Author Topic: Hisotry of Garwali Old Poems - गढ़वाली कविताओं का पुराना इतिहास  (Read 16895 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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16 ऐसूं की रूड़ी मात्रभूमि, बमताˇि गेन जन कवितौं की रचनाकार, ऐंसू की रूड़ी बधांत कि गढ़वाˇ मा बगैर बरखा का क्या बुरा हाल होंदन।

17 देवेन्द्र दत्त सकलानीः- सकलानी की करूणा चंद्रमोहन रतूड़ी की मृत्यु पर लिखीं कविता च अर चंद्रमोहन रतूड़ी को योगदान को विरतांती कविता च।

18 दयानंद बहुगुणाः- गढ़वाली कवितावली मा छपीं कुम्भ को मेला कविता बाजू बंद काव्य अर आधुनिक तुकबंदी युक्त गीतेय कवितौं को मध्य पुˇ घाˇी कविता च, कविता की कयि तरां से व्याख्या करे जै सक्यांद। गात/शैली बाजूबंद काव्य जन, पण एक्सीपरिमंट की कविता। व्यंगात्मक अर अड़ाण बˇू संदेश का विलक्षण योग वˇी कविता को पुनर्मूल्यांकन जरोरी च। यीं कविता
मा गढ़वाˇी तर्ज, कुमΠया तर्ज, चौपाई अर वाजूबंद काव्य की तुकबंदी काव्यको भरपूर भिˇवाक (मिश्रणद्ध च। कबि-कबि त इन लगद या कविता मुहावरों की कविता च, इन लगद कन्हयालाल डंडरियाल यीं ई कविता से प्रेरणा लेकि ‘म्यरो गढ़वाˇ’ की रचना करी।

19 सदानन्द कुकरेतीः- (ग्वील-जसपुर, 1886-1936) बहुआयामी व्यक्तित्व का मालक सदानंद कुकरेती की गढ़वाˇी कवितावˇी मा एकी कविता जातीय भजन छपीं च पण विशाल कीर्ति मा कुछेक कविता छपिन सदानंद कुकरेती समाज सुधारक छा त कवितौं मा समाजसुधार झˇक्यांद।

20 आत्माराम गैरोलाः- (ठालुढुंग, टिहरी गढ़वाल 1855-1922) आत्माराम गैरोला की पंछी पंचक, बेटुली, स्वार्थष्टक, तुलसी दरिद्रनारयण, सूर्याेदय, टीरी अर ऐजेंसी महिमा कविता नामी-गिरामी ;प्रसिह्द्ध कविता छन।

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21 सत्य शरण रतूड़ीः- (टिहरी गढ़वाˇ 1864-1926) रतूड़ी को खास विषय देश प्रेम च। सत्य शरण रतूड़ी तैं ही गढ़वाली काव्य साहित्य को जनक माने जांद। गढ़वाˇी गौरव अर पछ्याणक का बड़ा ही धड़वै सत्यशरण रतूड़ी छया। उठा गढ़वालियों उधबोधन गढ़भूमि की आरती, गढ़वाली सेना को प्रस्थान,पुकार जन कविता बड़ी उमदी कविता छन।


22 राय बहादुर तारादत्त गैरोलाः- (दाल ढंग, 1875-1940)
तारादत्त गैरौला गढ़वाˇी का सिरमौरी कवि माने जादंन जौंकी 1921 मा गढ़वाˇी कविताघˇ/कविताखौल ;संग्रहद्ध सदेई छप, करूणा बात्सल्य श्रृंगार, प्रकृति रस से भरपूर कविता लिखदेन तारादत्त गैरौलान ∂यंूली रौतेली मेरी लाडली जन हौ बि कविता रचिन। हे उंचो डांड्यूं.......... कविता को ता खूदेड़ गीतूं मा बड़ो स्थान च, गैरौला को काम उन्नी महत्वपूर्ण च जन अंग्रेजी मा चौसर को अंग्रेजी साहित्य तैं बढाण अर लिख्वारूं मा जागृति पैदा करण को
च।

23 चन्द्रमोहन रतूड़ीः- (गोद, टिहरी ग०, 1880-1920) अपण जमाना का भौत पढ़्या लिख्यां चंद्रमोहन रतूड़ी की कवितौं मा देवबण वर्णन, विरह बसंत बिलाप, ∂यूंली डाˇी, गढ़वाˇ का सच्चा कवियूं से प्रार्थना सौला की सिकार, विक्टोरिया ÿोस, टीरी से विदा कविता जादा नामी गिरामी छन।

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तोताकृष्ण गैरोला (घूललस्या, टिहरी1857)

गढवाली मा प्रबंध काव्य कु बाटु बथाण वˇा लोक रीतिकाव्य तै नयो दिशा दर्शनकरण वˇा लोकसंस्कृति का कवि को ‘‘प्रेमी पथिकपि एक सच्ची कथा पर आधारित कविता रचना च गुमानी पंत संस्कृत छंदु तैं गढवाली मा अंगीकार करण वला तोताकृष्ण की कवितौं मा अलंकारूं छछल्याट दिखण लैक च।

योगेन्द्र पुरी (1848-1957)

अन्योक्ति का धयोड्या योगेन्द्र पुरी न फुलकंडी, धर्मोपदेश बुड्या की बेटी, नल दमयंती सौत सौतेला, कलजुगी भागवत जन कविताघौˇ/ खौˇ ;संग्रहद्ध छपिन अर कविता धार्मिक अंडदेर छन। एक बड़ी विशेषता हैंकी छे जन गुमानीपंत कविता -तीन पद गढ़वाली माअर आखरी पद हिंदी मा , प्रकृति -चित्रण का चितैरा , प्रतीक अर बिंब कु सही 34 अंग्वाˇइस्तेमाल करण वाल छा योगेन्द्र पुरी, अनुप्रास अलंकार प्रयोग का योगेन्द्र विशेषज्ञ
लगदन।

चÿधर बहुगुणा-(पोखरी 1902-1982) असल मा दिखे जातु वुतचÿधर बहुगुणा गढवाली पत्रिका समौ बिटेन कविता प्रतीकात्मक बिबं पूर्ण अलंकृत छन अबोध बंधु ही ना देवेन्द्र जोशी ;टेली-भेंट नबरं ;2009द्ध बि चक्रधर बहुगुणा को मोछंग कविताघल तैं गढवाली साहित्य मा एक कं्रातिकारी घटना बथौंदन चक्रधर कु हैंको कविताद्यौल ‘‘नौबत’’ उंकी बेटी वीणा पाणि जोशी न छाप चक्रधर बहुगुणा की कविताैं मा लोक साहित्य की छाप बि च अर गढवाली का जाण्या माण्या बिंब बि छन त कविता व्यंजनात्मक छन।

केशवानंद कैंथोला (1887-1940)

मुबई की श्रीमती शक्ति नैथानी बथांदन बल कैथोंला जी की कवितौं मा इथगा गीतेय अर मयˇुपन छा कि कैथोंला कुजां गौं पालकोट इना पट्टी मवालस्यूं मा जनानी अरं नौनी -नौल्यालु तैं कैथोंला की कथगा इ कविता याद छै ;एक टेलिफोनिक संवादद्ध कैथोला ‘‘मनतरंग ’’ अर चौफंला रामायण --जन कविताखौल कालजयी रचना छन । गढ़वाली बारामाशा तै नै तरां से छंद्याण की कला का सायाणछौ केशवानंद कैंथोलां बहुगुणा लिखद बल कैथोंला की कविता इति वृतात्मक छन।

भजन सिंह (1908-1996)

भजन सिंह अपणा बालपन से इ सितौनस्यूं मा गीतगाण वालु प्रसिह् ∫वे छौ।सिहंनाद ;1937द्ध काव्य खौल मा समाज सुधरी कविता छन अर यां से बहुगुणा लिखद बल यूं कवितौं मा काव्यसौदर्य नी च। भजन सिंह सिंह न सैकड़ाक से बिंडी कविता छपैन हैंक संग्रह को नाम सिंह सतसई च हमारी चिट्ठी एक विशेषंाक बिछाप , जादातर कविता मुक्तक भौण ;शैलीद्ध मा छन।

शिव नारायण सिंह बिष्ट-(बड़खोल मनयारस्यूं 1887-1933)

राजपूत बामणू ं छौपादौड़ी बि गढवाली समाजौ बान एक जरोरात बि छे । यो ही कारण च बल जख 1925 तलक गढवाली बिष्ट काव्यथौˇ मा जजमान नि छा वख शिनारायण सिंह को आण से गढवाली समाज की दरेक तत्व की भागीदारी बढ़

गढ़सम्याल (1926) को संपादक बि बिष्ट छौ अर प्रकाशक बि । बहुगुणा त्बथांद बल बिष्ट की कविता सोरा बिरादरी जनान्यूं दुख द्यौ देवतों पर पूरों भर्वस पण नेगीचारी (देशभक्ति अर स्वाभिमानी द्ध अर अपाणी बोली फर गुमान का संख पूरक भाषा गवड्यां च पण गाण लैक च , शिव नारायण बिष्ट की कविता हिंदी कोश्याम नारायण पाण्डे की याद दिलवादन।

बलदेव प्रसाद नौटियाल (कड़ाकोट , गग्वाड़स्यूं 1895-1981)।दहूंस 35 बलदेव प्रसाद की कीर्ति गढवाली शब्दकोश काव्यखौेल ;संग्रहद्ध छाया रामायण अर उपन्यास व्यलभ-व्यंूराˇ को बजै से च बहुगुणा अर दर्शन बुल्दन बल छाया रमायाण -व्यूराˇ को बजै से च बहुगुणा अर सुंदर मिˇवाक च।

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सदानंद जखमोला सतनत (चंडा शीला पट्टी पौड़ी गढ़वाल -1901-1977)

कालीदास गढ़वाली छा अर खुदेड़ गीतंू परम्परा मेघदूत मा च । कालीदासौ तरां मेघदूत का पद चि∫न पर चलीक वादलु मार्फत रैबार भेजणो प्रयत्न ‘रैबार’ किताब (1951) मा करी। नासिक बठै मेघदूत बणीक भछर्याणी गौं माणा ;अल्कापुरीद्ध रैबार लेकी औंद प्रकृति -व्यौरा गढवालौ बिगैरलीपन भावुकता अर प्रतीकात्मक काव्य धरा च रैबार। जखमोला ‘‘ गढ़गुणत्याली चोˇी अर सुप्या
औत जन कविता किताब बि छापिन।


भोलादत्त देवरानी (डंुडख , लंगूरपौडी ग0 1908-1952)
पुराणा आख्यानुं तै गढवाली जामा दीण मा देवरानी सल्ल्ी ;सिह्हस्तद्ध कवि छौ। ‘ पाखा -पसेरी’ जुआअर जनानी मलेथा की कूल जन पोथी ज्ञान्यंून पसंद करे देवरानी न अभिज्ञान शाकुन्तलम् अर श्रीमद्भगवत गीता को पद्याानुबाद बिकरे। भोला दत्त की कविता समाज सुदारण्या समाज तै बाटु दिखंदेर अर गंभीर किस्मेंछन। सवैया दोहा तारक छंद चौपाया अर सतसई शैली मा कविता छन। बलिराम घनशाला कमल साहित्यालंकार (हरूणी तलै पौडी ग01909-1985)
सलाणी बोली मा जोर दीण वालु कमल साहित्यलंकार को गढवाली कवितौ मा मिल्वाक द्वी तरां को च लिखी ं गीतेय कविता अर रेडियो प्रसारण की कविता स्वर मंदाकिनी कतिघैाल च अर साहित्यलंकारन पचास से ंिबंडी गढवाली कविता छपेन सैकडाक कविता अणछर्ण छन।

भगवती चरण निर्मोही (सिराल कंडारस्यूं पौडी ग0 1911)

हिलांस कविता घौल प्रसिह् कविता संग्रह च इनी हमारी दशा कविता बि प्रसिह् आकाशवाणी से भौत सी कवितौं प्रसारण से निर्मोहीन कथगाा ही लंख बिलिखेन करूण रस का भगवती चरण सल्ली ;विशेषज्ञद्धछौ अर भोग्य अनुभव कवितौ शैली मा निर्मोही को नाम आंद अडाण वली कविता बिछन।

शालिग्राराम वैष्णव -(1873-1953)
मोदी नागपुर च0ग0द्ध भगवती प्रसाद नौटियाल कु हिसाब से शालिगराम वैष्णवन बि गढवाली कविता गदेन।

तारादत्त लखेड़ा- (जाखड टि0ग0 1912)

तारादत्त की सत्यप्रेम विहरणी बाला या जन कविताघौ ;संग्रहद्ध से गढवाली साहित्य तै उलार मील,कविता मयलि वांचण सुणन मा मयेˇी छन। कवितौं मा कथगाा प्रकार का रस अर भौण छन कˇकवि ;करूणाद्ध का वि तारादत्त बि
36 अंग्वाˇ
सल्लि छौ।

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रामलाल पंुडीर(नौली चलणस्यूं पौ0ग0 1915-1983)

रामलाल पुंडीर को काव्ययुक्त गढवाली कविताघौल ;संग्रहद्ध छप अर भगवतगीताको पद्यानुवाद अणछप्यूं च। पंुडीर को कविता या मयेˇी प्रकृति का छन।

ललता प्रसाद उनियाल‘ललाम जी’

ललता प्रसाद जब वि लाहौर बटे अमाल्डु आंद छौत नौनी-नौन्याल पुल्यांदा छा। चटकादार अर चबोड़ी आंद छौत नौनी-नौन्याल पुल्यांदा छा। चटकादार अर चबोडी कविता सुणैक ललता प्रसाद ललाम ही सव्यूं तै।आनंद देंदों छौ।डबरालस्यूं मा तइन बुन्दन बल उनियाल जी खिलेदेर प्रकृति कू मनिख छौ। ललाम जी को सासू ब्वारी ;1938द्ध अर विनोद वाटिका द्वी कविताखौˇ का बजै से ललाल जी गढ़वाली साहित्य मा सलाम का लैक च।

केशवानंद जदली

भक्तदर्शनन लिखी बल केशवानंद न कथ्या इ कविता छपैन जदली की नौनी-नौन्यलुं खुणि बढिया कविता छन ‘‘ विवेक माला’’ एक कविता पोथी को उल्लेख भक्त दर्शनन कई च। भक्त दर्शन अग्वाड़ी बतांद बल जदलीन कुछ लेख भि छपैन।

तुलाराम शर्मा

गढवाली - नगरी शब्द कोष का कोषकार तुलाराम शर्मा न गीता को कर्मयोग अध्ययों अनुवाद गढवाली मा करी। डा0 बड़थ्वाल सरीखा काव्यौ-जणगरूंन बडी-बडैं करी थै। गढवाल

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विशालमणि उपाध्याय ‘शर्मा’ (घंगोरा कालीफाट चमोली 1869 -1979)

विशालमणि न अपणी अर हौरूंक तीसेक तक किताब प्रकाशित करीन, विशलमणि की प्रकाशित कविथघˇ ;संग्रहद्ध वीर गढवाल मा विशालमणि की कुछ कविता छन दगड़ मा भवानी दत्त थपलियाल अर बलदेव त्रसाद शर्मा दीन की कविता बि छन। मतलब च गढवाली वातावरण का परांत मतलब च बिगˇया बिगˇया कवियूं एक ही खौˇ (संग्रहद्ध का कवितौं को यो दुसरो खौˇ )संग्रहद्ध च।

रत्नांबर चन्दोला ‘रत्न’;थापली, कफोˇस्यूं, पौ0 ग01901-1975)

रत्नांबर चंदोला हिंदी साहित्यकार छयों पण जवानी में कुछ एक कविता गढिन इनै उनै पत्र-पत्रिकाओं छापिन ,भक्तदर्शन अर साहित्यकार बहुगुणा न कतिवौं नाम नि लेखी। धर्माधिकारी- धर्माधिकारी की नंदापाती अर तंुगनाथ कवितौं व्यौरा ‘ श्ैालवाणी’’ मा  ।दहूंस 37 मिल्द। दयाधर भटट्-बहुगुणा की संपादित शैलवाणी मा इथगा इच बल दयाधर भटट न कुछेक कविता छपेन

सत्य प्रसाद रतूड़ी )टिहरी, टि० ग०, 1908-2007)

स्वतंत्रता सेना, भौत सा अखबारूं संपादक गढ़वाˇी नाटक ‘पांखी’ का रचियता न बि कुछेक मटोˇी गढ़वाˇी कविता छाप।
 

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रूपमोहन सकलानी याने गढ़वाली भाषा को पैलो महाकाव्य का रचनाकांर दुसरो युग की सबसे बड़ी उपलब्धि च गढ़वाˇी को पैलो महाकाव्य सिगढ़वीर

महाकाव्यपि (1927-28) भगवती प्रसाद नौटियाल न उत्तराखण्ड खबर सार (15 दिसम्बर 2007) या यांकी सूचना दे बल या किताब देहरादून गढ़वाˇी का साहित्याकार देवेंन्द्र जोशी माच। भक्तदर्शन न बि बैरिस्टर मुकंदीलाल संस्मरण गं्रथ पृष्ठ 405 मा यांको जिकर कर्यूं च। महाकाव्य लोदी रिखौला को जीवन बिरतांत पर आधारित च। भाषा विद्वानंू की समज लैक च। भ० प्र० नौटियाल बतांद बल महाकाव्य का या श्रीदेव सुमन, राजगुरू हरिदत्त नौटियाल, भोलादत्त शास्त्री, शिवदत्त सकलानी,
श्यामचंद नेगी की सम्पति, प्रशस्तिपत्र बि छपीं छन। भूमिका रूपमोहन न ही लिखे (28 जनवरी 2008) सकलानी को लिखण पूरो महाकाव्य काव्यशास्त्रूं सम्मत से ही लिखे ग्ये। भाषा का भामाम मा भगवती प्रसाद नौटिया लइन लिखणु च। सिमहाकाव्यैं गढ़वˇि भाषा संस्कृत निष्ठ होण का कारण साधारण पाठकों से काफी दूर समझेणी च, जन कि तौˇ लेखी कुछ पंक्ति छन-
ि ∫वै जा प्रसन्न जयदेव तू सृष्ठि कर्त्री,पि बाणी लाभस्य शुÿ त्यय भाव गतोस राहू। होलो बली बिजित शत्रु समृह्शाली, आदर्श जीवन करो अति जीवन प्राप्त ;इति श्री गढ़वीर महाकाव्य पूर्वार्थ पुत्राप्ति नाम्नो प्रथमः संसर्ग सर्गाे अस्मिन वृत वसंत लिलकम संर्गानते भालजी वृतमद्ध, महाकाव्य मा कवि को इन शब्दों व नामों प्रयोग बि कर्यूं च जौं को गढ़वाˇ मा क्वी अस्तित्व नी च, जन कि बांट्यो इनाम तैन कताना भिखारी, नाई तुलैक त ब स्वील कूड़ा गये वो, तबला, बेल, सारंगी, इसराज, भंˇीर आदि। जख तलक संसकृत्याण वˇी गढ़वाˇी को सवाल च त भगवती प्रसाद तैं अपणौं लिख्यूं साहित्य बचंण पोड़ल। भगवती प्रसाद गढ़वाˇी जगा फर हिंदी शब्दुं को छˇबˇी अपणा लेखूं मा करद उनि रूपमोहन सकनालीन महाकाव्य मा संस्कृत की छˇाबली कार। बढ़िया बात च बल भगवती प्रसाद नौटियाल की नजर ≈° शब्दुं पर बि पोड़ जु गढ़वाल मा नि होंदन पर भगवती प्रसाद नौटियाल बिसरी गेन बल ‘भूम्याˇ’ मा अबोध् 38 अंग्वाˇा बंधु बहुगुणा न उच्चा-2 गढ़वाˇी बौण मा हाथि बि दौड़ैन। सैत च महाकाव्य या
अतिशयोक्ति अर काव्यात्मक गति दीणै बान रूप मोहन सकलानी अर अबोध बंधु बहुगुणा अपणा महाकाव्य मा इन लेखी दे जु गढ़वाल मा होंद ही नि छन। अथर्वेद को अनुवाद भगवती प्रसाद नौटियाल ;उ० ख० सा० 15 दि० 2007द्ध मा ही शिवराज
सिंह ‘निसंर्ग’ का संदर्भ मा बतांईद बल शिवराज सिंह मा एक पोथी का पृष्ठ च जख
अथर्वेद सूत्रों का अनुवाद च।
ये जुग की खास उपलब्धि
सन् 1926 -50 की भौत सी उपलब्धि छन पण द्वी उपलब्धि खासम खास छन
भजन सिंह ‘सिंह’ रामलाल पुंडीर कविता थौˇ मा ठाकुर शिवनारायण सिंह बिष्ट को
पदार्पण एक ऐतिहासिक घटना च। साहित्या मा बामणूं एकाधिकार खतम करणै दिशा
मा या एक महान घटना माणे जाली। समाजिक हिसाबन या°कों अर्थ या च गढ़वाˇौ
समाजिक आर्थिक शैक्षणिक धार्मिक अर सांस्कृतिक थौˇ मा सबी वर्ग की सहभागिता
का दर्शन ये जुग मा होण लगी।
दुसरों साहित्यिक हिसाबन महाकाव्य कु छपण अर प्रबंध काव्य को पसरण
बड़ों ÿांतिकारी घटनौं मा सुमार करे जालो।
ये जमाना का कुछ साहित्यिक अर सामाजिक संस्थौं ब्यौरा
भक्त दर्शन, अबोध बंध बहुगुणा, भगवति प्रसाद नौटियाल अर मोहन बाबुलकर
की किताबुं अर लेखूं तैं बंचण से लगद सामाजिक संस्था ;अर कखि साहित्यिद्ध तैं
पˇण-पुषण का काम बि करण बिसे ग्ये छा दिल्ली माभोलादत्त देवराणी खुद एक
संस्था का कर्ता धर्ता छया देहरादून, मसूरी मा बि गढ़वाली प्रचारक मंडल गढ़वाली
भाषा का रूप मा प्रसिह् छ।
लाहौर मा बि गढ़वाˇी सामाजिक संस्था ;जखमा बलदेव प्रसाद नौटियाल थाद्ध
गढ़वाˇी प्रचार-प्रसार मा मिˇ्वाक दीदीं छै। कराची मा प्रवासी गढ़वाˇ संगठन अर
मुंबई मा गढ़वाˇ भातृ मंडल सांस्कृतिक साहित्यकारूं उछाह बढ़ादा छया राजपूत
सभा, अर गढ़वाल व्यवसायी संस्थान बि गढ़वाˇी, साहित्यकारूं मान सम्मान करदा
छया।
 

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1951 से 1975 मा सामाजिक हिसाब किताब गा°-गौˇ की जुम्मेदारी सन्1947 मा भारत आजाद ∫वे। अर आम गढ़वाˇयंू मा बि हौर भारत्यूं जन उछाह, भारत तैं अग्वाड़ी बढ़ाणै स्थाणी-गाणी छै। समाज अबि बि व्यक्ति को समणि जादा महत्व पूर्ण थौ। अफु इ ना स्वार भर, इष्ट मिंतर अर गा°व वˇों बार मा हरेक गढ़वाˇी संवेदनशील अर चित्वˇ थौ। तैं पढ़ाणौ जनत, परदेश मा अयां भाई बंधु-गां गौˇ वालुं खुण रैण व्यवस्था ≈°खुणि नौकरी व्यवस्था करण जन जुम्मेवारी गढ़वाˇयूं मा स्वतः छै। सामाजिक जुम्मेवारी ये जमानौ साहित्य मा पूरी तरां से दिख्यांद।

जात्यौ रिवाज पर चोटः

उन त सन् 1900 ई ब्रिटेन जाती प्रथा पर चोट लगण बिसे गे छै यां से केदारी कवितौं बि असर पोड़ चंद्र सिंह राही की कविता या°को खास उदाहरण च पर चोट करणौ रिवाज अवि बि जारी च। पढ़ै लिखै बान पुठ्याजोरः गढ़वाˇ मा ये बगत समाज मा नौन्याˇु तैं पढ़ानौ बान बड़ी लगन से कोशिश ∫वे। प्रावास मा बि नाइट स्कूल या प्राइवेट परीक्षा से डिग्री हासिल करणौ हौंस राई।
प्रवास्यूं गा° मा प्राईवेट हाईस्कूल खोलिन।

हेमवती नंदन बहुगुणा को उदय

ये बगत सन अस्सी को दशक मा हेमवती नंदन बहुगणा को उदय एक भौत बड़ी घटना च। हेमवती नंदन बहुगुणा को उदय से गढ़वाˇ्यूं तैं लगण बिस्याई कि 40 अंग्वाˇ यदि स्मार्टली मेनत करे जावू त गढ़वाˇ्यूं तैं राष्टन्न्ीय स्तर पर पछ्याणक मील सक्यांद गढ़वाˇ विश्वविद्यालय अर नजीमाबाबाद रेडियो स्टेशन गढ़वाˇ विश्वविद्यालय अर नजीबाद रेडियोस्टेशन खुलण एक ऐतिहासिक
घटना च।

देहरादून को गढ़वाˇ कमिश्नरी मा आण अलग गढ़वाˇ कमिश्नरी को खुलण अर पुराणों भूभाग देहरादून को गढ़वाल कमिश्नरी मा आण बि एक बड़ी घटना छै जांको असर पैथर उत्तराखण्ड आंदोलन पर पोड़।

1969 मा संविद सरकार

सन् 1969 मा उ०प्र० ना कांग्रेस राज की जगा मा संविद सरकार बणन असल मा नवो-परिवर्तन को रैबार छौ। गढ़वाˇ पेंटिग को प्रकाशन ये ही युग मा गढ़वाˇी पेंटिंग को प्रकाशन व्हाई जु कि गढवाˇंयूं तैं अंतर्राष्टन्न्ीय ख्याति बान काम करण को एक प्रेरणास्रोत बणे।

भंडमंजौ से लेकी आई०ऐ० एस० अधिकारी तक गढ़वाˇ्यंन पैलो पैली सेना मा नौकरी भांड मंजाण, लि∂ट मैनगिरी, डन्न्ाइवरी
जन नौकरी से जीवन नौकरी का शुरूवात करी, सनै-सनै बड़ी-बड़ी नौकर्यू तरफ गैना प्रवास मा गढ़वाली भंडमजौं से लेकी आ० ए० ऐस० अधिकारी तक की नौकर्यू  माका छया।

जख पैली हमार समाज जाति छाड़िक पैसा अर पद को हिसाब से एक थौ एइ समौ मा समाज मा भौत तरां को वर्ग बंट्याण शुरू ∫वे अर यू काम अब बि छैं छ।

नौकरी वाˇंू तैं गढ़वाल मा सम्मान गढ़वाˇ मा जू बि भैर नौकरी करदो छौ वे तैं बड़ो सम्मान की दृष्टि से दिखे
जा°द छौ।

नल- हौज कु औण  गा≈° मा नˇ-हौज को रिवाज आण बिसे गे छौ। मोटर सड़कूं मा थ्वड़ा सी बड़ोत्तरी गढ़वाˇ मा जादा ना सै पर मोटर सड़कू मा विकास हूण लगी थौ।

चीन की लड़ै

चीन न तिब्बत फर कब्जा करी अर गढ़वाˇ कु तिब्बतौं दगड़ संबंध खतम ∫वे गेन। चीन की लड़ै से गढ़वाल भारतौं बना एक महत्वपूर्ण अड्गै ;क्षेत्रद्ध ∫वे गे।

।दहूंस 41

चीन की लड़ै संबंधित कविता गढ़वाˇी मा रचे गेन।

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जनान्यूं परदेश मा आण

सन् 1947 से धीरे-धीरे प्रवासी अपण घर्वाˇी अर परिवार तैं देशुंद लैक परिवार बसाण लगी गे छा। प्रवासी जख नाकरी करणा छा उखी मकान बगैरा बणानै परंपरा बि शुरू ∫वे ग्ये छै। यीं परम्परा से साहित्य पर फरक पोड़ अर ये विषय पर गढ़वाˇी मा साहित्य
लिखे ग्ये।

नौन्यूं शिक्षा को रिवाज अर नौकरी को रिवाज ये समौ पर नौन्यूं तैं बि शिक्षा दीणौ रिवाज बढ़े गे छौ अर शहरूं मां गढ़वाली
जनानी नौकरी बि करण लगी गै छा। गढ़वाˇी बुलण मा परहेज जु नया-नया नौनी नौन्याली परदेश मा पैदा ∫वेन उतैं गढ़वाली बुलण से दूर रखणैं रिवाज ये ही युग मा लग। यी बात ये युग को गढ़वाली भाषा पर सबसे बड़ो आघात च।

अंतरजातीय ब्यौ की पवाण अर वृह् िये युग से गढ़वाˇयूं मा अंतर्जातीय विवाह की पवाण बि लग। हेमवती नंदन बहुगुणा अर शिवानंद नौटियाल यांको उदाहरण छन।

ऽूंद मा जनान्यंू मैत जाणै जगा परदेश मा पतियू ध्वार आण गढ़वाˇ मा ब्वार्यू मैत जाणै रिवाज थौ। अब ये युग मा ब्वार्यू तैं द्वी चार मैना खुणि पतियंू मिजै जाण लगी गै छो। योकी छाप गढ़वाˇी साहित्य मा साफ दिख्यांद।

गढ़वाली कविता

सामाजिक अर साहित्यिक संस्थौ योगदान

गढ़वाली साहित्यकारूं कछैड़ी जमाणौ इंतजाम, साहित्यकारूं साहित्य छपाण अर फुˇण ;विवरणद्ध कु काम मा गढ़वाली सामाजिक संस्था अग्वाड़ी ऐन अर यूं संस्थौनं भौत बड़ो अहसान च साहित्यपर।

गढ़वाˇी साहित्यौं राजधानी दिल्ली

ये बगत 1950-1990 तक गढ़वाली साहित्य की राजधानी दिल्ली हि राई, साहित्यिक कछड़ी लगण, कवि सम्मेलनुं होण, स्वांगुं मंचाण होण साहित्यौं छप्याण से इख साहित्याकारूं जनम होई अर ≈°को पˇण-पुषण बि खूब होय।

कवि सम्मेलनुं रिवाज

दिल्ली मा कवि सम्मेलनुं रिवाज बढ़ अर फिर कानपुर, देहरादून जन शहरूं मां बि कवि सम्मेलन होण बिसेन यां से कवियूं पौध लग अर कवियूं तैं प्रोत्साहन मील। 42 अंग्वाˇ साहित्यक कछेड़यूं लगण साहित्यिक कछेड्यूं लगण से साहित्यक वातावरण बढ़द गे।

आलोचनौ छपण

कवि संग्रहौं आलोचना छपण बि साहित्यकारूं तैं प्रोत्साहन मील। मेको पाड़ नि दीण पिताजी लोक गीत सिमैको पाड़ नि दीण पिताजी उख पाड़ी लोक खराब होंदन फाणु मा बाड़ी \खांदन मा बैणी क गाˇी दीन्दनपि लोक गीत गढ़वाल मा रचे ग्ये पण प्रवास्यू अर
गढ़वाˇ का गढ़वाˇ्यूं बी फरक भेद तैं बताणै एक शसक्त रचना च, यो लोक गीत
आज बि उथगा ही समायिक च प्जथ्गा पचास साल पैलो थौ,
हे ज्योरू घुमणौ कु जाण मीन लाल किला

लोकगीत

सन् पचासौ परांत लोकगीत कब आलो ∫यंूद पूसौ मैना घुमणौ जाण मिन लाल किला रचे ग्ये छौ अर गढ़वाल अर प्रवासी समाज तै दर्शाणखुणि काफी च। कन्हैयालाल डंडरियाल की या बौˇ्यां की कथ्या कविता ए इ विषय पर रचे गेन अर बड़े मार्मिक छन, समायिक छन रियलिज्म से सरोबर छन।

तू होली बीरा उची निसी डांड्यूं मा

जीत सिंह नेगी न या कविता रात ग्यारह-बारा बजे लालाबहादुर शास्त्री रोड़ मुंबई का भांडुप मा चलदा-चलदा रची थै अर आज यीं कविता या ये गीत तैं आम लोक लोकगीत माणदन। ये युग मा यौ गीत गढ़वाली कविताखुणी अमर सौगात च। आज बि राम चमोली
सरीखा प्रवासी कवि मुंबई क्या इनी खुदेड़ गीत रचद दिख ग्ये। प्रवास्यूं खुद दर्शाणै परम्परा तैं जीत सिंह नेगी न अग्वाड़ी बढाई। ये जुग का सबसे बड़ा कवियुं मा जीत सिंह नेगी को नाम अग्वाड़ी ही च।

गिरधारी लाल कंकाल की फुर घिंठुड़ी को महत्व

बुह्विादी आलोचक अबोध बंधु बहुगुणा या प्रेम लाल भट्ट फुर घिंडुड़ी गीत तैं निपट साहित्यक रचना मानण से सैत परहेज करदन पण भीष्म कुकरेती को मानण च बि सम्मेलनु मा फुर्र घिंडुड़ी गीत गाण से लोखुं मा गढ़वाˇी कविता सुणनौ चाखुलग आकर्षण पैदा ∫वे। ये जुग की यो गीत गाण से लोख्युं मा गढ़वाˇी कविता सुणानौ चाखु लग आकर्षण पैदा ∫वे। ये जुग की यो गीत अमर देन च। पण दगड़ मा

प्रेमलाल भट्ट ने कंकाल की भौत बड़ै बिकार (हिलांस जुलाई 1985)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चंन्द्र सिंह राही को अवतरण याने एक यादगार घटनाः

ये जुग मा चंन्द्र सिंह राही केशव अनुरागी हौरि बि शिल्पकार कवि गढ़वाˇी कवितौं थौˇ मा ऐन अर यी घटना गढ़वाˇी कविता संसार मा अमर घटना माने जांदन ।दहूंस 43 जब ‘शिल्पकारूं ’ आधुनिक कवितौं तैं अलंकृत करण बिस्याई।

रियलिज्म अर व्यंग्य की नै धारा

ये सन् 1950-75 तैं गढ़वाˇी कविता संसार मा इलै बि याद करे जांद कि ये ही जुग मा गढ़वाˇी कवितौं मा प्योर रियलिज्म अर नयो तरां कु व्यंगात्मक कवितौं जनम भी होय। कन्हयालाल डंडरियाल। पूरण पंत पथिक, ललित केशवान अर जायांनंद खुगशाल सिबौˇ्यापि की कविता यांको उदाहरण छन।

लोक गीतुं संकलन अर विश्लेषण की परंपरा की शुरूवातः

स्वतंत्रता की एक पछ्याणक होंद बल लोक अपणी सारित (जेनेरेशनद्ध खुज्यांदन। ये युग मा अबोध बंधु बहुगुणा, डा० गोविन्द चातक, केशव अनुरागी, मोहन बाबुलकार, डा० हरिदत्त भट्ट शैलेश, डा० शिवानंद नौटियाल सरीखा बिद्वानुंन लोक गीतुं तैंखुजेन। संकलन कार अर ≈° लोकगीतु पर विश्लेषणात्मक दृष्टि से आलोचना लयाख यां से कविता संसार मा एक नयातरों को उत्साह आये
लोक साहित्य नयो साहित्यकारूं

बान प्रेरणास्रोत्र बि बौण।

श्याम बुक डिपो को योगदान

गढ़वाली साहित्यों कै बि इतिहासकारन श्याम बुक डिपों की छ्वीं निलगैम,पण भीष्म कुकरेती कु मानण च बल गढ़वाˇ्यूं मा
लिखित साहित्य तैं बंचणौं पंढनौं ढब दिलाण मा जु योगदान श्याम बुक डिपो देहरादून को च वो योगदान अपणौं आप मा अभिनव योगदान च। जादातर प्रकाशकूं न अपण गढ़वाली किताब शहरूं मा ही ब्याच या वितरित करी। प्रेम लाल भट्ट बि माणद बल जादातर

कवि हिंदी अग्रेंजी

साहित्याकारों तक अपणी रचना पहंुचााण तक सीमित रैन पण श्याम बुक डिपों की पोथी गढ़वाˇ का दूर दराज का गा° मा ग्वेर छ्वारा-छोरी बि बांचदा छया। जू श्याम बुक डिपो जादा दिन प्रकाशन मा रौंद थौ त सैत च आज गढ़वाˇी का बंचदेरू तादात भौति जादा हांेदी। डा० शिवानंद नौटियाल का द्वी कविता संग्रह सिश्याम छम घुघरूपि आर श्याम खुदेड़ गीत वे बगत गोर मा या ग्वाठम बचें जांदा था।

गढ़वाˇी जन साहित्य परिषद युगः

डा० नंद किशोर ढ़ौडियाल ये युग तैं जन साहित्य परिषद युग का नाम दींदु। कवितौं हालः गढ़वाली कवितौं आलोचक अबोध बधु बहुंगुणा ये युग की कवितौं
बारा मा इन लिखदः

(1) ये युग मा गढ़वाली कवि या लेखक भैरो असर का समणि नत मस्तक
होण बिसे ;शुरूद्ध गे छा,
(2) नया प्रयोग जादा तर व्यंग्य या हास्य मा होय।
44 अंग्वाˇ
(3) ये युग मा गढ़वाˇी कवितौं तरफ आकर्षित ∫वेन
(4) ये उत्थान की कविता मा व्यंग्य, रोमांस, करूणा अर राष्टन्न्ीय भावना तैं
सणि खूब विकसित रूप मिले, अर अपण सरल प्रवाह का कारण से वा
लोकप्रिय ∫वे।
(5) कवितौं मा प्रकृति का माध्यम से मानवीय संवेदना≈ं का अभिव्यक्ति
देण वˇा उच्चा काव्यदर्श्वी स्थापना बि ∫वे।

 

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