Author Topic: Heart Touching Poems on Uttarakhand- पहाड़ पर लिखी गयी ये भाविक कविताये  (Read 18647 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Ajay Negi वीरान पड़े चौखट
 की,
 वो सुनहरी यादें
 
 खुशियों का जमावड़ा,
 लगा रहता था जहां
 
 चले गए हैं जो,
 नाम लेते तक नहीं,
 फिर से,
 लौट आने का
 
 मुरझाती चेहरे की झाइयाँ,
 डबडबाती चार आँखें,
 खो चुके हैं जो,
 स्वर
 
 बुला रहे हैं, अपनों को,
 जो हो चुके हैं,
 पराये
 मिथ्या की चाह में
 
 ***अजय नेगी***

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

क्या चैदुं त्वे हे पहाड़

पहाडु तैं विकाश चैदुं
जनता तैं हिसाब चैदुं
इन मरियुं यूँ नेताऊ कु
युं दलालु तैं ताज चैदुं
ठेकादारी युंकी खूब चलदी
रुपयों पर युं तै ब्याज चैदुं
गरीबु तै गास चैदुं
बेरोज्गारू तै आस चैदुं
गोरु बाखरों तै घास चैदुं ........राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bhagwan Singh Jayara

‎#प्यारु पहाड़ #
ठंडू पाणी ठंडी हवा मेरा पहाड़ की |
हरी भरी डाडी देखा मेरा पहाड़ की ||
हिंवाली कांठी यख कन दिखेंदी प्यारी |
देब्तो की धरती छ या सबू कै प्यारी ||
बदरी केदार यख देब्तो का धाम छन |
गंगा यमुना का यख उदगम स्थान छन ||
बानी बानी का फूल ,फूलू की घाटी छन |
चीड देवदार का यख घना जंगल छन ||
ऊंचा ऊंचा झरना यख दिखेंदा प्यारा |
बानी बानी का पंछी यख दिखेंदा न्यारा ||
गाड गदन्यों कु सुन्स्याट लगदु प्यारु |
धन् धन् या धरती ,धन् भाग हमारू ||
बुरांस फूल जख कन खिल्दा प्यारा |
जन्म लीनी यख धन भाग हमारा ||
जन्म भूमि यन छ हम सबू की प्यारी |
भुल्या ना कभी यन अर्ज छ म्यारी ||
ठंडू पाणी ठंडी हवा मेरा पहाड़ की |
हरी भरी डाडी देखा मेरा पहाड़ की ||

द्वारा रचित >भगवान सिंह जयरा
अबुधाबी (संयुक्त अरब अमीरात )
दिनांक >२२/०४/२०१२

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sunita Negi
‎'''इजा क पञ आपण परदेशी चलक लिजिक'''

मै भी आति
हूँ
अपनी पुन्थरि
बाध कर
परदेश को.......
याद आति है
हँसि भी छूटति है
हाथ खुट काम नही करते
बेटा
डुनुक-डुनुक
पानी लाती हुँ
नौला के चार चक्कर लगाती हुँ
गागर मे पानी नही ला पाती हुँ
फिर भी
तेरे बौज्यू कि प्यास बूझाति हुँ
गालि भी देते है
त्यर बौज्यू
और......
चुप-चाप रौते भी है
अपने नाति कि याद मे

''दो साल हो गये इन बुडि आँखो मै
तुमारा रास्ता देखते-देखते''
तुम ना आये
तो ये
आंसू आये
बेटा
अब ना आंसू आते है
ना दिखाई देता है
आते-जाते लोगो से
एक लौटा पानी मिल जाता है
तुमारि याद मे
खुशि-खुशि दिन कट जाते है
तुम भल रया
खुश रया
जा ले रौला
जाग रया

इज-बौज्यूक
आर्शिवाद सदा
तुम्हारे उपर रहेगा
by-sunita negi

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sunita Sharma

मेअर देवभूमि , मेअर अंतर्द्वंद !

पलायन कु पीड़ा च तयार हृदय मा
बाँझ पड़ी छन पुन्गुड़ी कुठियार सरा !

अपाहिज ह्येह गयों मी ,भी तुय जनि,
मी नि बिसरे छौ तुय जन !
सुप्नेय कु तान- बान मा दूर हुय गयों बस ,
मरर्ण बाद जन शरीर कु हाल हुन्द ,
तन छाई मेअरा प्राण हे देवभूमि !

तेरी बठुली दिन रति सतौन्दी छ ,
मुलुक -२ हसंदी आय जांदी तू सुपन्यों मा,
भूखि तब भी रान्द्द छयी ,अब भी वनी छ ,
नौनियों का बचपन त घर भीतर सिमट गेई ,
उनक खेल परदेश मा खोई गैन !

यख ता मी पेल भी इकुली छाई ,अर अब भी,
प्रवासी हूण की सजा भुग्दी रांदु सदनि ,
अब त वापिस आन भी चांदू पर .....,
सुप्न्युन व् हकीकत कु अंतर्द्वंद ,च लग्युं !

पलायन कु पीड़ा च तयार हृदय मा
बाँझ पड़ी छन पुन्गुड़ी कुठियार सरा

सर्वाधिकार सुरक्षित ,पूर्व प्रकाशित २१.६ .१९९७

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dinesh Nayal

कैकी खुद होली आज सताणी
घुट-२ बाडुली गौला मा लगाणी
होली क्या ऊं बाटा घाटों की
कभी हिटुणु सीखू छौ जौंमा
होली क्या ऊं डांडी काठ्यूं की
जू छन मेरा मुलुक गौंमा
होली क्या वै स्कूल की जख
पाटी ब्वल्ख्या ली जांदा छाया
या होली मेरा वै स्कूल की
जख बिटि इंटर पास काया
होली क्या ऊं डांडों की जख
गोरुं का दगिडी जांदा छाया
कखड़ी मुंगरी खूब भकोरी छै
गैल्यों गैल जब जांदा छाया
होली क्या ऊं पुंगिड्यों की
जख कभी होळ छौ लगाई
या होली ऊं बणों की जख
लखुडू का बाना मी छौ जाई
होली क्या ऊं थाडों की जख
कभी थड्या चौंफला लगाई
ब्यो बरात्यों मा जख कभी
पंगत मा बैठी की खाणु खाई
कैकी खुद होली आज सताणी
घुट-२ बाडुली गौला मा लगाणी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bhagwan Singh Jayara

दोस्तु कभी कभी अपरा पहाड का मंनख्यों का बार सोचदू ,की पैली का मनख्यों अर अब का मंनख्यों माँ यु फर्क किले एगी ,क्या आदुनिकता का ये दौर माँ हमारा संस्कार ,भावना और बिचार भी बदिलिज्ञन क्या ?
# पहाड़ कु मनिखी#

मै थौऊ एक सीदू सादू मनिखी पहाड़ कू |
कन कई समझौंण अपर ये दुखी मन कू ||
पैली थौऊ मै ईमानदार शरीफ भारी |
इज्जत भी थई गौउ गला खूब म्यारी ||
उठणू बैठणु सबुकू खूब हौंदु थौऊ|
प्रेम प्यार हौंदु थौऊ सबू माँ भारी ||
मिली जुली सभी काम करदा था |
दुःख सुख माँ सभी साथ रंदा था ||
पर नि जाणी कैकी लगी नजर |
यनि बदलिगी अब अब यख डगर ||
प्यार मोहब्बत सभी कखी ख्वेगी |
आपस माँ सिर्फ बैर भावना ही रैगी ||
खाणी कमौणी सी कैकी कुइ खुश नि छ |
होणी खाणी सी लुकारी ,बहुत दुखी छ ||
यन बदलिज्ञन सब बिचार अब सारा |
दूसरा कु पेट काटा और अपुरु पेट भरा ||
उलटी गंगा बगणी छ अब यख |
शुल्ट् कुई नि छ सोचणु अब यख ||
पाणी ही बदलिगी अब पहाड़ कू |
रंग ढंग भी उनी व्हेगी अब यख कू ||
किलेई बदली या पहाड़ की आबो हवा |
कुइ त मै तै जरा डाटी की समझावा ||
मै थौऊ एक सीदू सादू मनिखी पहाड़ कू |
कन कई समझौंण अपर ये दुखी मन कू ||

द्वारा रचित >भगवान सिंह जयरा
अबुधाबी ,सयुक्त अरब अमीरात

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पहाड़ पुकारता हैby Dinesh Nayal

थम चुकी है बारिश
बस रह-रह कर गीली दीवारों से
कुछ बूँदें टपक पड़ती है
मैं अपनी छत पर जाकर
देखता हूं पहाड़ों का सौंदर्य
कितना खुशनसीब हूं मैं
कि पहाड़ मेरे पास हैं
 
मेरे घर के ठीक सामने के पहाड़ पर
है बाबा नीलकंठ का डेरा
इधर उत्तर में विराजमान हैं
माता कुंजापुरी आशीष दे रहीं
इनके चरणों मैं बैठा हूँ
कितना खुशनसीब हूं मैं
कि पहाड़ मेरे पास हैं
 
बारिश के बाद अब धुलकर
हरे-भरे हो गए हैं पहाड़
सफ़ेद बादलों के छोटे-२ झुण्ड
बैठ गए है इसके सर पर
इस अप्रतिम सौंदर्य को निहारता हूँ
कितना खुशनसीब हूं मैं
कि पहाड़ मेरे पास हैं
 
पहाड ने दिए हमें पेड़, पानी, नदियाँ, गदेरे
ये रत्न-गर्भा और ठंडी बयार
पर पहाड़ का पानी और जवानी
दोनों ही बह गए इसके ढलानों पर
मैं पहाड़ पर नहीं हूँ फिर भी
कितना खुशनसीब हूं मैं
कि पहाड़ मेरे पास हैं
 
पहाड़ को कभी रात में देखा है
हमारी संस्कृति का ये महान प्रतीक
अँधेरे में सिसकता है, दरकता है
पुकारता है आर्द्र स्वर में कि लौट आओ
मैं पहाड़ पर लौट नहीं पा रहा हूँ पर
कितना खुशनसीब हूं मैं
कि पहाड़ मेरे पास हैं
 
ये खुदेडा महीना उदास कर रहा है क्यों
बादल ही तो बरसे हैं फिर
भला आँखें मेरी नम हैं क्यों
पहाड़ रो रहा है, हिचकी मुझे आती है क्यों
मैं समझ नहीं पा रहा हूँ
क्या वाकई खुशनसीब हूं मैं
कि पहाड़ मेरे पास हैं
 
नोट- इस कविता में पहाड़ों से युवाशक्ति के पलायन और पहाड़ का दर्द व्यक्त करने की ये मेरी एक कोशिश भर है|
 
 
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Vikram Negi आओ,
 पहाड़ आओ,
 टूटी-फूटी सड़कों ने अपने ज़ख्म भर लिए हैं,
 तुम्हारी गाड़ियों के टायरों को अब थकान महसूस नहीं होगी,
 पहाड़ इतना भी बेशर्म नहीं है
 कि तुम्हारा ख्याल न रखे
 
 आओ,
 पहाड़ बेचैन है,
 तुम्हारी यात्राओं का वर्णन सुनने के लिए,
 न जाने कितनी बार तुम पहाड़ की छाती पर टहलते हुए निकले,
 अस्कोट से आराकोट
 
 आओ,
 पहाड़ जानना चाहता है
 अपनी कीमत,
 जो तुम्हारी किताबों में प्रिंट है,
 उसे सिर्फ इतना पता है
 कि लकड़ी, पत्थर, मिट्टी, रेता, बजरी से बना
 उसका जिस्म रोज बिकता है,
 
 वो समझना चाहता है कि
 उसकी आबरू, उसकी संवेदनाओं की कीमत कैसे तय होती है,
 पहाड़ देखना चाहता है,
 तुम्हारी मोटी-मोटी किताबें,
 उसे मालूम नहीं तुम्हारा अर्थशास्त्र,
 पहाड़ की गणित कमज़ोर है,
 
 उसे पता नहीं था,
 कि वो इतना कीमती है,
 पहाड़ अनपढ़ है,
 उसे तुम्हारी तरह लिखना नहीं आता,
 पहाड़ सुनना चाहता है,
 अपना दर्द
 तुम्हारी जुबानी,
 आओ,
 घाट का पुल तुम्हारे इंतज़ार में आँखें बिछाए खड़ा है.....!
 ...
 "बूँद"
 २३ मई २०१२

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अपना कहकर बात धर्म की नहीं छिपाई जाती
सच्ची बातें झूठी भी ये नहीं बताई जाती

गिरिराज के किस्से का विस्वास नहीं होता है,
ऊँगली में पर्वत की चोटी नहीं उठाई जाती.

गर्भ से मरियम के जन्मे थे जीसस, और ये बात,
परमेश्वर का पुत्र है कहकर नहीं बताई जाती.

लिखा है कहते हैं कुरान में “क़त्ल करो काफ़िर का”
ईश्वर की ऐसी आज्ञा तो कहीं न पाई जाती.

ईश्वर के लिए पुण्य समझकर भी त्यौहार के दिन,
मंदिर में बकरी की लाशें नहीं बिछाई जाती.
.....
शिव दत्त सती
(संवत- 1848)
मूल कुमाउनी गज़ल
हिंदी रूपांतर- विक्रम नेगी “बूँद”

 

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