आचार विचार का महत्व -१
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , अटों अध्याय (इन्द्रियोपक्रमणीय ) , पद १९ बिटेन २० - तक
अनुवाद भाग -
गढ़वालीम सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक - आचार्य भीष्म कुकरेती
( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों वर्जणो पुठ्याजोर )
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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ये सद्वृत तैं सम्पूर्ण रुपम बुल्दन -दिबता ,गौ , ब्राह्मण,गुरु (ब्वे बाब , पौण बि ) , वृद्ध (विद्यावृद्ध, धनवृद्ध आयुवृद्ध , शूरवृढ ), सिद्ध (तापस , भिक्षुक ), आचार्य (जंद्यो दिँदेर /उपनयन करंदेर गुरु ) यूंकी पूजा सेवा करण चयेंद। अग्निहोत्र द्वी समय सुबेर -स्याम करण चयेंद। दोषो तै नाश करण वळि औषधि वनस्पतियां धारण करण चयेंद। द्वी समय नयाण चयेंद। गुदा /मल स्थल बार बार स्वच्छ व खुट सदा पवित्र /स्वच्छ रखण चयेंद। बाळ , दाढ़ी , मूछ , नंग ,अर गुह्य स्थलों बाळुं पंद्रह दिन म तीन दैं पांच पांच दिन उपरांत कटण चयेंद। नित्य सुद्ध वस्त्र पैरण चयेंद , पुळेणु रौण अर सुगंध लगाण चयेंद। १९।
उत्तम भेष धारण कौर, मुंड बाळुं पर कंगुल लगाण चयेंद , मुंड , कंदूड़ , त्वचा क तेल मालिश कारो, नित्य प्रायोगिक धूम्रपान कारो, घर या भैर क्वी मीलो तो कुशल क्षेम पुछण चयेंद, कट्ठण अवसरों पर बि सोचि काम करण वळ , सुंदर , हंसमुख मुख दिखेण वळ , होम करण वळ ,यज्ञ - देव यज्ञ ,पितृयज्ञ , ब्रह्म यज्ञ , वैश्वदेव यज्ञ , नृयज्ञ करण वळ , दान दिंदेर , चौबटों तै सिवा लगाण वळ , दिबतौं तै न्योछावर दीण वळ , पौणुं पूजा करण वळ , ब्वे बाबु -दादि -दिदा तैं श्रद्धायुक्त अन्न व वस्त्र दीण वळ , हो , समय पर हितकारी व मिठु वचन ब्वालो , जितेन्द्रिय , दनयमि धर्मात्मा हो; दुसराक उन्नति कर्मों से ईर्ष्या करण वळ हो कि मेरि बि उन्नति हो किन्तु फलम ईर्ष्या करंदेर नि हो , चिंतारहित , निडर , साहसी , आहार व व्यवहार छोड़ि लज्जाशील हो , महत्वाकांक्षी हो , निपुण , क्षमाशील हो , अपकारी तैं बि क्षमा करण वळ , धर्म म चित्त लगाण वळ आस्तिक हो , विनय , बुद्धि , विद्या, अभिजन/अभिजात अर आयुम ठुल्ला /बड़ा , सिद्ध तप से बड़ होवन ,आचार्य आदि की सेवा करंदेर हो। छतरु , लाठ /लाठी धारी , व्यर्थ म नि बुलण वळ ,जुट पैरण वळ ,अपण अगवाड़ी चार हथ तक देखिक चलण चयेंद। मंगलजनक क्रियाशील (सकारात्मक ) राओ , मैला वस्त्र , कांड युक्त , हाड मांस , रंगुड़ वळ , फुट्युं घौड़ वळ ,स्नानागार , पूजा स्थल छुड़ण वळ हो। शर्म थकान से पैल इ व्यायम छोड़ण वळ हो। सब प्राणियों म बांधव भाव वळ हो , क्रोधी मनिखों तै पुळ्याण वळ हो , डर्यूं तै ढाढ़स दीण वळ , दीं नो सहायता करण वळ हो , सत्य प्रतिज्ञा वळ , शांति प्रेमी , कठोर वचन सैण वळ , अक्रोधी , क्रोधियों तै शांत करण वळ ,द्वन्द -राग -द्वेष नष्ट करण वळ हो। २०।
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ १११
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
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