Author Topic: How to develop Kumaoni & Garhwali as Official Language of Uttarakhand?  (Read 14657 times)

पंकज सिंह महर

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देहरादून, जागरण संवाददाता: यदि आप लोकभाषा के प्रति अनुराग रखते हैं तो एक अच्छी खबर। गढ़वाली भाषा व्याकरण पुस्तकालयों में जल्द ही नजर आयेगा। इसकी पांडुलिपि गुरुवार को अखिल गढ़वाल सभा को सौंपी गई। गढ़वाली भाषा अर साहित्य समिति की राजधानी में आयोजित बैठक में बताया गया कि समिति और अखिल गढ़वाल सभा गढ़वाली-हिंदी-अंग्रेजी कोश एवं गढ़वाली भाषा व्याकरण के निर्माण के लिए संकल्पबद्ध है। शब्दकोष का कार्य प्रगति पर है, जबकि व्याकरण का कार्य पूर्ण हो चुका है। बताया गया कि इस गढ़वाली भाषा के व्याकरण के निर्माण में पाणिनीय सूत्रों का प्रयोग कर उसे अध्येताओं, आचार्यो एवं सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों के लिए अत्यधिक उपयोगी बनाने का प्रयास किया गया है। बैठक में आशा व्यक्त की गई कि यह व्याकरण गढ़वाली भाषा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी। गढ़वाल सभा के अध्यक्ष रोशन धस्माना ने विश्वास दिलाया कि संस्था कुछेक महीनों में इसका प्रकाशन करेगी और इसकी उपयोगिता को स्कूल-कालेजों में प्रचारित किया जाएगा। सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रेमबल्लभ बहुगुणा की अध्यक्षता में हुई बैठक में साहित्यकार डा.आरके शर्मा, भगवती प्रसाद नौटियाल, शिवराज सिंह रावत नि:संग, हेमंत जुयाल, डा.कुसुम नौटियाल, डा.आरएस असवाल आदि मौजूद थे। सभी ने व्याकरणाचार्य, संस्कृत-हिंदी एवं गढ़वाली के विद्वान डा.आरके शर्मा को व्याकरण के निर्माण हेतु साधुवाद दिया और उनके अथक परिश्रम की सराहना की।
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: How to develop Kumaoni & Garhwali as Official Language of Uttarakhand?
« Reply #11 on: November 07, 2008, 11:57:55 AM »


In my opinion, instead of Garwali / KUmoani, it should be Uttarakhandi.

देहरादून, जागरण संवाददाता: यदि आप लोकभाषा के प्रति अनुराग रखते हैं तो एक अच्छी खबर। गढ़वाली भाषा व्याकरण पुस्तकालयों में जल्द ही नजर आयेगा। इसकी पांडुलिपि गुरुवार को अखिल गढ़वाल सभा को सौंपी गई। गढ़वाली भाषा अर साहित्य समिति की राजधानी में आयोजित बैठक में बताया गया कि समिति और अखिल गढ़वाल सभा गढ़वाली-हिंदी-अंग्रेजी कोश एवं गढ़वाली भाषा व्याकरण के निर्माण के लिए संकल्पबद्ध है। शब्दकोष का कार्य प्रगति पर है, जबकि व्याकरण का कार्य पूर्ण हो चुका है। बताया गया कि इस गढ़वाली भाषा के व्याकरण के निर्माण में पाणिनीय सूत्रों का प्रयोग कर उसे अध्येताओं, आचार्यो एवं सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों के लिए अत्यधिक उपयोगी बनाने का प्रयास किया गया है। बैठक में आशा व्यक्त की गई कि यह व्याकरण गढ़वाली भाषा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी। गढ़वाल सभा के अध्यक्ष रोशन धस्माना ने विश्वास दिलाया कि संस्था कुछेक महीनों में इसका प्रकाशन करेगी और इसकी उपयोगिता को स्कूल-कालेजों में प्रचारित किया जाएगा। सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रेमबल्लभ बहुगुणा की अध्यक्षता में हुई बैठक में साहित्यकार डा.आरके शर्मा, भगवती प्रसाद नौटियाल, शिवराज सिंह रावत नि:संग, हेमंत जुयाल, डा.कुसुम नौटियाल, डा.आरएस असवाल आदि मौजूद थे। सभी ने व्याकरणाचार्य, संस्कृत-हिंदी एवं गढ़वाली के विद्वान डा.आरके शर्मा को व्याकरण के निर्माण हेतु साधुवाद दिया और उनके अथक परिश्रम की सराहना की।
 


खीमसिंह रावत

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Re: How to develop Kumaoni & Garhwali as Official Language of Uttarakhand?
« Reply #12 on: November 07, 2008, 12:24:04 PM »
Thik hai koi bhi ho / 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: How to develop Kumaoni & Garhwali as Official Language of Uttarakhand?
« Reply #13 on: January 30, 2009, 02:55:43 PM »


उत्तराखंडी भाषाओ का विकास कैसे हो ?

यह एक गंभीर मुद्दा है ! हमने कई बार देखा है कि उत्तराखंड के लोग आपस में अपनी भाषा भी बात करने में शर्माते है !

दुसरे तरफ़ हमने अपने जन नेताओ को अभी अपने सथानीय भाषाओ में भाषण देते हुए देखा है ! जब आप ने देखा होगा साउथ के नेता हो या गुजरात ने नरेंदर मोदी जो अपने लोगो को अपने ही सथानीय भाषा में संबोधित करते है !


Vidya D. Joshi

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Certainly it is possible to develop uttarakandi language (Kumaouni and Garhwali)   as official language of uttarakhand.  If we go through the history of Nepali language we will find it possible. And next question is we have to do…. because the language is the identity of the community.  Every community wants their own identity and for this to protect and developed the language is necessary. There is no need of lipi but  we should work on this

Dinesh Bijalwan

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As  Shri Maharji has said  Dev Nagri Lipi is capable to  create literature of any kind in Garhwali or Kumauni.  Let these dialect flow like Ganga & Yamuna, in the course of  time  they will create Sangam.  I shall urge  the writers to write  in these dialects  using  Dev Nagri.   Sabdkosh on Kumauni and Garhwali will definately encourage the uttrakhandi writers to use  more and more  kumauni and Garhwali words in their  work.  I have read the kumanuni and Garhwali poem written in  devnagri   available on  the fourm and  it has helped me to understand kumanuni  poems  easily.  

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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i believe some people are working on it. Dr Jalandhari who is member of our portal has developed some lipi..

Apart from this, some other people are woking on this.

Risky Pathak

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I agree with gaur jee. New script will not solve present issues.

Ab tak devnagri lipi ki wajah se hi utrakhand ki b0lio ka vikas hua h.

Mere pas kai purane patr pde h jin me kumauni me hi likha h.

पंकज सिंह महर

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Jul 03, 12:46 am

गरुड़(बागेश्वर)। हिंदी कुमाऊंनी के शीर्ष साहित्यकार व राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बागेश्वर के हिंदी प्रवक्ता डा हेम चंद्र दूबे 'उत्तर' का शोध ग्रंथ 8 साल बाद भी प्रकाशित नहीं हो पाया है। जो कि कुमाऊंनी भाषा के उत्थान व विकास में मील का पत्थर साबित होता।

कुमाऊंनी के शीर्ष साहित्यकार डा हेम चंद्र दूबे ने कुमाऊंनी कहावतों के समाज शास्त्रीय अध्ययन पर अनूठा शोधकार्य किया है। कुमाऊं क्षेत्र में आठ हजार से अधिक कहावतें दीर्घकालीन परंपरा से जनसाधारण की जुबान पर रची बसी है। डा दूबे ने इन कहावतों में से समाज शास्त्रीय व मनोवैज्ञानिक कहावतें चुनकर उनका विशद समाज शास्त्रीय अध्ययन किया है। इस उत्कृष्ट शोध कार्य के लिए वर्ष 2001 में उन्हे पीएचडी की उपाधि प्रदान की गयी थी। डा दूबे का शोध कार्य छंद शास्त्र के प्रकांड विद्वान हिंदी विभागाध्यक्ष डा डीएस पोखरिया के निर्देशन में पूर्ण हुआ।

डा दूबे ने बताया कि कुमाऊंनी में लिखित व मौखिक दो प्रकार का साहित्य प्राप्त होता है। कहावतें मौखिक साहित्य की अमूल्य निधि है। नित्य के व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली कहावतों में लोक परंपरा के कतिपय आख्यान निहित होते है। मौजूदा समय में कुमाऊंनी के प्रचार प्रसार पर व्यापक कार्य किया जा रहा है। ऐसे वक्त में डा दूबे का अनूठा शोध ग्रंथ प्रकाशन के अभाव में जनसामान्य के संपर्क से अछूता है। उनके शोध ग्रंथ से समाज के विभिन्न पहलुओं को छूने वाली कहावतों में मनुष्य का जीवन दर्शन अभिव्यक्त होता है। कहावतों के रचयिता के अज्ञात होने पर भी कहावतों का महत्व समाज के लिए परंपरा के रूप में आज भी बरकरार है। अनूठे साहित्यिक शोध के लिए डा दूबे हो अभी तक अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य सेवाओं के लिए 8 सम्मानों से नवाजा जा चुका है। डा दूबे की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। यदि सरकार उन्हे आर्थिक सहायता उपलब्ध कराते हुए उनका शोध कार्य प्रकाशित कराये तो लोक साहित्य की धरोहर कहावतों से नयी पीढ़ी भी रूबरू हो सकेगी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  बोली नहीं भाषा हैं गढ़वाली और कुमाऊंनी   
गोपेश्वर (चमोली)। सांसद सतपाल महाराज ने कहा कि गढ़वाली और कुमांऊनी भाषाओं को राज भाषा घोषित करने संबंधी उनकी मांग को कांग्रेस पार्टी के सभी सांसदों के अलावा अन्य पार्टियों के सांसदों का भी समर्थन मिल रहा है।
इस संबंध में शीघ्र ही सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिलेगा। जिला मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि गढ़वाली और कुमांऊनी लोकभाषाएं प्राचीनतम भाषाओं में से एक हैं। देवगाथाओं, जागरों, भड़वार्ताओं, लोकगीतों, थड़िया, चौफुला व मांगलगीतों से इसके प्राचीनतम होने के प्रमाण भी मिलते हैं, जिनसे स्पष्ट है कि ये लोकभाषाएं सिर्फ बोली नहीं बल्कि भाषाएं है, इनका अपना व्याकरण भी हैं। उन्होंने कहा कि कई लिहाज से समृद्ध भाषाएं होने के बावजूद इन दोनों भाषाओं को अभी तक राज भाषा होने का सम्मान नहीं मिल पाया है। करीब एक करोड़ से अधिक लोग इन भाषाओं का कई वर्षो से बोलचाल में उपयोग कर रहे हैं, यदि इन्हें राज भाषा का सम्मान नहीं मिला तो इन लोगों को भावनाओं को ठेस पहुंचेगी। सतपाल महाराज ने कहा कि ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछाने की कवायद तेजी से चल रही है। बरसात के बाद इसका शिलान्यास किए जाने की उम्मीद है। पत्रकार वार्ता के दौरान सतपाल महाराज के साथ पूर्व विधायक अनुसूया प्रसाद मैखुरी, जिलाध्यक्ष सत्येन्द्र बड़थ्वाल, प्रीतम सिंह, कमल रतूड़ी, ओम प्रकाश नेगी, विरेन्द्र असवाल, अरविन्द नेगी आदि मौजूद थे।
 
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6636347.html

 

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