पहाड़ कि याद
प्रदेश ए बेर रे रयाँ, नी भुल्याँ पहाड़ कि याद !
आंखिन रिटी हर घडी, आजि ले नानछनिक बात !
गोरु भैसनाक दगाड, जंगल जै रेछी !
ग्वालन क दगाड, उड़ीयार भै रुछि!
बर बर बर बर हियुं पड़, दिन बरखा की तोडात
आँखिन रिटी हर घडी, आजि ले नानछनिक बात !
इजाक हातक, लगाद मिल्छ्या
घी पुडी दगाड , छास पी लिछिया!
आमाक एँण किस्सान में, है जा छि रोज अधरात !
आँखिन रिटी रुछि हर घडी, आजि ले नान छ्नानिक बात!
पहाड़ जै बेर, घी पूवा खै उ छ्या
घौत भट, काकड़ा काफल ल्ही उन्छया!
ओ भुला ओ भूली झन छोडिया पहाड़ की अपनी थात
आँखिन रिटी रुन्छी हर घडी आजि ले नानछ्नाकी बात !
घनानंद पाण्डेय 'मेघ'
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