Author Topic: Hisotry of Garwali Old Poems - गढ़वाली कविताओं का पुराना इतिहास  (Read 16934 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are providing here exclusive poems on Garwali and history of Old Garwali Poems. The information has been provided our Senior Member Bhishma Kukreti and special courtesy to Angwal Magazine Dehardun.

We sure you would like the information and would also add related information, if you have available.

Regards,

M S Mehta
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गढ़वाली कविता पुराण (इतिहास)

By : Bhisham Kukreti

कै बि जुग मा कविता या साहित्यौ पुराण ;इतियासद्ध लिखण सौंग नि होंद,
सबसे बड़ी औसंद होंद साहित्यकारों तैं इकबटोˇ करणो अर दगड़ मा वै जुग की
भौगोलिक, गौं गौˇों, ;सामाजिकद्ध, राजकर्ण्या, प्रशासनौ, सौकारगिरी, कंˇदारी
व्यवस्था ;इकौनौमिकल स्टन्न्क्चरद्ध, आम अर फुंद्या वर्ग ;इलिटक्लास को घ≥्याणद्ध
मा भेद जनौ बत्थौं को सूद भेद अर वे बगतौ साहित्यणा ;साहित्यिकद्ध सोच कु लेखा
जोखा करण।
गढ़वाˇी साहित्यौ लेखा-जोखा, खोरोˇण-सर्यूˇण ;विश्लेषणद्ध मों बि कथ्या इ
औसंद छन।
जख तलक गढ़वाˇी कविता पुराण अर सुकाट ;समालोचनात्मक इतिहासद्ध
को सवाल च सौबसे पैल यीं दिशा मा पं० विश्वम्भर दत्त चंदोलान पवांण लगाई।
चंदोल जी का संपादकत्च म ‘गढ़वाली कवितावली’ गढ़वाली प्रेस 12 जुलाई 1932
ई मा छपे। ये कविताघˇ/कविताघौˇ ;कविता संग्रहद्ध मा कवियूं को जिन्नगी नामा
को दगड़ कवयूं न क्या लेखी को नि बिरतांत च। दगड़ मा भैकर को साहित्य मा क्या
होणु च वां को बि थ्वड़ा भौत सूत-भेद यीं कविताघˇ/कविताघौकर ;संग्रहद्ध मा
मिल्दो, ये ई कविताघˇ/कविताझघौˇ मा कवियूं को कवित्व का बारा मा या कवियूं
को मकसद बि संपादक न बथाणै पुठ्याजोर ;कोशिशद्ध लगाई। विश्वम्भर दत्त
चंदोला की बेटी ललिता वैषणवन 10 अप्रैल 1984 खुणि गढ़वाली कवितावली को
दूसरों संस्करण गढ़वाली काव्य संकलन को नाम से छापे।

अबोध बंधु बहुगुणा गढ़वाली साहित्यौ पुराण का सिगमोरी खुजनेर माने
जांदन असल मा खुजनेर से जादा वो संकलन कर्ता जादा माने जांदन, साहित्यिक
खोजबीन, जांच-परख ;समीक्षाद्ध साहित्यिक हड़काण-फरकाण ;परखद्ध मा डा०
भक्त दर्शन को मिˇवाक भौंत इ जादा च। गढ़वाल की दिवंगत विभूतियों किताब मा
साहित्याकारों कु लेखा-जोखा सिसाहित्यि पुराणपि को बान उथगा इ काम को
;महत्वपूर्णद्ध च जथगा शैल-वाणी अर गाड म्यटेकी गंगा। इनी मोहन बाबुलकर को
संपादन वˇी सिगढ़वाल की जीवित विभूतियांपि शैलवाणी ;कोटद्वारद्ध पत्रिका मा डा०
नंदकिशोर ढौंडियाल का लिख्या खुजनेरी लेख सिगढ़वाली साहित्यण्या पुराण मा
महत्वपूर्ण लेख छन। बैरिस्टर मुकंदी लाल संस्मरण पोथा बि गढ़वाली साहित्य पुराण
का बान एक महत्वपूर्ण किताब च।

चिट्ठी-पतरी, गढ़जागर, उत्तराखण्ड खबर सार अर शैलवाणी जन पत्रिकौं
मा ‘गढ़वाली साहित्यकारू जीवनी या साहित्यिक विश्लेषण कुछ नी च बल्कण मा

गढ़वाली साहितय पुराण को एक अंग सी च भगवती प्रसाद नौटियाल, गणेश शास्त्री,
गिरधारी लाल थपलियाल कंकाल, राजेन्द्र धस्माना, प्रेम लाल भट्ट, विनोद उनियाल,
डा० गोविन्द चात्तक, दामोदार थपलियाल, मोहन लाल नेगी, विनोद उनियाल,
ललित केशवान, मदन डुकलान, मधुसूदन थपलियाल, वीरेन्द्र पंवार, देवेन्द्र जोशी
तोताराम ढौंडियाल, लोकेश नवानी, भीष्म कुकरेती, डा० नंदकिशोर ढौंडियाल,
त्रिभुवन उनियाल, डा० शिवानंद नौटियाल जना साहित्य कारौंन कथ्या ई किताबूं
भूमिका लेखी, समालाचना ;सुकाटद्ध छपाई अर यीं दिशा मा अपणो योगदान दे।’
पण असल माने मा गढ़वाली कविता को वैज्ञानिक आधार पर पवाणी लेखा
जोखा लिखणौ श्रेय डा० हरिदत्त भट्ट सिशैलेषपि तैं इ जाण चयांद, डा० मोहन
बाबुलकर भी लेखा-जोखा मा अपणी भूमिका का पूरा हकदार छन।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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लोक कवितौं से आध्ुनिक गढ़वाळी कवितौं जनम



जन कि जादातर भाषौं साहित्य मा होंद उनि गढ़वाˇी कविता हजारों साल तक लोक कवितौं का रूप मा गढ़वाˇी गाैं-गौˇ मा जनम लीणी राई, पुस्याणी ;पालित होनाद्ध राई, बुस्याणी ;खतम होनाद्ध राई, फिर नै कवितौं को जनम होंद गै, आधुनिक गढ़वाली कवितौं जनम बि लोक गीतूं की पौ ;आधर शिलाद्ध सेही होई। बाजूबंद काव्य आधुनिक स्व कवितौं की ब्वे चः- मालचंद रमोला को बुलण च हरके गढ़वाली अपण जिन्नगी मा कविता गंठ्यांद अर बाजूबंद काव्य की रचना करद, फिर काव्य का घौˇ मा सने-सने करिक आंद। त हम बोलि सकदवां बल आधुनिक कवितौं को जनम बाजूबंद काव्य से ही होय किलैकि गुनामी पंत ∫वोव या आज का धनेश कोठारी ∫ोव यूं सब्यूंन कविता गंठ्याणै पवाण ;शुरूवातद्ध तुकवंदी से ही लगाई।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गढ़वाली लोक साहित्य का खुजनेर अर इकबटोळ करंदेर


गढ़वाˇी का लोक साहित्य तैं खुज्याण, छाण-निराˇ करण नाप-तोल नामकरण, फड़क्यूं मा बंटण ;वर्गीकरणद्ध छपणौं पवाण पं० हरि कृष्ण रतूड़ी, पं० तारादत्त गैरौला अर ओकले, पं० गंगा दत्त उप्रेती, डा० शिव प्रसाद डबराल, का  अलावा अबोध बंधु बहुगुणा, डा० गोविन्द चातक, डा० हरिदत्त भट्ट शैलेश, राहुल सांकृत्यायन, भजनसिंह, हरिराम धस्माना, गोविन्द प्रसाद नौटियाल, डा० पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल, जयलाल वर्मा, कैटटेन शूरवीर सिंह, शंभु प्रसाद बहुगुणा, जयलाल वर्मा, वाचस्पति गैरौला, डा० पुरूषोत्तम डोभाल, गोपेश्वर कोठियाल, पीताम्बर देवरानी, दामोदर प्र० थपलियाल, हर्ष पर्वतीय, केशव अनुरागी, नित्यानंद मैठाणी, उमाशंकर सतीश, जीत सिंह नेगी, शिवनारायण बिष्ट, मालचंद रमोला, चÿधरबहुगुणा, रामप्रसाद बहुगुणा, हरिप्रसाद कुकरेती, चÿधर कुकरेती, डा० सुरेन्द्र सेमल्टी, तोताराम ढौंडियाल, डा० यशवन्त कटोच, ख्यात सिंह चौहान, डा० राजेश्वर उनियाल, डा० दिनेश बलूणी, डा० मनोरमा ढौंडियाल, डा० शिव प्रसाद नैथणी, भीष्म कुकरेती, चंद्र सिंह राही, भगवती प्रसाद नौटियाल, डा० प्रभा डबराल, अरूण बडोनी, डा० विष्णु दत्त कुकरेती, ललित केशवान, कन्हयालाल डंडिरीयाल, गिरधारी लाल थपलियाल कंकाल, डा० शांति प्र० चमोला, डा० मदन भट्ट डा० विचार दास, गोविन्द सिंह, डा० विÿम सिंह वर्तवाल, देवेन्द्र जोशी, प्रीतम उपछ्याण, राकेश पंुडीर, डा० डी० आर पुरोहित।

लोक गीतूं फड़क्यूं मा बंटण
गढ़वाली लोकगीत इथगा किस्मौ छन


धार्मिक लोकगीतनागजी,   नगेलो,       नरसिंहमैरूं      नंदानिरंकार   देवी          उफराई देवीमैमंदा    हनुमानघंटाकर्ण   लाटू देवता     गोरिलारघुनाथ जीगोरिला,   कंुती बाजा    युधस्ठिर बाजाभीम बाजाअर्जुन बाजा  नकुल बाजा   सहदेव बाजअभिमन्युबाजा द्रौपदी  बाजा कृष्ण  संबंधित कथगा ही

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अतृप्त आत्मा≈° संबंधित गीत

रणभूत गीत- कैंतुरा, रणरौत, सूरजी कौंˇ, सूरजी नाग, भानु भोपालु, तीलू रौतेली,
जीतु बगड्वाˇ
सामुदायिक, सामुहिक अर सामाजिक गीत
थड्या झुमैलो, सरौं, भैल भैलो
चौंफˇा बसंती केदार, छोपती निंदा लाण का मधुर, तलवारी गीत,
बसंती, होली, खुदेड़ चांचरी, घुघती, कविता, बौ सुरेला, तांदी लामण, खुसौड़ा

हंसोड़ा, सिपै, बणजारा, गिंदी म्याˇा मौं मौं गीत, जौंशसार बाबर का गीत, गह्यिंू
गीत खड़वाˇंू गीत, भाबर का गीत, गुजरूं गीत, पयार्यूं मोटातिकां गीतू, जन चेतनां
का गीत।

व्यवसयिक लोखुं गीत


चैती,

ढोल सागर, दमौ सागर, रख्वाली, दैंत संधार सैद्वाˇी, कुलाचारा लांगगीत सांपू गीत
थाˇी दगडौ मीत , सुई गीत

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 गढ़वाली लोक गीतुं शास्त्रीय अध्ययन


डा० शिवानंद नौटियाल को मानणु च बल गढ़वाली लोक गीतुं मा काव्य सिह्ांत आदर्श अर समयक रूपमा पाये जांद, डा० नौटियाल को बुलाण च बल गढ़वाली लोक गीतूं मा श्रंृगार, हास्य,अद्भुत, प्रकृति वासल्य, वीर, रौद्र, भयानक, करूण, भ७ि अर शांत रस सभी बड़ा आल्हादकारी ;रस्याण बˇाद्ध छन। गढ़वाली लोक गीतूं मा वीभत्स;घीणद्ध रस ना का बरोबर छन डा० नौटियाल न इन बि बथाई बल गड़वाली लोक कविता अलंकारू से भरीं छन डा० नौटियाल दरेक लोकगीत की छाण निराˇ करी अर अलंकार को हिसाब से द रेक लाये कविता को ब्यौरा अपणी पोथा, गढ़वाल के लोक नृत्य गीत मा दे। डा० नौटियालन व्यंज्यना बिंब विधान, प्रतीक विधान, व्याकरण को हिसाब से लोक कवितों की पूरी छाण निराल करो अर पायी बल गढ़वाली लोक गीतूं मा वो सब कुछ पाये जांद जु आधुनिक कवितौं मा छन ;बस गघात्मक अतुकांत कविता आदि

भीनि छनद्ध

आधुनिक ;आजैद्ध कविता सन् 1875 से 1989 तलक
अबोध बंधु बहुगुणा, डा० हरिदत्त भट्ट शैलेश, डा० नन्द किशोर ढौंडियाल
अर हौरि कवितौ-सल्यूंन आजै गढ़वाली कविता तैं समौ हिसाब से बांट जु कि इन च
(1) लोक कविता जु हजारों सालंु से गढ़वाˇ मा रच्याणै रैन, बुस्याणै रैन
अर कुछ कालजयी लोक काव्य का रूप मा अबि बि छन।
(2) 1800-1900 तलक
(3) 1901-1925 ;गढ़वाली जुगद्ध
(4) 1926- 1950 ;सिंह युगद्ध
(5) 1951-1989 ;स्वर्ण जुगद्ध
दिखे जावु त 1901-25,-50-89 का भौं भौं कालखंडु मा गां गौˇ (समाज),

आध्यात्म, धर्म भुगोल खेती-पाती, कˇदारी ;आर्थिकद्ध, राजकरणी ;राजनीतिद्ध,
शिक्षा पलायन, परिवार कु जंक-जोड़ मा समौ-समौ पर बिगˇयां-बिगˇयां ढंग से
बदलो ऐन अर गढ़वाˇी कवितौं को विषय, ढंग-ढाˇ ;शैलीद्ध, गात ;ठवकल -
ैजलसमद्ध, चरितर, कविता बिंगाणौ माध्यमंु मा बि दरेक जुग मा फैदावˇी तब्दीली
आयी। भाषा का हिसाब से बि तब्दीली होंदी ग्ये। जन हौरि हिंदुस्तानी भाषौं की
कवितौं मा तब्दीली औंदी गे तनी गढ़वाˇी कवितौं न बि अपणो पसर पसारी
(विस्तृतीकरण)।
सन् 1800 से लेकी 1989 तलक का कवियूं उंको कवित्व को थ्वड़ा सि
व्यौरा इन च। ;ये ब्यौरा तैं ÿोनोलौजिकल ब्यौरा नि माने जांदु )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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1800 - 1925 तलक

यू समौ गढ़वाल को पुराण ;इत्यासद्ध मा भौत इ बिगˇ्यूं अर नयो समौ थौ। बारा साल तक गुर्ख्याणी को नयो जुलम गढ़वाल ˇ्यूंन द्याख, बद्रीनाथ जन दिवता सरूप गढ़वाली राज की हार, ब्रिटिश राज को और, टिहरी और पौड़ी गढ़वाˇ को बिगˇ्याण, राजकीय हिसाब से पौड़ी वाˇौं को कुमयों का नजीक आण, 1857 को गदर, टिहरी माराज को 1857 मा ब्रिटिश राज तै भरपूर सैता दीण, गढ़वाˇ्यूं कोब्रिटिश सेना मा भरती होण अर दुनिया का भौं भौं देशुं मा जाण, विक्टोरिया जनि ऐत्यासिक घटना बि ऐ एई समौ पर ∫वे।  पलायन की पवाण एइ बगत लग। खेती पाती या पारंपारिक ढंग से जीविका का साधनुं मा बदलाव इ नि आई बल्कण मा नौकारी पेशा वाˇंु तैं समाज मा मान-सम्मान मिलणै पवाण बि एई बगत पर लग। पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नबाब मुहाबरा की शुरूवात बि ∫वे याने लार्ड मैकाले
मौडल कु आधार पर प्राइमरी स्कूलं ब्रिटिश अर टिहरी राजान गढ़वाˇ मा खुलिन।

कीर्ति का संपादक) जना महापुरूष नौकरी चाकरी छोड़िक हिंदू राष्टन्न्ीय स्कूल खुलणों बान ऐ गेन। कांग्रेस अर महात्मा गांधी कु आन्दोलन की आवाज गढ़वाˇ मा सुण्याण बिसे ग्ये छै। आर्य समाज आन्दोलन से शिल्पकारू। मा चेतना जागरण का बि यो इ समौ छौ। पढ़ै बान, नौकरी बान, गढ़वाˇी भैर जाण गीजि गे छा त गढ़वाˇ मा समाजौ बुराइयूं का प्रति यी लोग चित्वˇ ∫वे गे छा, अर कै ना कै रूप मा समाजै बुरै खतम करणा बान काम बि एइ बगत पर शुरू ∫वे। सन् 1900 से ब्रिटिश राज भक्ति का तरफ रूझान बि समाज मा बढ़ ग्ये छौ ÿांतिकारी मनोविज्ञान-ः जो बात हजारों साल मा नि ∫वे वो ये बगत पर शुरू ∫वे। गढ़वाˇी अपणी पच्छ्याणक इनी बणाण चांण लगेन जन कि बड़ी तादाद बˇी जात्यूं की पच्छ्याणक छै। गढ़वाली तादाद मा कुछी लाखों मा छया पण अपणी पछ्याणक इनी चाणा छया जन पंजाबी, राजस्थानी, बंगाल्यूं, मराठ्यूं पछ्याणक भारत मा छे। पछ्याणक बान यो ÿांतिकारी मनोविज्ञान गढ़वाˇ्यू तैं अग्वाड़ी बढाणौ बानसबसे बड़ो मोटिवेटिंग प्रेरणा-दिंदेर फैक्टर छो अर आज बि यो मोटिवेटिंग फैक्टर गढ़वाˇ्यूं मा विद्यमान च, बच्यूं च। हिन्दी माध्यम की पढ़ै, न्यायलयूं मा उर्दू-हिंन्दी- अंग्रेजी से गढ़वाˇी भाषौ नुकसान की पवाण बि ये समौ पर लगण बिस्याई अर अबि बि हिंदी-अंग्रेजी का कारण गढ़वाली भाषा खज्याणी लगीं च। गढ़वाˇी साहित्य रचना मा स्ंास्कृत, हिन्दी,
उर्द, अंग्रेजी को प्रभाव वै बगत बि छौ त आज बि च। गढ़वाˇी कवितौं मा बामणूं एकाधिकारगढ़वाˇ मा पढ़ै लिखै खास-बामणूं तकल सीमित छै। इख तलक कि सन् 1925 तलक प्राइमरी स्कूलं मा बामणूं नौन्याˇ इ पढ़दा छा त गढ़वाˇी कवितौ का रचयिता जादातर सर्यूˇ बामण ही रैन। सदानंद कुकरेती या बलोदी तैं छोड़िक बाकी सर्यूˇ या बड़ी जाति का बामणूं की कविता ये समौ पर मिल्दन। उन त ये बगत बामण-जजमानुं कुछ लेखकीय बहस बि ∫वे छे बल। क्षत्रियबीर सरीखा पत्र बि ये समय पर छप पण जख तलख रिकार्ड बतांदन बल सन् 1925 तलक क्वी बि जजमान ;राजपूतद्ध कवि गढ़वाˇी कविता संसार मा नि ∫वेन। ये जुग
मा शिल्पकार कवि को बि क्वी रिकार्ड नि मिल्दो।
सिम्यार नौनु बच्यंू रालो त हौˇ फोड़िक खालपि मुहावरा म्यार नौनु बच्यूं रालो ता भांड
मंजे को खाल मा बदलणो समौ बि यो ही छौ।
सरकारी नौकरी मा नौकरूं दगड़ रिस्तेदारी करण अर सरकारी नौकरूं तैं अपण
रिस्तेदार बथाण मा गर्व, घमण्ड की पवाण बि एड समौ पर लग।
बाराणसी ई ना 1900 सन बिटेन गढ़वाली पंडितू का नौन्याˇ इलाहाबाद,
लखनौ, देहरादून जना जगा पढ़नौ जाण बिसे ग्ये छा। अंग्रेजी सिखण बाˇंू की बड़ी
पूछ होण लग गे छे।
लोंगुं तैं। रेल, बस, मोटर सड़क को महत्व समझ मा आण बिसे ग्ये छै।
इसाई मिशनरियूं को मकड़ जाˇ तैं त्वड़नौ बान संत सदानंद कुकरेती (विशाल)

कीर्ति का संपादकद्ध जना महापुरूष नौकरी चाकरी छोड़िक हिंदू राष्टन्न्ीय स्कूल
खुलणों बान ऐ गेन।
कांग्रेस अर महात्मा गांधी कु आन्दोलन की आवाज गढ़वाˇ मा सुण्याण बिसे
ग्ये छै। आर्य समाज आन्दोलन से शिल्पकारू। मा चेतना जागरण का बि यो इ समौ
छौ। पढ़ै बान, नौकरी बान, गढ़वाˇी भैर जाण गीजि गे छा त गढ़वाˇ मा समाजौ
बुराइयूं का प्रति यी लोग चित्वˇ ∫वे गे छा, अर कै ना कै रूप मा समाजै बुरै खतम
करणा बान काम बि एइ बगत पर शुरू ∫वे।
सन् 1900 से ब्रिटिश राज भक्ति का तरफ रूझान बि समाज मा बढ़ ग्ये छौ
ÿांतिकारी मनोविज्ञान-ः जो बात हजारों साल मा नि ∫वे वो ये बगत पर शुरू
∫वे। गढ़वाˇी अपणी पच्छ्याणक इनी बणाण चांण लगेन जन कि बड़ी तादाद बˇी
जात्यूं की पच्छ्याणक छै। गढ़वाली तादाद मा कुछी लाखों मा छया पण अपणी
पछ्याणक इनी चाणा छया जन पंजाबी, राजस्थानी, बंगाल्यूं, मराठ्यूं पछ्याणक भारत
मा छे। पछ्याणक बान यो ÿांतिकारी मनोविज्ञान गढ़वाˇ्यू तैं अग्वाड़ी बढाणौ बान
सबसे बड़ो मोटिवेटिंग प्रेरणा-दिंदेर फैक्टर छो अर आज बि यो मोटिवेटिंग फैक्टर
गढ़वाˇ्यूं मा विद्यमान च, बच्यूं च।
हिन्दी माध्यम की पढ़ै, न्यायलयूं मा उर्दू-हिंन्दी- अंग्रेजी से गढ़वाˇी भाषौ
नुकसान की पवाण बि ये समौ पर लगण बिस्याई अर अबि बि हिंदी-अंग्रेजी का
कारण गढ़वाली भाषा खज्याणी लगीं च। गढ़वाˇी साहित्य रचना मा स्ंास्कृत, हिन्दी,
उर्द, अंग्रेजी को प्रभाव वै बगत बि छौ त आज बि च।
गढ़वाˇी कवितौं मा बामणूं एकाधिकार
गढ़वाˇ मा पढ़ै लिखै खास-बामणूं तकल सीमित छै। इख तलक कि सन्
1925 तलक प्राइमरी स्कूलं मा बामणूं नौन्याˇ इ पढ़दा छा त गढ़वाˇी कवितौ का
रचयिता जादातर सर्यूˇ बामण ही रैन। सदानंद कुकरेती या बलोदी तैं छोड़िक बाकी
सर्यूˇ या बड़ी जाति का बामणूं की कविता ये समौ पर मिल्दन।
उन त ये बगत बामण-जजमानुं कुछ लेखकीय बहस बि ∫वे छे बल। क्षत्रिय
बीर सरीखा पत्र बि ये समय पर छप पण जख तलख रिकार्ड बतांदन बल सन् 1925
तलक क्वी बि जजमान ;राजपूतद्ध कवि गढ़वाˇी कविता संसार मा नि ∫वेन। ये जुग
मा शिल्पकार कवि को बि क्वी रिकार्ड नि मिल्दो।

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पछ्याणको सवाल


गढ़वाˇी समाजो चरितर गढ़वाˇी कविता संसार मा पूरो दिख्यांद। हजारों साल मा अचाण्चकै बदलाव को पूरो प्रभाव ये जमानौ गढ़वाˇी कविता मा दिख्यांद। ये जुग का गढ़वाली कवियूंन गढ़वाˇ, गढ़वाˇी मनिख, गढ़वाˇी भाषा अर गढ़वाˇी पन तैं अभिनव पछ्याणक दीणौ बान भरपूर पुठ्याजोर लगाई अर आज गढ़वाˇी कविता संसार मा जू बि जन बि कविता छन वू सौब पवाणी गढ़वाˇी कवितौं
को इ परताप च। चंदरमोहन रतूड़ी की दरबान सिंह कू विक्टोरिया ÿौस कविता यांको
परमाण च, सबूत च।

विरोधाभाष मा जीणै कौंˇ अर घंघातोˇ

कै बि तरां को विकास अपण दगड़ एवं घंघतोˇ अर विरोधाभाष बि लांद, नयो
बदलाव से समाज तैं फैदा होंद त परंपरा टुटणौ खिन्नता, उकˇाट, बि होंद अर
1900-1925 को जुग की कवितौं मा परंपरा- पूजै, लार्ड रिपन पुजै, स्वदेशी पुजै,
समाजिक बुरै खतम कवितौ मा करण जन कविता इकदगड़ दिख्यांदन। आज बि
कवितौं मा कब टिहरी डुबाणौ दुख, गड़वाˇ मौडिर्नाइजेशन करणै गाणी, स्याणी अर
इच्छा, अर परम्परा टुटणै दुख इकदगड़ी दिख्यांद गढ़वाˇी कवितौं अर कवियूं का
विचारूं मा पैराडौक्से गढ़वाˇी कविता अर कवितौं मा पैराडौक्स उनि मिल्द

जन1900-25 मा मिलद।

संस्कृत साहित्यौ छाप
गढ़वाˇी स्वांग रचयिता राजेन्द्र धस्मानान ये जमाना का कवियूं पर भगार लगाई
बल यी ब्रिटिश भक्त सीख दींदेर, अड़ाण वˇा कवि छा। पण राजेन्द्र धस्माना बिसर
गेन बल हम गढ़वाˇ्यूं पर संस्कृत को भौत बड़ो असरा च त संस्कृत साहित्य की जन
पवाण लग वे इ तरां गढ़वाली की साहित्य की पवाण बि लग।
ये जमाना की पत्र-पत्रिका
ये जमाना मा तौˇ वाल अख बार छपेन
(1) गढ़वाˇी साप्ताहिक (1906)
(2) गढ़वाल समाचार (1902)
(3) पुरूषार्थ (1907)
(4) क्षत्रिय बीर
(5) गढ़देश
(6) हिमानी
(7) विशाल कीर्ति (1913-15)
(8) अल्मोड़ा अखबार (कुमा≈° से )
यूं सबि अखबारूं न गढ़वाˇी कविता छापिन
गढ़वाली अर गढ़वाˇी कवितावली
ये जमानो मा गढ़ावाˇी ;1906द्ध पत्रिका ही गढ़वाˇी कवितौं की ब्वे,
पˇण-पुषण वाˇ माने जांद, संपादक विश्वम्बर दत्त चन्दोला अर तारदत्त पैथरा
गढ़वाˇी कविता की कवियूं की कविताघˇ/कविता खौˇ ;कविता संग्रहद्ध गढ़वाˇी
कवितावली नाम से छाप।

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सभासार (1825) आधुनिक गढ़वाˇी कविता की पवाण राजा सुदर्शन शाह
की कविताघाˇ ;कविता संग्रहद्ध से लग जख मा दरेक ब्रज कवितौ सार गढ़वाली
भाषा मा च।

गुमानी पंत (1780-1846)
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 पिथौरागढ़ का गुमानी पंत सरा संसार का कवियूं

मा इन कवि छन जन कवि आज तलक क्वी नि होय। संस्कृत, कुमΠया खड़ी बोली,
ब्रज, नेपाली अर गढ़वाˇी छै भाषौं मा कविता रचण वˇा ये संसार मा एकी कवि
∫वेन अर गुमानी पंत की खासयत या छे बल संस्कृत का पैला पद का उपरांत दुसरा
पद खड़ी बोली, ब्रज, कुमΠया, नेपाली या गढ़वाली भाषा मा होंद थौ।
हर्षपुरी गुसाईं ;कम्यसर, श्रीनगर, 1820-1905द्ध को हथालिखी पोथी मा
कथगा ई कविताघन, यूंकी कविता गां-गौˇै परिस्थिति, श्रंृगार, प्रेम भगति अर
अड़ाण वˇी छन। लीला दत्त कोटनाला ;1846-1926द्ध की किताबूं नाम च
गढ़वाˇी छंदमाला। अर गढ़वाˇी गढ़गीत, प्रेम सागर अर गढ़वाली प्रश्नावली का
रचनाकार की कवितौं मा विरह, होली अर शासन कु दगड़ सामंजस्य की जरोरत जन
कवितौं को बड़ो महत्व च।

हरिकृष्ण दौर्गादन्ति रूडोला (1855-1895) 1875 का धोरा की कवितौं मांदे
श्री गंगा पंचक, चेतावनी, प्रार्थना, शिक्षा जन कविता प्रसिह् छन।
जयकृष्ण दौर्गिदŸिा रूडोला का बारा मा गढ़वाली कवितावली मा बि जादा वृतांत नी
च वेदांतोपदेश कविता सन् 1884 की माने जांद

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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7 मनमौजीः- मनमौजी की एक चबोड़या पण दार्शनिक कविता ‘हम पढ़ां त क्यूं पढ़ां’ गढ़वाˇी कवितावली मा मिल्दी संपादक लिखदन रचयिता कु छौ पता नी च अर इन लगद चंद्रमोहन रतूड़ी ही मनमौजी थौ। कविता आज बि सार्थक च त भौˇ भी सार्थक राली।

8 शशि शेखरानंद सकलानी (1855-1984) सकलानी जी की कवितौं समौ सन् 1917-1948 को च अर काव्य खौˇ/कविताघˇ ;संग्रहद्ध सन् 1949 पुष्पाजंली को नाम से छप, शैली संस्कृत का छंदु पर आधारित छन। अड़ेदर, दार्शनिक कवितौं की भरमार च।

9 भवानी दत्त थपलियाल (1967-1982) मवाˇस्यूं पट्टी (पौड़ी गढ़वाल) का थपलियाल की कविता समाज सुधार की क़विता छन। ‘गढ़वाˇी’ पत्र मा यूंका कथ्या जन कि कलजुगी, बंसत- होली जन कविता छपिन।

10 सनातनानंद सकलानीः- (1878-1920) सत्कतिदास- सकलानी की एक कविता ‘‘ स्वार्थ सप्तक गढ़वाली कवितावली मा संकलित च। कविता अडंदेर चपि


11 देवेंन्द्र दत्त रतूड़ीः- (टिहरी)
गढ़वाली कवितावली मा यूंका द्वी देशप्रेम ।दहूंस 23
संबंधी कविता छपीं छन।1875 का धोरा की कवितौं मांदे  श्री गंगा पंचक, चेतावनी, प्रार्थना, शिक्षा जन कविता प्रसिह् छन।

जयकृष्ण दौर्गिदŸिा रूडोला का बारा मा गढ़वाली कवितावली मा बि जादा वृतांत नी
च वेदांतोपदेश कविता सन् 1884 की माने जांद

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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12 गिरिजादत्त नौथाणीः- (नैथणा), (1872-1927) प्रसिह् संपादक-प्रकाशक शराब को बुरो असर वˇी कविता ‘मधास्टक’ का अलावा यूंका सांस्कृति मांगˇूं संकलन सिमांगˇ संग्रहपि सन् 1922 मा छप।

13 मथुरा दत्त नैथणीः- (नैथाणा) मथुरादत्त नैथाणी की एकी कविता ‘स्वदेश प्रेम’ गढ़वाˇी मा मिल्दी। या कविता अंग्रेजी कवि सर वाल्टर स्कौट की लव आफ दि कंटन्न्ी का अधार पर रचे गे।

14 सुरदत्त सकलानीः- गढ़वाली कवितावली मा सकलानी की द्वी चेतावनी उमानाथ शिवजी की स्तुती मिल्दन। चेतावनी कविता बधांदी सन् 1920 का करीब गढ़वाˇयूं या ख्याति प्राप्ति की बड़ी चाह पैदा ∫वे ग्ये छे। अंतराष्टन्न्ीय स्तर पर गढ़वˇी बि होण चंयांदन की स्याणी चेतावनी कविता।

15 अंविका दत्त शर्माः- शर्मा की संस्कृत निष्ट अर अलंकारू से भरी एकी कविता श्री राम का वर्णन गढ़वाˇी कवितावली मा मिल्द।

 

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