रूपमोहन सकलानी याने गढ़वाली भाषा को पैलो महाकाव्य का रचनाकांर दुसरो युग की सबसे बड़ी उपलब्धि च गढ़वाˇी को पैलो महाकाव्य सिगढ़वीर
महाकाव्यपि (1927-28) भगवती प्रसाद नौटियाल न उत्तराखण्ड खबर सार (15 दिसम्बर 2007) या यांकी सूचना दे बल या किताब देहरादून गढ़वाˇी का साहित्याकार देवेंन्द्र जोशी माच। भक्तदर्शन न बि बैरिस्टर मुकंदीलाल संस्मरण गं्रथ पृष्ठ 405 मा यांको जिकर कर्यूं च। महाकाव्य लोदी रिखौला को जीवन बिरतांत पर आधारित च। भाषा विद्वानंू की समज लैक च। भ० प्र० नौटियाल बतांद बल महाकाव्य का या श्रीदेव सुमन, राजगुरू हरिदत्त नौटियाल, भोलादत्त शास्त्री, शिवदत्त सकलानी,
श्यामचंद नेगी की सम्पति, प्रशस्तिपत्र बि छपीं छन। भूमिका रूपमोहन न ही लिखे (28 जनवरी 2008) सकलानी को लिखण पूरो महाकाव्य काव्यशास्त्रूं सम्मत से ही लिखे ग्ये। भाषा का भामाम मा भगवती प्रसाद नौटिया लइन लिखणु च। सिमहाकाव्यैं गढ़वˇि भाषा संस्कृत निष्ठ होण का कारण साधारण पाठकों से काफी दूर समझेणी च, जन कि तौˇ लेखी कुछ पंक्ति छन-
ि ∫वै जा प्रसन्न जयदेव तू सृष्ठि कर्त्री,पि बाणी लाभस्य शुÿ त्यय भाव गतोस राहू। होलो बली बिजित शत्रु समृह्शाली, आदर्श जीवन करो अति जीवन प्राप्त ;इति श्री गढ़वीर महाकाव्य पूर्वार्थ पुत्राप्ति नाम्नो प्रथमः संसर्ग सर्गाे अस्मिन वृत वसंत लिलकम संर्गानते भालजी वृतमद्ध, महाकाव्य मा कवि को इन शब्दों व नामों प्रयोग बि कर्यूं च जौं को गढ़वाˇ मा क्वी अस्तित्व नी च, जन कि बांट्यो इनाम तैन कताना भिखारी, नाई तुलैक त ब स्वील कूड़ा गये वो, तबला, बेल, सारंगी, इसराज, भंˇीर आदि। जख तलक संसकृत्याण वˇी गढ़वाˇी को सवाल च त भगवती प्रसाद तैं अपणौं लिख्यूं साहित्य बचंण पोड़ल। भगवती प्रसाद गढ़वाˇी जगा फर हिंदी शब्दुं को छˇबˇी अपणा लेखूं मा करद उनि रूपमोहन सकनालीन महाकाव्य मा संस्कृत की छˇाबली कार। बढ़िया बात च बल भगवती प्रसाद नौटियाल की नजर ≈° शब्दुं पर बि पोड़ जु गढ़वाल मा नि होंदन पर भगवती प्रसाद नौटियाल बिसरी गेन बल ‘भूम्याˇ’ मा अबोध् 38 अंग्वाˇा बंधु बहुगुणा न उच्चा-2 गढ़वाˇी बौण मा हाथि बि दौड़ैन। सैत च महाकाव्य या
अतिशयोक्ति अर काव्यात्मक गति दीणै बान रूप मोहन सकलानी अर अबोध बंधु बहुगुणा अपणा महाकाव्य मा इन लेखी दे जु गढ़वाल मा होंद ही नि छन। अथर्वेद को अनुवाद भगवती प्रसाद नौटियाल ;उ० ख० सा० 15 दि० 2007द्ध मा ही शिवराज
सिंह ‘निसंर्ग’ का संदर्भ मा बतांईद बल शिवराज सिंह मा एक पोथी का पृष्ठ च जख
अथर्वेद सूत्रों का अनुवाद च।
ये जुग की खास उपलब्धि
सन् 1926 -50 की भौत सी उपलब्धि छन पण द्वी उपलब्धि खासम खास छन
भजन सिंह ‘सिंह’ रामलाल पुंडीर कविता थौˇ मा ठाकुर शिवनारायण सिंह बिष्ट को
पदार्पण एक ऐतिहासिक घटना च। साहित्या मा बामणूं एकाधिकार खतम करणै दिशा
मा या एक महान घटना माणे जाली। समाजिक हिसाबन या°कों अर्थ या च गढ़वाˇौ
समाजिक आर्थिक शैक्षणिक धार्मिक अर सांस्कृतिक थौˇ मा सबी वर्ग की सहभागिता
का दर्शन ये जुग मा होण लगी।
दुसरों साहित्यिक हिसाबन महाकाव्य कु छपण अर प्रबंध काव्य को पसरण
बड़ों ÿांतिकारी घटनौं मा सुमार करे जालो।
ये जमाना का कुछ साहित्यिक अर सामाजिक संस्थौं ब्यौरा
भक्त दर्शन, अबोध बंध बहुगुणा, भगवति प्रसाद नौटियाल अर मोहन बाबुलकर
की किताबुं अर लेखूं तैं बंचण से लगद सामाजिक संस्था ;अर कखि साहित्यिद्ध तैं
पˇण-पुषण का काम बि करण बिसे ग्ये छा दिल्ली माभोलादत्त देवराणी खुद एक
संस्था का कर्ता धर्ता छया देहरादून, मसूरी मा बि गढ़वाली प्रचारक मंडल गढ़वाली
भाषा का रूप मा प्रसिह् छ।
लाहौर मा बि गढ़वाˇी सामाजिक संस्था ;जखमा बलदेव प्रसाद नौटियाल थाद्ध
गढ़वाˇी प्रचार-प्रसार मा मिˇ्वाक दीदीं छै। कराची मा प्रवासी गढ़वाˇ संगठन अर
मुंबई मा गढ़वाˇ भातृ मंडल सांस्कृतिक साहित्यकारूं उछाह बढ़ादा छया राजपूत
सभा, अर गढ़वाल व्यवसायी संस्थान बि गढ़वाˇी, साहित्यकारूं मान सम्मान करदा
छया।