शाखानुसारी , कष्ठानुसारी , रक्तानुसारी रोग विभागीकरण व्याख्या
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , अग्यारौं अध्याय ( तिस्त्रैषणीय ) पद ४ ४ - बिटेन ५० - तक
अनुवाद भाग - ८५
गढ़वालीम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार - आचार्य भीष्म कुकरेती
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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रोग तीन प्रकारौ हूंदन १- निज जु अपण शरीर से उतपन्न हूंदन , २ -आगन्तुज ३- मानस। १- निज जु शरीरौ दोष वात , पित्त अर कफ क कारण से हूंदन , २- आगन्तुज अर्थात -भूत, विष ,स्थावर , जंगम विष से जन्य , दुष्ट वायु , आग की चपेट से पैदा हूण वळ रोग ३- इष्ट वस्तु नि मिलण पर अर अनिष्ट वस्तु मिलण पर मन का रोग (मानस ) पैदा हूंदन। ४४।
बुद्धिमान मनिख तै चयेंद कि मानस व्याधि रौंद बि लोभ ,काम , क्रोध अर मोह का विपरीत , उत्तम बुद्धि से हित अर अहित कार्यों विचार करदा धर्म , अर्थ ,अर काम यूंको अहितकारी कार्यो छुड़न म , तत्पर एवं धर्म , अर्थ अर काम कार्य सेवन करणम प्रयत्नशील रहण चयेंद। किलैकि जगम धर्म , अर्थ अर काम बिना मनोजन्य सुख या दुःख हूंदी नि छन। इलै धर्म , अर्थ अर काम का हितकारी कार्य ग्रहण म अर अहितकारी कार्य त्यागण म प्रयत्नशील हूण चयेंद व यांकुन जणगरुं सेवन (सहायता , संग, सलाह , राय ) करण चयेंद। आत्मज्ञान , स्थान ज्ञान , समय ज्ञान ,बल ज्ञान , शती ज्ञान कुण उचित रीति से पर्यटन करण चयेंद। ४५।
अर ये प्रसंग मा एक श्लोक चा बल औषध , धर्म अर्थ काम (त्रिवर्ग ) का सेवन करण ,धर्म , अर्थ अर काम का शिक्षा /सलाह दीण वळ बृद्ध जणगरु सेवा करण आत्मज्ञान ,देश , काल ,बल आदि की ज्ञान करण मांस व्याधियों औषध च। ४६।
रोगुं तीन मार्ग छन जन - १ शाखा , २ -अस्थि संधियां ,मर्म ,३- कोष्ठ। यूं मा शाखा रक्त आदि छह धातु अर त्वचा यी सात बाह्य रोग मार्ग छन, मूत्राशय , हृदय ,सिर ,मस्तिष्क , एक सौ सात मर्म अर अस्थि , संधियां ,अर यूं से बंधीं स्नायु ,कंडरायें यी मध्य रोग मार्ग छन, यू दुसर मार्ग च । शरीरौ मध्यम बड़ा भारी स्रोत बड़ा भारी गड्ढा तुल्य छन , ये तै आमाशय या पाकाशय बुल्दन , यू तिसर 'आभ्यंतर रोग मार्ग च। ४७। यूंमा गंड (गळगंड रोग ना ) , फुन्सी , अलजी ,अपजी , चरम कील ,अधिमास ,मस्सा ,कुष्ठ , व्यंग्य / गुप्त रोग व टेढ़ा मेदा , मिंडक आकृति , अर अजगल्लिका आदि रोग बाहिमार्गी रोग छन।वासर्प , सूजन , गुल्म (वायु गोळा ) ,अर्श (बबासीर ) , त्रिदाधि शाखानुसारी या रक्तादि अनुसारी रोग हूंदन। पक्षाघात ,मन्याग्रह (गौळम मरोड़ ),अपतानक ,सरदित , शोष ,राजयक्ष्मा ,अस्थि शूल ,संधिशूल ,गुदभ्रंश,हिक्का ,आदि शिरो रोग , हृदय रोग ,वस्ति रोग,एंड बृद्धि रोग ,मध्यम मार्गी अनुसारी रोग छन। जौर ,अतिसार ,छर्दि , बिस्वी (हैजा ) अलसक ,खासो ,स्वास,हिक्का,अनाह ,उदर ,प्लीहा,आदि रोग 'अंतर्मार्ग से उतपन्न हूंदन। बीसर्प,सूजन ,गुल्म ,अर्श,अर त्रिदधि ,जु शाखानुसार ,रोग छन ,वो कष्टानुसारी हूंदन। रक्तानुसारी कष्ठानुसारी नि हूंदन। अर कष्ठानुसारी रोग शाखानुसारी रोग नि हूंदन। ४८ -५०।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ १४३ बिटेन १४५ तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
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