Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 18989 times)

Bhishma Kukreti

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     चरक संहिताम कर्म फल चर्चा 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )     पद  ३०  बिटेन  -३२  तक
  अनुवाद भाग -   ८०

गढ़वालीम  सर्वाधिक  पढ़े जण  वळ एकमात्र लिख्वार   - आचार्य  भीष्म कुकरेती

  (अनुवादम ईरानी, इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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मथ्या बत्थों  देखि अनुमान करे  जयान्द बल अपण कर्युं करम नि  छुड़े सक्यांद , वैको विणास  नि  ह्वे सक्यांद , भाग्य ना आनुबन्धिक अर्थात आत्मा क दगड़ परलोक म बि हूंद।  वैकि  फल च बल ेकी ब्वे बाबू संतान भीं  भिन्न  प्रकृति का  हूंदन ।  इख कर्यां  कर्मों दुसर जन्म होलु बीजसे फल कु  अनुमान हूंद।  कर्म से पुनर्जन्म अर  पुनर्जन्म का कर्म से अनुमान हूंद।  ३०। 
युक्ति बि च बल पृथ्वी , अप्, तेज , वायु , आकाश, अर चेतना इन  छै धातुओं समुदाय से मिलिक गर्भ हूंद, कर्ता आत्मा , करण   स्त्री -पुरुष ,ऊंको संजोग से गर्भाशय रूप क्षेत्र म जन्म हूंद।  कर्यां कर्म का  फल हूंदन।  नि  कर्यां  कर्मों फल नि  हूंदन। जन  बिन बीजो अंकुर  नि आंदन उनी  कर्मानुसार इ फल मिल्दो।  यथा एक जाति  बीज बिटेन  दुसर  जाति  फल नि  आंदन।  ३१। 
ये अनुसार , आप्तोदेश , प्रत्यक्ष , प्रत्यक्ष , अनुमान , अर युक्ति चारों प्रमाणों द्वारा पुनर्जन्म सिद्ध हूण पर धर्म साधन म चित्त लगावो।  यथा ब्वे -बाबु , आचार्यों सेवा , अध्ध्य्यन -पठनम ,ब्रह्मचर्य काम -मन वाणी मैथुन त्याग ,  ब्रह्मचर्यपालन ,ब्यौ कर्मों म , संतानोतपत्ति, आश्रित जनों पोषणम , आतिथ्य सत्कारम ,यथाशक्ति दान दीणम ,दुसरों धन नि  चाण , द्वन्द , सुख , दुःख सहणम ,दुसरों गुणम दोष नि दिखणम , सरैल तै बिन कष्ट पंहुचाये शरीर।  वाणी , मन , वाणी से क्रम करणम ,देह परीक्षाम, इन्द्रिय परीक्षाम ,मनपरीक्षाम ,विषय परीक्षाम, ज्ञान परीक्छाम ,आत्म परीक्षा म ,मन समाधि म मन लगाण  इ धर्म मार्ग /raigteous  path  च।  अर  हौर  भि इनि कर्म ,सज्जनों से आनंदित , पूजित , स्वर्ग सुख दिंदेर , जीवन पालन करण  वळ , ओतै करणो  प्रयत्न कारन , इन  करण  से ये लोक म प्रसिद्धि मिलदी अर मरणम स्वर्ग मिल्दो। अर्थात पुनर्जन्म को सुख मीलल। ये प्रकारन तीसरा परलोकैषण ' की व्याख्या ह्वाइ।  ३२। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १३८   बिटेन   १३९  तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charaka  Samhita, First-Ever Garhwali Translation of Charaka  Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charaka Samhita 


Bhishma Kukreti

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 दीर्घायु होणो  तीन कारण 

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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )     पद  ३३  बिटेन  -३५  तक
  अनुवाद भाग -   ८१

गढ़वळिम  सर्वाधिक  पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार  , अनुवादाकार्य:  भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी, इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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तीन प्रकारा उपस्तम्भ अर्थात शरीर धारण करण  वळ  तत्त्व छन , तीन प्रकारौ बल छन ,तीन कारण छन।  तीन प्रकारौ रोग छन, तीन रोगमार्ग छन , तीन प्रकारा वैद्य छन अर  तीन परकारा औषध छन। ३३ ।
तीन स्तम्भ जु  शरीर धारण करदन आहार , स्वप्न ,अर  ब्रह्मचर्य छन। यूं  तिन्युं  युक्तिपूर्वक उपयोग करण पर शरीर दृढ ,बलशाली ,बल पूर्ण ,वर्ण,पुष्टि युक्त हूंद जब तक शरीर म धर्माधर्म आयु क बणानो क कारण हूंदन ।  यूँ तिन्युं युक्ति पूर्वक, उचित मात्रा म  सेवन (कार्य ) करण इ  आयु कारण च अहित वस्तुओं को सेवन नि करण  इ आयुक कारण छन।  ऊं अहित कारणों तै इखम बुलला। ३४।
तीन प्रकारा बल छन -सहज ,कालजन्य ,युक्तिजन्य, यूं  मधे   जु  बल उतपति समय इ शरीर अर मन को गर्भाशयम मिल्दो  वु  सहज या प्राकृतिक बल हूंद  ।  कालजन्य ऋतुओं विभागानुसार आहार विहार द्वारा बचपन ,यौवन ,अर  वृद्धावस्था म उतपन बल कालजन्य बल ह्वे।  यौवनावस्था म बल बल को  आधिक्य हूंद।बलकारक बल बशीभूत या बल पूर्वक लियोन जै  आहार लिए से बल उतपन्न हूंद वो युक्तिकृत च।  ३५।     
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १३९  बिटेन   १४०  तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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Bhishma Kukreti

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रोग कारण - अतियोग , अयोग , मिथ्यायोग  चर्चा
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )     पद  ३६  बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   ८२

गढ़वालीम  सर्वाधिक  पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार   - आचार्य  भीष्म कुकरेती


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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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रोगौ  कारण  तीन छन, अर्थ अर्थात इन्द्रियों क विषय ,कर्म , अर  काल, यूं तीनों अतियोग, आयोग व मिथ्यायोग तीन कारण छन ।  भौत चमकण  वळ पदार्थ जन सूर्य तै देर तक दिखण चक्षु इंडिय को  'अतियोग' च, सर्वथा इ  नि  दिखण  'अयोग' च  ।   भौत  क्लेषकारी वस्तु दिखण , दूरौ  चीज दिखण , रौद्र, भयानक, डरौण्या , अद्भुत, अप्रिय , बीभत्स , विकृत रुपों  तै दिखण , आँखों 'मिथ्यायोग' च  इनि  बादळों  गड़गड़ाट  देर तक सुणन , ढोल या दमौ स्वर देर तक सुणन , या जोर की आवाज देर तक सुणन तै कंदूड़ौ  कुण 'अतियोग' च। बिलकुल नि सुणन 'अयोग' च ,कठोर , पुत्र शोक आदि  सुणन  आदि ज्ञानेन्द्रियों कुण 'मिथ्यायोग' च।  आर्त तर्ज , गंध सुंगण चमेली तेल /इत्र देर तक /अधिक सुंगण नाकौ 'अतियोग' च। सर्वथा नि सुंगण 'अयोग' च त सड़ीं  वस्तु गंध ,जैरीली वस्तु गंध , मृत मनिखो गंध  सुंगण  कंदूड़ुं  कुण  'मिथ्यायोग' च।  इनि मधुर आदि रस का अधिक मात्रा म खाण , रसइन्द्रियों  कुण 'अतियोग' च, स्रवता रस  नि  खाण 'अयोग' च , विरुद्ध रस खाण  तै रसनेन्द्रिय कुण 'मिथ्यायोग' च।  भौत अधिक शीत , गरम भौत अधिक स्नान , भौत अधिक मालिश , भौत अधिक उबटन , त्वकइन्द्रिय कुण अतियोग च। सेवन नि करण ;अयोग' च त घिण्या भोजन स्पर्श चोट घाव , मुर्दा स्पर्श सब 'मिथ्यायोग' छन।  ३६। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १४०   बिटेन    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
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आयोग, आयोग , मिथ्यायोग व्याख्या   
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )     पद  ३७   बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   ८३

गढ़वालीम  सर्वाधिक  पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार   - आचार्य  भीष्म कुकरेती

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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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इन ज्ञानेन्द्रियों म से एक स्पर्श (त्वचा ) , घ्राण,रसना , चक्षु अर कंदूड़ , यूं  चार इन्द्रियों म अर गुदा , लिंग ,हथ , खुट , अर  वाणी म बि  व्याप्त छन अर यु  त्वग्-इन्द्रिय मन दगड़  बी जुड्युं च।  इलै त्वग्-इन्द्रिय सब इन्द्रियों म फ़ैल्यूं  हूण  से   चित्तक ये त्वग्-इन्द्रिय साथ से मन बि  व्यापक ह्वे  जांद। इलै सब इन्द्रियों म व्यापक स्पर्शइन्द्रिय क साथ समयाव संबंध से जुड्युं मन, आत्मा क अभीप्सित  विषय को ग्रहण करण वळि इन्द्रिय तक पौंछ जांदन। यांसे सब इन्द्रियूं म व्यापक त्वक् क स्पर्श से उतपन्न जु  अपण अपण विषयो ज्ञान  विशेष   उतपन्न  हूंदन। , वो शरीर का अनुकूल न हूण पर पांच प्रकार का तीन प्रकारौ हूंदन -अर्थात इन्द्रियों का विषय का साथ  अनुचित रूप से संयोग से अतियोग , आयोग अर मिथ्यायोग तीन प्रकारौ ह्वे  जांद। सात्म्य का अर्थ उपयश च , शरीर क अनुकूल जु  ह्वे व सात्म्य च।  ३७। 
वाणी मन अर शरीर यूंकि  चेष्टाउं नाम 'कर्म' च, यूंमा वाणी , मन अर शरीर की अतिप्रवृति का नाम अतियोग च।  यूंकि सर्वथा प्रवृति नि  हूण 'अयोग' च। वाणी , मलमूत्रादि क उपस्थित वेगुं  तै रुकण , अनुपस्थित वेगों तै बलपूर्वक भैर  गडण ,सम स्थानम विषम /ट्याड़ -म्याड़ ) स्थिति से भ्यूं पड़न ,अनुचित रूपम चलण , उच्ची जगा बटे कुदण , अंगों तै ट्याड़ -म्याड़ करण , अंगों तै पीड़ित करण,खुज्याण -कन्याण , दबाण ,अंगों पर डंडा मरण, अंग मर्दन ,स्वास घुटण ,स्वास बंद करण ,संक्लेश व्रत,उपवास ,आदि , विषम नृत्य ,आदि कर्म शरीर का 'मिथ्यायोग ' छन।  निंदा , चुगली , झूठ बुलण , बिन समय बुलण , झगड़ा करण ,जी दुखाण वळ  अप्रिय ,असंबद्ध,प्रतिकूल अर कर्कश बुलण आदि वाणी का 'मिथ्यायोग 'छन। भय , शोक , चिंता,क्रोध , लोभ , मोह ,अज्ञान ,मान , अहंकार ,जलन,मिथ्यादर्शन ,नास्तिक्य बुद्धि , यी मनका 'मिथ्यायोग' छन। ३८। 
संक्षिपम वाणी , मन ,अर शेयर तै जु  अहितकारी अर नि बुल्यां कर्म छन , अतियोग या अयोग म  जु समावेश नि हूंदन वो सब 'मिथ्यायोग' जणे जयांदन।  वाणी मन ,अर शरीर यूंको अतियोग , अयोग ,अर मिथ्यायोग तै 'प्रज्ञापराध' I ३९ ,४०। 

 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १४१, १४२    बिटेन    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021 का
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Bhishma Kukreti

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ऋतु परिपेक्ष्य म मिथ्यायोग , अतियोग अर आयोग  व्याख्या 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 
 
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )     पद  ४१ -४२   बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -  ८४
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हेमंत अर शिशिर शीत  काल,  वसंत , अर  ग्रीष्म , रूड़ी  ,  बरखा , शरद अर वर्षा काल।  ये हिसाबन हेमंत , शिशिर ,वसंत,ग्रीष्म ,वर्षा अर शरद यूं  छह ऋतुओं  वळ वर्ष रूप, काल ,शीत , उष्ण  अर बरखा रूपम तीन प्रकारौ  च। यूंमा अपण लक्षणों से बिंडि हेमंत का हूण कालक 'अतियोग' च, शीतकालम बिंडी  शीत , ग्रीष्म म बिंडी  गरमी , बरसात म बिंडी  बरखा यी कल्क 'अतियोग' छन।  अर  हेमंत मा अपण  लक्षणों से कम  शीत  पड़ण  ' अयोग' च।  हेमंत काल मअपण  लक्षणों विपरीत लक्षणों हूण  अर्थात शीतकालम म बरखा ,या गरमी पड़ण ,गर्म्युं म शीत पड़न  या बरखा हूण , बरसात म निबरख जाण , गरमी  या शीत पड़न कालक 'मिथ्यायोग' च।  कालक दुसर  नाम परिणाम च।  ४१-४२।   
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १४२   बिटेन    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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शाखानुसारी ,   कष्ठानुसारी ,  रक्तानुसारी  रोग विभागीकरण व्याख्या
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )     पद  ४ ४ -   बिटेन ५०  - तक
  अनुवाद भाग -  ८५
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रोग तीन प्रकारौ हूंदन १- निज जु अपण शरीर से उतपन्न हूंदन , २ -आगन्तुज ३- मानस।  १- निज जु  शरीरौ  दोष वात , पित्त अर कफ क कारण से हूंदन , २- आगन्तुज अर्थात -भूत, विष ,स्थावर , जंगम विष से जन्य , दुष्ट वायु , आग की चपेट से पैदा हूण  वळ  रोग ३- इष्ट वस्तु नि मिलण पर अर  अनिष्ट वस्तु मिलण पर मन का रोग (मानस ) पैदा हूंदन।   ४४।
बुद्धिमान मनिख तै चयेंद कि मानस व्याधि रौंद बि  लोभ ,काम , क्रोध  अर मोह का विपरीत , उत्तम बुद्धि से हित अर  अहित कार्यों विचार करदा धर्म , अर्थ ,अर काम यूंको अहितकारी कार्यो छुड़न म , तत्पर एवं धर्म , अर्थ अर  काम कार्य  सेवन करणम   प्रयत्नशील रहण चयेंद।  किलैकि जगम धर्म , अर्थ अर काम बिना मनोजन्य सुख या दुःख हूंदी नि  छन। इलै धर्म , अर्थ अर  काम का हितकारी कार्य  ग्रहण म अर अहितकारी कार्य त्यागण म प्रयत्नशील हूण  चयेंद व यांकुन जणगरुं सेवन (सहायता , संग, सलाह , राय  ) करण  चयेंद। आत्मज्ञान , स्थान ज्ञान , समय ज्ञान ,बल ज्ञान , शती ज्ञान कुण  उचित रीति  से पर्यटन करण  चयेंद।  ४५।
अर ये प्रसंग मा एक श्लोक चा बल औषध , धर्म अर्थ काम (त्रिवर्ग ) का सेवन करण ,धर्म , अर्थ अर  काम का शिक्षा /सलाह दीण वळ बृद्ध जणगरु  सेवा करण आत्मज्ञान ,देश , काल ,बल आदि की ज्ञान करण मांस व्याधियों औषध च।  ४६।
 रोगुं तीन मार्ग छन जन - १ शाखा , २ -अस्थि संधियां ,मर्म ,३- कोष्ठ।   यूं मा   शाखा रक्त आदि  छह धातु अर त्वचा यी  सात बाह्य रोग मार्ग छन, मूत्राशय , हृदय ,सिर ,मस्तिष्क , एक सौ सात मर्म अर  अस्थि , संधियां ,अर  यूं  से बंधीं स्नायु ,कंडरायें यी मध्य रोग मार्ग छन, यू  दुसर  मार्ग च । शरीरौ मध्यम बड़ा भारी स्रोत बड़ा भारी गड्ढा तुल्य छन , ये तै आमाशय या पाकाशय बुल्दन , यू तिसर 'आभ्यंतर रोग मार्ग च।  ४७।  यूंमा  गंड (गळगंड रोग ना ) , फुन्सी , अलजी ,अपजी , चरम कील ,अधिमास ,मस्सा ,कुष्ठ , व्यंग्य / गुप्त रोग व टेढ़ा मेदा , मिंडक आकृति  , अर अजगल्लिका आदि रोग बाहिमार्गी रोग छन।वासर्प ,  सूजन , गुल्म (वायु गोळा )  ,अर्श (बबासीर )  , त्रिदाधि  शाखानुसारी या रक्तादि अनुसारी रोग  हूंदन।  पक्षाघात ,मन्याग्रह  (गौळम मरोड़ ),अपतानक ,सरदित , शोष ,राजयक्ष्मा ,अस्थि शूल ,संधिशूल ,गुदभ्रंश,हिक्का ,आदि शिरो रोग , हृदय रोग ,वस्ति रोग,एंड बृद्धि रोग ,मध्यम मार्गी अनुसारी रोग छन। जौर ,अतिसार ,छर्दि ,  बिस्वी  (हैजा ) अलसक ,खासो ,स्वास,हिक्का,अनाह ,उदर ,प्लीहा,आदि रोग 'अंतर्मार्ग से उतपन्न हूंदन। बीसर्प,सूजन ,गुल्म ,अर्श,अर त्रिदधि ,जु  शाखानुसार ,रोग छन ,वो कष्टानुसारी हूंदन। रक्तानुसारी कष्ठानुसारी नि  हूंदन। अर कष्ठानुसारी रोग शाखानुसारी रोग नि  हूंदन। ४८ -५०।

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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ    १४३  बिटेन  १४५   तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
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चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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Bhishma Kukreti

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झूटो , धोखेबाज अर  असली वैद्यों म अंतर

झूठा , धोखेबाज , वास्तविक वैद्य ,
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )      पद  ५१  बिटेन  ५४ - तक
  अनुवाद भाग -  ८६
गढ़वालीम  सर्वाधिक  पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार   - आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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भिषज /चिकित्स्क बि तीन बनि  हूंदन -  १- छद्मचर  २ -सिद्ध साधित अर वैद्य गुणों से युक्त इन  तीन बनि  चिकित्स्क पृथ्वी पर हूंदन।  ५१। 
छद्मचर वैद्यो लक्छण -वैद्यों या औषध्युं  भांडों , माटा या लोखर से बण्यां मनुष्यक  ढांचा ,पुस्तक या पत्तों तै दिखण से जु मनिख भिषज शब्द  (उपाधि ) प्राप्त करदो वो  वैद्य क ढांचा म नकली वैद्य छन , ताजी छन ५२। 
सिद्ध साधत वैद्य - जु हौर  जगा चिकित्सा कर्म म यश , ज्ञान अर सफलता प्राप्त कर्यां  होवन , वैद्यों नाम से वैद्य बण  जावन वूं  तै सिद्ध साधत वैद्य जाणो अर  यी बि  ताजी छन।  ५३। 
सदवैद्य का लक्छण - औषध को , प्रयोग अर शास्त्रौ ज्ञान ,लोक व्यवहार क जणगरु , प्रख्यात,रोग्युं तै सुखि करण वळ , प्राणभीषड़ बुले जान्दन।  यूंमा इ  वैद्यों लक्छण हूंदन। यूँ तै इ वेद  बुलण  चयेंद।  ५४। 


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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १४५   बिटेन  १४६    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charaka  Samhita, First-Ever Garhwali Translation of Charaka  Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charaka Samhita   


Bhishma Kukreti

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  ३  तीन प्रकारै  औषध 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )     पद  ५५  बिटेन  ५६  तक
  अनुवाद भाग -  ८७
गढ़वालीम  सर्वाधिक  पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार   - आचार्य  भीष्म कुकरेती
- ) !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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औषध तीन प्रकारा  छन - दैवव्यापाश्रय , मुक्तिव्यपाश्रय, सत्वावजय।  यूं मधे  दैवव्यपाश्रय याने भेमाता (देव ) पर आश्रित औषध , मंत्र  औषधि , मणि , मंगल ,शुभ कर्म , नियम , पश्त्यौ  (प्रायश्चित ) , वर्त ,स्वस्तिपाठ ,सिवालगाण , तीर्थ जात्रा, जन छन।  युक्ति याने योग आश्रित औषध , आहार,एवं औषध द्रव्यों , दोष नाशक द्रव्यों योजना। सत्वावजय अर्थात मन   तै अहितकारी विषयों से रुकण।  यी तीन प्रकारै  औषधि छन।५५।
शरीराक वात , पित्त ,  कफ यूं  दोषो क कुपित हूण  पर शरीर तै इ  आश्रित करी तीन प्रकारौ औषध विशेष रूपम व्यवहार म लाये  जान्दन। जनकि अन्तः परिमार्जन , बहि:परिमार्जन ,अर  शस्त्र प्राणिधान।  यूं मदे जु  औषध या आहार शरीरो अंदर घुसि उतपन्न हुयां  रोगों तै शांत करद वो अन्तः परिमार्जन च। अर  जु  सरीलौ  भैर इ  लुतक / त्वचा,पर अभ्यंग,स्वेद , लेप ,परिषेक , मालिस , आदि से रोग शांत हूंदन तो वूं  तै बहि:परिमार्जन बुल्दन। छेदन (द्वी करण ) , भेदन (आशय  का अंदर घुसण ), व्यधन (  आशयों  से भिन्न स्थलों भेदन ), दारण (चिरण ), लेखनन  (कुर्याण , खुरचण ), उत्पीड़न (उखण )  प्रच्छन  (शस्त्र से फड़न ),सीवान (सिलण ), एषण (नाड़ी या गति व्रण  तै ढुंढण ), क्षार /छार ( लवण , भषमो तै जळैक  सार ), जलौका (जूंक )  का उपयोग तै शस्त्र:प्राणिधान बुल्दन। ५६। 

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १४६   बिटेन १४७     तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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Bhishma Kukreti

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करोना  संक्रमण काल मा चरक की सीख
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   अग्यारौं   अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )  पद  ५७  बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -  ८८
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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बुद्धिमान हूण  पर 'बहि: परिमार्जन' या अन्तः परिमार्जन ' या शस्त्रक्रिया से  रोग शांत करदन।   किन्तु बाल , अनभिज्ञ , पुरुष मोह बश,अथवा प्रमाद से उतपन्न हूंद रोगों तै पैल नि पछ्याणद जन मूर्ख उतपन्न हूंद शत्रु तै नि  पछ्यणद। रोग पैल  सूक्ष्म रूपम हूंद अर पैथर  बढ़ि  जांद । बढ़न पर ये रोगक  जड़ जमि जांदन, जड़ पकड़ लीण पर रोग मूर्ख क आयु व बल द्वि रुङ्गोड़  डींदो। जब तक मनुष्य रोगन पीड़ित नि हूंद तब तक प्रतिकारक विचार नि करद।  अर जब दुखि  ह्वे  जांद तब तब रोग निराकरण बाराम घड्यांद /सुचद। सब पुत्रों ,स्त्रियों जाति सगा सबंदियों तै बुलैक बुल्दो ," म्यार सर्वस्व लेकि बि कै  वैद्य तै लाओ " . इन रोग्रस्त , निर्बल , मरणासन्न ,क्षीणेन्द्रिय , दीन , व्यक्ति की कु  रक्छा क्र सकुद  ?  वू  मूर्ख रक्छा   करण वळ  तै नि पाइका प्राण तज दीन्दन। जै हिसाबन पूँछम डोर बंधण  से गोह  बलवान पुरुष का खिंचण  से मर जांद उनि यु बि  मर जांद। इलै   सुख चाहक व्यक्ति तै सुखम ही रोगों हूण से पैलि या, रोग संचयतावस्था या  रोग तरुणावस्था म ी औषध्यूं  से रोग नाश कारो।  ५७-६४
 स्यु श्लोक
तिस्रैषणीय  अध्यायम बुद्धिमान ऋषि कृष्णात्रेय न तीन एषणा , उपस्तम्भ ,बल , रोगुं  कारण ,रोग मार्ग, वैद्य,भेषज्य ,औषध, यूं आटों तिन तिन  भेद करी कल्पना सहित उपदेश दयायी। ६५-६६। 
  II तिस्रैषणीय ११ अध्याय समाप्त II   
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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १४७   बिटेन    तक
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वायु  जनित रोग का कारण -१
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   बारौं   वातकलाकलाय अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )   १   पद   बिटेन  ६ तक
  अनुवाद भाग -  ८९
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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एक अगनै  ' वातकलाकलाय'  नामौ  अध्याय का व्याख्यान करला जन भगवान   आत्रेयन बोली। १-२।
वायुक अंशांश विकल्पना संबंधम  महर्षि लोक कट्ठा  ह्वेका  एक हैंका मत  जाणनो पुछण लगिन -  वायुका  क्या गुण छन ?  वायु तै कुपित करण वळ कु  कु  कारण छन ?  कुपित वायु श्नात करण  वळ  कु  वस्तु छन? अर  कै  भांति यीं अमूर्त , निरंतर चलण वळि , चंचल सुभावक वायु तै बिन प्राप्त कर्यां  कुपित करण  वळ वस्तु यीं  तै कन  कुपित करदन , अथवा   वायु शांत करण  वस्तु वायु शांत करदन ? अर  शरीर भितर  गति  करण  वळ अर भैर चलण  वळ , कुपित या अकुपित वायु क शरीर भितर गति करदा कु  कु कर्म छन , अर शरीर भैर गति  करदा यांक  कु  कु  कर्म हूंदन। ३।
ये प्रसंगम ऋषि सांकत्यायन  कुश न बोलि  - वायु का रुक्ष/रुखो  ,लघु , शीत ,दारुण ,खर विशद  यि छ  गुण  छन। ४। 
यीं  बात  सूि  ऋषि कुमारशिरा भरद्वाजन बोलि - जै  अनुसार तुमन बोलि  ठीक इनि  च।  यि  रुखा आदि छह गुण  वायुक छन इलै यूं  छै  गुण वळ पदार्थों , यूं गुण वळ प्रभावों व यूं  गुणों  वळ कर्मों बार बार सेवन करण  से वायु प्रकोप  हूंद ।  किलैकि धातुओं (जन्म दीण वळ ) समान गुण वळ पदार्थों का कर्मों  पुनः पुनः सेवन से धातुओं की वृद्धि होली। ५। 
इख पर बल्ख देसौ वैदन बोलि - जु तुमन बोलि  ठीक बोलि  ठीक इनि च।  यी  कारण  वात  तै  कुपित करदन।  यांको  विपरीत  स्निग्ध (चिकना ) ,गुरु , उष्ण,पिच्छिल , श्लक्ष्ण ,थूल , स्थिर , गुण  वळ  द्रव्य  या इन कर्म ये कुपित वायु क प्रशमन करदन।  किलैकि कोपक वस्तुओं  कारणों गुण  वळ द्रव्य धातुओं  तै शांत करदन।  ६। 


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