Author Topic: Here We will Talk Only in our Language-याँ होलि सिर्फ अपणी भाषा-बोलि में बात  (Read 50239 times)

Meena Rawat

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सुधीर भैया पढाई ते भल चली रे

ओह के बतु भैया लुघाट में सब बड़ी हेरियन

Risky Pathak

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ओ महाराज मेहता ज्यू, जय हो तुमेरी
आज जनम दिना दिन इदु भाल कार्य को| इदु भल टोपिक खोल बेर|

जी रया हो जाग रया| यो मॉस यो दिन भेटने रै जाया|

Risky Pathak

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सची बात कूनू हो|
लोक संगीतक बार में ज्यादा जानकारी नहा|
बस हर शुभ काम में घर में गितारी शकुनाखर कू छी| सो शकुनाखर बार में बतु| शकुनाखर उत्तराखंड में हर शुभ काम में गयी जानी| चाहे नामकरण हो, पूजपाठथ हो, व्रतबंध हो, बया हो या क्वे और काम काज शकुनाखर बहोत महत्त्व छू|   

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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सगुन आखर तो मैने भी सुने है पर वो याद
नही होते है कुछ सगुन आखर मुझे याद है
जैसे

सगुना धेई, क।

भाई बन्धु न्योतो मे काज दीदी भुली न्योतो मे काज।
दिराणी, जीठाणी न्योतो मे काज आदी.....

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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आब हिटो हो पै दाज्यु लोगो घर हु नैहै जूल
कार बार हनै रौल बाकी ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From : fromMukund Dhoundiyal <ml.dhoundiyal@gmail.com> Via Mail

प्रिय  बन्धुवों और प्यारे नौनिहालों

जब  भी   हम  आपस  मिलते हैं  तो  हमे  अपनी बोली में ही बात  करना चाहिए ..

क्योंकि अपनी अपनी बोली में  सभी बोलते  हैं  फिर वो चाहे  पक्षी हों या फिर पशु  सभी   अपने झुण्ड  में सुरक्षित  और आनंद महसूस करते है  और पुकारते भी अपनी ही  बोली  में    हैं 

  कोई भालू अपने दल मे अब  हाथी की तरह तो बोलेगा नहीं ...बोलेगा तो  भालू की तरह ही न    अपनी ही बोली का सहारा लेगा

तो फिर हम क्यों दुसरे की बोली का सहारा लें  जब हमको अपने ही लोगों से बात करनी हो
अपनी बोली  अपनी तो अपनी  ही होती है  उसका  अपना वर्चस्वा  होता है   
अपनी बोली  में  विचार सुगमता से दूसरे तक सही,  जल्दी  और आसानी से   
पहुँच जाता है   
कोई गलत फहमी भी नहीं होती   और  गोपनीयता भी बनी रहती है
 ना   व्याकरण   और नहीं  कोई शब्दकोष 
  बडे लोगों के बीच बैठकर   बात करने से  ये  आती है

सम्बंधित जानकारी  के लिए   "मेरा पहाड़" नामक का पोर्टल देखें  ..जहाँ   सामाजिक और वयस्क   लोगों ने जानकारी एकत्रित की है   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Yo mail.. fromMukund Dhoundiyal <ml.dhoundiyal@gmail.com> Jew le bheji rakoh aap logo leeji.

पहाड का  भोला भाला लोको 
 

हमारी पहाड़ी बोलियों कु इस्तेमाल पहाड़ी इलाकों तक  ही सिमित ह्वेगी 
जू  भी  स्यकुंद (नीचे मैदानी इलाकों में) एक दां उतरी जांदू वू अपणी बोली यखी छोड़ी जांदू  ..

उत्तराँचल माँ,  पहाड़ी बोली बुलान वोला अब्ब कम ही दिखेंदा
अपणी बोली ता अपणी ही होंदा     ना
यानी अपणी माँ की बोली  ...अर्थात   मातृभाषा (बोली) ...और  भूलो एक बात  और की   "जाती" कवी भी हो पछ्याण ता  बोली से होंदी ना ?     


 प्रत्येक  उत्तरांचली यानी की गडोली, कुमयाँ, 
जौनसारी हो चमोल्याण हो  या फिर टिरी वलु हो
बात ता   आसानी से  अपनी अपनी बोली  माँ कैरी ही सकदा न ..

अरे नि बोली सकदा आसानी से एक दूसरा की बोली  लेकिन  बींगी (समझी) ता  सकदा ही न?..

हमारी बोली ता सिर्फ एक ही च "पहाड़ी बोली" जू हर पांच मील अंतर माँ  वैका  इस्तेमाल से  लहजा (dilect) माँ मामूली फर्क ता एई ही जांदू 
लेकिन यु फर्क जब एक किनारा का लोग
दूसरा किनारा का लोगु तैं मिल्दन तब महसूस होन्दु   

हमारी  पछ्याण  निर्भर च हमारी अपनी  "बोली" पर   बोली कु ता लोप  च होनु   

 हमारा संस्कृति का वास्ता हमारी बोली ज़रूरी च

 ता  भै  बंदौ  शुरू कैरी द्यावा अपणी बोली माँ  बच्यान (बुलान)   
 

 
हमारी बोली मा सौम्यता,विनम्रता,गोपनीयता और मिठास  च..साथ साथ अपना विचार प्रकट करना की सुगमता  भारी   मयल्दी (प्यारी)च हमारी बोली


 .
आज ही  बीटी. ..ना...ना...ना....  बल्कि  अब्बी बीटी शुरू करा  फ़िर  देखा चमत्कार "जै बद्री विशाल लाल"  कु

अपणु  कवी गढ़देशी अब्ब जब भी मिलु ता  अपणी बोली कु आनंद लेवा
 ओ  भैजी .. एक दां जरा ..शुरू त  करा मुस्कान का साथ.
देखा धौं..... क्या जी ....हुन्द 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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aaj ee par vichar kro mahraj.


ये एक गाने पर आधरित है, जोड़

आसमानी जहाज उड़ पछील घुराट
चेली ले सौरस जानो, चेला ले परदेश.

 

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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भौतै भल लिख हो दाज्यु तुमुल
पणन मे मीठी मीठी लागणै।

Meena Rawat

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मी ले बात करनू पे अपु भाषा म

ज़े ले गलती हेय माफ़ करिया और गलती क सुधार कराया :)

 

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