै समान्यवस्था म रखद।  मल का धातुओं सोत्र गमन करण का मार्ग छन अर सत्र जु जै  जैक छन  वो धातुओं तै पूर्ण करदन ।   ये प्रकार से  पूरो शरीर खायुं , पियुं , चाट्यूं , दन्तं काटयूं , आहार रुपया रस से भरपूर हूंद. रोग बि ये शरीर म खाइक , पैक , चाटिक , कातिक ही हूंद।  यूं  मदे हितकारी धातुओं सेवन हितकारी व अहितकारी धातु सेवन अहितकारी हूंदन। ४।   
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३७५ -३७६
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022

Bhishma Kukreti:

अपथ्य व पाठ्य भोजन से रोग कनै  हूंदन ?
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 28 th  अठाईसवाँ  अध्याय   ( विविधशित पीतीय   अध्याय   )   पद  ५   बिटेन   ६ तक
  अनुवाद भाग -  २५२
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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इन बुलद तब अग्निवेश न भगवान आत्रेय कुण  बोलि -हे भगवन संसारम दिखणम आंद कि जु मनिख हितकारी भोजन करदन सि रोगी दिखेंदान त अहितकारी भोजन करण वळ  बि रोगी दिखेंदन। 
भगवान आत्रेयन अग्निवेश कुण  ब्वाल - हे अग्निवेश ! जु हितकारी अन्न खांदन वूं  तै ये से रोग नि हूंद अर केवल हितकारी अन्न ही सब रोगों से बचाई सकदन।  अहित आहार छोड़ि बि रोगों  दुसर प्रकारै प्रकृति हूंद। ऋतू परिवर्तन , प्रज्ञापराध अर परिणाम , शब्द , स्पर्श , रूप , रस , गंध गंध का मिथ्यायोग ,  अतियोग,  आयोग हूण।  यी रोग का  कारण  आहार रसों क सम्यक उपयोग का  उपरान्त बि व्यक्ति म अशुभ लक्षण पैदा कर दींदन।  इलै हितकारी भोजन सेवन  करंदेर  बि  रोगी ह्वे जान्दन। 
इनि  जु अहित भोजन क उप सेवन करदन  वूंक जल्दी दोष चिन्ह नि मिल्दन।  किलैकि सम्पूर्ण अपथ्य रोगकारी नि हूंदन।  सब दोष समान शक्ति वळ बि  नि हूंदन।  सबि शरीर एकसमान रोग तै सहन नि कर सकदन। इलै अपथ्य देश चौंळ पित्तकारी छन किन्तु आनूप   देशक योग से बिंडी अपथ्य कारी ह्वे जांदन।  काल (हेमंत  म बलवान व शरद म निर्बल ) , वीर्य (संस्कार द्वारा उष्ण करण से पथ्य व शीत करण से अपथ्य ), प्रमाण व मात्रा क अतियोग से अपथ्यतम अर कम करण से निर्बल ह्वे जांदन ।  इनि  भौत सा कारणों मिलणन , विरुद्ध चिकित्सा हूण से गंभीर आशयों म , शरीर क भौत अंतर् प्रवेश से , शरीर म चिरकाल से जड़पकड़ से , शंख आदि क प्राणावयों  म   स्थित हूण से , मर्म स्थलों तै पीड़ित करण से , भौत दुःख दीणो कारण , शीघ्र विकार उतपन्न करण से , अपथ्य बलवान बण जांद।  इनि भौत म्वाटो , भौत कृश , जौंक मांस , रक्त , हड्डी , ढीला या कमजोर ह्वे  गे होवन , जैक शरीर विषम हो , जु असात्म्य भोजन सेवी हों , थोड़ा खाण वळ ह्वावो , अलप सत्व वळ रोग सहन नि कर  सकदन।  इलै अपथ्य आहार दोष शरीर की विशेषता से रोग  मृदु , दारुण , शीघ्र हूण वळ , अन्यथा देर से हूण वळ हूंदन।  हे अग्निवेश ! इलै वात , पित्त , कफ विशेष स्थलों म कुपित ह्वेका बनि बनि रोग उत्तपन्न करदन।  ५ -६। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   --३७८ -३७९ 
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022

Bhishma Kukreti:

रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि , शुक्र आदि   जन्य रोग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 28 th  अठाईसवाँ  अध्याय   ( विविधशित पीतीय   अध्याय   )   पद   ७ बिटेन १८   तक
  अनुवाद भाग -  २५३
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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यूं मदे रस आदि स्थानुं म कुपित वात  आदि दोष,  जै जै स्थान पर जु जु  रोग उत्तपन्न करदन सि बुले जाल - अभद्र , भोजन म श्रद्धा नि हूण, अरुचि , भारीपन , तंद्रा , शरीर म पीड़ा , जौर , तम , अन्धकार , पाण्डु वर्ण , सूत्रों म अवरोध , नपुंस्कता , शिथिलता , सरैलौ दुर्बलता , जठरग्नि क नास , असमय झुर्रियां , आंख्युं सफेद हूण यी रसजन्य रोग छन।
रक्तजन्य रोग बुल्दां - कुष्ठ , बीसर्प , पिंडकायें , रक्त पित्त , रक्तप्रदर , गुदपाक , शिशिनौ पकण , प्लीहा , गुल्म , बिदृचि नीलिका , झांई , कामला , विप्लव , टिल जन मस्सा , दाद , चर्मदल श्वित्र , पामा , कोठ , रक्तमंडल यी रक्तजन्य रोग छन।
मांस जन्य रोग बुल्दां -अधिमांस , अर्वुद , कील , गलशालुक (गौळ म शोथन बढ्यो मांस  ), गळशुण्डिका , पूतिमांस , अब्जी , गळगंड , गंडमाळा, उपजिवहिका , यी मांसजन्य रोग छन।
मेद जन्य रोग -  प्रमेय क निन्दित  पूर्वरूप (बाळुं जटिलता , अति स्थूल क आयु ह्रास ) जन ८ रोग या स्थूलता जन्य आयु ह्रास मेद जन्य रोग छन। 
हड्डी तौळ दुसर  हड्डी आण , अधिदन्त , दंतमैद , दांत दूखण , हड्डी डाउ , बाळ , रोम व नंग क रंग, दाड़ी  मूछ  रंग  बदलेण , यी अस्थि जन्य रोग छन।
जोड़ों  म डाउ , चककर आण , मूर्छा , आंखूं समिण  अंध्यर हूण , व्रण , छुटी छुटि फुंसी हूण,  जोड़ुं म गांठ  यी सौब मज्जा जन्य रोग छन।
शुक्र दोष से नपुंसकता , संतान रोग , संतान नपुंसक या कम आयु क हूण , गर्भ स्खलन आदि हूंदन। दुषित शुक्र बच्चा व स्त्री दुयुं तै दुःख दीन्द।  १७ -१८। 

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   -- ३८०
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022


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