Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 18981 times)

Bhishma Kukreti

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 सर्वोत्तम वैदुं  गुण

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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  नवों  (  खुड्डाक चतुष्पाद  )अध्याय   पद   21   बिटेन  -26  तक
  अनुवाद भाग -   ७१
गढ़वालीम  सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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विद्या, वितर्क ,विज्ञान, विज्ञत्व , लग्न , क्रिया , चिकित्सा कुशलता जै वैद्यम यी छै   गुण  ह्वावन वैकुण क्वी बि  रोग असाध्य नि छन।  आयुर्वेद विद्या , विशुद्ध बुद्धि , दृढ चिकित्सा , चिकित्सा  हभ्यास, अनेक रोगियों तै रोग मुक्त करणम सफलता , सद्गुरु क आश्रय एक एक गुण  बि वैद पद प्राप्त करणो समर्थ छन।  किन्तु जै  पुरुष म इ  सब गुण  हूंदन वी इ  सच्चेकी वैद  बुले सक्यांद। यी प्राणियों तैं  सुख दिंदेर  हूंद।  २१-२३
  आयुर्वेद शास्त्र त उज्यळ करणो ज्योति च अर अपण  बुद्धि आँखि ।  यूँ दुयुं तैं  मिलैक ठीक प्रयोग करी वैद्य बिसर नि सकद।  चिकित्सा का तीन चरण रोग , परिचारक अर द्रव्य सबुं  वैद पर इ आसरो च।  इलै अपण गुणों  तैं  विशेष रूप से  प्राप्ति वास्ता वैद्य तै प्रयत्नशील रौण  चयेंद।  वैदो  ब्यवार  चार प्रकारौ  हूंद -रोगी दगड़ मित्रता अर दया भाव; साध्य रोगीम स्नेह भाव ;मरणासन्न रोगी म उपेक्षा बुद्धि ।  २४-२६
चिकित्सौ  चार  चरण , प्रत्येक चरण का  चार चार गुण,सब गुणोंम भिषक  की भूमिका  प्रधान  च  अर  किलै च ? , वैदुं गुण , वैदुं  चार प्रकारै बुद्धि अर ब्राह्मी बुद्धि यि  सब 'खड्डाक चतुष्पाद' बुले गे
नवों  अध्याय   खड्डाक चतुष्पाद  सम्पूर्ण ह्वे। 
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लेन
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ    १२२    ब्रिटेन   तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charaka  Samhita, First-Ever Garhwali Translation of Charaka  Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charaka Samhita 


Bhishma Kukreti

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 चिकित्सा करण  या चिकित्सा नि करण पर गहन चर्चा
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  दसों  अध्याय  (महाचतुष्पाद )  १    पद   बिटेन  - ५ तक
  अनुवाद भाग -   ७२
गढ़वालीम  सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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 यांक अंतर्गत माहाचतुष्पद नामौ  अध्यायौ वर्णन होलु जन भगवान आत्रेय न बोलि थौ।  १ -२। 
चार चरण अर सोळा कलायुक्त चिकित्सा हूंदी इन  वैद बुल्दन।  खड्डाक चतुष्पाद म जु सोळा गुण संपन चिकित्सा
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य कु उपदेश दिए गे  वीं इ चिकित्सा कु युक्तिपूर्वक प्रयोग से आरोग्यता  मिल्दी , इन पुनर्वसु आत्रेय न बोलि। ३।
मैत्रेय न बोलबल   विषय म यु उचित नी, किलैकि कुछ रोगी जौं  तै सब धाणी सुविधा प्राप्त छन , जौंका सेवक बि छन , जु संयमी अर जितेन्द्रिय छन, अर चतुर वैद जौंकि चिकित्सा करदन वो स्वस्थ हूंद दिखे गेन।  यांक अतिरिक्त सब कुछ हूंदा बि रोगी मरदा बि दिखे गेन।  इलै बुले जांद बल सोळा गुणो युक्त चिकित्सा बि फलदायक नी।    जै प्रकार एक बड़ो खड्डा या तलौ म थुड़ा सि पाणि डळण से क्वी लाभ नि हूंद  अर बगदी नदी म मुट्ठी भर धूळ निर्थक हूंदी वा पाणिम बौग  जांद , अर जन बळु/रेत  क ढेर म एक मुट्ठी रेत  डाळि  क्वी लाभ नि  हूंद इनि शुभ कर्म करण वळ रोगी म चिकित्सा क लाभ नि  हूंद।  कुछ रोगी साधन रहित ,सेवक रहित , अजितेन्द्रिय , अपथ्यसेवी , मूढ़ वैद से चिकित्सा करण पर बि स्वस्थ होंद दिखे गेन, कुछ मथ्या अवस्था म मरदा बि  दिखे गेन।  सोळा गुण सम्पन चिकित्सा से स्वस्थ ह्वे जांदन अर भौत सा मोर जांदन , भौत चिकित्सा नि करण पर बि स्वस्थ ह्वे जांदन अर चिकित्सा नि करण पर मोर बि जांदन। इलै संदेह हूंद  बल चिकित्सा करण अर  नि करण बरोबर इ  च।  ४। 
यां मा  भगवान  आत्रेयन बोली बल - ये मैत्रेय !  तुमर इन विचारण भलो नी।  किलैकि रोगी सोळा गुण युक्त चिकित्सा से स्वस्थ नि हूंदन अर मोर जांदन , यु बुलण भलो नी च। किलैकि चिकित्सा से अच्छा हूण रोगुं म चिकित्सा असफल नि हूंदी अर  जु  रोगी चिकित्सा रहित से बि स्वस्थ ह्वे जांदन वास्तव म ऊंमा  चिकित्सा क पूर्ण कारण आवश्यक  नि हूंदन।  जन भ्यूं पड़्युं मनिख अफि उठणो समर्थ च , दुसर मनिख सायता करदो तो वु मनिख शीघ्र निकष्ट का खड़ ह्वे जांद।  ये प्रकारन सोळा गुण युक्त चिकित्सा से रोगी स्वस्थ ह्वे जान्दन।  जु रोगी सम्पूर्ण चिकित्सा मिलण पर बि मोर जांदन अर्थात वो रोगी सोळा गन संपन चिकित्सा से स्वस्थ नि  ह्वे सकदन  किलैकि सब रोग साध्य नि हूंदन। इनि  जु रोगी असाध्य छन ऊं तैं सरा औषध समाज बि  स्वस्थ नि  कर सकदन।  ज्ञानवान वैद बि मरणासन्न रोगी तैं स्वस्थ करण म असमर्थ हूंदन। जु  वैद्य साध्य -असाध्य रोगों विचार करि चिकित्सा करदो वो इ चिकित्सा कार्य म कुशल ,सफल अर  यश्वशी चिकित्स्क हूंदन।  जै प्रकारन प्रयोग विधि जणगरु हभ्यासी धनुर्धर धनुष लेकि भौत दूर ना अपितु निकटवर्ती स्थूल लक्ष्य पर वाण फिंकदो असफल नि हूंदो  अर लक्ष्य भेद कर लीन्दो तनि वैद अपण गुणों से युक्त उपकरणवान , साधनवान, साध्य -असाध्य रोग कु विचार करि कार्य शुरू करद ,रोगी साध्य रोग से रोगी स्वस्थ कर दींदो इखम भूल नि करदो . इलै चिकित्सा करण  अर चिकित्सा नि करण द्वी समान नीन . ५। 
 

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १२४     ब्रिटेन १२६   तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021 म चिकित्सा
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

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Bhishma Kukreti

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साध्य , असाध्य ,  कुसाध्य , याप्त  व्याधियां
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  दसों  अध्याय  (महाचतुष्पाद )     पद   ६  बिटेन  - १७  तक
  अनुवाद भाग -   ७३
गढ़वालीम  सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
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यूंमा  भौत छन -
रोगो साध्य -असाध्य रूप तै अर  साध्य -असाध्य कुण जणगरु  विचारूर्वक समय पर जु  वैदकी शुरू करदो वो वे कर्म तै अवश्य पुरो करदो अर  जु वैद्य   असाध्य रोग की चिकित्सा करदो वो धन यश , विद्या की हानि उठांदो। वैकि काट (निंदा ) हूंदी , लोग वैमा चिकित्सा नि  करवांदन , अर  वाइको व्यवसाय नष्ट ह्वे  जांद। ७ , ८।
साध्य रोगों द्वी प्रकार हूंदन - सुसाध्य जु सरलता से भलो हूण वळ अर दुसर कठणता  से भलो हूण वळ रोग।  असाध्य व्याधि बि  द्वी प्रकारै  हूंदी - एक   जु  चिकित्सा तक या कुछ समय,तक शांत रौंदी अर चिकित्सा बंद हूण  पर पुनः ह्वे  जांद  अर  दुसर जु  चिकित्सा से बि भली नि  हूंदी सर्वथा असाध्य।  साध्य व्याधियों तीन प्रकार हूंदन - एक अलप साध्य  दुसर मध्य साध्य अर उत्कृष्ट साध्य जु  असाध्य इ च. यूं म नियत अंतर् नी च - याप्य ,  साध्य असाध्य  व्याधियों तीन भेद हूंदन - अल्पयाप्य , मध्यम याप्य , उतकृष्ट याप्य।  ९ -१०। 
सुसाध्य  व्याधियों  प्रकार -
  रोगोतप्ति  कारण थ्वड़ा होवन ,भौत अधिक या तीब्र न हों , रोगुं  प्राथमिक कारण बि हळका ह्वावन।  दूश्य रक्त , मांश व धातु  दोष वातादि कारण  क समान नि होवन ,पित्त का कारण रक्त  कुपित नि हो ,रोगोत्पादक वात  रोग रोगी  की प्रकृति न होव्  , वातजन्य रोग प्रकृति न ह्वावो  , हेमंत म कफ संचय हूंद हो ,अनूप अंग म /कष्ट साध्य अंग पर रोग नि हुयुं हो ,द्वासो गति एकजिना हो ,रोग नवीन हो , रोगौ दगड़  क्वी    उपद्रव  नि हो , अर  चिकित्सा चरी  चरण प्राप्त  होवन , रोगोत्प्ती क कारण एकी हो , पूरोसराईल रोग सहन करणम समर्थ हो तो इन रोग तै सुसाध्य रोग बुले जांद।  १०- १३। 
कृच्छ साध्य रोग लक्छन -
रोग का कारण  , रोगौ पूर्वरूप , अर रोगौ  रूप स्पष्ट चिन्ह ,माध्यम बल ,संख्या म मध्यम ,बिंडी उपद्रवों से पीड़ित न  हो , तो वु रोग  कृच्छसाध्य रोग हूंद।  गर्भवती , वृद्ध अर बाळ बच्चों रोग कष्ट साध्य हूंदन।  अस्त्र , छार अर आग से पीड़ित तै चिकित्सा करदो  व्याधि ह्वे  जाय ,नया न हो ,जु रोग पुरण  हो ,मर्म स्थान , संधि स्थान  आदि म जु  रोग हों ,एक मार्गगामी ह्वाव ,चिकित्सा चरण अपूर्ण होवन, दोष द्विमार्गी हो ,बिंडी समयो नि हो , अर  द्वी दोषों से उतपन्न हो तो वो  रोग बि   कष्ट साध्य रोग हूंदन। १४ -१६।
याप्य व्याधि का लक्छण -
असाध्य व्याधि , पथ्य , आहार विहार का पालन करण से आयु शेष हूण  से व्याधि आप्य हूंदी।  कुछ काल तक आराम मिल्द /सेळी पड़ दी , पर थुड़ा सि  कारण  से पुनः उभर जांद।  इन व्याधि तै याप्य  व्याधि बुल्दन।  १७। 
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १२६    ब्रिटेन  १२८   तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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Bhishma Kukreti

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         चरक संहितौ  महाचतुष्पाद  को अंतिम भाग

        चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  दसों  अध्याय  (महाचतुष्पाद )     पद   १८ बिटेन  -२३-२४  तक
  अनुवाद भाग -  ७४ 

गढ़वालीम  सर्वाधिक  पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार   - आचार्य  भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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मेद आदि गंभीर धातुम स्तिथ , रस रक्तादि भौत धातुओं म स्तिथ ,मर्म संधि म आश्रित हो लगातार रत दिन राओ , २४ घंटा बारा मैना रावो , देर तक चार सालो ह्वे  गे हो , द्वी द्वासों से उतपन्न हो ,इन रोग तै यप्य ,अर इन प्रकारो अन्य    तीन द्वासों  से उतपन्न रोगों तै असाध्य  समजण  चयेंद , जु रोग चिकित्सा से भैर चल गे ह्वावो ,भौत बढ़ गे हो ,सब मार्ग ऊर्घ्व , अध: त्रियर्ग' म पौंछि गे ह्वावो ,अति प्रसन्नता , अति बेचैनी , अति मूर्छा /नींद पैदा ह्वावो ,जै रोगन इन्द्रिय , आँखों दिखण ,कंदूड़न सुणन बंद ह्वे गे  हो , निबल मनिख म जु रोग भौत बढयूं  हो ,जै रॉक लक्षण निश्चित मृत्यु बताण  वळ होवन वो रोग असाध्य रोग हूंद अर रोगी असाध्य रोगी। १८-२०। 
वैद तै चयेंद बल चिकित्सा करण से पैल  रोगुं  की पैलि लक्षणों से परीक्षा , करण  चयेंद बल रोग साध्य च या असाध्य।  पैथर  साध्य रोगों म चिकित्सा शुरू करण  चयेंद।  असाध्य रोगों म हथ नि  लगाण  चयेंद। 
 जो वैद साध्य अर  असाध्य भेड़ों तै भली प्रकार जणद वो ज्ञानी , बुद्धिमान वैद , मैत्रेय का सामान लोगों की मिथ्या बुद्धि तै नि बढ़ांद।  २१-२२।
ये महा चतुष्पाद नामौ  अध्याय म औषध , चतुष्पाद ,गुण , भेषज, अर  आश्रित प्रभाव ,आत्रेय व मैत्रेय  की द्वी प्रकारै बुद्धि , चार प्रकारौ  रोग अर उंक लक्षण बुले गेन अर ऊं कारणों तै बि बताये गे जां से वैद प्रसिद्ध /यश्स्वासी हूंद।  २३ -२४।
इति   महा चतुष्पाद दसों अध्याय।।   .
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १२९    बिटेन  १३०    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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Bhishma Kukreti

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प्रथम स्वास्थ्य रक्षा  तब धन व  परलोक    ! 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )  १    पद   बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -  ७५ 

गढ़वालीम  सर्वाधिक  पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार   - आचार्य  भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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अब  तिस्त्रैषणीय  नामक पाठ (अध्याय ) का व्याख्यान करला।  जन भगवन आत्रेय न बोलि  छौ।  १, २।
ये लोकम जै पुरुष क मन ज्ञान , पौरुष ,अर पराक्रम मानसिक बल समाप्त नि  ह्वे हो , जु  ये लोक अर परलोकौ  हित  चांद  हो।  वै तै तीन इच्छाएं करण  चएंदन - जीवनै इच्छा , धनै इच्छा ,परलोकै  इच्छा। ३।
यूं  तीन इच्छाओं मध्ये 'प्राणइच्छा ' सबसे पैल  करण  चयेंद, किलैकि  प्राण छुटणो  परांत  सब कुछ छूट जांदो।  प्राणइच्छा कुण स्वस्थ शहरीर नियम पालन करण  चएंदन जां से वो रोगी नि हो अर रोग शांत करण म परमादि (आज भोळ , भूल आदि )  नि  हो।  स्वस्थ वृत्त अर रोग शान्ति उपाय मथि  बिंगै आलिन अगनै  बि  बिस्तर से बताये जाला।  स्वस्थ वृत्त व रोग निदान नियमों पालन करण से मनिख प्राण रक्षा कौरि दीर्घायु प्राप्त करद।  ये अनुसार प्रथम इच्छा की ब्याख्या कौर आल।  ४। 
अब दुसर  ' धनिच्छा' क विषय म बि।  प्राणो परांत  धन ही आवश्यक हूंद। किलैकि यां  से बड़ो पाप क्वी  नि बल बिन धन (साधन )  को  अधीन दिन ज़िंदा रौण  इलै धन कमाणो  यत्न करण चयेंद।  धन-कमाणो साधनों बी उपदेश करदां।  जन खेती , पशु संवर्धन , वाणिज्य -व्यापार , राजकीय सेवा। यांको  अतिरिक्त जु  जु बि कारज आनंद दिंदेर अर आजीविका दिंदेर हों ऊं तै करण से मनिख दीर्घायु हूंद अर  तिरस्कार हीन  जीवन  यापन करदो।  ये अनुसार 'धनिच्छा' की बि  व्याख्या ह्वे  गे।  ५। 
अब तिसर 'परलोकिच्छा' बि प्राप्त  करे  जाय।  परलोकइच्छा ' बाराम संदेह च बल मरणो उपरांत जन्म हूंद चा या ना।  संशय किले च ? बुले जांद  बल कुछ मनिख इन  छन जु प्रत्यक्ष तै इ सच मणदन , अर परोक्ष /indirect तै सत्य नि मणदन।  जु  नास्तिक मत तै मणदन वो पुनर्जन्म तै नि मणदन। कुछ वेदोपदेश तै मानि पुर्नरजनम  तै मणदा छन।   श्रुति /सुणी सुणी भिन्न  बथों  कारण पुर्नरजनम म घाळमेळ /संदेह च।  कुछ जन्म  का कारण  ब्वे -बाबु तै मणदन तो कुछ स्वभाव तै कारण मणदन  तो तिसर कै  दुसर  तै जग कारण मणदन। चौथो लोक ' यदृच्छ' तै जन्म कारण मण दन अर्थात बल बिन क्वी कराणो अपण अफि जन्म ह्वे जांद।   इलै   संदेह हूंद  बल पुनर्जन्म  हूंद च कि  ना।  ६।     

 
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चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरसुणी क संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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Bhishma Kukreti

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कुछ हौर करण
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग   ९२ - ९३-   बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -  ११२ 


s = आधा अ
(ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न  करे गे )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े  जण वळ  एक मात्र लिख्वार  -   आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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जु दैं  हथ वलित ' मुद्रा म घुमाये जाय अर  बैं  हथ दोला  मुद्रा म घुमाये जाय ,द्वी खुट  स्वस्तिक मुद्रा म धरी एक हैंक से दूर  करे जावन तो 'घूर्णित' नामौ करण  हूंद।  ९२ -९३।
जु बैं  हथ 'करिहस्त' मुद्रा म ह्वावो अर सीधो हथ  अपरिवर्तित दशा म एक छ्वाड़ घुमाये  जाय अर  द्वी खुट  अळग -उन्द पटके जावन तो 'ललित ' करण  जणन चयेंद।  ९३ -९४। 
जु  'उर्घ्वजानु' चारि प्रदर्शित कौरि  द्वी लता  मुद्रा वळ हथों  तैं  घुंडम धरे जाव तो नृतवेत्ताजन ये तै 'दंडपक्ष' करण  बुल्दन।  ९४-९५। 
जु भुजंगत्रासित' चारि प्रदर्शन  कौरि  द्वी हथों  तैं  रचित मुद्रा म धरी ऊं  तै बैं  कुखलि जिना  मोड़ि लिए जाव त  इन करण  तै 'भुजंग त्रस्तरेचित ' बुल्दन।  ९५-९६।
जु  त्रिक   तैं  आकर्षक पद्धति से घुमाये जाय , द्वी हथ लता व रेचित मुद्रा युक्त ह्वावन अर खुटों  द्वारा नूपुरपादचारि' को प्रदर्शन हो तो वे तै 'नूपुर ' करण  हूंद।  ९६-९७। 

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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -  १०१ - 
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

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   चरक संहिता म आत्मा पर विचर विमर्श
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )    ७  पद   बिटेन  १४  - तक
  अनुवाद भाग -   ७६

गढ़वालीम  सर्वाधिक  पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार   - आचार्य  भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी, इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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यीं  अवस्था म बुद्धिमान मनिख तै चयेंद बल 'परलोक नी च ' विचार अर संशय छोड़  दीण  चयेंद।  किलै कि  प्रत्यक्ष ज्ञान भौत कम च अर अप्रत्यक्ष भौत बिंडी  जैतै आगम शास्त्र या अनुमान बुल्दन ।  जौं ज्ञानेन्द्रियों से प्रत्यक्ष ज्ञान मिल्द वो इन्द्रिय स्वयं अप्रत्यक्ष छन।  आँख तै नि  देख सकदन , नाक नाक तै नि  सूंग सकदन,  कंदूड़  कंदूड़  तै नि  सूण  सकदन।  ७।
अर  रूप आदि क भौत न्याड़  हूण  पर बि  (जन पलक काजल क निकट ) , अति फार (दूर ) हूण  पर बि (जन पंछी ) ,मध्य म अवरोध , इन्द्रिय कु  निर्बल हूण  से , मन अस्थिर हूण  से , एकि समय म द्वी या द्वी से बिंडी विषयों की इच्छा करण  से , तिरस्कृत हूण से जन दुफरा म सूर्य किरण से नक्षत्र /गैणा , अति सूक्ष्म हूण से ,  जन किदलु  तै प्रत्यक्ष ज्ञान नि  हूंद।  इलै  चर्वक आदि  नास्तिकों क बुलण  कि  जु  प्रत्यक्ष च वो ही सच च वांक  अतिरिक्त  हौर  नी कुछ नी बल्कि बिन सोचे विचारे बुले गे।  ८।
नाना वादिजनों क वचन बि 'परलोक नी  च' क्वी   प्रमाण नी  किलैकि  तर्क विरद्ध छन।  ९। 
लोक बुल्दन बल माता पिता क आत्मा पुत्र रूपम उत्पन्न हूंद; इखम आत्मा क गति द्वी प्रकारै हूंद।  एक आत्मा सम्पूर्ण रूप म पुत्र रूपम आव; दुसर अवस्था म आत्मा एक अवयव रूप म पुत्र म ऐ जाव।  जु  सम्पूर्ण आत्मा पुत्रं आ तो माता पिता की मृत्यु हूण चयेंद, दुसर   सूक्ष्म आत्मा क अवयव  ह्वे हि  नि सकद  ।  परमाणुओं क संजोग से बणी वस्तु भाग ह्वे सकद परमाणु का ना।  १० , ११ । 
जै प्रकार से माता पिता की आत्मा पुत्र जन्म का कारण  नि ह्वे सकद , तनि मन व बुद्धि बि उतपति का कारण नि  ह्वे सकदन।  चूँकि मन व बुद्धि सूक्ष्म छन तो यूंक बि  भाग नि  ह्वे सकद।  अर जु सम्पूर्ण अवतरण मने जाय तो  माता पिता   मादे  एक मन अर  बुद्धि रहित याने अर्थात ज्ञान , चिंतन बोध शून्य हूण चयेंद।  इलै यु बि  उचित नी।  एक हौर  बि  दोष च।  ऊंक मतानुसार योनि स्वेदज , अंडज ,उद्भिज , जरायुज ) चार प्रकारै नि हूंद।  प्राणियों उतपतिम छह धातु अपण  लक्षणुं  से कारण  बणदन।  यूंको संजोज अर वियोग म कर्म ही कारण छन।  १२ , १३ । 
इश्वर कु बणायुं जगत मानि जु  लोक आत्मा क अस्तित्व इ  नि मणदन  वो बि उचित नी।  किलैकि अनादि  धातु (आत्मा ) का दुसर  से बणान तर्क संगत नी।  जु पूर्व आत्मा नी  च तो दुसर पुरुष बि कै उत्पादन से लेकि कारल , किलैकि अवचेतन चेतन उतपन्न नि कर सकद।  जु परमात्मा केवल शरीर निर्माता च तो तुमर अर  हमर सिद्धांतों म अंतर नी।  इलै आत्मा नित्य च , वो समय समय पर स्थूल शरीर छोड़ि परलोक म   कर्मों तै भोगी  , भोग  समाप्ति पर  दुसर भोगो कुण पुनः उतपन्न ह्वे जांद।  १४। 

 
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*संवैधानिक   चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १३२    बिटेन   १३४  तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charaka  Samhita, First-Ever Garhwali Translation of Charaka  Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charaka Samhita   


Bhishma Kukreti

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चरक संहिता म प्रमाण , अनुमान अर  युक्ति विमर्श  (न्याय  दर्शन )
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )  १५    पद   बिटेन  २४ -२५  - तक
  अनुवाद भाग -   ७७

गढ़वालीम  सर्वाधिक पढ़े जण  वळ एकमात्र लिख्वार - आचार्य  भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी, इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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यदृच्छा बि जन्म कारण नी  च ,किलैकि यदृच्छावादी क मतम ना तो न त  क्वी परीक्षा (प्रमाण ) च अर  न प्रमेय (नापणो इकाई ) वस्तु च।  इलै  माता पिता , कन्या , बैणि, घरवळि ,  गुरु , वृद्ध , तपस्वी, आदि प्रक्षणीय  वस्तु आभावम मनमाना आचार हूण  संभव च अर कर्म बि नी च जांक  भलो या  बुर फल मीलल, इलै  कर्म फल बि  नी ।   न कर्म को क्वी  कर्ता   च  जु  कर्म कारो।  यी सब यदृच्छा से ही बिन कारण हूंद तो मनचाहा आचरण करण  म बि  क्वी दोष नि  होलु त  गुरु सिद्ध मनिखों म पूज्य भाव बि  नि  होलु।  इलै  नास्तिक हूण  सबसे  पातकों म  बड़ा पातक च।  १५ -१६। 
इलै बुद्धिमान तै चयेंद कि उल्टो  मार्गम जाण वळी यिं  विपरीत बुद्धि छोड़  दे अर सज्जन पुरुषों बुद्धि रूप द्यु  से ठीक से देखन।  १७। 
संसार म जु  बि  दिखेंद वु  द्वी प्रकारौ हूंद।  एक सत् अर  दुसर  असत।  ेकी परीक्षा चार प्रकार से हूंदी।  आप्तोपदेश, प्रत्यक्ष , अनुमान अर युक्ति।  १८।
जु पुरुष तप अर ज्ञानौ  बल पर रजोगुण अर तमोगुण से मुक्त हुयां  छन , केवल सत् गुण  इ जौंमा रयुं   च ऊंको ज्ञान भूत ,भविष्य अर वर्तमान तिनि कालों म  बिबुद्ध अर  वाधित  नि  हूंद।  इन पुरुष 'आप्त' शिष्ट अर बिबुद्ध होंदन यूंक  वाक्य बिन संदेह का हूंदन।  यी पुरुष सद्यनी  सत्य ही बुल्दन , जु रज अर  तमो गुण  रहित होवन  वु असत्य कन  बोल सकदन।  १९ - २०। 
 आत्मा , इन्द्रिय , मन , पदार्थ ,यूं  चर्युं  संजोग से जु  ज्ञान मिल्दो स्यू  प्रत्यक्ष प्रमाण हूंद। २१।
अनुमान - पैल प्रत्यक्ष प्रमाण से देखि  तीन प्रकार से 'कार्यलिंगानुमान', कारण , लिंगानुमान , कार्य -कारण - लिंगानुमान हूंद , भूत , भविष्य अर  वर्तमान यूं तीनि समय म  परोक्ष का अनुमान  करे जांद।  जन लुकिं अग्नि तै धुंवा से अनुमान लगद , गर्भ देखि मैथुन को ज्ञान करे  जांद।  इनि अतीत कु  बि ज्ञान अनुमानन  करे  जांद।  बीज देखि अनागत फल कु अनुमान ह्वे  जांद , जन बीज तनि  फल होलु /लगद।  इनि भविष्य क बि अनुमान लगाए जांद। २२ -२३। 
युक्ति -
पानी , कर्षण  (हौळ लगायूं पुंगड़ ) , , बीज , ऋतु  यूं  चर्युं  संजोग से अन्न पैदा हूंद।  सही क्षेत्र म , उत्तम बीज , पाणिन कुल्याण से अनाज पैदा हूंद।  इलै पृथ्वी , जल तेज , वायु ,, अगास अर  चेतना क संजोग से गर्भ हूण संभव संभव च या युक्ति च।  इनि मथ्य अरणी का  तौळक  काष्ठ , मंथन (मंथन कु डंडा ) अर  मंथान (रै  चलाण वळ  कत्ता ) क संजोग से अग्नि पैदा हूण संभव च।  इनि  चतुष्पाद ( चिकित्सा क चार अंग का ) युक्ति से युक्त सम्पत्त रोग नाशी  च ।  जु  चिकित्सा का चारि अंग उचित प्रकार से प्रयुक्त ह्वावन  त रोग नाश संभव च।  २४- २५। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १३४    बिटेन    १३६  तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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पुनर्जन्म क समर्थक  च चरक संहिता
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )   २६   पद   बिटेन   २८ - तक
  अनुवाद भाग -   ७८

गढ़वालीम  सर्वाधिक  पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार   - आचार्य  भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी, इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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ज्वा बुद्धि भौत प्रकारौ कारणों से उत्पन्न , पदार्थों ज्ञान कुण दिखदी /प्रयोग वा बुद्धि युक्ति हूंद। या बुद्धि तिनि कालों का विषय दिखदी , ईं  युक्ति से त्रिवर्ग अर्थात धर्म , अर्थ अर  काम सिद्ध हूंदन। या चार प्रकारै परीक्षा च  (आप्तोपदेश , प्रत्यक्ष ,अनुमान अर  युक्ति ) , यूं से भिन्न दुसर परीक्षा नी  च।  यूं  चार प्रकारै  परीक्षा से सब कुछ सत् ,असत्,  भाव , अभाव , जु बि शेष च जणे जयान्द।  सत् अर असात की परीक्षा से इ जणे  गे कि पुनर्जनम  हूंद।  २६ , २७।
आप्त पुरुषों आगम वेद छन।  वेदों अतिरिक्त क्वी बि  वेदों  अर्थ अनुकूल , परीक्षा  (तर्क से ) से बणयूं शिष्ट पुरुषों से अनुमत, जन समाजौ कल्याणो कुण , जु ज्योतिष ,व्याकरण , आयुर्वेद , स्मृति छन , वो बि शब्द प्रमाण/ आप्तागम  छन।   आप्तागम से जणे जांद  कि ज्ञान , तप  , यज्ञ , सत्य , अंहिसा , ब्रह्मचर्य ,आदि कर्म  अभ्युदय और परलोक हितकारी  छन।   जौंका मनोदोष , रजत ,तमस    शांत नि हुयां  छन ऊं  रजोगुणियूं  अर  तमोगुणयूं  पुनर्जन्म हूंद।  इन धर्मशास्त्रों म बुले गे।  धर्मशास्त्रोंम  सावधान राग , मोह , द्वेष , भय ,लोभ , मान से रहित , ब्रह्मचारी , आप्त विद्वान्, कर्मयोगौ जणगरु जौंक मन बुद्धि , प्रचार उचित बण्यां छन , इन अति प्राचीन महर्षियोंन दिव्य चक्षु से देखि पुनर्जन्मों उपदेश दे। इलै  ये तैं  सत्य जाणो। २८। 
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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १३६  बिटेन   १३७   तक
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  पुनर्जन  समर्थनम चरक तर्क
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 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )    २९  पद   बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   ७९

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प्रत्यक्ष म बि  मने  गे  बल पुनर्जन्म हूंद च।  ब्वे  बाबु से भिन्न प्रकृति क नौन्याळ हूंदन। एकी ब्वे -बाबक द्वी नौन्याळुंम रंग , स्वर ,आकृति ,मुख(चेहरा ),  मन , ज्ञान,भाग्य अर  प्रारब्ध  भिन्न हूंदन। जबकि  श्रेष्ठ  अर  निम्न कुलम बि  पैदा हूंदन।  क्वी  दासता  म हूंद  तो क्वी  ऐश्वर्य म हूंद।  क्वी सुखी जिंदगी बितान्दो तो क्वी भाई दुखी, आयु की विषमता,न्यून आयु तक जीणो या बिंडी देर तक जीणो, यखा कर्यां कर्मों फल नि  मिलण , बिन पढ़ -सिख्यां  रुण , दुदलन दूध पीण , हंसण -मरण कार्यों म प्रवृति हूण शरीर पर राज्य चिन्ह या दरिद्र चिन्ह हूण ,  एक जनि  कार्य करण पर बि  फलुंम  भिन्नता  , कखिम बुद्धि त कखिम बुद्धि नि हूण , जाति , पूर्व जन्म क याद करण ,मरणो  परांत  पुनः आण , एजनि  दृष्टि से दिखणम  प्रिय व अप्रिय , यि सब पुनर्जन्म तै सिद्ध करदन। २९।   
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
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