Author Topic: Hisotry of Garwali Old Poems - गढ़वाली कविताओं का पुराना इतिहास  (Read 16933 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सर्वेश जुयाल (सुजगौं, रावतस्यूं, पौ० ग०, 1914)

सर्वेश जुयालौ गढ़वाˇी साहित्य मा भौं भौं बनिक मिˇ्वाक (योगदान) छ। दिल्ली मा कवि लेख्वारूं खुणि छ्वीं-बत्था करणौं बान तिबारी अरखाण पीणक इंतजाम कारण मां सर्वेश जुयाल सद्यनि अग्वाड़ी राय। इन माने जांद बल पारेश्वर गौड़ का कनाडा जाण अर सर्वेश जुयाल को बुड्या होण से विनोद उनियाल को गुजर जाणा  से गढ़वाˇी साहित्यिक राजधानी हांेदी छै वा राजधानी देहरादून चली गे। सर्वेश जुयाल को कविता संग्रै त नि छप पण बीसेक कविता इनै उने छपिन, जख्या जमिगे एक भौति बिगˇीं चबोढ्या कविता च। छौंद्या मालिक रांड ∫वे ग्ये, मधुलि मरजात क्या च जन कवित लिख बल सर्वेश की थाली कविता बिलकुल बिगˇी किस्मैच, विषयांतर का जनी च सर्वेश जुयाल

अमरनाथ शर्मा (सिराˇा डबवाˇस्यू°, पौ० ग० 1920)

राजकरणी, गौ-गौˇा सेवा अर साहित्यण्या सेवा मा बरोबर मिˇवाक् कारण वˇा अमरनाथ शर्मा को कविता खौˇ ;संग्रहद्ध को नाम हंुणत्याˇी डालि च, भाषा का मामला मा सुघड़ अर मथेˇी उथमा अलंकार का घड़यौ च अमरनाथ शर्मा, कविता
गीते भौण मा छन।

मुरली मनोहर सती ‘गढ़कवि’ (देवस्थान, नागपुर च०ग० 1915) मुरलीमनोहर सती गढ़कवि को गढ़वाˇी कवितों मा मिˇ्वाक भौत बिंडी च। ≈°कों का प्रकाशित कविताखौˇ मादि गढ़वाˇी झांकी (1949) गढ़वाˇ जागरण (1947) पंचैत राज
झलक (1952) गोपी गीत (1965) गढ़गीतिका (1965) वन्यात चंद्रिका (1978) छ्वटि कवितौं पोथ्यूं त्वड़ी बड़ैं ∫वे। अड़ाणवˇी कविता जनजागरणै कविता, धार्मिक अनुष्ठान अर अध्यात्मै कवितौं रचण मा गढ़कवि सिह्हस्त च। प्रतीक पैदा करण मा
ि ‘गढ़कवि’ पैथर नी च।

वसुन्धरा डोभाल(देहरादून 1920) सामाजिक कांजू, जन जागरण नेगीचारी स्वामीभक्तिद्ध देवपूजा, देश प्रेमी जना विषयूं पर कविता कर्दारी वसुंदरा की कविता देहरादून अर देशुंदैं कथ्या इ पत्रिकौं मा छपिन। वसुन्धरा की कवितौं मा जागरण त छैं इ च कथ्या इ कवितौं मा कˇकˇि अर जनान्यूं इंट्यूशलन विशेषता भि दिखेंद।

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उमादत्त नैथाणी भेंटलु मनियारस्यूं पौ० ग० 1920-1971

उमादत्त नैथाणी खाली कवि नि छौ बल्कण मां दिल्ली तैं गढ़वाˇी साहित्यिक मंडल को संस्थापक मदे एक छयो उमादत्त की भौत सि कविता इनैं उनै पत्रिकौं-पत्रूं अर सोविनियरूं मा छपेन, गीता अर मेघदूत का पद्यात्मक अनुवादक गढ़वाˇी सार का रचियता अपणों आप मा गढ़वाˇी साहित्यौं बान बड़ी उपलब्धि च।

श्रीधर जमलोकी (उखीमठ, 1920-1984)

हिंदी संस्कृत अर गढ़वाˇी मा साहित्यिक रचना दीण वˇु जमलोकी की गढ़वाˇी कविता खौˇ (संग्रहद्ध अश्रुमाला (1953) एक बिसी (1953),दंुदभि डिम डिम उनास्वपन्न इंदिरा प्रसिह् ∫वेन, सैकड़ाक से जादा गढ़वाˇी कवितौं जनक मा प्रकृति विषय क विषय छन, साम्यावादी या सोसलिष्ट विचाराधार का विद्रोही स्वर छन, जनान्यूं का दुख से उपजीं कˇकˇी ;करूणद्ध च, प्रतीक पैदा करण मा उस्तात च जमलोकी, अनुभव अर खैर खयी ;दुख को अनुभवद्ध बि जभलोकी कवितौं मा जगा-2 मिल्द, श्रीधर की कवितौं मा कल्पना उथगा इ मिल्द जु कवितों मा प्रवाह/गति रौंस लाण मा दगड़या साबित ∫वे साक निथर कविता रियलिज्म का नजीक छन। गढ़वाली गौ मा प्रचलित बिंम्ब अर संस्कृत शैली को कवि प्रयोग करण मा जमलोकी की पैथर नि राईं ।

जीवानंद श्रीयाल (जखन्याˇी नैलचामी, टि० ग० 1925-2003)

जीवानंद श्रीयाल कु सबसे बड़ों मिˇ्वाक च गढ़वाली गौं मा कवि सम्मेलनुं मा गीतेय कविता सुणैक ग्रामीण गढ़वाˇयूं साहित्यिक थौˇ का प्रति रूझान पैदा करण। गौˇ-ढौˇ अर गढ़वाली मान कु ज्ञान का धनी जीवानंद का तीन कविताघˇ(संग्रहद्ध छपेन- गढ़साहित्य सोपान शैलखंड(1966) गढ़साहित्यं सोपान तिसरोखंड (1980) छपीं छन,श्रीयालौ कवितौं मा रियालिज्म भौत च किलै कि कवि अफु बि हˇ्या च, किसाण च चिपको आन्दोलन को सिपै च। कवि कल्पना से जादा सिखैरी खयींपि ;अनुभव जन्यद्ध पर विश्वास करद पर जीवानंद श्रीयाल न भौं भौं विषयूं पर कविता रचीं छन, संस्कृतै
छंद- भौण तैं अंगीकार करीक गढ़वाˇी भौण मा बदलण मा उस्ताद च श्रीयाल, गढवाली आणा, पखाण, प्रतीक, बिंब कर्तब, श्रुतियों अर टिर्याˇी शब्दुं को प्रयोग से श्रीयाल की कवितौं तैं पढ़न मा भौंत ही रौंस औंद। जब कि श्रीयाल की प्रतीतात्मक कविता बांचे जावु त बंचनेर का मन मा श्रीयाल का मन माफिक इमेज पैदा ∫वे जांदन।  श्रीयाल की आकाशंवाणी कथगाई कवितौं तैं कथगा ही दफैं रिलै कार अर यू साबित करद चल जीवानंद श्रीयाल कथगा तागतवर कवि च। कथगा ई पुरस्कार श्रीयाल तैं मिल्यां छन।

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मित्रानंद शर्मा डबराल (काफˇपाणी, जुआ, टि०ग० 1911)

वैद ज्योतिषी कर्मकांड़ी पंडित मित्रानंद डबरालन गढ़वाˇी काव्य तैं भौत कुछ देय। मित्रानंद की गढ़वाˇी ∂यंूˇी गंगाड़ी चकोर भजगोंविदम सत्यानारायणै नै व्रत कथा, विरह वसंत रम्भा शुˇ संवाद जन कविता घˇ ;संग्रहद्ध प्रसिह् कविता संग्रह रम्भा शुक संवाद जन कविता संस्कृत छंदू भौण पर छन। कुछ कविता राध्येशाम की तरज पर छन। कालीदास अर बिहारी का श्रृंगार प्रकृति जन्य वर्णन, विरह जन विषयूं पर जादातर कविता छन। मित्रानंद न गढ़वाˇी कहावत संग्रह पोथी बि छपाई छे। मित्रानंद की कवितौं मा टिर्याˇी भाषौ ओरिजननिलिटी का पूरा दर्शन होंदन अर संस्कृत का त छाप छैइं च।

कुलानंद भारतीय (जामणी, सल्द, पौ० ग० 1926- भग्यान)

अपणों बल पर मंडभंजा से ग्रेजुयेट बणन वाˇ दिल्ली की राजकरण मा अपणों नाम कमाण वˇू कुलानंद भारतीय को नाम गढ़वाˇी कविता थौˇ मा बड़ा आदर से लिये जांद। साहित्यकारूंन कुलानंद भारतीयैं सिडौˇ्यापि कथात्मक भौण को खंड काव्य की बड़ी बड़ै कार। डौˇ्या की कविता इति वृत्यात्मक भौण (शैलीद्ध मा च, खैर खयीं )अनुभव जन्यद्ध की पूरी झलक कवितौं मा मिल। गढ़वाल का भौगोलिक वातावरण का चित्र ;इमेजरी कविताद्ध पैदा करण मा बि कुलानंद भारतीय उस्ताद च। कुलानंद जनजागरण अर अड़ाण मा जादा विश्वास करद दिख्यांद,

डा० पुरूषोतम डोभाल (मुस्मोला, बडियार गढ़ टि० ग० 1920-2001)

अंग्रेजी संस्कृत, हिंदी अर गढ़वाली सबि चर्री भाषौं मा रचना करंदेर पुरूषोत्तम डोभाल को गढ़वाली साहित्य का नाटकू पर जाद अर बड़ैं लैक (प्रशंसनीयद्ध काम च। कक्या ई किताबू सुकाट ;समीक्षाद्ध कर्दार डा० पुरूषोत्तम डोभल न गढ़वाली मा बि कविता गढ़िन )रचना कार द्ध हिसर (1955) काव्य ;संग्रहद्ध अपणों आप मा गढ़वाˇी कविता थौˇ मा एक चमकदो जेवर बुले, जांद। टिर्याˇी अर ठेर गढ़वाली का दर्शन कवितौं मा हांेदन, विषय गंभीर छन पण बचनेरूं तैं रौस दिलाण मा कामयाबी कविता छन।

परशुराम थपलियाल बुरांश (गंगोलीसैण, खातस्यू° पौ० ग० 1927)

परशुराम थपलियाल की कथ्या कविता इनै उनैं पत्र पत्रिकौ मा छपनि, रेडियो स्टेशनुं बटेन प्रसारित ∫वेन। परशुराम की गढ़वाली रामचरित मानस एक समˇौणी ;यादगारीद्ध कविताघौˇ ;संग्रहद्ध च। को पोथी रामचरित मान को बढ़िया अनुवाद च ।दहूंस 47 चौपाई की भौण मा अनुवाद च। इटेल्क्चिुअल हिसाबन कविता अपणी जना नि बि ∫वावन त आभमनिखुं हिसाब से कविता वजनदार, जानदार छन।

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जीत सिंह नेगी(अयाल, पैडलस्यू° 1927)

जीत सिंह नेगी को सांस्कृति काजूं से गढ़वाˇी गीतूं को प्रचार-प्रसार मा बड़ो योगदान च। मुंबई मा रचीं रचना तू होली बीरा त अब लोकगीतुं मा गणे जांद। जीतसिंह नेगी को नाम रिकोर्डिग मा बि अग्रणी च, गढ़वाली मा पैलो बार कै गीत कु रिकार्डिग को श्रेय बि जीत सिंह नेगी तैं जांद (यंग इंडिया-1949) आकाशवाणी ब्रिटेन बि जीत सिंह नेगी की गीत प्रसारित होंदा रैन (1954 विटेनद्ध ,
नेगी की गीत गंगा ‘जौंˇ मंगरी’ रामी पार्वतीकु ब्यौ ‘मलेथा की कूल’ कविता खौˇ छन। गां-गौˇ ठेठ गढ़वाˇी अर पैडुˇी लहजा नेगी की पछ्याणक च। गिताड़ होण से कवितौं मा गेयता पूरी च।

रघुबीर सिंह रावत (अयाˇ, पैडलस्यूं पौ० ग० 1938)

अपण टैम पर रघुबीर सिंह रावत की कवि सम्मेलनूं मा बड़ी मांग रैंदी थै, रघुबीर सिंह को कवितखौˇ ‘गुठ्यार’ की समालोचला न बड़ी बड़ै करी। कविता अनुभव से जन्म्या कविता छन अर जन मानस को करीब छन। अबोध बन्धु बहुगुणा अबोध बंधु बहुगुणा गढ़वाली साहित्यौ सूरज माने जांद। कविता अर गद्य को थौˇ मा बहुगुणा को योगदान च। सिशैलवाणीपि बहुगुणा को संपादन मा छप अर या पोथी गढ़वाली कविता इतिहास (1980) की एक संदर्भ पोथी च। गढ़वाली मानौ दूसरों महाकाव्य ‘भूम्याˇ’ बहुगुणा की कालजयी रचना च।

तिड़का मा चबोड्या दोहा छन। रण मंडाण मा वीर रस की कविता छन, पार्वती मा सौ गीतु मा कविता छन, घोल कु महत्व च अतुकांत प्रतीकात्मक कविता, अंख पंख छ्वटा नौनु-नौन्याˇी खुणि कविता छन, दैसत मा उत्तराखण्ड आन्दोलन संबंधित कविता छन। जख कणखिला मा छ्वटि कविता छन उख शैलोदय अलग-अलग विषयु की कविता संग्रह च। धुंयाˇ मा गढ़वाली लोक गीत छन।
अबोध बंधु बहुगुणा बगैर गढ़वाली साहित्य सुचे बि नि सक्यांद।

महिमानंद सुंदरियाल (बडोनी, गुराड़स्यंू पौ० ग० 1928)

देहरादून मा भौत सांलु तलक सांस्कृतिक मंचू से गढ़वाˇी भाषौ धड़यौ48 अंग्वाˇ सुन्दरियाल सांस्कृतिक आधार-माध्यम तैं गढ़वाˇीपन फैलाण मा विश्वास कर्द। माहिमानंद की कविता अखबारूं पत्रिकौं मा छपिन अर आकाशवाणीन सुंदरियाल की कविता कथ्या दैं रिले कर। अ० ब० बहुगुणा को बुलण च बल कवि सुंदरियालै कविता वणैनात्मक, भावनात्मक छन अर भाव-गीत परंमरा का धयेड़ा छन।

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सचिदानंद कांडपाल (घटूड़ी, दशज्यूला, च० ग० 1930)

सचिदानंद कांडपाल संस्कृत अर दर्शनशास्त्र को सयाणा ज्ञानी च अर ये ही वजह च कांडपाल की कवितौं मा शब्द साल्लेपन ;शब्द शिल्पद्ध ठीक दिख्यांद, आध्यात्म कै ना कै रूप मा विद्यमान रौंद। सचिदानंद कांडपाल को रैबार कविताघˇ(संग्रहद्ध मा बनि बनिक विषयूं मा कविता छन, कल्या० हंसदेरी )हास्यद्ध कविता बि हंसाण मा का कामयाब कविता छन। यांका अलावा बांजै फांकि खुबसाट, गुमणाट जन कथ्या कविता इनै उनै छपिन, पिथौरागढ़ी कुमयां भाषौ छाप बि कवितौं शब्दुं पर साफ दिख्यांद। कांडपालै कवितौं मा संस्कृत को भी असर च।

गिरधारी लाल थपलियाल ‘कंकाल’ (श्रीकोट, खात्स्यूं पौ०ग० 1929 )

गिरधारी लाल थपलियाल कंकाल की फुर घिंडुड़ी गीत कवि सम्मेलनुं बड़ी माग रौंदी छे। कंकाक की गीतेय शैली मा गीत-कविता सुणन से गढ़वाली तैं सैकड़ांे बचनेर मिलेन। कंकालन कविता को संपादन बि करे। गिरधारी लाल थपलियाल का कविताखौˇ कु नाम च नवाण (1956) , फुर घिंडुड़ी (1959) सुना बैण ;लोक कथा पर आधारित 1961द्ध गीति काव्य (1960) पवांण अप्रकाशित काव्य ;वौˇ छन- वीरा बैण, धकि धैं-धैं गढ़वाˇ खण्ड काव्यद्ध थपलियाल की कवितौं मा कथा, हौंस, टेनसन, खैरी खुद को मिˇ्वाक बड़ो बढ़िया रौंद।

भगवान सिंह कठैत (घारकोट, बडियार गढ़, टि० ग० 1939)

भगवान सिंह कठैत की कविता पत्र पत्रिकौं मा छप्याणा रौदन। कठैत की कवितौं मां खुद ;विरहद्ध माया अर हौंस रस भौत हौंदा टिर्याˇी शब्दु की छˇाबली वˇी कविता बंचनेरू तैं प्रभावित कर्दन।

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प्रेमलाल भट्ट (सेमन, देवप्रयाग, 1931)

गढ़वाˇी मा प्रेम लाल भट्ट को योगदान आम आम कवियूं तरां नी च। प्रेम लाल भट्ट नितांत बौह्कि वर्ग का कवियूं मा आंद। ।दहूंस 49 उत्तरायण महाकाव्य अलग तरां को समायिक च विषयूं को महाकाव्य च। उमाˇ काव्यखौˇ गरीब अर गरीबी का घोषणा पत्र च। भागै लकीर खंड काव्य च अर चिंतन मनन वाˇा बचनेरूं खुणि एक सौगात च।

कुतगाˇि कविताखौˇ (संग्रह0 की कवितौं मा सार्थक श्रृंगार की कविता छन अर अपणी तरां की अलग ही कविता छन। प्रेमलाल भट्ट की भाषा मा देवप्रयागी पुट, संस्कृत अर हिंदी शब्दुं की भरमार रौंद। गढ़वाˇी दर्शन अर प्रेम तैं नयो ढंग से व्याख्या करणौ बान प्रेम लाल भट्ट गढ़वाली कविंता थौˇ अलग जगा च।

डा० उमाशंकर थपलियाल समदर्शी (श्रीनगर पौ० ग० 1942)

पत्रकारिता व्यवसायी डा० उमाशंकर थपलियाल ‘समदर्शी’बाˇापन से इ गढ़वाˇी मा कविता लिखण बिसे ग्ये थौ। उमाशंकर थपलियाल कु द्वी कविता खौˇ छपी गेन, भ्यूंचˇो अर गौं किलै उजड़ना छन। थपलियालै कविता गढ़वाˇी गौं की सरोंकारीकविता छन। कवितौं मा त्रास खैरी विडंबना, व्यंग्य सभी कुछ च।

ब्रम्हानंद बिंजोला (खंदोड़ा, चाैंदकोट, पौ० ग० 1938)

ब्रम्हानंद बिंजोला गीत लिखद, अर जनरूचि का गीतांग च बिंजोला ‘गढ़वाली गीतांजलि’ कु नाम से ब्रम्हानंद का गीतखौल छपी ग्ये एक गीतूं संग्रह प्रकाशक की बाट जुगˇन च।

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सुदामा प्रसाद डबराल ‘प्रेमी’ (फल्दा, पटवाˇस्यूं पौ० ग० 1931)

गढ़वाली मा नाटक, कथा, उपन्यास, लेख आलोचना लिखण वाˇा सुदामा प्रसाद डबराल प्रेमी मूलतः कवि च, सुदामा प्रसाद की कविता पत्र पत्रिकौं मा छपणा इ रंदन, द्वी आंसू ‘बट्वै’ अग्याल कविता खौˇ कु अलावा एक कविताखौल छपण वाˇ च। सुदामा प्रसाद की कवितौं मा खैरी ;संघर्षद्ध जादा रौंद अर कवितौं मा प्रकृति, गरीबी कु विषय जादा रौंदन।

डा० महाबीर प्रसाद गैरोला (टिहरी, 1922)

डा० महाबीर प्रसाद गैरोला कु गढ़वाˇी साहित्य खुणि योगदान च। कपाˇी की छमोट चर्चित कविता संग्रै छ कवितौं मा प्रेरणा, आध्यात्म, गरीबूं खुणि डा अर साम्यवादी विचारधार क दर्शन होंदन, टिर्याˇी बोली को पूरा प्रभाव कविता गंठ्याण मा दिखेंद।

चन्द्र सिंह राही (गिंवली, मौदाड़स्यूं, पौ० ग० 1942)

चन्द्र सिंह राहीन सांस्कृतिक कार्यकर्मूं बदौलत गढ़वाˇी लोक गीतंु प्रचार-प्रसार 50 अंग्वाˇ सरा भारत मां कार चन्द्र सिंह राही मा 2500 ;ढाई हजारद्ध लोक गीतुं संग्रह बि च। चन्द्र सिंह राही का द्वी गीतकाव्य संग्रह सिदिल को उमाˇपि अर सिरमछोˇपि छपीं छन, चन्द्र सिंह राही की कवितौं मा जातीय विषमता पर पूरो कटाक्ष मिल्द अर प्रेरणादायक कविता बि खूब छन।

राम प्रसाद गैरोला ‘विनयी’ (कंडारा)

राम प्रसाद गैराला ‘विनयी’ की सुद्याल कविताखौˇ (संग्रह-1964) की भौत बड़ै ∫वे। कविता एक सिपै अर वैकी घर्वाˇी की कथा पर आधारित च, खैर- खयीं ;अनुभव कर्यूं दुखद्ध की पूरी छाप यूं कवितौं मा च, चमोली अर पच्छमी पिथौरागढ़ी कुमया शब्दु की छाप कवितौं मा साफ दिख्यांद। या बड़ी अर बड़ै लैक बात च। गढ़वाल की जन्यान्यूं का दुख अर कˇकˇी ;करूणाद्ध कवितौं मा जाया चा। कवि पुराणी भौण का धड्यौं च अर एक्सपेरिमेंट मा विश्वास कतै नि करद।

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जगदीश बहुगुणा ‘किरण’ (बुघाणी, चणस्यूं रूद्रप्रयाग 1932)

टेन्न्ेड यूनियन मा बढ़ी चढ़ीक भागीदार जगदीश किरण की कवितौं मा विद्रोही आवाज साफ दिख्यांद जगदीश किरण की कविता संग्रह ‘घमा’ च, दगड़ मा द्वीएक भौत सा कविंयू का कविताखौ ;संग्रहद्ध मा, भौं भौ पत्र पत्रिकौं मा छपिन, कवि का
विद्रोही स्वर समाज का विरूह् बि दिख्यांद, कवि जगदीश ‘किरण’ को मानण च व्यक्तिअर समाज तैं अपड़ी जुम्मेवारी से नि भजण चयांद, किरण की कवितौं मा अपण जमाने। के हिसाब से नयोपन अर नया विषय छन बि बि कथगा ई आजौ कवि
यूंही विषयूं पर कविता गंठ्याणा  छन।

भगवान सिंह रावत ‘अकेला’ (सिपाई, नागपुर च० ग० 1932)

भगवान सिंह अकेला पर भे माता की दुरफा कृपा च।, अकेला तैं गाण बि आंद अर गीत गंठ्याण बि औंद। सन् 1990 तलक भगवान सिंह रावत अकेला मंुबई मा सांस्कृतिक मंचू को एक अभिन्न अंग छौ। अकेला की द्वी गीत संग्रह की गाथा बड़ै होंद समूण (1960) अर माया भेˇुड़ी ;1978द्ध भगवान सिंह रावत अकेली की कवितौं मा चमोली बोली को बाहुल्य होण से अबोध बंधु अकेला की कवितौं मा भाषा-गुण दोष की भगार लगांद। पण भीष्म कुकरेती बुलद बल यो दोष नी च चमोली पन ही त भगवान सिंह
रावत ‘अकेला’ की भौत बड़ी खासियत च। अकेला की खबि कविता पुराणी भौत अर गीतेय, मयेˇी छन। विषय जादातर
प्रकृति का संबंधित छन।

शिवानंद पांडेय ‘प्रेमेश’ ;तोरण, खास पट्टी टि० ग० 1933)

शिवानंद पांण्डेय प्रेमेश की उज्याˇी (1962)

अर चंद्रवदनी चालीसा कविताघौˇुं।दहूंस 51 तारीफ भौत ∫वै। प्रेमश को कवितौं मा छौंदी-निछौंदी भेद को दुख मिल्दो। परंपरा, गां-गौˇ, गां-गौˇ का भूगोल, मातवरी-गरीबी भेद खतम करणै गाणी-स्याणी वˇी
कविता का गंठनेर च प्रेमेश भाषा सरल अर अड़ंदेरी भौरी मा छ। पंडित की टिर्याˇी बोली का असर कवितौं मा दिखे सक्यांद।
शिवानंद पांडेय न बद्रीनाथ एक्सप्रेस नामै कविताधल को संपादन बि कार जखमा भौत सा कवियूं कविता छपिन।

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डा० गोविन्द चातक (लोस्तु बड़यारगढ़ टि० ग० 1933-2009)

डा० गोविंद चातक कु नाम गढ़वाली साहित्य मा कवितौं से आदा, लोकगीत
इकबटोˇण, लोकगीतूं की छाण निराल ;विष्लेषणद्ध करण, लोकगीतंू तैं फड़क्यूं
(विभाजन) मा बटण और गढ़वाˇी भाषा की जड़-पुराण खुज्याणो म च।
पण इन नी च चातक न कविता नि लेखी ∫वेन, गीत वासंती अर फूलपाती
कविता खौˇ गोंविद का कविताखौˇ छन। गोविन्द्र चातक का संपादनकत्व मा
सिरैबारपि कविताखौˇ 1963 मा छप।

गोविन्द चातक की कवितौं मा प्रकृति प्रेम अर खैरी-खुद ;संघर्ष अर विरह द्ध
मिल्दो।

कन्हैयाल डंडरियाल ;नैली मवालस्यूं 1935-2004द्ध- गढवाली मा जु अबोध बंधु
बहुगुणा न जादा कविता रचिन अर महाकवि की उपाधि पायी त कन्हैयालाल
डंडरियाल न नयों ढंग को व्यंग्य देकी जन महाकवि की उपाधि पाई सही माने मा
डंडरियाल न गढवाली कवितौ तैं आधुनिकता को झुल्ला पैराई
मंगतू अंज्वाल कुयेडी छप्यां कविताखौˇ बागी उप्पन की लडै़ अणछप्या
कविता खौल च। नागराजा चार भागू वल महाकाव्य च
कन्हैयालाल डंडरियाल की कवितौं खासियत च असलियत अर चबोड़ को
अणभिड्यूं मिल्वाक का सरल भाषा मा कविता छन अर अनपढू बिगणं मा बि ए
जंदन। प्रयोग धर्मिता बि कवितौं मा दिख्यांद च। कविता मा ठट गढवाली बिंब
उपमा, अनुप्रास डंडरियाल की खासियत च।

ललित केशवान (सिरोली , इडवालस्यूं पौ0ग0 1939)

ललित केशवान न नया प्रयोग करने अर गढवाली कविता मा असलियत आध्
ाुनिकता दीण मा डंडरियाल बौल्याकु दगुड़ दे। ललित की खिल्दा फूल , हंस्दा
पात, दिख्यां दिन तप्यां घाम ,हरि हिंड्वाण, दीवा हैवजा देणी ;खंडकाव्यद्ध कविताखौल
छप्यां छन अर आकाशवाणी बिटेन कविता प्रकाशित होणा रौदंन।
केशवान की एक हौरि खासियतया छ बल बंचनेर कविता बांचणौ परांत चुप
नि रे सकद बलकण मा कविता से अगनै कल्पना बि करण लगी जादं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नित्यानंद मैठाणी )श्रीनगर ,पौ0ग01934)
52 अंग्वाˇ

नित्यानंद मैठाणी को गढवाली साहित्य सणि मिल्वाक कथगा ही तरौं को च।आकाशवाणी मा गढवाली तैं अग्वाडी पहुचाण गौं गौं मा कवि सम्मेलन कराण, सुणंदरूं का हिसाब आकाशावाणी मा प्रोग्रेम तैयार त करदा इ छो अफिक बि मैठाणी रेडियो मा वार्ता लिखद कविता मा बि नित्यांनंद मैठाणी को योगदान च। रामदई कविताघल;संग्रहद्ध मा कविता कुछ बिगली किस्मौ का छन, अपरोक्ष रूप मा कथगा ही बात कविता से बथाणों कलाकु सयाणा च नित्या नंद मैठाणी रामदेई एक अजीब प्रेम व की कविता च अर बंचनेरूं का मन सेली कलकलीअर आध्यात्म जगै जान्द भाषौ मामला मा नित्यानंद निपट गढवाली तैं अंगीकार का धै लंगदेर च मैठाणी यार-द्वार आकाशवाणी को बहुचर्चित प्रोग्रौम साबित ∫वे।

शेर सिंह गढदेशी (श्रीकोट कटोलस्यूं पौ0 ग0 1934)

शेरसिंह गढदेशी कु गढवाली साहित्य चा कविता /गीत अर स्वांग दुयी बिधा मा बहुतेरो मिलवाक च। उन सुकटयौं न यूको मूल्यांकन करण मा दिल्ली का साहित्यकार सुकटयौं ;समालोचक द्धकेा साहित्यण्या आलोचना मा एकाधिकार जन स्थिति होणु से गढदेशी को मुल्यांकन उन नि ∫वें जांका गढदेशी को मुल्यांकन उन नि ∫वें जांका गढदेशी हकदार यौच । शेरसिंह गढदेशी की डेढ सौ से बिंडी कविता/गीत इना उनां पत्रिकाओं मा
छापिन शेरसिंह गढदेशी की कवितों मा मरद-जनान्यूं को मनोवैज्ञानिक संबंध शारिरिक अर आत्मीय संबंध या संबंधू मा टूटन को विरतांत बडों सुंदर ढंग से होंद जु कि शेर सिंह तैं हौरि समायिक कवियूं से बिगलाण मा सफल छन। मजबूरी कलकली समाजिक बुरैयंू से टुटगाा हुयूं समाज व्यक्ति क कुदशा दिखाण मा शेर सिहं सिह्हस्त कवि च।गढवाली साहित्य मा याद करे जालु।


 

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