Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 19018 times)

Bhishma Kukreti

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छतरु , लाठो /टिक्वा  गुण लाभ व पंचों अध्याय की समाप्ति

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , पंचौं  अध्याय ,  ९९  बिटेन  -   १०९ तक
  अनुवाद भाग -   ५१
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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छतरु लाभ -
छतरु भावी दुःख शान्तकरण वळ , बुर प्रभावों तैं रुकण वळ ,हूंद।  छतरु से घाम , बरखा , धूळ से रक्षा हूंदी।  ९९। 
डंडा /टिक्वा लाभ -
टिक्वा, लाठो  या डंडा मनिख तै भ्यूं पड़न से रुकद , शत्रु से सुरक्षा दीन्दो , गुरौ , कीड़ पिटक  से बि रक्षा कारी च।  १००। 
स्वस्थ वृत्त संक्छिप म -
जै भाँति  नगराध्यक्ष राजा नगर अर रथी अपण रथौ रक्छा करद तन्नी बुद्धिमान तैं अपण सरैलौ कर्तव्यों म सावधान रौण  चयेंद।  १०१। 
जु धर्मौ अविरोधी कार्य ह्वावन वूं  कररयों तै करण इ चएंदन।  शांत वृति अर शास्त्र जन  वेद अध्ध्य्यन से मनिख तै  सुख मिल्दो।  १०२।
ये अध्याय म मात्रा तै लक्ष्य करि द्रव्य , मात्रा , गुरु , लघु , ज्ञान , अवांछित द्रव्य, अर  जौं जौं पदार्थों हभ्यास करण  चयेंद  सब बताइ  याल। १०३। 
धुप वत्ति तीन प्रकार,प्रायोगिक , वैरेचिक , अर स्नेहिक धूम की कल्पना , धूम्रपानौ गुण , धूम्रपानौ समय , धूम्रपानौ फल , धूम्रपानौ हानि , अर यूं हान्युं कुण औषध , जौं कुण धूम्रपान निषिद्ध च, धूम्रपान कन पीण चयेंद, नळिका क्यांक अर कनै निर्माण हूण चयेंद, बि बोलि याल।  नस्य कर्मौ लाभ , निर्माण विधि,  नस्य लीणो समय अर विधि, दंत धावन गुण , मुखम धरण वळि वस्तु , तेल गण्डूष /मालिश का गुण,  मुंड पर तेल लगाणो लाभ, कंदूड़ुंद तेल डाळणो गुण , खुट अर सरैल पर तेल लगाणो लाभ , उबटन व स्नान का लाभ व गुण, शुद्ध वस्त्र , माला, सुगंधित द्रव्य।  रत्न धारण करणो गुण, शुचि कर्म  का बाळ कटणो , जुत , छतरु , लाठ /टिक्वा धारण करणो गुण , लाभ यि सब ये 'मात्रविशेष' अध्याय म बुले गेन।  १०४-१०९। 
  ----------------------------चरक संहितौ  सूत्रस्थान का पंचों अध्याय 'मात्रविशेष'  समाप्त --------------
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charaka Samhita,  First-Ever Garhwali Translation of Charaka  Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of Charaka Samhita


Bhishma Kukreti

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भौं  भौं ऋतु   अर मनिखोंम बल /शक्ति

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  छठो   अध्याय  'तस्यशितीय' ,  १   बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   ५२
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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एक अगनै 'तस्यशितीय'   नामौ अध्यायै  व्याख्या होली।  इन भगवान आत्रेयन बोली।  १- २। 
परिमित /सीमित मात्राम भोजन करण वळ व्यक्ति क भोजनम खाण -पीण से बल, बर्ण या रंग ,कांति , सुख अर आयु वृद्धि हूंदी।  मात्राशी व्यक्ति का सात्म्य ऋतु गुणो  विरुद्ध चेष्टा , व्यायाम , अभ्यंग आदि आहार, खाण पीण , चटण , का अभाव  पर ही ऋतुओं सात्म्य /प्रकृति क अनुकूल  बि  जणे जांद। ३। 
ये संसार म एक वर्षम छह ऋतू बिभाग से जणे  जांद।  जब भगवान सूर्य उत्तरायण हूंदन तो  आदान या ग्रहण काल  बणद , ये से शिशिर , वसंत अर ग्रीष्म ऋतू बणदन।  अर जब सूर्य दक्षिणायन हूंद तो विसर्ग काल हूंद अर वर्षा , शरद अर हेमंत तीन ऋतू बणदन।  ४। 
'विसर्ग 'कालम वायु बिंडी रूखि  नि बगदी  अर ग्रहण /आदान कालम बिंडी  रूखी हूंद।  किलैकि  विसर्ग  कालम चन्द्रमा बल परिपूर्ण हूंद।  चन्द्रमा  शीतल किरणों से जग पोषण करदी, जगत को नित्य बथ्वान करद , इलै विसर्ग काल सौम्य च।  आदान काल आग्नेय च।  इलै सूर्य, वायु अर  चन्द्रमा समय का  स्वाभाविक  मार्ग  पर चलदा काल , ऋतू , रस , दोष , शारीरिक बल बणानो कारण हूंदन।  ५। 
आदान कालम सूर्य अपण  किरणों से स्निग्धता / तरी ले लीन्दो, इलै  वायु तीब्र, तीखी, रूखी, सुखांद चलदी। यांसे शिशिर , वसंत अर ग्रीष्म क्रमशः रूखोपन आंदो। ये रूखोपन से रूखोरस , तीखो , कड़ो, कसैला रस वृद्धि ह्वे जांद।  यूं रसुं वृद्धि से मनिखों म निर्बलता आयी जांदी। ६। 
वर्षा, शरद  अर  हेमंत ऋतुम जब सूर्य दक्षिणायन ह्वे जांद कालक स्वाभाविक मार्गो  कारण बादल, वायु ,  बरखा कारण  सूर्यो तक दुर्बल ह्वे जांण  से चंद्र बल निर्बल नि हूण से , वर्षा जल का कारण गर्मी शांत हूण से संसार म अरुखो अर स्निग्ध रसुं  वृद्धि ह्वे जांद।  यांसे अम्ल , लवण , अर मधुर क्रमशः वर्षा , शरद  अर हेमंत म बढ़ जांदन।  यूं रसुं  वृद्धि से मनिखों बल म वृद्धि हूंद।  ७। 
वसर्ग अर आदान काल का अंत म मनिखों सरैलम दुर्बलता आंदि।  जनकि विसर्ग का आदिकाल वर्षा म अर आदान अंतम ग्रीष्म ऋतुम मनिखों म दुर्बलता रौंदी।  द्वी कालों मध्य म (शरद अर वसंत ) बल हूंद।  विसर्ग अंत (हेमंत ) अर  आदान काल क पैल (शिशिर ) मनिखों बल बढ्युं  रौंद  . ८। 
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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Bhishma Kukreti

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  शीत , हेमंत अर  शिशिर ऋतू का आहार -व्यवहार

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  छठो   अध्याय ,  ९  बिटेन  - २१  तक
  अनुवाद भाग -   ५३
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
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हेमंत कालै परिच्चर्या - हेमंत रूपी शीत काल म शीतल वायु से जठराग्नि सरैल से भैर नि  आंदी अपितु भितर रुक जांद अर प्रबल ह्वे जांद।  इलै  हेमंत म इ  जठराग्नि  अधिक मात्रा म भोजन पचाणम   समर्थ  हूंदी।   ये समौ जु सरैल तै भोजन नि मीलो तो जठराग्नि सरैलौ रस नष्ट करण मिसे जांद।  इलै शीत कालम   ठंड वृद्धि से वायु बि बढ़द। 
यीं वायु वृद्धि तै रुकणो कुण स्निघ्ध , अम्ल अर लुण्या पदार्थ खाण चयेंद।  चर्बी वळ जलचरों क  मांस रस ,   बिल म रौण वळुं  मांस रस , कुखुड़ जन  पक्छियों मांस, खाण  चयेंद।  मांस खाणो उपरांत गुड़ै  दारु  अर शहद पीण चएंद।  दूध , दही , मावा व गन्ना रसौ खीर , राव , शक़्कर आदि बणी वस्तु , वसा, तेल अर नया चौंळ  खाण चयेंद।  हेमंत कालम स्नान म गरम पाणी प्रयोग से आयु कम नि  हूंदी।  तेल मर्दन, उबटन, मुंड पर तेल मालिश , घाम तपण , भूमितौळौ घरों रौण, भितरखंड म रौण , घर  तातो  रखण, भल प्रकार से घिर्यूं घर म रौण , आसन या सवारी करदा  दैं  झुल्ला  खूब लिपट्यां  ह्वावन जां  से शीत  न लग़ ।९-१४। 
भारी कमुळ , मृगै छल , रेशमी कमुळ ,गद्दा आदि  बिछैक भारी झुल्ला पैरिक , मनुष्य अंगों पर अगर लेप करे।  भारी ,  उन्नत स्तन    धरी कामवती स्त्री, अगर लेप वळी स्त्री  दगड़  कामेच्छा का साथ सीण चयेंद।  शिशिर ऋतू म मैथुन यथेष्ठ करण चयेंद।  हेमंत ऋतू म ताज्य , लघु गुण वळ व वायु प्रेरक आहार विहार हेमंत म छोड़  दीण चयेंद।  समिणा वायु , पाणी म घोलि सत्तु   खाण  छोड़ दीण चयेंद।  १५-१८। 

हेमंत अर शिशिर ऋतू प्रायः शीत दृष्टि से सम छन।  किन्तु शिशिर काल अर हेमंत म इथगा  भेद च कि  शिशिर काल कु आदान काल हूण से वायु रूखी हूंदी,अर  वायु व शीत अधिक हूंद। इलै शिशिर ऋतू म हेमंत ऋतू की सम्पूर्ण विधि अपनाण  चयेंद। किन्तु शिशिर ऋतू म हेमंत से अधिक गर्म , बंद घरों म रौण  चयेंद।  शिशिर कालम कडुवा,  तीखो , कसैला , वायु कारक अर लघु व ठंडो भोजन नि खान -पान  चयेंद /छोड़ दें। १९, २१।   

 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
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सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
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वसंत  अर ग्रीष्म  ऋतू चर्चा

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत)
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  छठो   अध्याय ,  २२  बिटेन  ३२ तक
  अनुवाद भाग -   ५४
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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हेमंत कालम कट्ठा हुयुं कफ सूर्य किरणों से घी जन गळण  शुरू हूंद तो यु कफ द्रव्य कफजन्य रोग पैदा करदो।  िलै वसंत ऋतू म कफ निकाळणो  कुण वमन , शिरोविरेचन करण  चयेंद।  व्यायाम , उबटन , धूम्रपान , गरारा, करण  चयेंद अर अंजन लगाण  चयेंद।  नयाण अर सूची म गरम  पाणी प्रयोग करण  चयेंद (पीणम ना )।  सरैल पर चंदन अर अगर कु लेप करण  चयेंद।  जौ , ग्यूं, बारासिंगा, शरभ , खरगोश , हिरण , बटेर , कटफोड़ा  मांस भक्षण करण  चयेंद।  कफ नाशक अंगूर रस से बणी  सुरा पीण  चयेंद।  वसंत म युवतियों दगड़  व वन म मनोरंजन युक्तिसंगत च।  २२- २६। 
ग्रीष्म (रूड़ी )  ऋतु  चर्चा -
ग्रीष्म ऋतू म सूर्य किरण संसार का सार खैंचदन तो ये समय मिठु , ठंडु द्रव पीण चयेंद अर स्नेहल  जन घी सेवन हितकारी च।  ठण्डु अर शक़्कर मिश्रित सत्तू खाण से , मांस खाण से , घी दूधक दगड़  चौंळ खाण  से कष्ट नि हूंद।  यी समय सुरा पान ठीक नई हूंद जु पीणी हो  तो बिंडी पाणिम पीण  चयेंद।  नमकीन , खट्टा , कडुवा ,  व्यायाम , गरम रस ये समय छोड़ दीण चएंदन।  दिनम  ठंडो कूड़म रौण चयेंद ,रातिम जूनी तौळ  खुला म  शरीर पर चंदन लेप कौरिक सीण  चयेंद।  चंदन या पाणी से ठंड कर्यां  पंखा झलण चयेंद अर  मोती -मणियों युक्त  पलंग पर सीण  चयेंद।  फूलों सेवन भलो हूंद।  मैथुन से अलग रौण  चयेंद।  २७-३२। 

 
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Bhishma Kukreti

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बरखा , शरद ऋतु का  आहार व्यवहार

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत)
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  छठो   अध्याय , ३३   बिटेन -  तक
  अनुवाद भाग -   ५५
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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आदान कालम सरैलौ  निर्बल हूण  से अग्नि बि  निर्बल ह्वे जांद।  या अग्नि वरखा ऋतुम वायु , पित्त अर कफ तिन्न्यूं से दूषित ह्वे जांद।   रुड्यूंम प्रचंड सूरजै तापन   भूमिक तपण से , बरखा म बरखा बरखण से ,पाणी भिड़याण (स्पर्श ) से , भूमि ब्रिटेन भाप उब मथि  आण न तिन्नी दोष कुपित ह्वे जांदन।  इनि बादळुं बरखण (अति humidity ) से वात , कफ कुपित ह्वे जांदन।  जल कु अम्लपाकहूण  से पित्त कुपित हूंद।  बरखा ऋतुम अग्नि बल क्षीण हूण से वात , पित्त अर कफ तिन्नी कुपित ह्वे जांदन।  इलै बरखा ऋतुम साधारण विधि अपनाण चयेंद।  पाणीम घुळ्यूं सत्तू , दिनम सीण , ओसौ पाणी पीण , सम्भोग, धुप सेवन नि करण  चयेंद अर व्यायाम बी हीन।  प्रायः करिक  शहद उपयोग करण  चयेंद।  बरखौ दिनों म जैदिन वायु , बरखा अर  वायु तीब्र हो , जड्डू बी तीब्र हो तैदिन वायु शांत करदार अम्ल , लवण स्नेह घी अर  जु अन्न स्पष्ट पारदर्शी सि हो विशेष रुप से खाण चयेंद।  अग्नि रक्षा हेतु ग्यूं , जौ , पुरण चौंळ , जंगळी पशु मांश, अर घीयुक्त भोजन, दाळक पाणी  सही च।  पित्त शान्ति बान शहद मिलायुं  द्राक्षासव या शहद मिलायुं पाणी पीण  चयेंद।  बरखा ऋतुम आकाशौ स्वच्छ पाणी , व  कुंवा , झरना पाणि गरम कौरी ठंडो करीक  पीण चयेंद।  तेलौ मर्दन /मालिश , उबटन लगाण, नयाण , सुगंध धारण,मला धारण  सुखो स्थानम रौण -खाण -चलण, हळको वस्त्र पैरण   आदि कार्य बरखा ऋतुम  करण  चयेंद। ३३-४०।   
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शरद ऋतु परिचर्चा -
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बरखा ऋतुम काल स्वभाव से संचित पित्त शरद ऋतुम , सूरजौ हटण  से अचाणचक कुपित ह्वे  जांद।  इलै ये ऋतुम मधुर , लघु, शीत , तीखो, पित्तनाशक भोजन उचित मात्रा म खाण -पीण  चयेंद।  बटेर, कठफोड़ा, हिरण , मिर्ग , खरगोश , ढिबर , बारासिंगा आदि शिकार , ग्यूं , चौंळ , जौ , शरद ऋतुम  खाण  चयेंद।   शरद ऋतुम तीखी औषधियों , से पंचीकृत घी , विरेचन, रक्तमोक्षण , शिरावेध , जोंक आदिन रक्त निकाळण  चयेंद , अर धूमपान नि करण चयेंद।  शरद ऋतुम चर्बी , तेल,
ओस , पाणी पशु मांश , क्षार , दही , दिन म सीण।, समिण बटे पूर्वीय वायु नि  लीण  चएंदन।  ४१-४५। 
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हंसोदक लक्षण -
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दिनम सूरजौ किरणों से तप्युं रातिम  जूनि किरणों से शीत हुयुं  काल स्वभाव से पक्यूं अर्थात बरखा जल बिहीन , ये से दोष रहित , अगत्स्य नक्षत्र उदय से प्रभावित निर्मल, विषरहित, पाणी  तै हंसोदक या चण्डार्क बुल्दन।  यु हंसोदक शरद ऋतुम निर्मल अर  पवित्र च।  इलै नयाणम , पीणम , डुबकी लगाणम , पाणीम बैठणम आदि कार्योंम उचित व अमृत समान च।   रात्रि पैलो प्रहरम चंद्र किरणों सेवन अर शरद कालीन माला , निर्मल  वस्त्र कार्य संपादन सही छन।  ४६-४८। 
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 चेष्टा क्रिया अर आहार या विहार /पर्यटन  ऋतू अनुसार सब बताये ऐन।  पुरुष /व्यक्ति क प्रकृतिनुसार जु  उचित हो वै  तै 'आक: सात्म्य' बुल्दन। 
जु  आहार बिहार , देश (जागल , अनूप अर साधारण ) एवं रोग यूंको विपरीत गुण  वळ  हों  वूं   आहार विहार तैं 'सात्म्य' बुले जांद।  ४९-५०।
प्रत्येक ऋतुम मनिखों तैं क्या क्या खाण -पीण  चयेंद , अर क्या क्या नि सेवन करण  चयेंद अर कारण रुपसात्म्य बि ये 'तस्यशितीय' अध्याय म बुले गे।  ५१।
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    ये प्रकार से II  सूत्रस्थानक कु   तस्यशितीय' नामौ  छठो अध्याय सम्पन ह्वे II

 
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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
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चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charaka  Samhita,  First-Ever Garhwali Translation of Charaka  Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charaka Samhita


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न वेगान्धारणीय (मल मूत्र, वीर्य , पाद  वेग रुकण ) ,  व्यायाम  अध्याय 

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  सतों   अध्याय ,  १  बिटेन  ३८  तक
  अनुवाद भाग -   ५६
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
- विरेचन द्रव्यों
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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मल मूत्रादि वेगों रुकणो हेतु " न वेगान् धारणीय' नामौ अध्यायौ  बखान  (व्याख्यान ) करे जाल।  जन भगवान आत्रेयन बोली। १, २ । 
बुद्धिमान मनिख तैं  आयीं मूत  या  उपस्थित हुयुं मल  वेग नि रुकण  चयेंद।  इनि शुक्र , अपान वायु, वमन , छींक , डंकार, जमै , भूक, तीस, हर्ष या दुःख से अयां  आंसू , नींद , थकानै  कारण  दुस्वासी  वेगों तै बि  नि  रुकण  चयेंद।  यूं अयां  वेगों तै रुकण  से जु  जु  बि  रोग हूंदन उन्कुण अलग अलग चिकित्सा च तो सूणो।  ३ -५।
आयूं  मूत  तै रुकण से बस्ती (मूत्राशय ) अर  लिंग पर डा  हूंद , मुतणम कष्ट हूंद , मुंडर हूंद , शरीर झुकद जां से पेडु पर जकड़न या फुलाव  हूंद।   यि लक्षण मूत रुकण  का छन।  ६। 
पसीना लीण , गर्म पाणी  नांद /टब  म बैठण , तेल मालिश , घीयक नस्य लीण , तीन प्रकारौ बस्ति  (निरहण ,अनुवासन, अर उचर बस्ति )  मूत वेग रुकणो प्रतिकार छन।  ७। 
मल वेग रुकण से नाभि  तौळ  डा अर    मुंडर  हूंदो।  पाद अर  मल बंद ह्वे जांदन।  पिंडलियों म  ऐंठन अनुभव हूंद।  पुटुक उगाण  याने पुटुक  फुलण  मिसे जांद।  ८। 
इनमा  पसीना दीण ,  गरम पाणी  नांद म बैठण चयेंद , फलवर्ति अर  बस्तीकर्म  करण  चएंदन।    विरेचन द्रव्यों कु घी अर  तेल आदि  द्वारा चूर्ण , क्वाथ , कल्कादि  रूप म बणै  दीण  चयेंद।  अर वात तै अनुलोमन (गाँठ /गोता ढिलो करणै  क्रिया ) वळि  औषधि  रुक्यूं मलम हितकारी हूंद।  ९। 
  आयुं  वीर्य तै रुकण  से लिंग अर  दाणों (अंड कोष ) म डा  हूंद , अंग टुटणो  अनुभव हूंद , चेतना स्थान म वेदना हूंदी ,अर   मूत  बि रुक जान्दो।  १०। 
तेलमर्दन , द्रोणस्नान , सुरापान , कुखड़ो शिकार, हेमन्तिक धान्य ,दूध , बस्ती कर्म अर मैथुन कर्म यी वीर्य रुकण से हुयी व्याधि क चिकित्सा च।  ११। 
पाद रुकण  से पाद , मूत अर हॉग /पुरीष रुक जांदन।  पुटुक उगै  जांद , थकान लगद, पेट पीड़ा अर  हौरि  वातजन्य रोग ह्वे  जांदन।  १२। 
तेल -पसीना दीण  चयेंद।  फलवर्तियाँ , वातनाशी खान पान अर बस्तिकर्म  उत्तम  छन।  १३। 
वमन रुकण से खज्जि , कोढ़ , भोजन अनिच्छा, झाईं , मुख पर काळ -काळ  दाग , सूजन , पाण्डु रोग , जौर, वमन रूचि, ज्यू मचलाण  जन   व्याधि  हूंदन,।  १४। 
खाणो देकि उल्टी कराण चयेंद , धूम्रपान , उपवास/लंगड़ , शिरोव्यधन  से रक्त निकाळण  चयेंद।  रूखो अन्न पान , व्यायाम , विरेचन यी उपाय उत्तम छन। १५। 
  छींक  रुकण से गळम  जकड़, मुंडर , मुख पर लकवा , अधस्वासी, आँख आदि इन्द्रियों म दुर्बलता आयी जांद।  १६। 
चिकित्सा - गौळ का आस पास मालिश , पसीना दीण , धूम्रपान , नस्य, वातनाशी भोजन अर  भोजनो परांत  घी पिलाण  हितकारी छन। १७। 
डकार रुकण पर हिचकी /डक्की आंदन , स्वास , भोजन अनिच्छा, मुंड अर छाती कमण, जिकुड़ रुकण  जन व्याधि   ह्वे जांदन।  डकार रुकण से उतपन्न व्याधि कुण  हिचकी समान औषधि करण  ठीक च। १८। 
जमै रुकण  से सरैल झुकद , हाथ खुटुं कमण , पर्वसन्धियों म आकुंचन, अंगुं  से जाण , कम्पण -हलण  आदि हूंदन।  चिकित्सा कुण  वातनाशी उपचार करण  चयेंद।  १९। 
भूक रुकणन दुर्बलता, मुखौ रंग बदलण , अंग -प्रत्यंगो म डा , भोजन अनिच्छा , चक्कर आण जन व्याधि हूंदन।  चिकित्सा स्निग्ध , हळको भोजन लीण चयेंद।  २०। 
तीस रुकण / भौत देर /दिनुं  तक पाणि नि पीण  से गौळ  अर मुख खुश्क ह्वे जांद  , बैरोपन / बहरापन, थकान , श्वास, दम चढ़ण , हृदय स्थल म डा, जन लक्षण छन।  चिकित्सा - ठंडो जल , तृप्ति करण वळ खान पान उत्तम च।  २१।
आंसू रुकण  से नाकुंद  पाणि आंण ,कफ हूण , आँखूं  रोग , हृदय रोग , भरम , अनिच्छा आदि हूंद।  चिकित्सा - नींद , मदिरा पान , ांददायी बातचीत करण।  २२।
नींद रुकण से जमै , अंग टूटण , मुंडरु , आँख भारी ह्वे  जांदन।  चिकित्सा - नींद लाण , हथ खुट दबाण कल्याणकारी च।  २३। 
थकौटो  उत्पादित  निस्वास रुकण  से गुल्म रोग , हृदय रोग ,  मूर्छा हूंद।  यांकुण विश्राम अर उपचार आवश्यक च।  २४। 
उपस्थित वेगों तैं  रुकण से उत्पन्न रोगुं बाराम बुले गे।  रोग वचाव का सौंग  कार्य च वेग न रुके  जाय।   २५। 
युलोक अर परलोक की  हित कामना  करण वळ तैं चयेंद कि  वो यूं  वेगों तैं  धारण कारो - जन अयोग्य अनुचित साहस अर मन , वाणी  अर सरैलो  निन्दित कर्म का उपस्थित वेगों तै रोके। 
मन का निन्दित कार्य जन लोभ , अनुचित विषय म प्रवृति, धन बांधवों कारण दुःख म मन की प्रवृति,  भय , क्रोध  (ईर्ष्या म जळण ) द्वेष,  बैर , दूसरौ अपकार करणो  मनम प्रवृति , मान , महत्व , अभिमान म मन की प्रवृति , दुसरै  निंदा , लज्जा आभाव , कुढ़ण , दुसरौ  द्रव्य लीणै  बुद्धि प्रवृति (चौर्य ), इन मन की नकारात्मक वेगो तै  रुकण चयेंद। 
वाणी क निन्दित कर्म जन - कर्कश , कठोर , दूसरौ निंदा हानि करण संबंधी  झूठी वाणी  तैं रुकण चयेंद।
सरैलौ  निन्दित कर्म -दुसर तै दुःख दीणो  शारीरिक चेष्टा ,  पर स्त्री गमन, चोरी , हिंसा, आदि शारीरिक वेगों तै रुकण  चयेंद।
अपण आत्मा प्रतिकूल जो भी कार्य होवन  वो दुसरा कुण  नि करण  चयेंद।  मनिख मन।, वचन , कर्म /शरीर से पापरहित ह्वेका इ  पुण्य भागी हूंद।  वैमा पुण्य तबि  सार्थक हूंद जब वो धर्म , अर्थ अर काम से बि पुण्य हो अर  तबि सुखो भोग कर सकद।  २६- ३०।
व्यायाम -
जु सरैलो चेष्टा सरैल तै स्थिरता , दृढ़ता बान करे जांदन वूं तैं  'व्यायाम ' बुल्दन।  ये व्यायाम तै मात्रा म इ  करण  चयेंद। 
व्यायाम क गुण -
व्यायाम करण से सरैल हळको , काम करणो  शक्ति वृद्धि, सरैल अर यौवन म टिकाऊपन , दुःख सैणै सक्यात, वात आदि दोष शमन हूंद अर जठराग्नि प्रदीप्त हूंद।  ३१-३२। 
बिंडि  व्यायाम से हानि -
शरीर की थकान , मन व इन्द्रियों म थकान , धातुओं कु क्षय , रक्तपित्त रोग , प्रतमक, संगीक स्वास, खांसी , ज्वर, अर वमन बिंडी व्यायाम से हूंदन।  ३३। 
अधिक परिश्रम, हंसण , ऊंचो या बिंडि बुलण , बिंडी चलण , बिंडी मैथुन ,  बिंडी रात भर बिज्युं  रौण , यूं  उचित कार्यों तै बि मनिख  तै अधिक नि करण  चयेंद।  हानि इनि हूंद जन हाथी शेर तैं खैंचद।  इलै बुद्धिमान मनिख तै चयेंद कि  वो इन दुखदायी कार्यो से दूर ह्वे  जावो।  ३४-३५। 
हितकारी कार्यों सेवन करण  चयेंद , अब इखम  कर्म से बताये  जाल।  छुड़न लाइक कार्य तै चौथाई करी कर्म से करण  चयेंद।  फिर द्वी अर फिर तीन भाग छोड़ि ग्रहमं करण चयेंद।  अर्थात छुड़न वळ अर  संचय करण वळक चार चार भाग करण  चयेंद।  छुड़न वल एक भाग छोड़ी संचय वळ  एक भाग ग्रहण करण  चयेंद।  तब द्वी भाग छोड़ी द्वी भाग ग्रहण करण चयेंद।  तब तीन भाग छोड़ि तीन भाग ग्रहण करण  चयेंद।  पुनः सरा  छोड़ि सरा ग्रहण करण  चयेंद।  ग्रहण करद दैं द्वी चार दिनों अंतर् हूण  चयेंद।  छुड़न योग्य कर्म का चौथो भाग छोड़ि ग्रहण करण योग्य तै चौथो भाग ग्रहण करण।  तिसर दिन आधा छुड़न अर अदा  ग्रहण करण  चयेंद।  तब हैंको दिन  तीन भाग छोड़ी तीन भाग ग्रहण करण  चयेंद।  हैंक दिन सरा छोड़ि सरा  ग्रहण करण  चयेंद।  उपरोक्त विधि से हानिकारक कर्मों क दोष समाप्त हूंदन अर लाभदायी फल ज्यों का त्यों  रौंदन।  हितकारी पदार्थ बि  अचाणचक लीण  से अरुचि अर अग्निनाश करदन इलै यूं तै बि  कर्म से  इ लीण  चयेंद।  सरैल की प्रकृति ज्ञान बि  आवश्यक च किलैकि एककार्य /  पदार्थ कैकुण हानिकारक हूंद टी हैंकाकुण  लाभदायी बि।  ३६-३८। 
 


 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , सही  वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस पृष्ठ ९४ से शुरू १००
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charaka  Samhita,  First-Ever Garhwali Translation of Charaka  Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charaka Samhita   








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मल  मूत्र रोग निदान व व्यायम चर्चा

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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  सतों   अध्याय ,  ३९  बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   ५७
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  (अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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कुछ मनिख जन्मकाल या गर्भकाल  बिटेनि पित्त , वायु या कफ की असमानवस्था वळ  हूंदन अर कुछ गर्भकाल बिटेनि वात्त प्रकृति वळ , पित्त प्रकृति वळ अर कफ प्रकृति वळ हूंदन।  यूं मधे पित्त वायु अर कफ सामवस्था वळ  सद्यनी   निरोग रौंदन किन्तु वात्त , पित्त अर कफ वळ  सद्यनी रोगी रंदन।  यूं मा वातादि दोषों साम्य अर्थात अनुकूल ह्वे जाण इ शरीरै प्रकृति बुले जांद।  अर्थात वात प्रकृति वळ पर वात दोष शरीर का अनुकूल ह्वे  जांद।  प्रकृति हूण  से वात दोष नी  किन्तु स्वस्थावस्था म वात बढ़ल तबि  दोष होलु।  जन विषकीट पट विषन नि मरदो  तन्नि प्रकृतिस्थ वात से बि वात प्रकृति वळ मनिख पीड़ित नि हूंद।  यूं  वात्त  आदि अधिकता म वात विरोधी गुण का यूंको विरोधी गुण वळुं  सेवन करण  हितकारी च।  अर पित्त वायु,अर कफै समानता वळ प्रकृति क मनिखों कुण सबि रसों समानावस्था म हभ्यास करण हितकारी हूंद।  समान धातु वळ मनिख प्रशस्त च।  ३९ - ४१। 
जब मल परिणाम बिंडि   ह्वे जावन त  वो  विकृत ह्वे मल स्थलों /अंगों तै पीड़ित  करदन।  मल तौल का द्वी गुदा , उपस्थ /योनि , मुंड का सात , द्वी नाक , द्वी आँख , द्वी कान अर एक मुख का दुंळ /छिद्र मल स्थान  छन , मल यूं सब्युं  तै पीड़ित करदो। 
भारपन का अर्थ मल वृद्धि समजण चयेंद अर  हळ्कोपन को अर्थ हूंद क्षय।  मल स्थलों से मल नि निकळण मलौ क्षय अर बार बार निकळण  मल वृद्धि इंगित करदन।  मां वृद्धि अर दुसरों कारण ह्वेन समजिक चिन्हों तै पछ्याणिक ऊं से उतपन्न  साध्य रोगों तैं  रोग अर  व्याधि का कारण यूं दुयूं विपरीत गुण , वीर्य/ शक्ति ,विपाक,ार प्रभाव से विरुद्ध औषध , आहार, अर विहार से चिकित्सा करण चयेंद।  चिकित्सा करद दैं  वैद्य तैं मात्रा , औषध  , आहार अर  विहार , परिमाण , काल , दोष , व्याधि का प्रकोप , ऋतू,रात, दिन आदि समय का विचार करण चयेंद। यि विषम धातु वळ रोगी अर निरोगी दुयूं कुण हितकारी च।  धातु की विशेषता से उतपन्न हूण वळ रोग अर  मानस या आगन्तुज  (बाह्य रोग ना कि  शरीर का आंतरिक रोग ) रोग उतपन्न  नि हूंदन।  इलै मनिख रोगी नि  हूंद।  रोगी न हो तो मनिख तैं रोगी हूण  से पैलि इ स्वस्थ वृत्त कु  सेवन करण चयेंद।  ४२-४५। 
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस  पृष्ठ १०० ब्रिटेन १०२
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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        शरीर -दोष -जन्य रोगों  अनुतपत्ति ( रोग से पैल रोकथाम ) 

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  सतों   अध्याय ,  ४६  बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   ५८
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-    
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसा+
बैशाख अर  ये से पैलाक  मासम (चैत ) , भादों अर  पैलाक  मासम (सौण ) , पूस अर  पैलाक  मासम (मंगसिर ) म कट्ठा हुयां दोषों तै  वमन विरेचन  से निकाळ  दीण चयेंद।  स्निग्ध अर स्षिन्न सरैल वळ  मनिखों तैं कफ नाशक हूण  से चैतम, अनुवासन , वस्तिकर्म वात हर हूण  से सौणम अर पित्तनाशी  हूण से विरेचन मंगसिरम लीण चयेंद।  अथवा चैतम वमन उपरान्त विरेचन , मंगसिरम विरेचन से पैल वमन अर तब चैतम अर मंगसिरम वस्तिकर्म अर नस्य कर्म करण  चयेंद।  जु  चैतम वमनादि कर्म कर्यां हो त सौणम अनुवासन  ( वस्त्र या शरीर म सुगंधयुक्त औषधि  पंहुचाण )  अर आस्थापन (शक्तिदायक औषधि ) करण  चयेंद। जु चैत म वमन नि कर्युं  ह्वाव त वमन विरेचन कौरि  तब वस्तिकर्म अर नस्य कर्म करण  चयेंद।  चैतम  जु वमन कर्म ह्वे  जावन त सौणम  अनुवासन अर आस्थापन करण  चयेंद।  जु  चैतम वमनादि कर्म नि कर्यां  होवन तो वमन विरेचन करि वस्तिकर्म अर नस्यकर्म करण  चयेंद।  स्नेह क पैथर स्वेद , स्वेदौ  पैथर वमन , वमनौ पैथर विरेचन , विरेचन उपरांत वस्तिकर्म , वस्तिकर्म क पैथर नस्य दीण  चयेंद।  पैल स्वेदन , स्वेदन क पैथर वमन , विरेचन,  बस्ति अर नस्य कर्म क्रमशः  अर  जैकुण  जु  जु  उचित हो करणो  उपरान्त रोगनाशी औषधि प्रयोग करण  चयेंद।  रसायन सेवन क परांत सिद्ध अर वृष्य पौस्टिक प्रयोगों का सेवन समय जणगरु वैद्य तै कराण  चयेंद।  रस रक्तादि धातुओं प्रकृतस्थ हूण  से शरीर म दोषजन्य रोग नि हूंदन।  वृष्य क्रिया से रस रक्तादि बढ़दन अर बुढ़ापौ  अंत हूंद। यु उपरोक्त विधि शरीर - दोष -जन्य रोगों अनुतप्ति कुण  बुले गे।  आगंतुक /अपघात /अचाणचकौ रोगो कुण  भिन्न विधि हूंदन। 
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस  पृष्ठ १०२ ब्रिटेन
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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मानसिक रोग कारण व निदान (चरक सिधांत )

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  सतों   अध्याय ,  ५१  बिटेन  - ५९ तक
  अनुवाद भाग -   ५९
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  (अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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भूत या नाना प्रकारा  प्राणी  आदि विष या जंगम विष , वायु, अग्नि , ज्वालामुखी,  दावानल ,  चोट आदि से मनिखोंपर  आगंतुक /बाह्य रोग हूंदन।  उंमा वृद्धि मिथ्या या अन्य रूप से हूंद।  शोक , भय , क्रोध , अभिमान , द्वेष, मन रोग छन ना की शरीर का।  यी सब बुद्धि दोष  से इ  उतपन्न हूंदन ।  ५१-५२।
आगंतुक रोगो प्रतिकार -
आगंतुक अर  मानसिक रोग वृद्धि  जै  कारण -दोष से उतपन्न हूंदन  वु प्रज्ञापराध छुड़न चएंदन।  इन्द्रियों तै   विषयों   आकर्षण रुकण , बुद्धि, स्मरण, भगवान स्मरण, देश -काल व आत्मा चिंतन, भला कल्याणकारी बाटो अनुसरण , यी विधि आगंतुक रोगों तै दूर करणो,   बचणो उपाय छन।  यां  से आगंतुक रोग नि  हूंदन।  बुद्धिमान व्यक्ति तै जु हितकारी हो वो रोग उतपत्ति से पैल ी कर दीण  चयेंद। 
रजत , तमस मुक्त विद्वानों उपदेस , अर बुद्धि से सिद्ध , प्रमाण द्वारा सिद्ध , बुद्धि से स्वीकृत यी मानसिक विकार उतपत्ति अर विकार शान्ति म लाभदायी छन।  ५३-५५।
वर्जण  योग्य मनिख -
जौंक वाणी अर  मन पापमय हो , चुगुलखोर, झगड़ालू, छिद्रन्वेषी  अर दर्बलता पर हंसण वळ, लालची , दुसराक उन्नति  पर जळथ मार, निंदा ही जौंक  वृति हो , चंचल प्रकृति,अस्थिर  मन, शत्रु से मिल्युं मनिख , काम क्रोधादि का वशीभूत, दयारहित, निर्दयी, धर्म/संविधान  से नि डरण वळ , जन नीच मनिखों तै छोड़ि दीण चयेंद।  ५६ -५७। 
जो बुद्धि , विद्या , आयु , शील सुभावक धैर्य , साहस , योगी , मन संयमी, अर अफ़ु से बड़ होवन, वृद्धों सेवा करदा होवन स्वभाव क जणगरु, अनुभवी , चिंता से दूर,सब प्राणियों हितैषी , इन्द्रियों तै  बस म  करण वळ, ब्रह्मचारी , सतमार्गी, सत्मार्ग उपदेशी, पुण्य शब्द सुणाण  वळ ,दर्शनशील /अनुभवी , मनिखों संग करण  चयेंद।  यूं तै गुरु मनण  चयेंद।  यी ज्ञान , मन, आध्यात्मिक विषय , धैर्य , स्मृति , आदि शिक्षा देकि  मानसिक रोग समाप्त कर सकदन । ५८ -५९। 

 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव  पुस्तकालय  बनारस ,पृष्ठ   १०३ ब्रिटेन १०५   तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
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            चरक संहितौ  दही भोजन विधान

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  सतों   अध्याय , ६०   बिटेन  -६५ तक
  अनुवाद भाग - ६०   
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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इहलोक अर परलोकौ    सुख चाण वळ बुद्धिमान व्यक्ति तै चयेंद कि वो हितकारी आहार, खानपान , आचार व्यवार , अर चेष्टा /गाणी -स्याणी म सचेष्ट रावो। 
रातम दै नि खाण चयेंद , जब बि रात छोड़ि दही खावो तो घी  या शक़्कर या मूंग या शहद या औंळा  रहित नि  खाण  चयेंद।  जब खावो तो गरम करी खावो।  रातम  दै खाण से श्लेष्मा व स्वास्थ्य नष्ट हूंदन  अर सरैल का दोष कुपित हूंदन  ।   दही म घी मिलाण  से कफकारक हूंद किन्तु वायु नाशी हूंद।  शक़्कर युक्त दही पित्त नि बढांदि , पर आहार तै पचै  दींदी।  इलै तीस , भूख अर कळ्यजो  जळन न्यून करदी।  मूंगों दगड़ दै खाण से वातरक्त व्याधिम  लाभ हूंद।  शहद मिलाण  से दै  सुस्वादु किन्तु थोड़ा दोष वळ  ह्वे जांद।  दही गरम कौरि रक्तपित्त जन्य व्याधि  दूर करदि। ं औंळै  दगड़ खाण  से रक्तपित्त रोग शांत हूंदन।  भौत दही खाण वळ  जु मथ्याक विधान नि करदो वैपर ज्वर ,रक्तपित्त , कमला , विसर्प /विषाणु जनित रोग , कोढ़ , पांडुरोग व्याधि हूंदन।  ६०-६५

 मनुष्यों म उतपन्न हूण  वळ  स्वाभाविक वेग , वेगों रुकण पर हूणो रोग , यूं रोगुं औषधि , कौं  वगो तै धारण करण चयेंद ,जांक कुण  जो लाभकारी च , उचित अर अहितकारी, छुड़ण लैक अर सेवन लैक , प्रकृति नुसार आहार, मलसथान मल वृद्धि, क्षय , औषध , सुख चाही मनिखों तै कैको संगत छुड़न चयेंद या काको संगत  करण चयेंद  ,दही सेवन विधि कु  यु सब आत्रेय मुनि न ' न वेगांधारणीय; नामौ अध्याय म पूरो उपदेश देई।  ६६ -६९
अब  सि  सतों  अध्याय पुरो ह्वे। 

*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,१०५-  १०६  पृष्ठ ब
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली


 

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