Author Topic: Heart Touching Poems on Uttarakhand- पहाड़ पर लिखी गयी ये भाविक कविताये  (Read 18646 times)

Bhishma Kukreti

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Dushman: A Shocking Satirical Poem by Madan Duklan

    (Review of Poems of ‘Andi Jandi Sans’ a Garhwali Poetry collection by Madan Duklan)

                          Bhishma Kukreti
[Notes on Shocking Satirical Poems; Shocking Satirical Garhwali Poems; Shocking Satirical Uttarakhandi Poems; Shocking Satirical Mid Himalayan Poems; Shocking Satirical Himalayan Poems; Shocking Satirical North Indian Poems; Shocking Satirical Indian Poems; Shocking Satirical South Asian Poems; Shocking Satirical Asian Poems]

  Critics state that the specialty of poems by famous Garhwali poet Madan Duklan is that he seldom repeats the old subject and if he does so there will differences in phrases and methodology of creating images in the mind of readers.
  The following poem is an example of providing shocks to the readers by Garhwali satirical poem. The satirical poem does not have any humor but ultimately frightens the readers for the state of humanity.
दुश्मन
***
कवि - मदन डुकलाण
**
मुसौं को दुश्मन
बिरळो
गुरौ को दुश्मन
नेवला
छौना-चिनकों दुश्मन
स्याळ
गोर -बखरों दुश्मन
बाघ
मनिख दुश्मन
मनिख को
Literal Translation----

Cat is mouse’s Enemy
Mongoose is snake’s Enemy
Fox is Goat’s Enemy
Fox is sheep’s Enemy
Tiger is Caw’s Enemy 
Human is human’s Enemy
Copyright@ Bhishma Kukreti 12/7/2012
Notes on Shocking Satirical Poems; Shocking Satirical Garhwali Poems; Shocking Satirical Uttarakhandi Poems; Shocking Satirical Mid Himalayan Poems; Shocking Satirical Himalayan Poems; Shocking Satirical North Indian Poems; Shocking Satirical Indian Poems; Shocking Satirical South Asian Poems; Shocking Satirical Asian Poems to be continued

Bhishma Kukreti

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कतगा महान छौ रे भज्ञान, गुजडू को थानी.*******


कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल


कतगा महान छौ रे भग्यान,गुजडू को थानी.
नारंगी कि दाणि मिठी भग्यान,नारंगी कि दाणी.
कतगा महान छौ रे भग्यान,गुजडू को थानी.

खैंडी जालि खाई गैरी भग्यान,खैंडी जाली खाई.
आजादी का बान त्वेन भग्यान,कनि लड़ी लडाई.
कतगा महान छौ रे भग्यान,गुजडू को थानी.

खाई जालो केला देसि भग्यान,खाई जालो केला.
कतगा बार गैन जेल भग्यान,गांधीजी कु चेला.
कतगा महान छौ रे भग्यान,गुजडू को थानी.

चदरी कि खाप चौड़ी भग्यान,चदरी कि खाप.
यूजर्स कि गाड़ी चलि भज्ञान ,तेरा ही प्रताप.
कतगा महान छौ रे भग्यान,गुजडू को थानी.

खाई जालो पान देसि भग्यान,खाई जालो पान.
इस्कूल बणेन त्वेन भग्यान,मुल्क का बान.
कतगा महान छौ रे भग्यान,गुजडू को थानी.
       डॉ नरेन्द्र गौनियाल  सर्वाधिकार सुरक्षित.(डूंगरी गांव,पट्टी गुजडू,पौड़ी गढ़वाल के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी स्व०थान सिंह नेताजी कि याद मा )


Bhishma Kukreti

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Dunya Bachan: Garhwali poem Calling ‘Save the Earth ‘

दुन्या बचाण त...

कवि- मदन डुकलाण

दुन्या बचाण त
बचै का राखा
लासौं मा खून
पांसौं मा दूध
अगास मा सूरज
बादळु मा जून
दुन्या बचाण त
बचै कि राखा
गौं - गुठ्यार
बार त्यौहार
अपनों ऐना
अपनों अन्द्वार (अन्वार )
दुन्या बचाण त
बचै कि राखा
मन मा माया
पित्रु की छाया
रौल्युं मा छ्वाया
चुल्लों मा आग
बणु मा बाग़
दुन्या बचाण त
बचै कि राखा
हिमालय मा ह्यूं
मंदिरों मा द्यूं
माणि मा घ्यू
जिकुड़ी मा ज्यू
दुन्या बचाण त
बचै कि राखा
आंख्युं मा आंसू
मन मा सान्सू
कोखी कि बेटी
ब्व़े कि बोली
सर्वाधिकार , मदन डुकलाण
The earth would be saved
When in body the blood is saved
When in nipple milk is saved
When in sky the sun is saved
When in cloud the moon is saved
The earth would be saved
When in village, courtyard is saved
When in country the festivals are saved
When our own mirror is saved
When our own face is saved
The earth would be saved
When in mind, the love is saved
When in small valleys, the springs are saved
When the fire is saved
When in jungle, tiger is saved
 The earth would be saved
When in Himalaya, the snow is saved
When in temples, earthen lamp is saved
When in pot, ghee is saved
When in eyes, tear is saved
When in uterus, girl child is saved
When in society, mother tongue is saved

 Copyright@ Madan Duklan  13/7/2012

Bhishma Kukreti

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प्रसिद्ध गढवाली कवि नेत्र सिंह असवाल कि कुछ गढवाली गजल

मुखै  ऐथर सौ चरेतर करदीं लोग   

पीठ पीछ सर्र , भूलि जैन्दि  लोग I

**

 गाळि  दियांला , नुँना कि म्वरदा 

फिर भी रोज नई, गाळि दिंदि लोग I

***

ऊंस चट्याँन , तीस नि जांदी

तीस बढ़ाणौ   , ऊंस पिंदी लोग

**

म्वरणु भजुणु  अब आम बात छ

बस गीत मुंड हलैअ , मिसांड रंदी लोग I

**

उज्याड़ बाड़ खांद , चुप द्यखदा रंदी लोग   

निगुसें का ढांगा थैं , कच्यांद  रंदी  लोग

**

सर्वाधिकार नेत्र सिंह असवाल, नई दिल्ली

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पहाड़ एक ही था,
तुमने दो कर दिए,
 सीधे-सादे पहाड़ के ऊपर तुमने
 अपना पहाड़ खड़ा कर लिया,
 हमारे पहाड़ के कपड़े उतारकर
 तुमने अपने पहाड़ को पहना दिए,
 तुम्हारा पहाड़ मोटा होता गया
 हमारा पहाड़ सिर्फ हाड़ रह गया
 तुम्हारे पहाड़ के बोझ से
 हमारे पहाड़ ज़मीन में धंस रहा है
 तुमने खूब मजे किए
 हमारे पहाड़ की बेचैनी को रिकॉर्ड करके
 तुमने खूब मोटी-मोटी किताबें लिखी
 हमारे पहाड़ के आंसुओं पर
 
 याद रखना
 हमारा पहाड़ अभी मरा नहीं है
 वो जिंदा है...
 हमारा पहाड़ पलटकर तुम्हें जवाब देगा....
 इंतज़ार करो...
 
 (लेखक : विक्रम नेगी )

Bhishma Kukreti

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ऊखै  फिकर... २ एक गढवाली कविता



कवि -डी डी सुंदरियाल "शैलज

फिकर त कवि-गीतारू भि छ
सब बुनान गढ़वालि लिखा
गढ़वालि सीखा, गढ़वालि बोला
(निथर हमरु लिख्युं कैन बिंगण)
पर वूंका नोन्याल गढ़वालि नि जणदा
अपणई दादि-दादा नि पछेणदा।

गढ़वालि सभा सोसेटि जगा-जगा
बस्ग्यली च्यूँ सि जमी छन
गढ़वाली गीत, कविता, ड्रामा त क्या
लोग फिल्म तक बणाना छन
पर दगड़ी-2 बांबे-दिल्ली कूड़ा
भि चिणआणi छन
गढ़वाल रीतु करि सर्या दून्याम फैलाण
य क्वी कम बात त नी च

इन त नी च कि

वूं तै ऊखै फिक्रर नी च।



डी डी सुंदरियाल "शैलज" , 49 शिवालिक विहार, जीरकपुर (पीबी)
9501150981


Bhishma Kukreti

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ब्याळि स्वीणा मा बाघ द्याख मिन



[भीष्म कुकरेती कि गढ़वळि पद्य, गढ़वाली कविताएँ, गढ़वाली गीत, गढ़वाली संगीत, उत्तराखंडी पद्य, उत्तराखंडी गीत, उत्तराखंडी कविताएँ लेखमाला से ]

 

मदन डुकलाण कि आधुनिक कविता

घाम मा बळु सी तपद द्याख मिन

नयारी छाल वो तिसाला द्याख मिन

द्वार मोर ढेकि दियां सींदी बगत

ब्याळि स्वीणा मा बाघ द्याख मिन

घुमणु गै छौ गौं , गर्मी मा पण

चौछ्वड़ी बणौ मा आग द्याख मिन

भैरा का सुकिला छन जो

वूंकी जिकुड़ी मा दाग द्याख मिन

हरची गेन सुर अर ताल बैठिगे

दुन्या को बिग द्यूं राग द्याख मिन



सर्वाधिकार @ मदन डुकलाण देहरादून 


भीष्म कुकरेती कि गढ़वळि पद्य, गढ़वाली कविताएँ, गढ़वाली गीत, गढ़वाली संगीत, उत्तराखंडी पद्य, उत्तराखंडी गीत, उत्तराखंडी कविताएँ लेखमाला जारी ...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Akela Kant देखा  है कभी पीठ पर पहाड़.
  जिस  भी रूप मे हो.वह .
 है तो पहाड़ ना,
 कर्तव्यों का पहाड़ ,दायित्वों का पहाड़ .
 दुखों का पहाड़ ,उपेक्षावों भरी जिंदगी मे ,
 एकाकीपन का बोझिल सा पहाड़,
 या सिर्फ यूँ कहिये ,
  पहाड़ों की जिंदगी ही ,
 है  एक पहाड़ ,
 काश कोई समझ पाता,विरह का पहाड़.
 और शायद वेदनाओं  से भरी मेरे पहाड़ की,
 घशियारियों की स्वर लहरियां .
 जो अक्सर गूंजती है ,
 वीराने जंगलों ,किसी पहाड़ की तलहटी ,
 या फिर पहाड़ की चोटियों के आसपास ,
 मंद और बेहद सुरीले स्वर मे....................श्रीकांत अकेला.

Bhishma Kukreti

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मेरा पहाड़ ........

कवि : पूरण पन्त पथिक
 
देवभूमि त्वैको ब्वदीन उत्तराखंड ,हिमवंत तेरो नाम केदारखंड
खंड ही खंड रैगैन वार बटी छ्वाड, मेरा पहाड़ ,मेरा पहाड़ .
गंडेळ  किदला जाना जीव बण्या छां ,माछौं को नों नी कखी , डौखा बण्या  छां
चौंर्या स्याल बिंडी ,हर्चिगैन काखड़  ,मेरा पहाड़ ...........

गंगा जमुना को मैत निरपाणी  डांडा, बुतण  लग्यां  सबी कांडा ही कांडा
पाणी सुख्युं ,धंद हर्चीं रगड़ - बगड़ ,मेरा पहाड़ ...........
गौली कै ह्यूं गदिन्युं रौल्युं समैगे ,ढुंगा रैडी-बोगी बोगी गंगल्वादा ह्वैगे
किलारोडी प्वाड्दीन भारी उखाड़ -पखाड,मेरा पहाड़ ...........

लापता खाडू का हम सिंग बण्या छां ,छोट्टू क्वी  रायो निछ ,ब़डा बण्या छां ,
किले जी होंद इनो ,बिजोग प्वाड, मेरा पहाड़ .............
@पूरण पन्त पथिक देहरादून

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From - Krishan Nayal
"हिटो पहाड़".......
 
 घर छोड़ी, बाड़ी छोड़ी, दाज्यू किले तुमुल पहाड़ छोड़ी.
  ईजा छोड़ी, बाबु छोड़ी, आमा छोड़ी, बुबू छोड़ी..
 
 हिसाल छोड़ी, काफल छोड़ी, दाडिम छोड़ी, रीखु छोड़ी.
 
  ठंडी हवा, पाणी छोड़ी, दाज्यू किले तुमुल पहाड़ छोड़ी..
 
 सूट लगुनी, बूट लगुनी, पेंट लगुनी, कोट लगुनी..
  पंजाबी सूट लगुनी, टॉप कट्दार लगुनी...
 
 घुघूती त्यार छोड़ी, उतरयानी म्यल छोड़ी,
  आफुण धड छोड़ी, दगड़ छोड़ी...
 
 दाज्यू किले मीठी बाणी छोड़ी,
  दाज्यू किले तुमुल पहाड़ छोड़ी...
 
 घर छोड़ी, बाड़ी छोड़ी, दाज्यू किले तुमुल पहाड़ छोड़ी.
  ईजा छोड़ी, बाबु छोड़ी, दाज्यू किले तुमुल पहाड़ छोड़ी.
 
 "आपुण बोली, आपुण बुलान
  जय पहाड़, जय पहाड़"..
 
  धन्यवाद..
  कृष्णा नयाल

 

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