Author Topic: हेमा उनियाल प्रसिद्ध लेखक : HEMA UNIYAL - RENOWNED WRITER, DIRECTOR OF UK  (Read 17487 times)

पंकज सिंह महर

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मेहता जी, धन्यवाद,
   इस व्यक्तित्व से हमें परिचित कराने के लिये। आप हेमा जी की सहमति से उनकी किताब के कुछ अंश फोरम में डाल सकें तो हमारा ग्यानवर्धन होगा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Documentary made by Hema Uniyal Ji on Kumoan ke Temple.



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Hema Uniyal Ji has given CD of this Documentary to Merapahad Team.

I personally watched and found it very information worth highlighting the cultual aspect of Uttarakhand. 




Documentary made by Hema Uniyal Ji on Kumoan ke Temple.




एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उनियाल जी सबसे बड़ा शोध कार्य - गढ़वाल के मंदिर

गढ़वाल के मंदिरों पर चल रहा है जिसमे उन्होंने व्यतिगत रूप से लगभग उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से सारे मंदिरों का भ्रमण किया हुआ है और जिनमे उन्होंने सारे मंदिरों की पौराणिक, आध्यात्मिक जानकारी दी है!

हेमा जी इस किताब पर लगभग २००६ से कार्य कर रही है और अगले साल तक उनकी यह किताब मार्केट में उपलब्ध होगी!

हेमा जी कुमाऊ के मंदिरों में पहले ही एक किताब प्रकाशित हो चुकी है, जिसका की हम विवरण दे चुके है !

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is the CD Cover of another Documentary Film made by Hema Uniyal Ji.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Hema Uniyal Ji expressing her views on Seminar organized by merapahda.com (Creative Uttarakhand) on 07 Feb 2010, New Delhi.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जीवन की सार्थकता देवभूमि उत्तराखण्ड़ मेरी जन्मस्थली रही है जिसे मैं अपना परम सौभाग्य मानती हूँ । इस खूबसूरत धरती को समझते, आत्मसात करते न जाने कब यह महसूस होने लगा कि इस धरती का वास्तविक सुख इस धरती में समाए आध्यात्मिक ऊर्जावान तत्वों को खोजने में है। यह खोज धर्म के मार्ग पर बढते हुए ही संभव हो पाई जिसके केंद्र में रहे उत्तराखंड के अनेकानेक दिव्य मंदिर । वैदिक काल से ऋषि मुनियों की ध्यान व् आश्रय स्थली रही उत्तराखंड आज भी उन ऊर्जावान श्वासों को महसूस कर सकता है। आज भी उन महात्माओ के पद चिन्हों की धूल मिश्रित सुगन्ध उस संपूर्ण वातावरण में घुल-मिल चुकी है जो इन मार्गों पर गुजरने वाले लोगों को परम आध्यात्ममय शक्ति से भर देती है । दया, धर्म, त्याग, परोपकार, प्रेम, आस्था सभी के द्वार एक-एक कर यहाँ स्वतः खुलने लगते हैं । दृष्टि को उदार रखना है और जीवन को समझना है तो यात्राएं ज़रूरी हैं क्योंकि यहाँ प्रकृति की उदात्त गोपनीयता में हमें कुछ न कुछ सीख अवश्य मिलती है । उत्तराखंड की अनेकानेक धार्मिक, पर्यटन स्थलों की यात्राओं से यह महसूस होने लगा है की पृथ्वी का स्वर्ग अगर कहीं है तो इन यात्राओं के सान्निध्य में ही कहीं छुपा हुआ है। आज ज़रूरत है तो सिर्फ यह कि मनुष्य भौतिकवाद व् धन की लोलुपता से बाहर निकल जीवन और इस हिमालयिक अंचल के वास्तविक अर्थ को समझने और आत्मसात करने की दिशा में एक सार्थक पहल शुरु करे।

By Hema Uniyal

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From : Hema Uniyal

पहाड़ का दर्द    समस्याओं में घिरा पहाड़
प्रश्न जीने मरने का नहीं
प्रश्न है जीवन से जूझने का
विषमताओं को झेलने का


पहाड़ों में
असमय बूढ़ी होती जवानी
खेतों  में सिंचता पसीने का पानी
आस, बची है परदेस में अपनों की
टीस, पहाड़ को छोड़ते अपनों की


आश्वासनों पर लटका
वादों पर टिका पहाड़
रोज़गार, प्रगति, अनुशासन
सब चुनावी मुखौटे
दर्द में भीगता पहाड़
प्रश्नों से जूझता पहाड़

http://hemauniyal.blogspot.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  नहीं भाएगा ऐसा अंत     
गिर्दा जैसा जीवन जीने की चाह भले ही अधिकतर लोगों के ज़हन में हो या न हो किन्तु गिर्दा (गिरीश तिवाड़ी) जैसी अंतिम यात्रा लोगों के मन के किसी न किसी कोने में ज़रूर छुपी हुई मिलेगी।
आज की जीवन शैली, सामाजिक तटस्थता. शहरों व महानगरों के भागमभाग जीवन में व्यक्ति चार आदमी जुटा पाने के भय से भी जहाँ कभी आशंकित हो जाता है वहीं हज़ारों व्यक्तियों की उपस्थिति में गिर्दा की अंतिम विदाई एक इतिहास बन गयी।
सम्भवतः गिर्दा के मन में भी कहीं न कहीं यह चाह अवश्य रही होगी कि जीवन चाहे कितनी भी सादगी से क्यों न जीया हो लेकिन अंतिम परिणति भव्य होनी चाहिए। सम्भवतः इसी  कारण से वह अपनी एक इच्छा पूर्व में प्रकट कर चुके थे कि अंतिम यात्रा उनके लिखे गीतों को गाकर निकाली जाए।  अपनी मृत्यु के बाद का एक खाका पूर्व में ही गिर्दा अपने भीतर खींच चुके थे, किन्तु अप्रत्याशित जनसमुदाय की उन्हें आशा न रही होगी।
जो लोग गिर्दा के बहुत करीब हैं और उन्हें दिल व दिमाग से बेहतर समझते हैं वे ज़रूर उस दिन इस बात को समझ रहे होंगे की गिर्दा स्वयं की शव यात्रा में उस दिन कितने मंत्रमुग्ध थे।
अपने प्रिय जनों के कंधे पर चढ़ते-उतरते, अपने लिखे गीतों को सुनते-मुस्कराते नैनीताल में पहली बार स्त्रियों के शवदाह भूमि तक पहुँचते देख गिर्दा सचमुच उस दिन अभिभूत हुए होंगे ।  कुछ पुरा्नी प्रथाओं को इस यत्रा मे मुक्ति भी मिल गई थी। गिर्दा की अतिरेक तृप्ति  का भाव कफ़न से भी कहीं झाँकता उस दिन प्रतीत हो रहा होगा। लोगों ने चाहे पहले कभी उन्हें इतनी प्रसन्न मुद्रा में देखा हो या न देखा हो लेकिन मेरी अन्तर्दृष्टि में गिर्दा अपनी शव यात्रा में सबसे अधिक गद-गद नज़र आए । विशाल जनसमूह के हृदय से मिले प्रेम- स्नेह ने उन्हें आत्मविभोर कर दिया था। अपनी पत्नी व बेटे को लेकर चिंता की कुछ लकीरें उनके माथे पर ज़रूर नज़र आईं किन्तु अपने मित्र, सहयोगी व रिश्तेदारों पर उनको पूरा यकीन था कि वे उन्हें अकेला नहीं छोड़ेंगे।
इतने लोगों का प्यार, स्नेह  व आदर पाकर लगता है मानों गिर्दा स्वयं कह रहें हों " मेरी मृत्यु का शोक क्यों मनाते हो !! मैने तुम्हें समाज को जोड़ने व हिमालय के शीश को उन्नत करने का एक पथ दिया है, इसी पथ पर निःस्वार्थ व इमानदारी से आगे बढ़ते रहोगे तो मेरी जैसी गति तुम्हें भी प्राप्त होगी ।   Posted by Hema Uniyal

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 जीवन क्या है..     
जीवन क्या है
मात्र जी लेने का तरीका
या समय की दिशा के साथ मुड़ते
दो अनमने, बदरंगे पाँव
जिम्मेदारी के बोझ से
टूटते कंधों की चरमराहट
या फ़िर संस्कारों के बोझ में दबकर
दम तोड़ती कुंठित भावनाएं
भविष्य की चिंता में
वर्तमान को खोते सुनहरे पल
या फ़िर उम्मीदों की पालकी में
डोलते विचारों की जंग
जिजीविषा है, पिपासा है अभिलाषा है ज़िन्दगी
कहीं हसती, खिलखिलाती, तो कहीं टूटी बोझल सी ज़िन्दगी
ये जीवन कालकोठरी तो नही
जहाँ अंधेरा ही अंधेरा है
बाहर निकल कर तो देखें
सूर्य की किरणों का पाराशर फ़ैला है,
उल्लास है उमंग है उम्मीद है ज़िन्दगी
सरकते साँझ सी लेकिन थोड़ी है ज़िन्दगी !!

(From Hema Uniyal)

 

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